up board class 10 syllabus 2022-23- Up Board solution of class 10 Hindi -खंडकाव्य अग्रपूजा (Agrapuja) charitr chitran sarans kathavastu- gyansindhu

up board class 10 syllabus 2022-23– Up Board solution of class 10 Hindi –खंडकाव्य अग्रपूजा (Agrapuja) charitr chitran sarans kathavastu- gyansindhu

up board class 10 syllabus 2022-23– Class 10 Hindi Chapter 3  अग्रपूजा (खण्डकाव्य)- श्री देवीप्रसाद शुक्ल ‘राही’ – अग्रपूजा-खंडकाव्य-सभी-सर्ग-10th, charitr chitran sarans kathavastu. अग्रपूजा खण्डकाव्य के आधार पर पात्रों का चरित्र-चित्रण कीजिए. अग्रपूजा खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। UP Board Solution Class 10 Hindi Chapter Question Answer. Agrapuja. सर्गों का सरांश. agrapooja

अग्रपूजा

प्रश्न 1. ‘अग्रपूजा’ नामक खण्डकाव्य का कथानक (कथावस्तु) अपनी भाषा में लिखिए।

(अथवा) ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य के आधार पर अग्रपूजा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – पूर्वाभास सर्ग – लाक्षागृह से बचकर पाण्डव द्रौपदी के स्वयंवर में पहुँचे। साधु वेशधारी अर्जुन ने लक्ष्यभेद किया। सब राजा पाण्डवों पर टूट पड़े किन्तु पाण्डवों ने सबको पराजित कर दिया। द्रुपद ने द्रौपदी पाण्डवों को सौंप दी। बलराम और कृष्ण ने पाण्डवों को पहचान लिया। वे रात में पाण्डवों के खेमे में पहुँच गये। धृष्टद्युम्न और द्रुपद को भी पाण्डवों का पता चल गया। द्रुपद ने पाण्डवों को बुलवाया और उचित स्वागत – सत्कार के साथ द्रौपदी का विवाह पाण्डवों के साथ कर दिया। श्रीकृष्ण द्रौपदी को अनेक उपहार दिये । पाण्डव द्रौपदी सहित घर आये । द्रौपदी ने कुन्ती को प्रणाम किया और आशीर्वाद पाया।

दुर्योधन को पाण्डवों के जीवित होने का समाचार मिला। वह घबराया। शकुनि और भूरिश्रवा ने दुर्योधन के साथ मिलकर पाण्डवों के नाश की योजना बनायी, कर्ण ने सीधे आक्रमण की सलाह दी। भीष्म, द्रोण और विदुर ने पाण्डवों की आधा राज्य देने की सलाह दी। धृतराष्ट्र ने पाण्डवों को बुलवाया और उनको खाण्डव वन का आधा राज्य दे दिया ।

समारम्भ सर्ग – कृष्ण का आदेश पाकर विश्वकर्मा ने एक सुन्दर नगर बसाया, जिसका नाम था- इन्द्रप्रस्थ पाण्डवों ने इन्द्रप्रस्थ को अपनी राजधाी बनाया और प्रजा के साथ वहाँ रहने लगे। एक बार वहाँ श्रीकृष्ण और व्यास जी आये। श्रीकृष्ण की सलाह से युधिष्ठिर ने राजकार्य सुचारु रूप से चलाना शुरू कर दिया। सब प्रजा सुख से रहने लगी। वहाँ विद्याध्ययन गुरुकुल में होता था तथा शिष्यगण अति शिष्ट आचरण करने वाले होते थे। सभी लोग बड़ों का आदर करते थे तथा छोटों से प्यार करते थे। कहीं किसी प्रकार की उच्छृंखलता नहीं दिखाई देती थी। इस प्रकार धर्मराज युधिष्ठिर के राज्य की अत्यधिक प्रशंसा हो रही थी, उनका यश चारों ओर फैल रहा था।

