रीतिकाल Reetikal

रीतिकाल| Reetikal

रीतिकाल Reetikal: Reetikal ki Visheshtayen |reetikal ki pravrittiyan. UP Board 10th Hindi Reetikal ki pramukh pravrittiyan| रीतिकाल की प्रमुख विशेषताए एवं प्रवृत्तियां|

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हिंदी इतिहास काल में सन् 1700 ई. के आस-पास हिंदी कविता में एक नया मोड़ आया। इसे विशेषत: तात्कालिक दरबारी संस्कृति और संस्कृत साहित्य से उत्तेजना मिली। संस्कृत साहित्यशास्त्र के कतिपय अंशों ने उसे शास्त्रीय अनुशासन की ओर प्रवृत्त किया। हिंदी में ‘रीति’ या ‘काव्यरीति’ शब्द का प्रयोग काव्शास्त्र के लिए हुआ था। इसलिए काव्यशास्त्रबद्ध सामान्य सृजनप्रवृत्ति और रस, अलंकार आदि के निरूपक बहुसंख्यक लक्षणग्रंथों को ध्यान में रखते हुए इस समय के काव्य को रीतिकाव्य’ कहा गया।

रीतिकाल Reetikal
रीतिकाल Reetikal

रीतिकाल के निम्नलिखित नाम हैं –

1. अलंकृत काल – मिश्र बंधु
2. श्रृंगार काल – आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
3. कलाकाल – डॉo रामकुमार वर्मा व डॉo रमाशंकर शुक्ल रसाल
4. रीति-श्रृंगार काल – डॉo भागीरथ मिश्र
5. रीतिकाल – आचार्य रामचंद्र शुक्ल

 रीतिकाल की धाराएं- तीन धाराएं हैं-

रीतिमुक्त
इस धारा के कवि रीति के बंधन से पूर्णतः मुक्त हैं। अर्थात इन्होंने काव्यांग निरूपण कर ग्रन्थों की रचना न करके हृदय की स्वतंत्र वृतियों के आधार पर काव्य रचना की। इन कवियों में प्रमुख हैं-
घनानन्द, बोधा, आलम, ठाकुर, द्विजदेव।

रीतिसिद्ध
इस वर्ग में वे कवि आते हैं जिन्होंने रीति ग्रन्थ नही लिखे किन्तु रीति की भली-भांति जानकारी रखते थे। इन्होंने अपनी रीति विषयक जानकारी का प्रयोग अपने ग्रन्थों में पूरा-पूरा किया है।
इस धारा के प्रतिनिधि कवि हैं-
बिहारी

रीतिबद्ध
रीतिबद्ध धारा में वे कवि आते हैं जिन्होंने रीति ग्रन्थों की रचना की। कुछ प्रमुख हैं-

चिन्तामणि, मतिराम, देव, जसवंत सिंह, कुलपति मिश्र, मण्डन, सुरति मिश्र, भिखारी दास।

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