हिंदी (भारतीय काव्यशास्त्र) काव्य लक्षण| Bharteey Kavyashastra Kavya Laskshan PAribhashaye
Bhartiy Kavyashastra ||Kavya Hetu Kavya Lakshan || भारतीय काव्यशास्त्र काव्य-लक्षण For NET JRF TGT PGT: हिंदी विषय का पाठ्यक्रम भारतीय काव्यशास्त्र एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र NTA NET/JRF UP TGT PGT KVS NET SLET SET HINDI Kavyashastra Kavya laskhsan Free PDF Book in Hindi|
Subject | Hindi (हिंदी) |
Topic | काव्यशास्त्र के अंतर्गत काव्य लक्षण |
Other | विभिन्न विद्वानों के अनुसार काव्य लक्षण परिभाषाएं उक्तियाँ कथन सूक्तियां |
Video Link |
काव्य लक्षण
- भारतीय आलोचना शास्त्र में सर्वप्रथम भरत ने मृदुललित पदावली , गूढ़शब्दार्थहीनता , सर्वसुगमता , युक्तिमत्ता , नृत्योपयोग – योग्यता , बहुवृतरसमार्गता , एवं संधियुक्तता के रूप में काव्य के सात तत्त्वों का निरूपण किया है , किंतु ये मुख्यत : रूपक पर घटित होते हैं काव्य पर नहीं ।
- मृदुललित पदाढ्य गूढ़शब्दार्थहीनं
जनपदसुखबोध्यं — युक्तिमन्नृत्योज्यम्
बहुकृतरसमार्ग संधिसंधानयुक्तं
स भवति शुभकाव्यं नाटक प्रेक्षकाणाम् ।
-नाट्यशास्त्र- ( भरतमुनि )
- वास्तविक काव्यलक्षण का प्रारंभ भामह से होता है , जिन्होंने शब्द और अर्थ के सहभाव ( शब्दार्थों सहितौ काव्यम ) को काव्य की संज्ञा दी है ।
- आचार्य दण्डी के अनुसार इष्ट अर्थ को व्यक्त करने वाली पदावली काव्य है-
- शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली |
- आचार्य वामन ने रीति को काव्य की आत्मा माना है । रीतिरात्मा काव्यस्य|
- रीति से उनका अभिप्राय है विशिष्ट पद रचना ( विशिष्ट पदरचना रीतिः ) विशिष्ट का अर्थ है गुणयुक्त या विशेषो गुणात्मा इस प्रकार रीति का अर्थ गुणयुक्त पदरचना ।
प्रसिद्ध पंक्तियाँ /सूक्तियां/सूत्र/कथन
- शब्दार्थों सहित काव्यम् । -भामह
- तददोषौशब्दार्थों सगुणावनलंकृति पुन : क्वापि । -मम्मट
- वाक्यं रसात्मकं काव्यं -विश्वनाथ
- रमणीयार्थ प्रतिपादक : शब्द : काव्यम् -पंडितराज जगन्नाथ
- रीतिरात्मा काव्यस्य| – वामन
- ननु शब्दार्थों काव्यम् | –रुद्रट
- वक्रोत्ति काव्यजीवितम् | –कुंतक
- जदपि सुजाति सुलक्षणी , सुबरन सरस सुवृत्त ।
भूषन बिनु न विराजई कविता वनिता मित्त ।। –आचार्य केशवदास
- कोमल शब्द निबंत सुवृत्त ,अलंकारमय मोहन चित्त ।
काव्य सुपद्धति सोभा महे । इनके बाहुपाश कवि गहे । ‘ –केशवदास ”
- सगुनालंकार सहित दोष रहित जो होई ।
शब्द अर्थ तीकों कवित कहत बिबुध सब कोई ।। ” -चिंतामणि
- बतकहाउ रसमैं जु है कवित कहावै सोय -चिंतामणि ‘
- जगते अद्भुत लोकोत्तर चमत्कार ‘ यह लक्षण मैं कर्यो । ” –कुलपति मिश्र
- जगत अद्भुत सुखसदन , सब्दरु अर्थ कवित्त ।
- वह लक्ष्छन मैंने कियो , समूझि ग्रंथ बहुचित्त । –कुलपति मिश्र ( रस रहस्य )
- शब्द जीव तिहि अरथ मन , रसमत सुजस सरीर ।
- चलत वहै जुग छंद गति , अलंकार गंभीर । –देव ( काव्य रसायन)
- व्यंग्य जीव कहि कवित्त को हृदय सु धुनि पहिचानि
- शब्द अर्थ कहि देह पुनि भूषण – भूषण जानि ।। –प्रताप साहि ( काव्य विलास)
- शब्द अर्थ संगम सहित भरे चमत्कृत भाय ।
- जग अद्भुत मैं अद्भुतहिं , सुखदा ‘ काव्य बनाय !। –ग्वाल ( रसिकानंद )
- अतःकरण की वृत्तियों के चित्र का नाम कविता है । ‘ –आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
- अव्यक्त की अभिव्यक्ति जगत है अतः कविता अभिव्यक्ति की अभिव्यक्ति हुई । ” – आचार्य रामचंद्र शुक्ल
- सत्त्वोद्रेक या हृदय की मुक्तावस्था के लिए किया हुआ शब्द – विधान काव्य है । – आचार्य शुक्ल
- जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान – दशा कहलाती है , उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस – दशा कहलाती है । हृदय की इसी मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द – विधा करती आई है , उसे कविता कहते हैं । – आचार्य शुक्ल |
अन्य
- जगत का नाना वस्तुओं – व्यापारों का एक रूप में रखना कि वे हमारे भाव चक्र के भीतर आ जायें । यही काव्य का लक्ष्य होता है । ‘ –आचार्य शुक्ल ‘
- काव्य संसार के प्रति कवि की भाव – प्रधान ( किंतु क्षुद्र वैयक्तिक संबंधों से मुक्त ) मानसिक प्रतिक्रियाओं की , कल्पना के ढाँचे में ढली हुई श्रेय की प्रेमरूपा प्रभावोत्पादक अभिव्यक्ति है । ” –बाबू गुलाब राय
- काव्य जीवन – प्रकृति का अंतदर्शन है । उसकी अनुभूति है । यह अनुभूति कोई भावुकताजन्य स्फूर्ति नहीं , न कोई आध्यात्मिक कल्पना है , बल्कि अखंड मानवजीत के व्यक्तित्व की अनुभूति है । ” –डॉ ० लक्ष्मी नारायण ‘ सुधांशु “
- काव्य तो प्रकृत मानव अनुभूतियों का नैसर्गिक कल्पना के सहारे ऐसा सौन्दर्यमा चित्रण है , जो मनुष्यमात्र में स्वभावत : भावोच्छ्वास और सौंदर्य संवेदन उत्पन्न करता है । ” –आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ”
- साहित्य से हमारा आशय उन विशिष्ट और प्रतिनिधि रचनाओं से है , जो किसी युग के भावात्मक जीवन का प्रतिमान होती हैं , जो समाज और सामाजिक जीवन को भली या बुरी दशा में ले जाने की प्रबल सामर्थ्य रखती हैं । ” -आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ‘
- साहित्य मनुष्य के अंतर का उच्छलित आनंद है , जो उसके अंतर में अटाए नहीं अट सका था । साहित्य का मूल यही आनंद का अतिरेक है । उच्छलित आनंद के अतिरेक से उद्भूत सृष्टि ही सच्चा साहित्य है । ” -हजारी प्रसाद द्विवेदी ‘
- मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ । जो वाग्ज़ाल मनुष्य के दुर्गति , हीनता और परमुखापेक्षता से बचा न सके , जो उसकी आत्मा को तेजोदीप्त न बना सके , जो उसके हृदय को पर – दुःख कातर और संवेदनशील न बना सके , उसे साहित्य , कहने में मुझे संकोच होता है । ” कथन है । –आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
- आत्माभिव्यक्ति ही वह मूल तत्त्व है , जिसके कारण कोई व्यक्ति साहित्यकार और उसकी कृति साहित्य बन पाती है । ” –डॉ ० नगेन्द्र ‘
- साहित्य जनता की वाणी है । उसके जातीय चरित्र का दर्पण है । प्रगति पथ में बढ़ने के लिए उसका मनोबल है । उनकी सौन्दर्य चाह पूरी करने वाला साधन है । ” –डॉ ० रामविलास शर्मा ‘
- कविता सबसे पहले शब्द है और अंत में भी यही बात रह जाती है कि कविता शब्द है । ‘ -अज्ञेय
- ” काव्य आत्मा की संकल्पात्मक अनुभूति है जिसका सम्बन्ध विश्लेषण , विकल्प या विज्ञान से नहीं है । वह एक श्रेयमयी प्रेम रचनात्मक धारा है । –जयशंकर प्रसाद ।
- “ साहित्य अपने व्यापक अर्थ में , मानव जीवन की गम्भीर व्याख्या है । ” -पंत
- ” कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है । ” -पंत ‘
- कविता सबसे बड़ा परिग्रह है , क्योंकि वह विश्व – मात्र के प्रति स्नेह की स्वीकृति है । वह जीवन के अनेक कष्टों का उपेक्षा योग्य बना देता है क्योंकि उसका सृजन स्वयं महती वेदना है । वह शुष्क सत्य को आनंद में स्पंदित कर देती है , क्योंकि अनुभूति स्वयं मधुर है । ” कथन है । –महादेवी वर्मा ”
- मुँह में बचे हुए चावल के स्वाद को कुछ अदृश्य कंकड़ियों के हस्तक्षेप से बचाने का नाम है कविता । ‘ ये पंक्तियाँ किसकी हैं । –केदारनाथ सिंह ‘
- कविता शब्दों की अदालत में अपराधियों के कटघरे में खड़े एक निदोष आदमी का हलफनामा है । ” -धूमिल
- कविता भाषा में आदमी होने की तमीज है । ‘ –धूमिल
********************