Class 10th  Sanskrit Chapter 2 Anyoktivilas अन्योक्तिविलास: Hindi Translation

Class 10th  Sanskrit Chapter Anyoktivilas अन्योक्तिविलास:

संस्कृत हिंदी पाठ्य-पुस्तक Class 10th  Anivarya Sanskrit  के  पाठ Chapter 2 Anyoktivilas अन्योक्तिविलास: के Chapter 2 के आधार पर पाठ 1 का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद सरल भाषा में दिए जा रहे है , यूपी बोर्ड की कक्षा 10 के पाठयक्रम के आधार पर सम्पूर्ण पाठ का अनुवाद दिया जा रहा है , विगत वर्षों में आये हुए प्रश्नों का बेहतरीन संकलन है , सभी विद्यार्थी इसका लाभ उठायें|

आवश्यक बात – इस पाठ का अनुवाद हर वाक्य अलग कर के किया गया है |यदि कोई समस्या हो तो नीचे  दिए गए लिंक पर क्लिक कर के वीडियो के माध्यम से समझें|

 

 Book Name / पाठ्य पुस्तक का नामScert
Class / कक्षाClass 10th / कक्षा -10
Subject / विषयHindi /हिंदी
Chapter Number /  पाठ संख्याChapter 2  पाठ -2
Name of Chapter / पाठ का नामAnyoktivilas /अन्योक्तिविलास:
Board Name /  बोर्ड का नामयूपी बोर्ड 10th हिंदी/up board 10th Hindi
 Book Name / पाठ्य पुस्तक का नामNon NCERT / एन सी आर टी
Class / कक्षाClass 10th / कक्षा -10

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( अन्योक्तियों का सौन्दर्य )

नितरां नीचोऽस्मीति त्वं खेदं कूप ! कदापि मा कृथाः ।

अनुवाद -हे कुएँ ! “ ( मैं ) अत्यधिक नीच ( गहरा ) हूँ ” -तुम इस प्रकार कभी भी खेद मत करो ;

अत्यन्तसरसहृदयो परेषां गुणग्रहीताऽसि।।1 ।।

क्योंकि ( तुम ) अत्यन्त सरस – हृदय ( जल से पूर्ण ) हो ( और ) दूसरों के गुणों ( रस्सियों ) को ग्रहण करनेवाले हो ।

यतः नीर – क्षीर – विवेके हंसालस्यं त्वमेव तनुषे चेत् ।

– हे हंस ! यदि तुम ही नीर और क्षीर का विवेक करने में आलस्य करोगे ,

विश्वमिस्मन्नधुनान्यः कुलव्रतं पालयिष्यति कः।।2 ।।

तो इस संसार में ऐसा कौन है जो अपने कुलव्रत का पालन करेगा ?

कोकिल ! यापय दिवसान् तावद् विरसान् करीलविटपेषु ।

हे कोयल ! तब तक तुम अपने नीरस दिनों को करील के वृक्षों पर ही बिताओ ।

यावन्मिलदलिमालः कोऽपि रसालः समुल्लसति।।3 ।।

जब तक भौंरों से युक्त कोई आम्रवृक्ष विकसित न  हो ,

*संपूर्ण अनुवाद – हे कोयल ! जब तक भौंरों से युक्त कोई आम्रवृक्ष विकसित न  हो ,तब तक तुम अपने नीरस दिनों को करील के वृक्षों पर ही बिताओ । ( अर्थात् जब तक अच्छे दिन आएँ , व्यक्ति को बुरे दिन किसी प्रकार व्यतीत कर लेने चाहिए ) ।

Up  board non NCERT textbook for Class 10 Hindi explanations -2 (Anyoktivilas)

रे रे चातक ! सावधानमनसा मित्र ! क्षणं श्रूयताम् ।

हे मित्र चातक ! सावधान मन से क्षण भर सुनो ।

अम्भोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ।।

आकाश में अनेक बादल रहते हैं , पर सभी ऐसे ( उदार ) नहीं होते ।

केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा ।

कुछ तो वर्षा से पृथ्वी को गीला कर देते हैं , ( पर ) कुछ व्यर्थ ही गरजते हैं ।

यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः।।4 ।।

जिस – जिस को देखते हो उस – उस के सामने दीन वचन मत बोलो । ( अर्थात हर एक से माँगना उचित नहीं ; क्योंकि हर एक व्यक्ति दानी नहीं होता ) ।

न वै ताडनात् तापनाद् वह्निमध्ये न वै विक्रयात् क्लिश्यमानोऽहमस्मि ।

मैं ( स्वर्ण ) न तो पीटे जाने से , न अग्नि में तपाए जाने से और न बेचे जाने से दुःखी होता हूँ ।

सुवर्णस्य मे मुख्यदुःखं तदेकं यतो मां जना गुञ्जया तोलयन्ति ।। 5 ।।

मुझ सुवर्ण का एक ही दुःख है कि लोग मुझको रत्ती ( घुघुची ) से तोलते हैं , यही दुःख है |

भौंरा कमल में बन्द हो गया , वह रातभर यही सोचता रहा कि –

रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं , भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पंकजालिः ।

रात्रि समाप्त होगी , प्रातःकाल होगा , सूर्य उदित होगा , कमल – समूह विकसित होगा ।

इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे , हा हन्त ! हन्त ! नलिनी गज उज्जहार।।6 ।।

” दुःख का विषय है कि कमल – कोश में बन्द भौरे के इस प्रकार विचार – मग्न होने पर , किसी हाथी ने कमलिनी को उखाड़ लिया ।

( अर्थात् व्यक्ति सोचता कुछ है , जब कि ईश्वर कुछ और ही कर देता है )

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