Class 10th Sanskrit Chapter 4th Prabuddho Gramina
Class 10th Up Board Sanskrit Chapter 4 Prabuddho Gramin प्रबुद्धो ग्रामीण : का हिंदी अनुवाद: संस्कृत हिंदी पाठ्य-पुस्तक Class 10th Anivarya Sanskrit के प्रथम पाठ Chapter 4 Prabuddho Gramina /प्रबुद्धो ग्रामीण : के Chapter 4 के आधार पर पाठ 4 का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद सरल भाषा में दिए जा रहे है तथा यूपी बोर्ड की कक्षा 10 के पाठयक्रम के आधार पर सम्पूर्ण पाठ का अनुवाद दिया जा रहा है , विगत वर्षों में आये हुए प्रश्नों का बेहतरीन संकलन है , सभी विद्यार्थी Sanskrit Chapter Varanasi का लाभ उठायें|
आवश्यक बात – इस पाठ का अनुवाद हर वाक्य अलग कर के किया गया है |यदि कोई समस्या हो तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर के वीडियो के माध्यम से समझें|
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Scert |
Class / कक्षा | Class 10th / कक्षा -10 |
Subject / विषय | Hindi /हिंदी |
Chapter Number / पाठ संख्या | Chapter 4 पाठ -4 |
Name of Chapter / पाठ का नाम | Prabuddho Gramina /प्रबुद्धो ग्रामीण : |
Board Name / बोर्ड का नाम | यूपी बोर्ड 10th हिंदी/up board 10th Hindi |
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Non NCERT / एन सी आर टी |
Class / कक्षा Vedio के माध्यम से समझें ⇒ | Class 10th / कक्षा -10 |
Up board non NCERT textbook for Class 10 Hindi explanations
चतुर्थ : पाठ: – प्रबुद्धो ग्रामीण: ( बुद्धिमान् ग्रामीण )
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक . ‘ संस्कृत खंड ‘ के ‘ प्रबुद्धो ग्रामीण : ‘ नामक पाठ से अवतरित है ।
- एकदा बहवः जनाः धूमयानम् ( रेल ) आरुह्य नगरं प्रति गच्छन्ति स्म ।
एक बार बहुत – से मनुष्य रेलगाड़ी पर चढ़कर नगर की ओर जा रहे थे ।
- तेषु केचित् ग्रामीणाः केचिच्च नागरिकाः आसन् ।
उनमें कुछ ग्रामीण और कुछ शहरी थे ।
- मौनं स्थितेषु तेषु एकः नागरिकः ग्रामीणान् उपहसन् अकथयत्
उनके मौन रहने पर एक शहरी ने ग्रामीणों का उपहास करते हुए कहा —
- “ ग्रामीणाः अद्यापि पूर्ववत् अशिक्षिताः अज्ञाश्च सन्ति ।
” ग्रामीण आज भी पहले की तरह अशिक्षित और मूर्ख हैं ।
- न तेषां विकासः अभवत् न च भवितुं शक्नोति ।
न उनका विकास हुआ और न हो सकता है । ”
- ” तस्य तादृशं जल्पनं श्रुत्वा कोऽपि चतुरः ग्रामीणः अब्रवीत् ,
उसके इस प्रकार के कथन को सुनकर कोई चतुर ग्रामीण बोला—
- “ भद्र नागरिक ! भवान् एव किञ्चित् ब्रवीतु
“ हे शिष्ट शहरी , आप ही कुछ कहें ;
- यतो हि भवान् शिक्षितः बहुज्ञः च अस्ति ।
क्योंकि आप ही शिक्षित और बहुत जानकार हैं ।
- ‘ इदम् आकर्ण्य स नागरिकः सदर्प ग्रीवाम् उन्नमय्य अकथयत् ,
” यह सुनकर उस शहरी ने घमण्ड के साथ गर्दन को ऊँचा उठाकर कहा
- “कथयिष्यामि, परं पूर्वं समयः विधातव्यः ।”
” कहूँगा ; किन्तु पहले ( कुछ ) शर्त बद लेनी चाहिए । ”
- तस्य तां वार्ता श्रुत्वा स चतुरः ग्रामीण अकथयत् ,
” उसकी इस बात को सुनकर उस चतुर ग्रामीण ने कहा-
- “ भोः वयम् अशिक्षिताः भवान् च शिक्षितः ,
” अरे हम अशिक्षित हैं और आप शिक्षित हैं ;
- वयम् अल्पज्ञा भवान् च बहुज्ञः ,
हम कम जानते हैं और आप बहुत जानते हैं
आप पढ़ रहे हैं- प्रबुद्धो ग्रामीण : का हिंदी अनुवाद
- इत्येवं विज्ञाय अस्माभिः समयः कर्त्तव्यः ,
ऐसा समझकर हमारे साथ शर्त लगानी चाहिए
- वयं परस्परं प्रहेलिकां प्रक्ष्यामः ।
हम परस्पर पहेली पूछेगे ।
- यदि भवान् उत्तरं दातुं समर्थः न भविष्यति
यदि आप उत्तर देने में समर्थ न होंगे
