Bhayanak Ras ki Paribhasha

Bhayanak Ras ki Paribhasha- भयानक रस

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किसी भयानक वस्तु या जीवन को देखकर भावी दुःख की आशंका से हृदय में जो भाव उत्पन्न होता है , उसे ” भय ‘ कहते हैं । जब ‘ भय ‘ नामक स्थायी भाव विभाव , अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग में रस रूप में परिणत होता है , तो उसे ‘ भयानक ‘ रस कहते हैं ।

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भयानक रस

किसी भयानक वस्तु या जीवन को देखकर भावी दुःख की आशंका से हृदय में जो भाव उत्पन्न होता है , उसे ” भय ‘ कहते हैं । जब ‘ भय ‘ नामक स्थायी भाव विभाव , अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग में रस रूप में परिणत होता है , तो उसे ‘ भयानक ‘ रस कहते हैं ।

उदाहरण-

एक ओर अजगरहि लखि , एक ओर मृगराय ।

विकल बटोही बीच ही , पर्यो मूर्छा खाय ॥

स्पष्टीकरण – किसी निर्जन वन में भयभीत यात्री की दशा का वर्णन है । ‘ भय ‘ स्थायी भाव तथा ‘ भयानक रस है ।

आश्रय – बटोही ( यात्री ) ।

आलम्बन – अजगर एवं मृगराज ।

उद्दीपन – एकान्त वन , सिंह का भयानक मुख , दाँत , अजगर का भयंकर रूप ।

अनुभाव – कम्प , प्रलय , वैवर्ण्य आदि ।

व्यभिचारी भाव – जड़ता , चिन्ता , शंका , विषाद , मरण आदि ।

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