आयोजन सर्ग – नारद की सलाह से यह निश्चय हुआ कि द्रौपदी अपने प्रत्येक पति के साथ क्रमशः एक-एक वर्ष तक रहा करेगी। इस एक वर्ष के बीच यदि उसका अन्य पति अनाधिकृत रूप से द्रौपदी को देखेगा तो उसे बारह वर्ष तक वन में रहना पड़ेगा । एक बार किसी ब्राह्मण की गायों को चोर चुरा रहे थे । ब्राह्मण की सहायता के लिए अर्जुन को शस्त्र लेने हेतु राजभवन में जाना पड़ा और वहाँ अर्जुन की दृष्टि युधिष्ठिर के साथ द्रौपदी पर पड़ गयी। नियमानुसार अर्जुन को बारह वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा। इसी बीच वे द्वारिका जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने कृष्ण की बहन सुभद्रा से विवाह कर लिया। वनवास की अवधि समाप्त हुई । अर्जुन सुभद्रा को लेकर घर आया । कृष्ण उपहार देने को द्वारिका से आये । वे अर्जुन के साथ रहने लगे। अर्जुन ने कृष्ण की सहायता से इन्द्र को हराया. खाण्डव वन को जलाकर अग्नि को प्रसन्न किया। प्रसन्न अग्निदेव ने चार सफेद घोड़े और कपिध्वज रथ अर्जुन को दिया । कृष्ण को कौमोदकी गदा और सुदर्शन चक्र दिये। वरुण ने अर्जुन को गाण्डीव धनुष और अक्षय तरकस दिया। अर्जुन ने मय नामक दानव की अग्नि से रक्षा की थी। इसलिए मय ने युधिष्ठिर के लिए एक अलौकिक सभाभवन बनवाया और अर्जुन को देवदत्त शंख और भीम को भारी गदा दी। एक दिन नारद ने पाण्डवों को राजसूय यज्ञ करना चाहिए, यह संदेश दिया।

द्वारिका से पुनः कृष्ण को बुलाया गया। कृष्ण ने यज्ञ से पूर्व रुद्रयज्ञ में बलि देने के लिए दो हजार राजाओं को बन्दी बनाने वाले जरासन्ध का वध कराया। तत्पश्चात पाण्डवों ने दिग्विजय की । राजसूय यज्ञ की तैयारियाँ शुरू हुईं और सबको यथायोग्य कार्य सौपे गये ।

प्रस्थान सर्ग – राजसूय यज्ञ की तैयारी पूरी की गयी । अनेक विद्वानों, ऋषियों तथा राजा महाराजाओं को निमन्त्रण भेजे गये। अर्जुन स्वयं श्रीकृष्ण के पास पहुँचे। श्रीकृष्ण ने अर्जुन का समुचित स्वागत-सत्कार किया। श्रीकृष्ण और अर्जुन का एकान्त में परामर्श हुआ। अर्जुन ने कहा- “अब पाण्डवों की लाज रखना आपके हाथ में है। इस यज्ञरूपी सागर से पाण्डवों को आप ही पार उतार सकते हैं।” श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पूर्ण आश्वासन देकर विदा किया। परन्तु उन्हें यज्ञ में गड़बड़ी की आशंका थी उन्होंने उद्धव और बलराम को बुलाकर एक गुप्त गोष्ठी की । उन्होंने यज्ञ में जितने भी व्यवधान हो सकते थे, सब पर विचार किया। यह निश्चय किया गया कि उन्हें पूर्ण सुसज्जित सेना लेकर चलना चाहिए।

