Class 10 भूगोल Chapter 1 संसाधन एवं विकास PDF Notes in Hindi- sansadhan evan vikas Laghu uttariya dergh uttaiya prashn

Class 10 भूगोल Chapter 1 संसाधन एवं विकास PDF Notes in Hindi- sansadhan evan vikas Laghu uttariya dergh uttaiya prashn

UP Board Solution of Social Science Bhugol chapter 1 Sansadhan Evam Vikas – PDF notes. लघु उत्तरीय एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न – कक्षा १० यूपी बोर्ड सामाजिक विज्ञान विस्तृत एवं लघु उत्तरीय प्रश्न. class-10-social-science-geography-question-answer-sansadhan-eva-vikas.

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संसाधन एवं विकास- लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. संसाधनों का वर्गीकरण करने के कौन-कौन से आधार प्रचलित हैं? सभी आधारों को बताइए ।

उत्तर.संसाधनों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है, जिसका विवरण निम्नलिखित है

उत्पत्ति के आधार पर जैव और अजैव संसाधन ।

समाप्यता के आधार पर नवीकरणीय और अनवीकरणीय संसाधन ।

स्वामित्व के आधार पर व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन।

विकास के स्तर के आधार पर सम्भावी, विकसित, भण्डार और संचित कोष ।

प्रश्न 2. नवीकरणीय संसाधन क्या हैं? इन्हें कितने भागों में विभाजित किया जाता है?

उत्तर.नवीकरणीय संसाधन वे संसाधन, जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यान्त्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, उन्हें नवीकरण योग्य या पुन: पूर्ति योग्य संसाधन कहा जाता है; जैसे— सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलं, वन व वन्यजीव। इनको दो भागों में विभाजित किया जाता है

(i) सतत संसाधन इन संसाधनों को एक ही समय पर प्रयोग और पुनः प्राप्त किया जा सकता है। ये एक स्थान पर नहीं रहते हैं, बल्कि भौतिक परिवेश में प्राकृतिक रूप से भ्रमण करते रहते हैं; जैसे- बहता हुआ जल, सौर विकिरण, हवा आदि ।

(ii) जैविकीय संसाधन ये संसाधन जैविक प्रक्रिया द्वारा बनते हैं। इनको दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है। प्रथम, प्राकृतिक वनस्पति और द्वितीय, वन्यजीव ।

प्रश्न 3. सामुदायिक संसाधन एवं राष्ट्रीय संसाधन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए |

उत्तर – सामुदायिक संसाधन वे संसाधन, जिनका स्वामित्व समुदाय के सभी सदस्यों के पास समान रूप से उपलब्ध होता है, सामुदायिक संसाधन कहलाते हैं; जैसे- गाँव की चारण भूमि, तालाब, श्मशान भूमि तथा शहरों में सार्वजनिक पार्क, पिकनिक स्पॉट, खेल का मैदान आदि ।

राष्ट्रीय संसाधन तकनीकी स्तर पर देश में पाए जाने वाले सम्पूर्ण संसाधन राष्ट्रीय संसाधन हैं। इन संसाधनों पर देश की सरकार का कानूनी अधिकार होता है। खनिज संसाधन, वन एवं वन्यजीव, जल तथा राजनीतिक सीमा के अन्दर सम्पूर्ण भूमि राष्ट्रीय सम्पदा के अन्तर्गत आती है।

प्रश्न 4. संसाधन नियोजन क्या है? संसाधन नियोजन क्यों आवश्यक है ? तीन कारण स्पष्ट कीजिए ।

अथवा संसाधन नियोजन की आवश्यकता क्यों पड़ती है? इस हेतु दो उपाय सुझाइए!

उत्तर.   संसाधन नियोजन से आशय उपलब्ध संसाधनों की पहचान और मात्रा के साथ-साथ उनके उचित विकास से है। संसाधन विकास योजना, राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों के अनुरूप होने चाहिए।

भारत में संसाधन विशाल मात्रा में उपलब्ध हैं, लेकिन उनका विकास अपर्याप्त है या उन्हें असमान रूप से वितरित किया जाता है। संसाधनों के नियोजन की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है–

  • संसाधनों की बर्बादी पर रोक लगती है।
  • पर्यावरण प्रदूषण मुक्त हो जाता है।
  • वर्तमान/समकालीन समय में सभी को संसाधन प्राप्त होते हैं।
  • इसको भावी पीढ़ी की आवश्यकता पूर्ति के लिए बनाए रखा जाता है।

संसाधनों के नियोजन हेतु सरकार द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के लिए वनारोपण को बढ़ावा देना चाहिए, खनन प्रक्रिया पर नियन्त्रण लगाना चाहिए, सिंचाई का समुचित प्रबन्धन किया जाना चाहिए, चारागाहो का समुचित प्रबन्धन किया जाना चाहिए आदि ।

