Class 10th Social Science (Geography) Chapter 2 Objective & Laghu Deergh Question Answer UP Board, NCERT Solution for 2023 | कक्षा -10 सामाजिक विज्ञान (भूगोल) का चैप्टर 2 का ऑब्जेक्टिव तथा सब्जेक्टिव प्रश्न
Class 10 भूगोल Chapter 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन प्रश्न उत्तर Sansadhan evam Vikas question answer. UP Board Solution of Social Science Bhugol chapter 2 van evam vanya jeev sansadhan – PDF notes. लघु उत्तरीय एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न – कक्षा १० यूपी बोर्ड सामाजिक विज्ञान objective question प्रश्न. Highschool Samajik Vigyan MCQ.
वन एवं वन्य जीव संसाधन–लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जैव-विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
अथवा विस्तारपूर्वक बताएँ कि मानव क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पतिज्ञात और प्राणिजात के हास की कारक हैं?
उत्तर.पृथ्वी पर सूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर वृहद् स्तनधारी प्राणियों का निवास जैव-विविधताओं से भरा है। पौधों की विभिन्न प्रजातियों तथा जीवों की श्रृंखला, एक ऐसे वातावरण का निर्माण करती है, जिसे ‘जैव-विविधता’ कहा जाता है। जैव-विविधता पारिस्थितिकी तन्त्र का महत्त्वपूर्ण भाग है, जिसमें विभिन्न जीवधारी परस्पर निर्भरता के कारण जाने जाते हैं। जैव-विविधता के कारण ही जीवधारियों का अस्तित्व है।
मनुष्य, वनस्पति तथा जीवों पर अत्यधिक निर्भर है। पर्यावरण सन्तुलन के लिए भी समन्वय आवश्यक होता है। मानवीय क्रियाओं में जैव-विविधता अर्थात् वनस्पति तथा जीवों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ये हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करते हैं। मनुष्य की संवेदन शून्यता तथा प्रकृति के विभिन्न आयामों के असहज दोहन का प्रभाव पर्यावरण पर परोक्ष-अपरोक्ष रूप से पड़ता है। वानस्पतिक प्रजातियों की कटाई तथा जीवों के लुप्त होने की प्रक्रिया मनुष्य की असहजता के कारण ही सम्भव हुई है। वनों के विनाश का प्रभाव वन्यजीवों के जीवन पर भी पड़ा है तथा कई प्रजातियाँ पूर्णत: लुप्त होने के निकट हैं।
प्रश्न 2. भारत में वनों के असमान वितरण के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए |
उत्तर.भारत में विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं। ये वन भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 24.56% भाग पर विस्तृत हैं। हिमालय पर्वतों पर शीतोष्ण कटिबन्धीय वन हैं, तो पश्चिमी घाट तथा अण्डमान-निकोबार द्वीपसमूह में उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन पाए जाते हैं। डेल्टा क्षेत्रों में मैंग्रोव वन हैं, वहीं राजस्थान के मरुस्थलीय व अर्द्ध-मरुस्थलीय क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की झाड़ियाँ, कैक्टस वनों के असमान वितरण के कारण काँटेदार वनस्पति पाई जाती है। इन वनों का वितरण भी असमान है। वनों के असमान वितरण के निम्नलिखित कारण हैं।
उच्चावचीय दशाएँ भारत की उच्चावचीय दशाओं का वनों के वितरण पर प्रभाव पड़ा है।
मानसूनी जलवायु भारत की जलवायु मानसूनी है अतः जो क्षेत्र अधिक वर्षा तथा अधिक ताप वाले हैं, वहाँ घने वन पाए जाते हैं तथा जहाँ वर्षा कम होती है, वहाँ विरल पतझड़ वन तथा अतिअल्प वर्षा वाले स्थानों पर केवल झाड़ियाँ पाई जाती हैं।
मिट्टी की दशाएँ मिट्टी की उर्वरता का भी वनों के वितरण पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। पठारी क्षेत्रों में उपजाऊ काली मिट्टी पाई जाती है, जो खनिजों से भरपूर है अतः यहाँ घने वन हैं, जबकि मरुस्थलीय क्षेत्रों में अनुर्वर मिट्टी पाई जाती है, जहाँ वन नहीं हैं।
