Bhasha Aur Adhunikata Gadyansh Adharit Prashnotar Prof. G. Sundar Reddy

भाषा और आधुनिकता – प्रो ० जी ० सुन्दर रेड्डी

Bhasha aur Adhunikata -Gadyansh Adharit Prashnottar

Bhasha Aur Adhunikata Gadyansh Adharit Prashnotar Prof. G. Sundar Reddy- प्रिय विद्यार्थियों! यहाँ पर मैंने प्रोफ़ेसर जी सुन्दर रेड्डी द्वारा लिखा गया पाठ – भाषा और अधुनिकता के गद्यांश पर आधारित प्रश्नोत्तर विधिवत प्रदान कर रहा हूँ| Dear Students! Here weBhasha Aur Adhunikata Gadyansh Adharit Prashnotar Prof. G. Sundar Reddy  Are Discussed about up board Hindi Class 12 Chapter Gadyansh adharit Prashnottar , Hindi Bhasha Aur Adhunikata Written By Professor G Sunder Reddy ke Gadyansh par adharit Prashn evan Uttar .

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( 1 ) यदि यह नवीनीकरण सिर्फ कुछ पंडितों की व आचार्यों की दिमागी कसरत ही बनी रहे तो भाषा गतिशील नहीं होती । भाषा का सीधा सम्बन्ध प्रयोग से है और जनता से है । यदि नए शब्द अपने उद्गम – स्थान में ही अड़े रहें और कहीं भी उनका प्रयोग किया नहीं जाए तो उसके पीछे के उद्देश्य पर ही कुठाराघात होगा । 

प्रश्न- ( i ) भाषा का सीधा सम्बन्ध किससे है ?

उत्तर-  भाषा का सीधा सम्बन्ध प्रयोग एवं जनता से है ।

( ii ) नए शब्दों के प्रयोग न किए जाने पर क्या परिणाम होगा ?

उत्तर- नए शब्दों के प्रयोग न किए जाने पर उसके पीछे के उद्देश्य पर कुठाराघात होगा ।

( iii ) ‘ कुठाराघात ‘ का आशय स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- कुठाराघात शब्द से आशय है कि भाषा जिस दिन स्थिर हो गई , उसी दिन से उसमें क्षय आरम्भ हो जायेगा ।

( iv ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर- जो भाषा जितनी अधिक जनता द्वारा स्वीकार एवं परिवर्तित की जाती है , वह उतनी ही अधिक जीवन्त एवं चिरस्थायी होती है ।

( v ) पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए ।

उत्तर- शीर्षक भाषा और आधुनिकता लेखक – प्रो ० जी ० सुन्दर रेड्डी ।

( 2 ) ” भाषा स्वयं संस्कृति का एक अटूट अंग है । संस्कृति परम्परा से निःसृत होने पर भी परिवर्तनशील और गतिशील है । उसकी गति विज्ञान की प्रगति के साथ जोड़ी जाती है । वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रभाव के कारण अद्भूत नयी सांस्कृतिक हलचलों को शाब्दिक रूप देने के लिए भाषा के परम्परागत प्रयोग पर्याप्त नहीं हैं । इसके लिए नये प्रयोगों की नयी भाव – योजनाओं को व्यक्त करने के लिए नये शब्दों की खोज की महती आवश्यकता है । 

प्रश्न – ( i ) संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर- संस्कृति परम्परा से निःसृत होने पर भी परिवर्तनशील और गतिशील है ।

( ii ) नए शब्दों की खोज की आवश्यकता क्यों होती है ?

उत्तर- नयी प्रयोगों के नयी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए नये शब्दों की खोज की आवश्यकता होती है ।

( iii ) ‘ उद्भूत ‘ और ‘ परम्परागत ‘ का अर्थ लिखिए ।’

उत्तर- उद्भूत ‘ का अर्थ उत्पन्न और ‘ परम्परागत ‘ का अर्थ परम्परा से चला आना है ।

( iv ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए |

उत्तर- ‘ भाषा ‘ किसी भी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग होती है । क्योंकि भाषा का निर्माण समाज के द्वारा किया जाता है । भाषा अभिव्यक्ति का महत्त्वपूर्ण साधन है ।

( v ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए |

उत्तर- शीर्षक — भाषा और आधुनिकता । • लेखक – प्रो ० जी ० सुन्दर रेड्डी ।

( 3 ) ” भाषा की साधारण इकाई शब्द है । शब्द के अभाव में भाषा का अस्तित्व ही दुरूह है । यदि भाषा में विकसन शीलता शुरू होती है तो शब्दों के स्तर पर ही दैनंदिन सामाजिक व्यवहारों में हम कई ऐसे नवीन शब्दों का इस्तेमालकरते हैं , जो अंग्रेजी , अरबी , फारसी आदि विदेशी भाषाओं से उधार लिये गये हैं । वैसे ही नये शब्दों का गठन भी अनजाने में अनायास ही होता है । ये शब्द अर्थात उन विदेशी भाषाओं से . साधे अविकृत ढंग से उधार लिए गए शब्द , भले ही कामचलाऊ माध्यम से प्रयुक्त हों , साहित्यिक दायरे में कदापि ग्रहणीय नहीं । यदि ग्रहण करना पड़े तो उन्हें भाषा की मूल प्रकृति के अनुरूप साहित्यिक शुद्धता प्रदान करनी पड़ती है । ”

प्रश्न- ( i ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर-   लेखक कहता है कि शब्द किसी भी भाषा की मूलभूत इकाई है । एक नए शब्द का आगम अथवा निर्माण भाषा में हो जाता है ।

( ii ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने क्या स्पष्ट करने का प्रयास किया है ?