प्रश्न 5. संसाधन नियोजन की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर. संसाधन नियोजन की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं–

  1. देश के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान कर उनकी तालिका बनाना प्रमुख कार्य है। इस कार्य में क्षेत्रीय सर्वेक्षण, मानचित्र बनाना और संसाधनों का गुणात्मक एवं मात्रात्मक अनुमान लगाना व मापन करना सम्मिलित है।
  2. उपयुक्त कौशल और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके संसाधन विकास के लिए योजना तैयार करना।
  3. संसाधन सम्बन्धी विकास योजनाओं और राष्ट्रीय विकास योजना में समन्वय स्थापित करना।
  4. भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् संसाधन नियोजन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गई हैं। संसाधनों की उपलब्धता अकेले शुरू नहीं हो सकती, इसलिए विकास की उचित प्रक्रिया, आवश्यक तकनीक व संस्थागत ढाँचे की आवश्यकता है।
  5. वर्तमान में यह काम नीति आयोग के द्वारा किया जा रहा है।

प्रश्न 6. संसाधनों का संरक्षण करना हमारे लिए क्यों आवश्यक है? उल्लेख “कीजिए।

उत्तर–विकास के क्रम में सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं से बचने के लिए संसाधनों का संरक्षण एवं उनका विवेकपूर्ण उपयोग अत्यधिक आवश्यक है। वर्ष 1987 में ब्रण्टलैण्ड कमीशन रिपोर्ट में संसाधन संरक्षण की आवश्यकता का व्यापक रूप से उल्लेख किया गया है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सतत विकास की अवधारणा को उचित बताया गया है। गाँधीजी के अनुसार, “हमारे पास एक व्यक्ति की आवश्यकता पूर्ति के लिए बहुत कुछ है, लेकिन किसी के लालच की सन्तुष्टि के लिए नहीं अर्थात् हमारे पास पेट भरने के लिए बहुत है, लेकिन पेटी भरने के लिए नहीं।” गाँधीजी अत्यधिक उत्पादन के विरुद्ध थे और इसके स्थान पर अधिक जन-समुदाय द्वारा उत्पादन के पक्षधर थे।

प्रश्न 7. प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपभोग कैसे हुआ है?

उत्तर. प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण प्रत्येक प्रकार के संसाधन का उपभोग बढ़ा है, जिसका विवरण निम्नलिखित है

  • तकनीकी विकास के आलोक में आत्मनिर्वाह कृषि का स्थान व्यापारिक कृषि ले लेती है, जिससे मृदा का दोहन बढ़ता है
  • प्रौद्योगिकी के कारण खनिजों का दुर्गम और अगम्य स्थानों से भी खनन होने लगता है, जिससे उस क्षेत्र विशेष के संसाधन का उपभोग बढ़ता है।
  • तकनीकी विकास के कारण औद्योगीकरण में तीव्रता आती है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपभोग होता है।
  • आर्थिक विकास के कारण आधुनिकीकरण एवं नगरीकरण में अत्यधिक तीव्रता आई है, जिससे संसाधनों की मांग में वृद्धि देखने को मिलती है।
  • प्रौद्योगिकी विकास के कारण सामान्य वस्तुएँ जो तटस्थता की अवस्था में होती हैं, वे भी संसाधन का रूप लेती हैं और मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। वर्तमान परिदृश्य में तकनीकी विकास वह यन्त्र है, जो संसाधनों के अनुकूलतम प्रयोग को बढ़ावा देता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रौद्योगिकी और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों के उपभोग में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।

प्रश्न 8. भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है स्पष्ट करते हुए भारत के भौगोलिक क्षेत्र के वितरण को बताइए।

उत्तर.भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जिस पर मानव जीवन, वन्य जीवन, प्राकृतिक वनस्पति, आर्थिक क्रियाएँ, परिवहन एवं संचार आदि आधारित हैं। भूमि एक सीमित संसाधन है, इसलिए भूमि का विभिन्न उद्देश्यों के लिए सावधानी और योजनाबद्ध तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए। भारत के भौगोलिक क्षेत्र (Geographical Area) में

  • 43% भू-क्षेत्र मैदान है, जो कृषि एवं उद्योग के विकास में सहायक होता है।
  • 27% भू-क्षेत्र पर पठार हैं, जिसमें खनिजों, जीवाश्म ईंधन और वनों का अपार भण्डार है।
  • 30% भू-क्षेत्र पर पर्वत है, जो बारहमासी नदियों के प्रवाह एवं पर्यटन विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करते हैं।

प्रश्न 9. भारत में भूमि उपयोग प्रारूप का वर्णन कीजिए। वर्ष 1960-61 से वन के अन्तर्गत क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई, इसका क्या कारण है?