मानवीय कारण प्राकृतिक कारणों के अतिरिक्त अनेक मानवीय कारकों से भी वनों का वितरण असमान हो गया है। उत्तर के मैदान की उपजाऊ भूमि के कारण यहाँ वनों को साफ कर कृषि क्षेत्र का विस्तार कर दिया गया है।
प्रश्न 3. भारतीय वनों की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर.भारतीय वनों को प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
विभिन्न प्रकार के वनों की उपलब्धता भारत की भौगोलिक एवं जलवायु विविधता तथा उच्चावच के कारण विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं, इनमें उष्णकटिबन्धीय वर्षा वन, उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती वन, शंकुधारी वन तथा हैं। अल्पाइन वन प्रमुख है।
आर्थिक रूप से सम्पन्न वन सम्पदा भारतीय वनों में आर्थिक रूप से लाभदायक वन सम्पदा पाई जाती है। वनों से इमारती लकड़ी, औद्योगिक कच्चा माल, औषधियाँ आदि पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होती हैं। पर्णपाती वनों की अधिकता भारतीय वनों में सर्वाधिक क्षेत्र पर उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती वन फैले हैं। ये वन शुष्क ऋतु में अपनी पत्तियों गिरा देते हैं।
वन्य जीवों से समृद्ध वन भारतीय वन, वन्यजीवों से काफी समृद्ध है। वनों की भौगोलिक विशेषताओं के अनुसार इनमें विविध प्रकार के वन्यजीव, पशु-पक्षी तथा कीट पाए जाते हैं।
प्रजातीय विविधता भारतीय वनों में विभिन्न प्रकार के वृक्षों की तथा पादपों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जोकि जैव-विविधता को प्रोत्साहित करती हैं।
प्रश्न 4. वनों के ह्रास से आप क्या समझते हैं? इससे उत्पन्न होने वाली किन्हीं तीन समस्याओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर.आधुनिक समय में मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों का अन्धाधुन्ध दोहन कर रहा है। इसी कारण वन सम्पदा का धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है। वनों के क्षरण की प्रक्रिया को वनों की हानि या ह्रास कहते हैं।
वनों की हानि से उत्पन्न होने वाले तीन प्रभाव / समस्या निम्नलिखित हैं
(i) मृदा अपरदन वन मृदा के कणों को अपनी जड़ों तथा वनस्पति से बाँधे रखते हैं। इनके उन्मूलन या क्षरण से प्रभावित क्षेत्र में मृदा क्षरण तीव्र गति से होता है। इसी कारण मूल्यवान मृदा संसाधन का क्षरण हो जाता है।
(ii) वर्षा में कमी वन वर्षों को आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके अभाव से वर्षा की मात्रा में कमी आती है, जिससे सूखे व अकाल की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
(iii) पारिस्थितिकी की क्षति वन पारिस्थितिकी के महत्त्वपूर्ण घटक हैं। इनके ह्रास से क्षेत्र का पूरा पारिस्थितिकी तन्त्र प्रभावित होता है, जिस कारण पर्यावरण की अपूर्णीय क्षति होती है।
प्रश्न 5. पर्यावरण में गिरावट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर.मानवीय एवं प्राकृतिक कारणों से पर्यावरण की गुणात्मकता में, नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होने वाली प्रक्रिया पर्यावरण में गिरावट आना कहलाती है। सामान्यतः यह पर्यावरण का निम्नीकरण भी कहलाता है।
मानवीय क्रियाकलापों के कारण पर्यावरण के विभिन्न अवयवों जैसे— जल, वायु, मृदा एवं भूमि आदि की गुणात्मकता घटती जा रही है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण एवं भूमि प्रदूषण के कारण पर्यावरण के विकास में अवरोध उत्पन्न हो रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण की गुणात्मक क्षमता घट जाती है। ऐसे वातावरण में जीवन दुर्लभ हो जाता है।