श्रीकृष्ण अपनी विशाल सेना के साथ इन्द्रप्रस्थ पहुँचे पाण्डवों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपार श्रद्धा व्यक्त की। पाण्डवों द्वारा श्रीकृष्ण को दिये गये सम्मान को देखकर शिशुपाल भून कर राख हो गया, उसे रातभर नींद नहीं आयी । स्त्रियाँ श्रीकृष्ण का यशोगानं कर रही थीं। उनके सांवले मुख को देखकर चर्चा हुई – “कैसे इन्होंने पूतना, बकासुर, कालिया नाग तथा वृषभासुर जैसे राक्षसों को मार गिराया। उन्होंने खेल-खेल में कंस का वध कर दिया, इतना ही नहीं इन्होंने शिशुपाल के गर्व को चूर-चूर कर रुक्मिणी से विवाह कर लिया।” इस प्रकार इन्द्रप्रस्थ के सभी नर-नारी श्रीकृष्ण की यशोगाथाएँ गा रहे थे। शिशुपाल इन्हें सुन जल उठा।

राजसूय यज्ञ सर्ग – राजसूय यज्ञ की पूर्णता के लिए युधिष्ठिर ने अपने सभी स्वजनों को यथोचित कार्य सौंपे। मन्त्रोच्चारण के साथ हवन सामग्री और वृत से ‘होम’ हुआ। देवता तृप्त हुए।

तदनन्तर अभिषेचनीय (पूज्य पुरुषों का अभिषेक) के लिए विद्वान, ऋषि और गुरुजन बुलाये गये। जिस समय बलराम और कृष्ण दोनों भाई गायक के साथ यज्ञ मण्डप में पधारे, सारे राजा उनके स्वागत में खड़े हो गये किन्तु शिशुपाल नहीं खड़ा हुआ । अभिषेक की घोषणा हुई। सहदेव ने प्रस्ताव किया कि सबसे पहले श्रीकृष्ण की पूजा होगी। भीम ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। शिशुपाल ने इसका कठोर विरोध किया। उसने कृष्ण को बहुत बुरा भला भी कहा। भीम और सहदेव ने शिशुपाल को फटकारा। सर्वप्रथम श्रीकृष्ण की पूजा हुई। तत्पश्चात अन्य सभी पूज्य व्यक्तियों को उचित सम्मान दिया गया तथा पूजन किया गया।

श्रीकृष्ण को इस प्रकार सम्मानित होते देख शिशुपाल क्रोध से पागल हो गया, वह अपने साथियों को लेकर कृष्ण पर झपटा। कृष्ण बैठे-बैठे मुस्कुराते रहे। सभा में सन्नाटा था। सब सोचते थे, न जाने क्या होने वाला है। शिशुपाल को एक अद्भुत दृश्य दिखाई देने लगा। उसे सब ओर श्रीकृष्ण दिखाई दे रहे थे।

कृष्ण ने कहा- “तुम्हारा व्यवहार अशोभनीय है। कहीं ऐसा न हो कि जगत में मर्यादा रखने के लिए मुझे कठोर पग उठाना पड़े।” यह सुनकर शिशुपाल और भी क्रुद्ध हुआ। जैसे ही उसने पुनः हरिनिन्दा शुरू की तभी आकाश में शोर हुआ, धरती काँपने लगी। कृष्ण ने चक्र धारण किया, किसी को पता भी न चला कि कब चक्र ने शिशुपाल का सिर काट दिया। राजसूय यज्ञ विधिपूर्वक हुआ। कहीं कथावाचन हो रहा था, कहीं शास्त्रार्थ, तो कहीं गीत संगीत हो रहा था। एक ओर ब्रह्मभोज हो रहा था। प्रसन्न होकर ब्राह्मण पाण्डवों को आशीर्वाद दे रहे थे।

उपसंहार सर्ग – शिशुपाल वध का दृश्य देख कर सभी चकित थे। जो होना है, वह होता है, जो नहीं होना, वह हो नहीं सकता – यह सोचते हुए युधिष्ठिर ने चेदि देश के राजकुमार (शिशुपाल के पुत्र को वहाँ का राजा बनाया। राजसूय यज्ञ विधिवत सम्पन्न हुआ। युधिष्ठिर ने ब्राह्मणों और विद्वानों को असंख्य धन दान दिया। उन्होंने सभी आगुन्तकों को सम्मानपूर्वक विदा किया। उन्होंने बलराम और श्रीकृष्ण के प्रति बहुत आभार व्यक्त किया । युधिष्ठिर के मन में पुनः पुनः यही विचार आ रहा था कि