उत्तर.भारत में भूमि उपयोग को निर्धारित करने वाले तत्त्वों में भू-आकृति,जलवायु तथा मृदा के प्रकार प्रमुख भौतिक कारक हैं, जबकि जनसंख्या घनत्व, तकनीकी विकास, संस्कृति तथा परम्पराएं मानवीय कारक हैं। भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है। भारत के कुल सिंचित क्षेत्र के 54% भाग पर कृषि हो सकती है, जबकि वर्तमान में 43% भू-भाग पर खेती की जाती है।

भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 21% भाग में वन हैं। वर्ष 1952 की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, निर्धारित वनों के अन्तर्गत 33% भौगोलिक क्षेत्र वांछित है, जिनकी तुलना में वन क्षेत्र बहुत कम हैं। पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखने के लिए वनों के क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है। औद्योगिक विस्तार तथा शहरीकरण की प्रवृत्ति के कारण वन के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण वृद्धि नहीं हो सकी है।

प्रश्न 10. जलोढ़ मिट्टी व लैटेराइट मिट्टी में अन्तर लिखिए।

उत्तर. जलोढ़ व लैटेराइट मिट्टी में अन्तर– 

आधार

निर्माणजलोढ़ मिट्टी– जलोढ़ मिट्टी का निर्माण पर्वतीय क्षेत्रों की नदियों द्वारा बहाकर लाई गई कॉप मिट्टी काँप से होता है।

लैटेराइट मिट्टी – इसका निर्माण भारी वर्षा से हुए तीव्र निक्षालन के कारण होता है।

विस्तार

जलोढ़ मिट्टी – यह उत्तर के विशाल मैदान तथा पूर्वी तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है।

लैटेराइट मिट्टी – यह भारी वर्षा वाले क्षेत्रों; जैसे- मेघालय, केरल, कर्नाटक में पाई जाती है।

आधार

  • उत्पादन – जलोढ़ मिट्टी – यह मृदा गेहूं, चावल, जौ, चना, गन्ना आदि के लिए उपजाऊ होती है।
  • लैटेराइट मिट्टी – यह अनुर्वर होती है, परन्तु उर्वरकों की मदद से इसमें गन्ना, काजू, कहवा आदि उगाया जा सकता है।
  • रंग – जलोढ़ मिट्टी –  यह पीले व भूरे रंग की होती है।
  • लैटेराइट मिट्टी – यह गहरे पीले रंग की होती है।
  • जल ग्रहण क्षमता – जलोढ़ मिट्टी – यह सूक्ष्म तथा मध्यम कणों से निर्मित होती है, जिसमें जल देर तक ठहर सकता है।
  • लैटेराइट मिट्टी – इसमें मोटे कणों, कंकड़-पत्थरों की अधिकता रहती है, जिस कारण जल अधिक देर तक नहीं ठहरता।

प्रश्न 11. काली मिट्टी का निर्माण किस प्रकार हुआ? काली मिट्टी और – लैटेराइट मिट्टी में दो अन्तर लिखिए । उत्तर.काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी क्रिया से बनी लावाकृत शैलों के अपक्षय से हुआ है।

         काली और लैटेराइट मिट्टी में अन्तर

आधार—-

  • निर्माण – काली मिट्टी – इसका निर्माण ज्वालामुखी क्रिया से बनी लावाकृत शैलों के अपक्षय से होता है।
  • लैटेराइट मिट्टी – इसका निर्माण उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में तीव्र वर्षा द्वारा निक्षालन प्रक्रिया से होता है।
  • खनिज – काली मिट्टी – इस मिट्टी में लोहा, मैग्नीशियम, चूना, बॉक्साइट तथा जीवांशों की मात्रा अधिक होती है।
  • लैटेराइट मिट्टी – यह सिलिका तथा लवणीय कणों से युक्त होती है। फॉस्फोरस और पोटाश कम मात्रा में पाया जाता है।
  • रंग तथा प्रकृति – काली मिट्टी – यह गहरे काले रंग की होती है। वर्षा होने पर चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर इसमें दरारें पढ़ जाती है।
  • लैटेराइट मिट्टी – यह लाल व पीले रंग की होती है। वर्षा होने पर मुलायम हो जाती है तथा सूखने पर कठोर हो जाती है।

प्रश्न 12. जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ बताइए । अथवा जलोढ़ मिट्टी की कौन-सी चार विशेषताएँ हैं? जलोढ़ मिट्टी का निर्माण कैसे होता है?