- तदा भवान् दशरूप्यकाणि दास्यति ।
तो आप दस रुपये देंगे ।
- यदि वयम् उत्तरं दातुं समर्थाः न भविष्यामः
यदि हम उत्तर देने में समर्थ न होंगे ,
- तदा दशरूप्यकाणाम् अर्धं पञ्चरूप्यकाणि दास्यामः । “
तो ( हम ) दस रुपये के आधे ( अर्थात् ) पाँच रुपये देंगे । ”
- ” आं , स्वीकृतः समयः ” ,
” हाँ , शर्त स्वीकार है ”
- इति कथिते तस्मिन् नागरिके स ग्रामीणः नागरिकम् अवदत् ,
उस शहरी द्वारा ऐसा कहे जाने पर , उस ग्रामीण ने शहरी से कहा-
- “ प्रथमं भवान् एव पृच्छतु ।
” पहले आप ही पूछे ।
- ” नागरिकश्च तं ग्रामीणम् अकथयत् ,
और शहरी ने उस ग्रामीण से कहा-
- “ त्वमेव प्रथमं पृच्छ ” इति ।
तुम ही पहले पूछो ।
आप पढ़ रहे हैं- प्रबुद्धो ग्रामीण : का हिंदी अनुवाद
- इदं श्रुत्वा स ग्रामीणः अवदत् “ युक्तम् , अहमेव प्रथम पृच्छामि । ”
यह सुनकर वह ग्रामीण बोला” ठीक है , मैं ही पहले पूछता हूँ । ”
- अपदो दूरगामी च साक्षरो न च पण्डितः ।
“-बिना पैरों का है , किन्तु दूर तक जाता है; साक्षर ( अक्षरयुक्त ) है , किन्तु पण्डित नहीं है ।
- अमुखः स्फुटवक्ता च यो जानाति स पण्डितः ॥
मुखविहीन होने पर भी स्पष्ट बोलनेवाला है इसे जो जानता है , वह पण्डित है ।
- अस्या उत्तरं ब्रवीतु भवान् ।
आप इसका उत्तर दें|
- नागरिकः बहुकालं यावत् अचिन्तयत् ,
शहरी ने बहुत देर तक विचार किया ;
- परं प्रहेलिकायाः उत्तर दातुं समर्थः न अभवत् ,
किन्तु ( वह ) पहेली का उत्तर देने में समर्थ नहीं हुआ ;
- अतः ग्रामीणम् अवदत् ,
अतः ग्रामीण से बोला-
- अहम् अस्याः प्रहेलिकायाः उत्तरं न जानामि ।
“ मैं इस पहेली का उत्तर नहीं जानता हूँ । ”
- इदं श्रुत्वा ग्रामीणः अकथयत् , यदि भवान् उत्तरं न जानाति ,
यह सुनकर ग्रामीण ने कहा , यदि आप उत्तर नहीं जानते हैं
- तर्हि ददातु दशरूप्यकाणि ।
तो दस रुपये दें ।
- अतः म्लानमुखेन नागरिकेण समयानुसारं दशरूप्यकाणि दत्तानि ।
अत : खिन्न मुखवाले शहरी ने शर्त के अनुसार दस रुपये दिए ।
- पुनः ग्रामीणोऽब्रवीत् , “ इदानीं भवान् पृच्छतु प्रहेलिकाम् । ”
फिर ग्रामीण बोला- ” अब आप पहेली पूछे ।“
- दण्डदानेन खिन्नः नागरिकः बहुकालं विचार्य न काञ्चित् प्रहेलिकाम् अस्मरत् ,
दण्ड देने से दुःखी शहरी बहुत समय तक विचार करके भी किसी पहेली को याद न कर सका ;
- अतः अधिकं लज्जमानः अब्रवीत् ,
अतः अत्यधिक लज्जित होता हुआ बोला
- “ स्वकीयायाः प्रहेलिकायाः त्वमेव उत्तरं ब्रूहि । ”
‘ अपनी पहेली का उत्तर तुम ही दो !
- तदा स ग्रामीणः विहस्य स्वप्रहेलिकायाः सम्यक् उत्तरम् अवदत् ‘ पत्रम् ‘ इति
” तब उस ग्रामीण ने हँसकर अपनी पहेली का सही – सही उत्तर दिया “ पत्र ” ।
आप पढ़ रहे हैं- प्रबुद्धो ग्रामीण : का हिंदी अनुवाद
- यतो हि इदं पदेन विनापि दूरं याति ,
क्योंकि वह पैरों के बिना भी दूर तक जाता है
- अक्षरैः युक्तमपि न पण्डितः भवति ।
अक्षरों से युक्त होने पर भी पण्डित नहीं होता ।
- एतस्मिन्नेव काले तस्य ग्रामीणस्य ग्रामः आगतः ।
इसी समय उस ग्रामीण का गाँव आ गया ।
- स विहसन् रेलयानात् अवतीर्य स्वग्राम प्रति अचलत् ।
वह हँसता हुआ रेलगाड़ी से उतरकर अपने गाँव की ओर चल पड़ा ।
- नागरिकः लज्जितः भूत्वा पूर्ववत् तूष्णीम् अतिष्ठत् ।
शहरी लज्जित होकर पहले की तरह चुप बैठ गया ।
- सर्वे यात्रिणः वाचालं तं नागरिकं दृष्ट्वा अहसन् ।
सारे यात्री उस वाचाल शहरी को देखकर हँसने लगे ।
- तदा स नागरिकः अन्वभवत् यत् ज्ञानं सर्वत्र सम्भवति ।
तब उसने अनुभव किया कि ज्ञान सर्वत्र सम्भव है ।
- ग्रामीणाः अपि कदाचित् नागरिकेभ्यः प्रबुद्धतराः भवन्ति ।
ग्रामीण भी कभी शहरियों से अधिक बुद्धिमान् होते हैं ।