Bapu ke Prati padyansh solutions बापू के प्रति पद्यांशों का हल

Bapu ke Prati padyansh solutions बापू के प्रति पद्यांशों का हल

पद्यांशो से बनने वाले सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के साथ

Up Board exam Hindi for intermediate (General Hindi And Literature Hindi) chapter Bapu ke prati ke padyansho par adharit prashn padyansh ke prash questin answersबापू के प्रति पद्यांश आधारित प्रश्न sukh bhog khojane aate sab aye tum karne satya khoj. UP Board सुमित्रानन्दन पन्त sumitranandan pant  बापू  के प्रति पाठ पर आधारित प्रश्न यहाँ प्रस्तुत हैं –

Class 12th (class 12) Intermediate
SubjectGeneral Hindi (सामान्य हिंदी )
ChapterBapu ke prati (बापू के प्रति)
Topic पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर (padyansh adharit prashnottar)
Board UP BOARD (UPMSP) NCERT HINDI
ByArunesh Sir
Other वीडियो के माध्यम से समझें

बापू के प्रति

पद्यांश – i

 तुमं, मांसहीन , तुम्म रक्तहीन हे अस्थिशेष ! तुम्- अस्थिहीन ,

तुम! शुद्ध बुद्ध . आत्मा केवल , हे चिर पुराण ! हे चिर नवीन !

तुम पूर्ण इकाई जीवन की , जिसमें असार भव – शून्य लीन ,

आधार अमर , होगी जिस पर भावी की संस्कृति समासीन ।

तुम मांस , तुम्हीं हो रक्त – अस्थि निर्मित जिनसे नवयुग का तन ,

तुम धन्य ! तुम्हारा नि : स्व त्याग है विश्व भोग का वर साधन ;

इस भस्म – काम तन की रज से जग पूर्ण – काम नव जगजीवन ,

बीनेगा सत्य – अहिंसा के ताने – बानों से मानवपन |

  • भाषा – संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली ।
  • अलंकार – उल्लेख , विरोधाभास , यमक एवं रूपक
  • रस – भक्ति
  • शब्दशक्ति – अभिधा एवं लक्षणा
  • गुण – प्रसाद ।
  1. पद्यांश के पाठ और कवि का नाम लिखिए ।

उ०- प्रस्तुत पद्यांश प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘ युगान्त ‘ से हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक के काव्य भाग में संकलित ‘ बापू के प्रति ‘ शीर्षक कविता से उद्धृत है ।

  1. रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ०- युगपुरुष महात्मा गांधी की स्तुति करते हुए कविवर पन्त कहते हैं कि हे बापू ! तुम शरीर से दुर्बल तथा मांस और रक्त से हीन हो एवं तुम्हारा शरीर हड्डियों का ढाँचामात्र है । उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारे शरीर में अस्थियाँ भी शेष नहीं हैं । तुम पवित्र ज्ञान से युक्त आत्मावाले हो । तुममें प्राचीन और नवीन आदर्शों का समन्वय है ; अर्थात् तुम प्राचीन आदर्शों के साथ – साथ नवीन आदर्शों को भी स्वीकार करते हो ।

  • गांधीजी के शरीर को देखकर कवि को कैसा प्रतीत

होता है?

उ०-गांधीजी के शरीर को देखकर कवि कहते हैं कि हे बापू ! तुम शरीर से दुर्बल और मांस व रक्त से हीन हो और तुम्हारा शरीर हड्डियों का ढाँचामात्र है । उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारे शरीर में अस्थियाँ भी शेष नहीं हैं |

  1. कवि के अनुसार नवयुग का निर्माण किससे होगा ?

उ०-  कवि के अनुसार नवयुग का निर्माण महात्मा गांधी के सद् – आदर्शों से होगा ।

  1. कवि के अनुसार गांधीजी का निःस्वार्थ त्याग किसका कारण बनेगा ?

उ०- कवि के अनुसार गांधीजी का नि : स्वार्थ त्याग मानव – जाति के कल्याण का कारण बनेगा ।

पद्यांश – ii

(2) सुख भोग खोजने आते आए तुम करने सत्य – खोज ,

जग की मिट्टी के पुतले जन , तुम आत्मा के , मन के मनोज !