अथवा जलोढ़ मिट्टी की तीन विशेषताओं को लिखिए। उत्तर जलोढ़ मृदा का निर्माण, नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों के निक्षेपण से होता है।

अतः यह मृदा उत्तरी मैदान और नदी घाटियों के विस्तृत भागो में पाई जाती है। जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • जलोढ़ मृदाएँ गठन में बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी की प्रकृति की पाई जाती है। सूक्ष्म तथा मध्यम कणों से निर्मित होने के कारण इसमें जल देर तक ठहर सकता है।
  • सामान्यतः इनमें पोटाश की मात्रा अधिक पाई जाती है।
  • यह मृदा पीले तथा भूरे रंग की होती है। इसका रंग निक्षेपण की गहराई, जलोढ़ के गठन और निर्माण में लगने वाली समयावधि पर निर्भर करता है।
  • जलोढ़ मुदाओं पर गहन कृषि की जाती है।

प्रश्न 13. बांगर और खादर में अन्तर बताइए ।

अथवा जलोढ़ मृदा का निर्माण कैसे होता है? खादर और बांगर क्षेत्र में अन्तर बताइए।

उत्तर. जलोढ़ मृदा का निर्माण हिमालय के तीन महत्त्वपूर्ण नदी तन्त्रों सिन्धु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र द्वारा लाए गए निक्षेपों से होता है। बांगर और खादर में निम्नलिखित अन्तर हैं– 

               खादर

  • यह नई तलछट द्वारा निर्मित होता है।
  • यह मैदान का निचला भाग होता है, जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ का जल पहुँचता है।
  • यह अपेक्षाकृत कम उपजाऊ मृदा होती है|
  • इस मृदा में तलछट के जमाव में भिन्नता देखने को मिलती है।

                    बांगर

  • मैदान की पुरानी जलोढ़ मृदा बांगर कहलाती है।
  • यह मैदान का ऊंचा भाग होता है. जहाँ नदियों के बाद का जल नहीं पहुँचता है।
  • यह अपेक्षाकृत अधिक उपजाऊ मृदा होती है।
  • इस मृदा में कैल्शियम की मात्रा अधिक पाई जाती है।

प्रश्न 14. पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर किस प्रकार की मृदा पाई जाती है? इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य ‘विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर.  पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर जलोढ़ मृदा पाई जाती है। पूर्वी तट की ओर महानदी, कृष्णा, गोदावरी एवं कावेरी नदी डेल्टाओं का निर्माण करती हैं। जलोढ़ मृदा की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं- 

  • यह मृदा नदियों द्वारा लाए गए निक्षेपों द्वारा निर्मित होती है।
  • यह मृदा उत्तरी मैदान में पाई जाती है।
  • यह मृदा बहुत ही उपजाऊ होती है।
  • इस मृदा में पोटाश, फॉस्फोरस तथा चूना पोषक तत्त्व पाए जाते हैं।
  • जलोढ़ मृदा दो प्रकार की होती है-खादर और बांगर ।

प्रश्न 15. एक संसाधन के रूप में मिट्टी के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर.मिट्टी प्रकृति द्वारा प्राप्त संसाधनों में से एक है। समस्त जीवधारी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अपने जीवन के लिए मिट्टी पर निर्भर होते हैं। मिट्टी मानव एवं वनस्पति जगत व जीव जंतुओं के अस्तित्व के लिए अनिवार्य घटक है। मिट्टी समस्त जीव जगत की खाद्य एवं आवास की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। विश्व की समस्त प्राचीन सभ्यताएँ व उन्नतिशील संस्कृतियां उन्हीं क्षेत्रों से अत्यधिक विकसित हुई है, जहाँ की मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ होती है। वर्तमान में भी मिट्टी की उर्वरता देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रही हैं।

              

Chapter – 1 संसाधन एवं विकास – दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. स्वामित्व के आधार पर संसाधनों के वर्गीकरण को बताइए। उत्तर स्वामित्व के आधार पर संसाधनों को निम्न वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है

(i) व्यक्तिगत संसाधन के संसाधन, जो निजी व्यक्तियों के स्वामित्व में होते हैं, व्यक्तिगत संसाधन कहलाते हैं जैसे बागान, चरागाह भूमि, तालाब और कुओं का जल आदि निजी व्यक्तिगत संसाधन के उदाहरण हैं।

(ii) सामुदायिक संसाधन वे संसाधन, जिनका स्वामित्व समुदाय के सभी सदस्यों के पास समान रूप से उपलब्ध होता है, सामुदायिक संसाधन कहलाते हैं; जैसे- गाँव की चारण भूमि, तालाब, श्मशान भूमि तथा शहरों में सार्वजनिक पार्क, पिकनिक स्पॉट, खेल का मैदान आदि।