प्रश्न 6. पर्यावरण संरक्षण की राष्ट्रीय नीति की समीक्षा कीजिए ।
उत्तर – स्वतन्त्रता के पश्चात् देश में आर्थिक विकास के लिए औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया गया। इसके परिणामस्वरूप औद्योगिक विकास तो हुआ, किन्तु इसका दुष्प्रभाव पर्यावरण के ह्रास के रूप में सामने आने लगा। अतः पिछले कुछ दशकों से सरकार का ध्यान पर्यावरण संरक्षण की ओर गया, जिस कारण सरकार ने पर्यावरण में ह्रास को रोकने के लिए अनेक कदम उठाए। वर्ष 1952 में वन नीति घोषित की गई, जिसे वर्ष 1988 में संशोधित किया गया।
पर्यावरण तथा विकास पर नीतिगत वक्तव्य वर्ष 1992 में तथा राष्ट्रीय पर्यावरण नीति वर्ष 2006 में घोषित की गई। यह नीति पर्यावरण संरक्षण हेतु नियामक के रूप में मार्गदर्शन की भूमिका का निर्वाह करती है। इस नीति में पर्यावरण संसाधनों के दक्ष उपयोग की संकल्पना की गई है। इसी के अनुसार वर्तमान में औद्योगिक व खनन गतिविधियों को स्वीकृति प्रदान की जाती है राष्ट्रीय पर्यावरण नीति विधियों सहभागियों, जैसे कि सरकारी अधिकरणों स्थापित समुदायों तथा शोध संस्थानों के माध्यम से पर्यावरण संग्रह हेतु प्रतिबद्ध है।
प्रश्न 7. वन्यजीव संरक्षण की आवश्यकता क्यों है? उल्लेख कीजिए।
उत्तर.वनों के संरक्षण से पारिस्थितिकी विविधता बनी रहती है, जिससे जल, मृदा एवं वायु जैसे आवश्यक घटकों का पुनः सृजन होता रहता है। पर्यावरणीय सन्तुलन के लिए भी वन्यजीवों के संरक्षण की आवश्यकता है। वनों में वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास पाया जाता है।
वर्तमान में मानवीय हस्तक्षेप के कारण वन्यजीवों के आवास तथा उनकी योजना सामग्री कम हो रही है। इसके कारण अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं।
अतः इन्हीं संकटग्रस्त जीवों को बचाने के लिए वन्यजीव संरक्षण की आवश्यकता है। वन्यजीव पर्यावरण को स्वच्छ और सन्तुलित रखने में भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, वर्तमान में गिद्ध पक्षी हमारे परिवेश से कम हो गए हैं। ये मरे हुए जानवरों का मांस खाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायता करते हैं।
वन एवं वन्य जीव संसाधन- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में वनों के ह्रास के प्रमुख कारणों एवं इसके प्रभावों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर.वनों का ह्रास आधुनिक समय में मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों का अन्धाधुन्ध दोहन कर रहा है। इस कारण प्रकृति प्रदत्त वनीय संसाधन नष्ट हो रहे हैं। इसी कारण वन सम्पदा का धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है। वनों के क्षरण की इसी प्रक्रिया को वनों का ह्रास कहते हैं।
वनों के ह्रास के कारण उपग्रहों से समय-समय पर वनों का सर्वेक्षण किया जाता है। इन सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ है कि भारत में प्रतिवर्ष 13 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो रहा है। वनों के विनाश में मध्य प्रदेश सबसे आगे है। आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र में लगभग 10 लाख हेक्टेयर तथा राजस्थान व हिमाचल प्रदेश में 5 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र का विनाश हुआ है। भारत में वन विनाश के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
वनों का कृषि भूमि में परिवर्तन जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वनों को काटकर उन्हें कृषि योग्य क्षेत्रों में परिवर्तित किया जा रहा है।