श्रीकृष्ण की कृपा के बिना यज्ञ का पूर्ण होना सम्भव न था। सभी राजा बिदा होते समय युधिष्ठिर का गुणगान कर रहे थे, सभी ने उनका आज्ञापालन का वचन दिया। व्यास तथा अन्य अनेक मुनि यज्ञ में आये थे। सबको युधिष्ठिर ने प्रणाम किया। सबने युधिष्ठिर को आशीर्वाद दिया । युधिष्ठिर ने सिर झुका कर आशीर्वाद ग्रहण किया। प्रसन्न मन होकर सब विदा हुए।

प्रश्न – ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य के आधार पर जरासन्ध वध का वर्णन कीजिए।

(अथवा) ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटना का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर – नारद जी द्वारा धर्मराज का सन्देश सुनकर श्रीकृष्ण ने तुरन्त रथ में बैठकर इन्द्रप्रस्थ की ओर प्रस्थान किया । एकान्त में बैठकर युधिष्ठिर ने उन्हें यज्ञ की योजनाओं से अवगत कराया। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा – “राजसूय यज्ञ तो कोई सम्राट ही कर सकता है। सम्राट वह होता है जिसका शासन सम्पूर्ण पृथ्वी पर चलता हो । अभी भी बहुत लोग जरासन्ध को सम्राट मानते हैं। अतः जब तक तुम जरासन्ध पर विजय प्राप्त न कर लो, तब तक सम्राट नहीं कहला सकते। अतः राजसूय यज्ञ करने से पूर्व जरासन्ध पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है।”

श्रीकृष्ण ने बताया कि जरासन्ध ने रुद्रनज्ञ में बलि चढ़ाने के लिए दो हजार राजाओं को बन्दी बना रखा है। वे स्वयं उन्हें रक्षा का वचन देकर आये हैं। यदि जरासन्ध का वध कर दिया जाये तो एक पंथ दो काज की कहावत चरितार्थ होगी, राजाओं के प्राण की रक्षा भी हो जायेगी तथा आप सम्राट भी बन जाओगे। श्रीकृष्ण के इस प्रस्ताव से धर्मराज सहमत हो गये ।

अब प्रश्न था — जरासन्ध का वध कैसे किया जाये? श्रीकृष्ण ने बताया कि आमने-सामने के युद्ध में जरासन्ध को मारना सम्भव नहीं । अतः पहले अर्जुन और भीम जरासन्ध को द्वन्द्वयुद्ध के लिए ललकारें। श्रीकृष्ण ने तीनों का परिचय दिया और जरासन्ध को चुनौती दी कि वह अर्जुन अथवा भीम दोनों में से किसी एक के साथ युद्ध के लिए तैयार हो जाये । जरासन्ध ने अर्जुन को अपने से हीन बताकर भीम के साथ द्वन्द्वयुद्ध करना स्वीकार किया। तेरह दिन तक द्वन्द्वयुद्ध चलता रहा, दोनों में से कोई पराजित होने का नाम न लेता था। अन्त में श्रीकृष्ण के संकेत देने पर भीम ने जरासन्ध की एक टाँग पैर के नीचे दबाई और उसे बीचों बीच से चीर दिया और जरासन्ध मारा गया। बन्दी राजाओं को मुक्त कर जरासन्ध के पुत्र सहदेव को सिंहासन पर बैठाया गया। सहदेव सहित सभी मुक्त राजाओं ने युधिष्ठिर की अधीनता स्वीकार की । उचित निर्देश देकर श्रीकृष्ण द्वारिका चले गये ।

प्रश्न 8. ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य के आधार पर इसके नायक श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए ।

(अथवा) ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।

(अथवा) ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य का प्रमुख पात्र कौन है? उसका चरित्र चित्रण कीजिए ।