(iii) राष्ट्रीय संसाधन तकनीकी स्तर पर देश में पाए जाने वाले सम्पूर्ण संसाधन राष्ट्रीय संसाधन हैं। इन संसाधनों पर देश की सरकार का कानूनी अधिकार होता है। खनिज संसाधन, वन एवं वन्यजीव, जल तथा राजनीतिक सीमा के अन्दर सम्पूर्ण भूमि राष्ट्रीय सम्पदा के अन्तर्गत आती है।

(iv) अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन इन संसाधनों पर संचालन एवं स्वामित्व का अधिकार अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों के पास रहता है। उदाहरणस्वरूप; तट रेखा से 200 किमी की दूरी (अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र) के बाद खुले महासागरीय संसाधनों पर किसी देश का अधिकार नहीं होगा। ऐसे संसाधनों का उपयोग अन्तर्राष्ट्रीय आधिकारिक संस्थाओं की सहमति के बाद ही सम्भव होता है।

प्रश्न 2. भू-संसाधन का अर्थ लिखिए। एक संसाधन के रूप में भूमि का उपयोग किन उद्देश्यों के लिए जाता है? व्याख्या कीजिए।

उत्तर. भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जिस पर मानव जीवन, वन्य जीवन, प्राकृतिक वनस्पति, आर्थिक क्रियाएँ, परिवहन एवं संचार आदि आधारित हैं। भूमि एक सीमित संसाधन है, इसका उपयोग निम्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है

मनुष्य के जीवन का आधार भूमि के अभाव में मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। मनुष्य के जीवन के सभी क्रियाकलाप; जैसे- चलना-फिरना, व्यवसाय, मकान, दुकान, कृषि, उत्खनन व कारखाने सभी भूमि से जुड़े हैं। वनस्पति एवं पेयजल संसाधन भी भूमि पर ही निर्भर हैं।

आर्थिक विकास का आधार किसी भी देश का विकास वहाँ पर उपस्थित प्राकृतिक संसाधनों जैसे भूमि, वनस्पति, खनिज पदार्थ, उपजाऊ भूमि, जल,जलवायु आदि पर निर्भर करता है। ये संसाधन जिस देश में जितनी अधिक मात्रा में होंगे, उनका आर्थिक विकास उतनी ही तीव्रता से होगा।

प्राथमिक उद्योगों का विकास विभिन्न प्राथमिक उद्योगों जैसे कृषि, मत्स्यपालन, वनस्पति, खनिज व्यवसाय आदि का विकास भूमि पर निर्भर करता है। जिन क्षेत्रों में जिस प्रकार के प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं, वहाँ उन्हीं से संबंधित प्राथमिक उद्योगों का विकास हो सकता है।

व्यापार का आधार भूमि, उत्पादन का एक अनिवार्य साधन है, जिसके बिना किसी भी प्रकार का उत्पादन कार्य संभव नहीं है। अधिकांश देशों का व्यापार भूमि द्वारा उत्पादित वस्तुओं; जैसे-गेहूँ, चावल, दूध, खनिज पदार्थ, तेल, चाय, लकड़ी इत्यादि द्वारा ही होता है। शक्ति संसाधन अधिकांश ऊर्जा के उत्पादन का साधन कोयला तथा तेल है, जिसका स्रोत भूमि है।

परिवहन तथा संचार के साधनों का विकास अधिकांश परिवहन एवं संचार के साधनों का विकास भूमि पर ही हुआ है। सड़क, रेलमार्ग, डाक-तार आदि का विकास भूमि पर निर्भर करता है।

रोजगार का आधार मनुष्य को रोजगार प्रदान करने में भूमि का बहुत अधिक महत्त्व है। भारत में लगभग 55% जनसंख्या कृषि पर आश्रित है। सभी प्रकार की आजीविकाएँ भी भूमि संसाधन पर ही निर्भर हैं।

प्रश्न 3. जलोढ़ मिट्टी तथा काली मिट्टी की विशेषताओं को संक्षेप में लिखिए।

उत्तर जलोढ़ मिट्टी की विशेषताएँ जलोढ़ मिट्टी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • धान, गेहूँ, जौ, चना, गन्ना एवं मटर आदि की पैदावार के लिए अनुकूल होती है।
  • जलोढ़ मृदाएँ गठन में बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी की प्रकृति की पाई जाती है। । सूक्ष्म तथा मध्यम कणों से निर्मित होने के कारण इसमें जल देर तक ठहर सकता है।
  • सामान्यतः इनमें पोटाश की मात्रा अधिक पाई जाती है।
  • यह मृदा पीले तथा भूरे रंग की होती है। इसका रंग निक्षेपण की गहराई जलोढ़ के गठन और निर्माण में लगने वाली समयावधि पर निर्भर करता है।
  • जलोढ़ मृदाओं पर गहन कृषि की जाती है।
  • भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र के 45.6% भाग पर विस्तृत है ।