उत्तर-  प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि शब्द के अभाव में भाषा का अस्तित्व अस्पष्ट रहता है ।

( iii ) गद्यांश का शीर्षक एवं लेखक का नाम बताइये ।

उत्तर-  शीर्षक – भाषा और आधुनि लेखक प्रो ० जी ० सुन्दर रेड्डी

( iv ) शब्द के अभाव में भाषा का अस्तित्व कैसा है ?

उत्तर-  शब्द के अभाव में भाषा का अस्तित्व ‘ दुरुह ‘ है । यदि भाषा में विकासशीलता शुरू होती है तो शब्दों के स्तर पर ही ।

( v ) दैनंदिन सामाजिक व्यवहारों में हम किन भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करते हैं ?

उत्तर-  दैनंदिन सामाजिक व्यवहारों में हम ऐसे नवीन शब्दों का प्रयोग करते हैं , जो अंग्रेजी , अरबी , फारसी आदि विदेशी भाषाओं से उधार लिये गये हों ।

( 4 ) रमणीयता और नित्य नूतनता अन्योन्याश्रित हैं , रमणीयता के अभाव में कोई भी चीज मान्य नहीं होती । नित्य नूतनता किसी भी सर्जक की मौलिक उपलब्धि की प्रामाणिकता सूचित करती है और उसकी अनुपस्थिति में कोई भी चीज वस्तुतः जनता व समाज के द्वारा स्वीकार्य नहीं होती । सड़ी – गली मान्यताओं से जकड़ा हुआ समाज जैसे आगे बढ़ नहीं पाता , वैसे ही पुरानी रीतियों और शैलियों की परम्परागत लीक पर चलने वाली भाषा भी जन चेतना को गति देने में प्रायः असमर्थ ही रह जाती है । भाषा समूची युग – चेतना की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है और ऐसी सशक्ता तभी वह अर्जित कर सकती है जब वह अपने युगानुकूल सही मुहावरों को ग्रहण कर सके । भाषा सामाजिक भाव .प्रकटीकरण की सुबोधता के लिए ही अतिरिक्त उसकी जरूरत ही सोची नहीं जाती । 

प्रश्न- ( i ) सर्जक की मौलिक उपलब्धि का प्रमाण क्या हैं?

उत्तर-   सर्जक की मौलिक उपलब्धि का प्रमाण नित्य नूतनता है । उसकी अनुपस्थिति में कोई भी चीज वस्तुतः जनता व समाज के द्वारा स्वीकार्य नहीं होती ।

( ii ) किससे जकड़ा हुआ समाज आगे बढ़ नहीं पाता ?

उत्तर-   सड़ी – गली मान्यताओं से जकड़ा हुआ समाज आगे नहीं बढ़ पाता ।

( iii ) ‘ रमणीयता ‘ और ‘ उद्दिष्ट ‘ शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर-   रमणीयता – सुन्दरता उद्दिष्ट – उद्देश्य रखने वाली

( iv ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर-  लेखक ने स्पष्ट किया है कि भाषा समस्त युग चेतना की अभिव्यक्ति करने का सशक्त माध्यम है और कोई भी भाषा ऐसी सशक्तता तभी प्राप्त कर सकती है जब वह अपने युग के अनुरूप सटीक तथा नवीन मुहावरों को ग्रहण कर सके ।

( v ) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए ।

उत्तर-   शीर्षक – भाषा और आधुनिकता । लेखक – प्रो ० जी ० सुन्दर रेड्डी |

( 5 ) नये शब्द , नये मुहावरे एवं नयी रीतियों के प्रयोगों से युक्त भाषा को व्यावहारिकता प्रदान करना ही भाषा में आधुनिकता लाना है । दूसरे शब्दों में केवल आधुनिक युगीन विचारधाराओं के अनुरूप नये शब्दों के गढ़ने मात्र से ही भाषा का विकास नहीं होता , वरन् नये पारिभाषिक शब्दों को एवं नूतन शैल – प्रणालियों को व्यवहार में लाना ही भाषा को आधुनिकता प्रदान करना है । 

प्रश्न – ( i ) गद्यांश का शीर्षक एवं लेखक का नाम बताइये ।

उत्तर- शीर्षक — भाषा और आधुनिकता लेखक- प्रो ० जी ० सुन्दर रेड्डी

( ii ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का क्या मानना है ?

उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का मानना है कि भाषा में आधुनिकता लाने के लिए आवश्यक है कि उसमें नए – नए शब्दों तथा मुहावरों को , नई शैलियों को अपनाया जाय ।

( iii ) लेखक भाषा को अपनाने पर क्या बल देता है ?

उत्तर- लेखक भाषा को किए जाने वाले सभी परिवर्तनों का सम्बन्ध व्यावहारिक धरातल से रहना अति आवश्यक बताता है । लेखक का मानना है कि व्यावहारिकता ही भाषा का प्राण तत्व है ।

( iv ) ‘ रीतियों ‘ , ‘ नूतन ‘ , प्राणतत्व का शब्दार्थ लिखिए ।

उत्तर- शब्दार्थ निम्न प्रकार  हैं रीतियों पद्धतियों नवीन नई नूतन प्राण तत्व आत्मा

( v ) प्रस्तुत गद्यांश में प्रयुक्त भाषा एवं शैली लिखिए ।

उत्तर- भाषा संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली है । शैली विवेचनात्मक एवं विचारात्मक है ।

 

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