(अथवा) ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य के प्रधान पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए ।

उत्तर- ‘अग्रपूजा’ काव्य के नायक हैं- श्रीकृष्ण । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उन्हीं को सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति चुना जाता है, उन्हीं की सबसे पहले पूजा होती है। इसी कारण इस काव्य का नाम ‘अग्रपूजा’ रखा गया है। श्रीकृष्ण के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

अप्रतिम सुन्दर – श्रीकृष्ण अप्रतिम सुन्दर हैं। उनका शरीर सुगठित, वक्षस्थल विशाल और वर्ण अलसी के पुष्प के समान नीले रंग का है।

सच्चे मित्र – श्रीकृष्ण पाण्डवों के सच्चे मित्र हैं। वे प्रत्येक आपत्ति में पाण्डवों की सहायता करते हैं। वे ही मय दानव से युधिष्ठिर के लिए अलौकिक सभाभवन का निर्माण कराते हैं। उन्हीं की सहायता से युधिष्ठिर एक सम्पन्न तथा विशाल राज्य के स्वामी बनते हैं और उनका राजसूय यज्ञ पूर्ण होता है।

दूरदर्शी–श्रीकृष्ण प्रत्येक कार्य का दूरगामी परिणाम सोचते हैं। युधिष्ठिर उन्हें द्वारिका से राजसूय यज्ञ के लिए बुलाते हैं और यज्ञ की योजना उनके सामने रखते हैं परन्तु कृष्ण परामर्श देते हैं कि जरासन्ध उनकी अधीनता स्वीकार नहीं करेगा। सब विरोधी राजा मिलकर उसे शक्तिशाली बना रहे हैं। अतः यज्ञ से पूर्व जरासन्ध को पराजित करना अत्यन्त आवश्यक है। कृष्ण जानते हैं कि जरासन्ध को पराजित करना सरल काम नहीं। अतः भीम और अर्जुन दोनों को साथ लेकर स्वयं वहाँ जाते हैं और जरासन्ध का वध कराते हैं। उनकी दूरदर्शिता यज्ञ की बाधाओं के विषय में विचार करते समय और अधिक स्पष्ट हो जाती है । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ की सफलता श्रीकृष्ण की दूरदर्शिता के कारण ही होती है।

दिव्यशक्ति सम्पन्न – कृष्ण कोई साधारण पुरुष नहीं, दिव्यशक्ति से सम्पन्न अलौकिक पुरुष हैं। राजसूय यज्ञ में आये हुए सभी अतिथि कृष्ण को विविध रूपों में देखते हैं। व्यास, भीष्म आदि को विराट पुरुष दिखाई देते हैं, पाण्डवों को स्वजन मालूम पड़ते हैं, अतिथियों को कामदेव प्रतीत होते हैं और शिशुपाल को कालरूप दिखाई पड़ते हैं जिसे देखकर वह भयभीत हो जाता है।

अनुपम व्यक्तित्व- श्रीकृष्ण शील, शक्ति, गुण तथा तेज के पुंज हैं। उनका व्यक्तित्व ही इतना प्रभावपूर्ण है कि राजसूय यज्ञ में जब वे आते हैं, सब राजा स्वागत में खड़े हो जाते हैं। वे शील, सौजन्य, दया और प्रेम आदि गुणों के पुंज हैं। उनका हृदय फूल से भी अधिक कोमल तथा वज्र से भी अधिक कठोर है।

क्षमाशील – श्रीकृष्ण में सहनशीलता भी असीम है। वे शिशुपाल के अपशब्दों को सुनते रहते हैं। बहुत देर तक सहन करते हैं और यही सोचते हैं कि सभा उसे क्षमा कर दे। वे तभी उसका वध करते हैं जब वह मर्यादा का उल्लंघन करता है।

इस प्रकार श्रीकृष्ण का चरित्र अनेक लौकिक तथा अलौकिक गुणों की खान है। वे महान वीर, विनयशील, नीतिज्ञ, दिव्यशक्ति, से सम्पन्न युग पुरुष हैं। राजसूय यज्ञ में उन्हें सर्वप्रथम पूजनीय चुना जाता है।