काली मिट्टी की विशेषताएँ काली मिट्टी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • नमी धारण करने की अधिक क्षमता ।
  • ज्वालामुखी क्रिया से निर्माण ।
  • कपास के लिए उपयुक्त।
  • पर्याप्त मात्रा में खनिज की उपस्थिति
  • यह 45.60% क्षेत्र में विस्तृत है। ।

प्रश्न 4. भारत में मिट्टी के प्रकारों पर एक निबन्ध लिखिए।

अथवा भारत में पाई जाने वाली मिट्टी के किन्हीं तीन प्रकारों की विवेचना कीजिए।

उत्तर.रासायनिक और भौतिक गुणों, जैसे-रंग, बनावट, मोटाई आदि के आधार पर भारत की मृदाओं को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है।

(i) जलोढ़ मृदा जलोढ़ मृदा भारत में विस्तृत रूप से फैली हुई है। इस मृदा का निर्माण हिमालय के तीन महत्त्वपूर्ण नदी तंत्रों सिंधु गंगा और ब्रहम्पुत्र द्वारा लाए गए निक्षेपों से होता है यह मृदा भारत के संपूर्ण क्षेत्र के 45.6% भाग में विस्तृत है। इसकी उर्वरक क्षमता अधिक होती है। जिन क्षेत्रों में यह मृदा पाई जाती है, वहां कृषि अधिकता से की जाती है और वहां धनी जनसंख्या पाई जाती है।

(ii) काली मृदा इस मृदा को रेगर या काली कपास मृदा भी कहा जाता है। यह भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 45.6% भाग में विस्तृत है। यह बहुत महीन कणों से बनी है।

(iii) लाल और पीली मृदा इस मृदा का रंग लाल होता है। यह भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 50.6% भाग पर विस्तृत है। इस मृदा का लाल रंग दक्कन पठार के कम वर्षों वाले क्षेत्रों में लोहे के कणों का आग्नेय और रुपांतरित चट्टानों में फैलने के कारण होता है। यह मृदा जलयोजना के कारण पीली हो जाती है।

(iv) लैटेराइट मृदा लैटराइट शब्द का शाब्दिक अर्थ ईंट होता है। लैटराइट मृदा उच्च तापमान और अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है। लैटेराइट मृदा के निर्माण में निशालन प्रक्रिया की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।

(v) मरुस्थलीय मृदा यह मुदा भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 4% भाग में विस्तृत है। कुछ क्षेत्रों में इस मृदा में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है कि झीलों से जल वाष्पीकृत करके इससे नमक बनाया जाता है।

(vi) वनीय एवं पहाड़ी मृदा यह भारत के 8% भौगोलिक क्षेत्र पर विस्तृत है। यह मुदा नदी घाटियों में दोमट और सिल्टदार होती है, लेकिन ऊपरी ढलानों पर इसकी गठन मोटे कणों से होता है।

(vii) लवणीय मृदा इस मृदा को ऊसर मृदा कहते हैं। लवणीय मृदा में सोडियम, पोटेशियम और मैगनीशियम का अनुपात अधिक होता है। अतः यह अनुर्वर होती है।

(viii) पीट या जैविक मृदा यह मुदा भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त उन क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ वनस्पति की वृद्धि अच्छी हो, क्योंकि यहाँ मृत जैव पदार्थ बड़ी मात्रा में एकत्र हो जाते हैं। इसमें जैव पदार्थ 40% से 50% तक होते हैं। यह सामान्यतः गाई व काले रंग की होती है।

प्रश्न 5. भारत में भूमि उपयोग के प्रमुख प्रारूपों की विवेचना कीजिए ।

उत्तर.भारत में भूमि के उपयोग के प्रमुख प्रारूप निम्नलिखित हैं- 

कृषि योग्य भूमि भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है। भारत के कुल सूचित क्षेत्र के लगभग 54% भाग पर कृषि की जाती है। पंजाब तथा हरियाणा में लगभग 80% भूमि पर कृषि की जाती है।

वन भूमि हमारे देश में वन भूमि में लगातार कमी हो रही है। वर्तमान में लगभग 21% भू-भाग पर ही वन शेष हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर वन भूमि का लक्ष्य 33% निश्चित किया गया है। भारत में वन भूमि का वितरण भी असमान हैं पर्वतीय प्रदेश तथा तटीय भागों के अतिरिक्त पठारी व मैदानी क्षेत्रों में यह 10% से कम है।

कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि इस श्रेणी में निम्नलिखित प्रकार की भूमि शामिल की जाती है–