स्थानान्तरी या झूम कृषि पूर्वोत्तर के पर्वतीय क्षेत्रों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इस प्रकार की कृषि में वनों को जला दिया जाता है, फिर वहाँ कृषि की जाती है। कुछ समय पश्चात् जब इस भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने लगती है, तो नए वन क्षेत्रों को जलाकर वहाँ खेती की जाती है, यह प्रक्रिया चलती रहती है, इससे वन सम्पदा को भारी क्षति होती है।
ईंधन व इमारती लकड़ी की बढ़ती माँग ईंधन की लकड़ी के लिए वनों का विनाश किया जाता है। आज भी भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग घरेलू ईंधन की आवश्यकताओं के लिए वनों की लकड़ी का उपयोग
करता है।
वनों का चरागाहों में परिवर्तन अनेक क्षेत्रों में वनों में अनियन्त्रित पशुचारण के कारण भी वनों का विनाश हो रहा है।
औद्योगीकरण एवं खनन के कारण उद्योगों को लगाने के लिए भी विशाल मात्रा में वनों को काटा जाता है, ताकि वहाँ बड़े-बड़े उद्योगों, ऊर्जा संयन्त्र आदि की स्थापना की जा सके। इसके अतिरिक्त भारत के अधिकांश खनिज संसाधन प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र में हैं। वहाँ खनिजों के खनन के लिए बड़ी मात्रा में वनोन्मूलन किया जा रहा है।
बाँधों का निर्माण बढ़ती ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नदी घाटियों में जल-विद्युत परियोजनाओं का निर्माण किया जा रहा है, जिस कारण नदी घाटियों के डूबे क्षेत्रों में वृहद पैमाने पर वन सम्पदा नष्ट होती जा रही है।
रेलवे तथा राजमार्गों का निर्माण व प्रसार रेलवे लाइनों तथा राजमार्गों का निर्माण करने या इनका विस्तार करने के दौरान भी बड़ी संख्या में पेड़ों का कटान होता है, जिस कारण वन सम्पदा में ह्रास होता है।
प्राकृतिक कारण भूकम्प, भूस्खलन, वनाग्नि जैसे प्राकृतिक कारणों से भी काफी बड़े क्षेत्र के वन नष्ट हो जाते हैं।
वनों के ह्रास से उत्पन्न प्रभाव वनों के ह्रास से होने वाले प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं
मृदा अपरदन वन मृदा के कणों को अपनी जड़ों तथा वनस्पति से बांधे रखते हैं। इनके उन्मूलन या क्षरण से प्रभावित क्षेत्र में मुदा क्षरण तीव्र गति से होता है। इस कारण मूल्यवान मृदा संसाधन का क्षरण हो जाता है। वर्षा में कमी वन वर्षा को आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके अभाव में वर्षा की मात्रा में कमी आती है, जिससे सूखे एवं अकाल की समस्याएँ उत्पन्न होती है।
पारिस्थितिकी की क्षति वन पारिस्थितिकी के महत्त्वपूर्ण घटक हैं, इनके ह्रास या उन्मूलन से क्षेत्र का पूरा पारिस्थितिकी तन्त्र नष्ट हो जाता है, जिस कारण पर्यावरण की अपूरणीय क्षति होती है।
पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि वन पर्यावरण प्रदूषण को कम करते हैं तथा वातावरण की प्रदूषित वायु को शुद्ध करते हैं। इनके ह्रास का अर्थ है, पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि।
जल स्रोतों का सूखना वन सतही जल को एकत्र करते हैं। प्राकृतिक जल स्रोत, जैसे- तालाब, झरने तथा छोटी नदियों का उद्गम वन क्षेत्रों से होता है। वनों के क्षरण के कारण जल संकट उत्पन्न होता है।
औषधीय पादपों का उन्मूलन वनों में अनेक प्रकार की औषधियाँ पाई जाती हैं, जिनसे अनेक जीवनरक्षक दवाओं का निर्माण होता है। वनों के उन्मूलन के कारण इन औषधीय पादपों की संख्या में भी कमी आई है, जिस कारण रासायनिक दवाओं का प्रयोग करना पड़ रहा है, जोकि स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