प्रश्न 9. ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य के आधार पर युधिष्ठिर का चरित्र चित्रण कीजिए।

(अथवा) ‘अग्रपूजा’ खण्डकाव्य के आधार पर युधिष्ठिर के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर – युधिष्ठिर के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

धार्मिक – युधिष्ठिर धर्म में दृढ़ आस्था रखते हैं। उनके समस्त कार्य धर्मानुसार होते हैं। वे परम सत्यवादी और न्यायकारी हैं. इसीलिए वे ‘धर्मराज’ नाम से विख्यात हैं। धर्मशास्त्रों में विश्वास- युधिष्ठिर धर्मशास्त्र में पूर्ण विश्वास रखते हैं। उनके सभी कार्य शास्त्रीय विधि से सम्पन्न होते हैं। इन्द्रप्रस्थ में प्रवेश करते समय वे समस्त मांगलिक कार्य करते हैं। विद्वान ब्राह्मणों की पूजा करते हैं।

विनयशीलता – युधिष्ठिर अत्यन्त विनयशील हैं। पाण्डव द्रौपदी स्वयंवर के उपरान्त धृतराष्ट्र के निमन्त्रण पर हस्तिनापुर पहुँचते हैं। तब गुरु को देखते ही युधिष्ठिर रथ से उतर कर गुरु को प्रणाम करते हैं वे जनता के अभिवादन को भी बड़ी नम्रता से स्वीकार करते हैं।

उदार तथा दानी — युधिष्ठिर हृदय से बड़े उदार और दानी हैं। अवसर मिलने पर वे दिल खोलकर दान करते हैं। राजसूय यज्ञ में दुर्योधन को कोषाध्यक्ष तथा कर्ण को दानपति बनाते हैं जिससे दान में कोई कमी न रहे। यज्ञ पूर्ण होने पर वे एक हजार करोड़ स्वर्ण मुद्रा ब्राह्मणों को दान करते हैं। वे सब राजाओं का भी उदार हृदय से सत्कार करते हैं।

निरभिमानी – युधिष्ठिर वैभव होते हुए भी अभिमान नहीं करते। अहंकार तो उन्हें स्पर्श भी नहीं कर पाता है। कृतज्ञ – युधिष्ठिर किसी के किये हुए उपकार को भुलाते नहीं । श्रीकृष्ण ने इन्द्रप्रस्थ का निर्माण कराया अतः वे के कृष्ण प्रति कृतज्ञ हैं। उनकी कृतज्ञता उस समय स्पष्ट हो जाती है जब श्रीकृष्ण जाने लगते हैं और युधिष्ठिर उनसे कहते हैं कि उन्हीं के कारण यह वन एक सम्पन्न राज्य बन गया है।

सारांश यह है कि युधिष्ठिर एक धार्मिक उदार हृदय राजा हैं। वह एक सफल राजा, आस्तिक तथा विनयशील साक्षात धर्मराज हैं। उनके सुशासन का वर्णन करते हुए श्री राम बहोरी शुक्ल ने अपने सपनों के भारत का चित्र उपस्थित किया है ।

कवि के मतानुसार हमारे देश में वही होना चाहिए- जो युधिष्ठिर के राज्य में होता था। राजा हो तो वह सदाचार, न्यायी, प्रजापालक,कर्तव्यनिष्ठ, सच्चरित्र एवं बुद्धिमान होना चाहिए।

 

Most Important Other Links

Class 10th English Full Syllabus and Solutions Click Here
All Subjects Model Papers PDF DownloadClick Here
UP Board Official WebsiteClick Here
Join Telegram Channel For Live ClassClick Here
Join Official Telegram Channel Of GyansindhuClick Here
Hindi Syllabus / Mock Test / All PDF Home PageClick Here

 

Comments are closed.

error: Content is protected !!