(i) चरागाह भूमि हरी घास का ऐसा विस्तृत क्षेत्र, जिस पर पशुओं को चराया जाता है, ‘चरागाह भूमि कहलाती है।

स्थायी चरागाह यह यह भूमि है, जिस पर अधिकतर ग्राम पंचायतों व सरकार का स्वामित्व होता है। स्थायी चरागाहों में सबसे अधिक भूमि (23%) हिमाचल प्रदेश में है।

(ii) बंजर भूमि जिस भूमि पर कोई कृषि उपज नहीं होती, वह ‘बंजर भूमि’ कहलाती है। यहाँ पर केवल झाड़ियों व घास उगती है। भूमि के बंजर होने के कुछ कारणों में वनों का कटान, अत्यधिक नहरी सिंचाई, औद्योगिक अपशिष्टों का जमाव आदि है। देश की 24% भूमि बंजर है, जिसके अंतर्गत पर्वतीय, पठारी व मरुस्थलीय भूमि आती है।

(iii) परती भूमि परती भूमि में प्रत्येक वर्ष खेती नहीं की जाती है। इस प्रकार की भूमि पर 2 या 3 वर्षों में एक बार फसल उगाई जाती है। यह सीमांत भूमि है, जिसे उर्वरता बढ़ाने के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। वर्तमान में लगभग 7% भूमि इसमें शामिल है। भू-उपयोग में वर्ष 1960-61 और 2014-15 के मध्य निम्नलिखित प्रकार के परिवर्तन हुए

(i) देश में राष्ट्रीय वन नीति, 1952 द्वारा निर्धारित वनों के अंतर्गत 33% भौगोलिक क्षेत्र निर्धारित है, लेकिन तुलनात्मक दृष्टि से वन के अंतर्गत बहुत कम क्षेत्र है। (ii) स्थायी चरागाह के अंतर्गत भी भूमि कम हुई है।

(iii) अधिकांश वर्तमान परती भूमि के अतिरिक्त अन्य परती भूमि अनुपजाऊ है और इन पर फसल उगाने के लिए कृषि लागत बहुत ज्यादा है। इन भूमियों पर 2-3 वर्ष में एक-दो बार कृषि की जाती है। इनको शुद्ध बोए गए क्षेत्र में शामिल किया जाता है, तो भारत की कुल शुद्ध भूमि 54% होगी ।

प्रश्न 6. प्राकृतिक संसाधन क्या है? इनके संरक्षण की आवश्यकता क्यों है?

उत्तर.प्राकृतिक संसाधन प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए सभी तत्त्व, जो मनुष्य के लिए उपयोगी होते हैं, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। मिट्टी, जलवायु, वनस्पति, खनिज, वर्षा, ऊर्जा आदि सभी प्राकृतिक संसाधन हैं, जो मनुष्य के लिए उपयोगी हैं।

भारत में भूमि एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। भारत में भिन्न-भिन्न प्रकार के उच्चावच भू-आकृति, जलवायु तथा वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। इससे देश के

विभिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार की मिट्टियों के विकास में योगदान मिला है। प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण मानव जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं–

  • वन्य जीवों के संरक्षण के लिए जंगली जानवरों का शिकार करना बन्द कर दिया जाना चाहिए।
  • किसानों को मिश्रित फसल की विधि, उर्वरक कीटनाशक और फसल रोटेशन के उपयोग को सिखाया जाना चाहिए।
  • वनों की कटाई को नियन्त्रित करना चाहिए।
  • वर्षा जल संचयन प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए।
  • सौर, जल और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय संसाधनों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • कृषि प्रक्रियाओं में उपयोग होने वाले पानी को दोबारा प्रयोग में लाने की प्रणाली का पालन करना चाहिए। .प्रकृति के संरक्षण के लिए बिजली के उपयोग को भी सीमित करना आवश्यक है। विद्युत उपकरण जब वे उपयोग में न हो तो उनको बन्द कर देना चाहिए। साथ ही ऐसे बल्ब अथवा ट्यूबलाइट का प्रयोग करना चाहिए, जिससे बिजली की खपत कम हो। जैसे- एलईडी लाइट |

प्रश्न 7. काली मिट्टी की किन्हीं चार मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए |

उत्तर.काली मिट्टी (Black Soil) को रेगुर, काली कपास की मिट्टी, ट्रॉपिकल ब्लैक अर्थ एवं ट्रॉपिकल चेरनोजम आदि नामों से जाना जाता है। इसका निर्माण मुख्यतः दक्कन के लावा के अपक्षय से हुआ है। ये देश के लगभग पाँच लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर विस्तृत है, जिसमें प्रमुख रूप से महाराष्ट्र (सर्वाधिक ), पश्चिमी मध्य प्रदेश, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु के कुछ क्षेत्र और उत्तर प्रदेश के जालौन, हमीरपुर, बाँदा एवं झाँसी जनपद सम्मिलित हैं। इसका रंग गहरा काला तथा हल्का काला और चेस्टनट की तरह होता है। सामान्यतः इनमें लोहा, चूना, कैल्शियम, पोटाश, एल्युमीनियम और मैग्नीशियम की प्रचुरता पाई जाती है, परन्तु इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और जैव पदार्थों की कमी मिलती है। यह मिट्टी कपास की कृषि के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती है,