जड़ता , हिंसा , स्पर्धा में भर अहिंसा , नम्र ओज ,

पशुता का पंकज बना दिया तुमने मानवता सरोज

  • अलंकार – रूपक एवं अनुप्रास
  • रस – शान्त
  • गुण – माधुर्य ।
  1. रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ०- पन्तजी कहते हैं कि हे बापू ! प्रायः समस्त प्राणी पृथ्वी पर जन्म लेकर सुख की कामना करते हैं , परन्तु आपने इस पृथ्वी पर सत्य को खोज करने के लिए अवतार लिया । मानव मिट्टी से निर्मित एक पुतला है । वह यहाँ मिट्टी से बनकर आता है तथा अन्त में मिट्टी में ही मिल जाता है । हे बापू आप भी मिट्टी के बने थे , परन्तु आपके उस मिट्टी – निर्मित शरीर में सत्य आत्मा निवास करती थी तथा आप मन को प्रसन्न करनेवाले कमल के समान थे|

  1. मानव को मिट्टी का पुतला बताकर कवि ने क्या कहा है ?

उ०- मानव को मिट्टी का पुतला बताकर कवि ने जीवन को क्षणभंगुरता की ओर संकेत किया है । उसके अनुसार मानव मिट्टी से बना एक पुतला है और अन्त में इस मिट्टी में ही मिल जाता है ।

  • बापू ने मानवों में किन मानवीय गुणों को जाग्रत किया ?

उ०- बापू ने मानवों की अकर्मण्यता , हिंसा और प्रतिद्वन्द्विता को दूर करके उनमें ज्ञान , अहिंसा और आत्मिक शक्ति जैसे मानवीय गुणों को जाग्रत किया ।

  1. यहाँ कीचड़ में उत्पन्न कमल को किस सन्दर्भ में प्रयुक्त किया गया है ?

उ०- यहाँ कीचड़ में उत्पन कमल को इस सन्दर्भ में प्रयुक्त किया गया है | कि बापू ने मानव – समाज में व्याप्त वर्गभेद , जातिभेद , हिंसा आदि की कीचड़ में उत्पन्न होकर भी स्वयं को सत्य , अहिंसा और त्याग के गुणों से समन्वित करके मानवतारूपी स्वच्छ सरोवर में उत्पन कमल के समान बना दिया ।

पद्यांश – iii

(3) कारा थी संस्कृति विगत , भित्ति

बहु धर्म – जाति – गति रूप – नाम ,

बन्दी जग – जीवन , भू विभक्त

विज्ञान – मूढ़ जन प्रकृति – काम ,

आये तुम मुक्त पुरुष , कहने

मिथ्या जड़ बन्धन , सत्य राम ,

नानृतं जयति सत्वं मा भैः ,

जय ज्ञान – ज्योति तुमको प्रणाम !

  • अलंकार – रूपक एवं अनुप्रास ।
  • रस – शान्त ।
  • शब्दशक्ति अभिधा और लक्षणा ।
  • गुण – प्रसाद ।
  1. रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए |

उ०- हमारी संस्कृति पिछले लम्बे समय से वन्दिनी थी अर्थात् यहाँ सबकुछ विदेशियों की इच्छानुसार संचालित था , हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप कुछ भी करने की स्वतन्त्रता न थी । हमारे बीच में धर्म – जाति , ऊँच – नीच , गोरे – काले आदि की अनेक दीवारें खड़ी थीं , जो कि हमारी प्रगति में बाधा डाल रही थीं । इस प्रकार सम्पूर्ण सामान्य जन – जीवन ही कैद में था ।

सम्पूर्ण धरती क्षेत्रीयता और भाषावाद आदि के आधार पर बँटी हुई थी । विज्ञान की प्रगति के कारण विवेकहीन मनुष्य प्रकृति को अपनी इच्छानुसार संचालित करने का प्रयत्न कर रहा था । ऐसी विषम परिस्थितियों में हे महात्मा गांधी आप हमारे मध्य जीवनमुक्त योगी के रूप में अवतरित हुए । हमें यह सन्देश देने के लिए ही आप हमारे मध्य अवतरित हुए कि इस संसार के सारे रिश्ते – नाते झूठे और व्यर्थ हैं ।

  1. विगत संस्कृति की कौन – कौन सी दीवारें थीं ?

उ०- विगत संस्कृति की दीवारें धर्म – जाति , ऊँच – नीच , गोरे – काले आदि के भेदभाव की अनेक दीवारें थीं ।

  • ‘जड़ बन्धन मिथ्या है और राम सत्य है ‘ यह उद्घोष करने कौन आया ?

उ०-‘ जड़ बन्धन मिथ्या है और राम सत्य है ‘ यह उद्घोष करने महात्मा गांधी आए थे ।

  1. ‘ नानृतं जयति सत्यं ‘ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

उ०-‘ नानृतं जयति सत्यं ‘ का अर्थ है कि झूठ की नहीं , बल्कि सत्य की विजय होती है ।

  1. हमारी विगत संस्कृति कैसी थी ?

उ०- हमारी विगत संस्कृति कारागार के समान थी |

  1. सदैव किसकी विजय होती है ?

उ०- सदैव सत्य की विजय होती है |

 

error: Content is protected !!