प्रश्न 2. वनों के किन्हीं चार लाभों का वर्णन कीजिए। अथवा वनों के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर.वनों या प्राकृतिक वनस्पति के लाभ या महत्त्व वन मानव जीवन के अनिवार्य अंग हैं। इनके बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इनके महत्त्व / उपयोगिता या लाभ को निम्नलिखित शीर्षकों में बाँटा जा सकता है
प्रत्यक्ष लाभ प्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं—
(i) ऑक्सीजन की पूर्ति वनों से ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है, जोकि समस्त जीवधारियों के लिए प्राणवायु है।
(ii) घरेलू उपयोग की वस्तुओं की प्राप्ति वनों से घरेलू उपयोग के लिए चारा, ईंधन हेतु लकड़ी तथा वन्य जीवों को आवास प्राप्त होता है।
(iii) उद्योगों हेतु कच्चा माल वनों से कागज, रबड़, कल्या, माचिस, खेल उपकरण, तारपीन का तेल आदि उद्योगों हेतु कच्चा माल उपलब्ध होता है।
(iv) औषधियों की आपूर्ति वनों से मानव स्वास्थ्य के लिए हितकारी अनेक औषधियाँ प्राप्त होती हैं, जिनसे अनेक रोगों का उपचार किया जाता है।
अप्रत्यक्ष लाभ अप्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं—
(i) वर्षा में सहायक वन वर्षा को आकर्षित करते हैं, जिससे जल की पर्याप्तता सुनिश्चित होती है।
(ii) भूमि कटाव पर रोक वनों के वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कणों को बाँधे रखती हैं, जिससे वर्षा के दौरान भू-क्षरण नहीं होता ।
(iii) बाढ़ नियन्त्रण वन बाढ़ नियन्त्रण में भी सहायक होते हैं। ये बाढ़ के जल की तीव्रता को कम कर देते हैं।
(iv) पर्यावरणीय सन्तुलन वन पर्यावरणीय सन्तुलन को स्थापित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये पर्यावरण प्रदूषण को कम करते हैं तथा जैव विविधता बनाए रखते हैं।
प्रश्न 3. भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों एवं वन्यजीव संरक्षण तथा उनके रक्षण में योगदान दिया है? विस्तारपूर्वक विवेचना कीजिए ।
अथवा वन तथा वन्यजीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर.वन संरक्षण की प्रक्रिया भारत के लिए नई नहीं है। वन सामान्यतः कुछ मानव प्रजातियों के आवास भी रहे हैं। भारत के कुछ क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर अपने आवास स्थलों के संरक्षण में जुटते हैं, क्योंकि वनों का उनकी आजीविका में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। राजस्थान के लोगों ने वन तथा वन्यजीवों के रक्षण के लिए कई आन्दोलन चलाए । अलवर जिले के 5 गाँवों के 1,200 हेक्टेयर वन क्षेत्र को वहाँ के लोगों ने अभयारण्य घोषित कर, शिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
हिमालय में प्रसिद्ध ‘चिपको आन्दोलन’ ने वनों की कटाई को रोकने का तथा वन संरक्षण का प्रयास किया। विभिन्न समुदायों ने सामुदायिक वनीकरण अभियान को सफल बनाने का कार्य किया है तथा पारम्परिक संरक्षण के तरीकों से वनों के संरक्षण को दिशा दी है। ओडिशा में स्थानीय समुदायों ने गाँव स्तर पर संस्थाओं का निर्माण कर इमारती लकड़ियों का सफल संरक्षण किया।
छोटानागपुर की मुण्डा तथा सन्थाल जनजातियाँ महुआ तथा कदम्ब के वृक्षों की पूजा करती हैं। बिहार तथा ओडिशा में कुछ जनजातियाँ शादी के दौरान इमली व आम के पेड़ों की पूजा करती हैं। पीपल तथा वटवृक्ष को भी पवित्र माना जाता है।
भारत संस्कृतियों का देश है। प्रत्येक संस्कृति में प्रकृति के संरक्षण का पारम्परिक तरीका विद्यमान है। यहाँ पशुओं, पेड़ों, पहाड़ों व नदियों तक को पवित्र मानकर उनका संरक्षण यहाँ किया जाता है। मन्दिरों के आस-पास बन्दर तथा लंगूर को उपासक भोग लगाते हैं। राजस्थान में विश्नोई गाँव में काले हिरण, चिंकारा, नीलगाय इत्यादि के झुण्ड दिखाई देते हैं, जो वहाँ के समुदायों का अभिन्न भाग हैं।
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