इसलिए इसे कपास मृदा कहते हैं।

सामान्यतः काली मृदाएँ मृण्मय, गहरी और अपारगम्य होती हैं। ये मृदाएँ गीले होने पर फूल जाती हैं और चिपचिपी हो जाती हैं। सूखने पर ये सिकुड़ जाती हैं। उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इनमें स्वतः जुताई हो गई हो। नमी के धीमे अवशोषण और नमी के क्षय की इस विशेषता के कारण काली मृदा में एक लम्बी अवधि तक नमी बनी रहती है। इसके कारण विशेष रूप से वर्षाधीन फसलों को शुष्क ऋतु में भी नमी मिलती रहती है। कपास के अतिरिक्त इस मिट्टी में अरहर, गेहूं, ज्वार, अलसी, सरसों, तम्बाकू, मूंगफली आदि उपजाए जाते हैं। काली मिट्टी की चार विशेषताएं निम्न है।

(i) नमी धारण करने की अधिक क्षमता ।

(ii) ज्वालामुखी क्रिया से निर्माण

(iii) कपास के लिए उपर्युक्त ।

(iv) पर्याप्त मात्रा में खनिज पाए जाते हैं।

प्रश्न 8. मृदा संरक्षण क्यों आवश्यक है? दो कारण बताइए।

अथवा भारतीय मिट्टी के संरक्षण हेतु पाँच सुझाव दीजिए |

अथवा भू-क्षरण/मृदा क्षरण से आप क्या समझते हैं? मृदा क्षरण नियन्त्रण हेतु कोई दो उपाय सुझाइए ।

अथवा भू-क्षरण/मृदा क्षरण नियन्त्रण हेतु कोई तीन उपाय सुझाइए |

अथवा भू-क्षरण/(मृदा अपरदन) से क्या तात्पर्य हैं? भू-क्षरण को रोकने के दो उपाय बताएँ।

अथवा पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?

अथवा मृदा अपरदन से क्या अभिप्राय है? मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी करणों का वर्णन कीजिए |

उत्तर.जल व वायु के प्रभाव से मिट्टी की ऊपरी परत का बहकर या उड़कर स्थानान्तरित होना ही मृदा क्षरण कहलाता है। मृदा पृथ्वी का एक अमूल्य संसाधन है। मानव जीवन का अस्तित्व मृदा पर ही निर्भर है। मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताएँ जैसे- भोजन, वस्त्र आदि की पूर्ति मृदा द्वारा ही होती है। इसके अतिरिक्त, मृदा सर्वाधिक लोगों को रोजगार प्रदान करती है तथा मृदा पर ही विभिन्न वनस्पतियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनसे पर्यावरणीय आवश्यकताओं पूर्ति तथा जीव-जन्तुओं को आवास व भोजन प्राप्त होता ह

भू-क्षरण / मृदा संरक्षण के उपाय / सुझाव मृदा संरक्षण के निम्नलिखित उपजूद हैं।

(i) वृक्षारोपण खाली भूमि पर तथा कृषि भूमि की मेड़ों पर वृक्षारोपण करना चाहिए, क्योंकि वृक्षों की जड़ें मृदा को संगठित कर जकड़े रहती हैं।

(ii) खेतों में मेड़ निर्माण खेतों में मेड़ से वर्षा द्वारा मिट्टी के बहाव से सुरक्षा होती है। अतः खेतों के किनारे ऊँची मेड़ बनानी चाहिए।

(iii) ढालों पर सीढ़ीदार खेत डालों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिए, जिससे कि वर्षा के दौरान मिट्टी का अपरदन न हो।

(iv) पशुचराई पर नियन्त्रण चरागाहों में पशुओं की नियन्त्रित चराई की जानी चाहिए | अनियन्त्रित चराई से मिट्टी की ऊपरी सतह पशुओं के पैरों को रगड़ से उखड़ जाती है, जो वर्षा, वायु द्वारा अपरदित हो जाती है।

(v) मृदा अपरदन का सर्वेक्षण समय-समय पर मृदा अपरदन का सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। यह कार्य वर्ष 1953 में स्थापित केन्द्रीय भू-संरक्षण बोर्ड द्वारा किया जाता है।

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