Class 10th Sanskrit Chapter5 Deshbhakta Chandrashekhar देशभक्त : चन्द्रशेखर :
Class 10th Up Board Sanskrit Chapter 5 Deshbhakta Chandrashekhar देशभक्त : चन्द्रशेखर : का हिंदी अनुवाद: संस्कृत हिंदी पाठ्य-पुस्तक Class 10th Anivarya Sanskrit के प्रथम पाठ Chapter 5 Deshbhakta Chandrashekhar /देशभक्त : चन्द्रशेखर : के Chapter 5 के आधार पर पाठ5 का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद सरल भाषा में दिए जा रहे है , यूपी बोर्ड की कक्षा 10 के पाठयक्रम के आधार पर सम्पूर्ण पाठ का अनुवाद दिया जा रहा है , विगत वर्षों में आये हुए प्रश्नों का बेहतरीन संकलन है , सभी विद्यार्थी Sanskrit Chapter Varanasi का लाभ उठायें|
आवश्यक बात – इस पाठ का अनुवाद हर वाक्य अलग कर के किया गया है |यदि कोई समस्या हो तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर के वीडियो के माध्यम से समझें|
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | SCERT |
Class / कक्षा | Class 10th / कक्षा -10 |
Subject / विषय | Hindi /हिंदी |
Chapter Number / पाठ संख्या | Chapter 5 पाठ -5 |
Name of Chapter / पाठ का नाम | Deshbhakta Chandrashekhar /देशभक्त : चन्द्रशेखर : |
Board Name / बोर्ड का नाम | यूपी बोर्ड 10th हिंदी/up board 10th Hindi |
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Non NCERT / एन सी आर टी |
Class / कक्षा Vedio के माध्यम से समझें ⇒ | Class 10th / कक्षा -10 |
Up board non NCERT textbook for Class 10 Hindi explanations
( देशभक्त चन्द्रशेखर )
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक के ‘ संस्कृत खंड ‘ के ‘ देशभक्त : चन्द्रशेखर : ‘ नामक पाठ से लिया गया है ।
( प्रथमं दृश्यम् )
- ( स्थानम् – वाराणसीन्यायालयः , न्यायाधीशस्य पीठे एकः दुर्धर्षः पारसीकः तिष्ठति ,
( स्थान – वाराणसी , न्यायालय । न्यायाधीश के आसन पर एक उच्छंखल पारसी बैठा है ।
- आरक्षकाः चन्द्रशेखरं तस्य सम्मुखम् आनयन्ति ।
सिपाही चन्द्रशेखर को उसके सामने लाते हैं ।
- अभियोगः प्रारभते ।
मुकदमा आरम्भ होता है ।
- चन्द्रशेखरः पुष्टाङ्गः , गौरवर्णः , षोडशवर्षीयः किशोरः ।
चन्द्रशेखर पुष्ट अंगोंवाला , गोरे रंग का सोलह वर्षीय किशोर है ।
- आरक्षकः : श्रीमन् ! अयम् अस्ति चन्द्रशेखरः । अयं राजद्रोही ।
सिपाही – श्रीमन् ! यह चन्द्रशेखर है । यह राजद्रोही है ।
- गतदिने अनेनैव असहयोगिनां सभायाम् एकस्य आरक्षकस्यदुर्जयसिंहस्य मस्तके
पिछले दिन इसने ही असहयोगियों की सभा में एक सिपाही दुर्जयसिंह के मस्तक पर
- प्रस्तरखण्डेन प्रहारः कृतः येन दुर्जयसिंहः आहतः ।
पत्थर के टुकड़े से प्रहार किया ,जिससे दुर्जयसिंह घायल हो गया ।
- न्यायाधीशः : ( तं बालकं विस्मयेन विलोकयन् ) रे बालक ! तव किं नाम ?
न्यायाधीश- ( उस बालक को आश्चर्य से देखते हुए ) रे बालक ! तेरा क्या नाम है ?
- चन्द्रशेखरः : आजादः ( स्थिरीभूय ) ।
चन्द्रशेखर आजाद ( दृढ़ होकर ) ।
- न्यायाधीशः : तव पितुः किं नाम ?
न्यायाधीश – तेरे पिता का क्या नाम है ?
- चन्द्रशेखरः – स्वतंत्र:
चन्द्रशेखर – स्वतन्त्र ।
- न्यायाधीशः : त्वं कुत्र निवससि ?
न्यायाधीश – तुम कहाँ रहते हो ?
- तव गृहं कुत्रास्ति ?
तुम्हारा घर कहाँ है ?
- चन्द्रशेखरः : कारागार एव मम गृहम् ।
चन्द्रशेखर कारागार ही मेरा घर है ।
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- न्यायाधीशः : ( स्वगतम् ) कीदृशः प्रमत्तः स्वतन्त्रतायै अयम् ?
न्यायाधीश- ( अपने मन में ) यह स्वाधीनता के लिए कितना मतवाला है ?
- ( प्रकाशम् ) अतीव धृष्टः , उद्दण्डश्चायं नवयुवकः ।
( प्रकट रूप में ) यह नवयुवक अत्यधिक ढीठ और उद्दण्ड है ।
- अहम् इमं पञ्चदश कशाघातान् दण्डयामि ।
मैं इसे पन्द्रह कोड़ों की सजा देता हूँ ।
- चन्द्रशेखरः : नास्ति चिन्ता ।
चन्द्रशेखर चिन्ता नहीं है ।
( द्वितीयं दृश्यम् )
- ( ततः दृष्टिगोचरो भवतः कौपीनमात्रावशेषः , फलकेन दृढं बद्धः चन्द्रशेखरः )
(तब केवल लँगोट बाँधे , तख्ते से दृढ़ता से बंधे हुए चन्द्रशेखर
- कशाहस्तेन चाण्डालेन अनुगम्यमानः , कारावासाधिकारी गण्डासिंहश्च । )
और कोड़ा हाथ में लिए चाण्डाल का अनुगमन करते हुए जेलर गण्डासिंह दिखाई पड़ते हैं । )
- गण्डासिंहः : ( चाण्डालं प्रति ) दुर्मुख ! मम आदेशसमकालमेव कशाघातः कर्त्तव्यः ।
गण्डासिंह- ( चाण्डाल से ) हे दुर्मुख ! मेरे द्वारा आज्ञा देते ही कोड़े लगाना ।
- ( चन्द्रशेखरं प्रति ) रे दुर्विनीत युवक ! लभस्व इदानीं स्वाविनयस्य फलम् ।
( चन्द्रशेखर से ) हे उद्दण्ड युवक । अब तू अपनी उद्दण्डता का फल प्राप्त कर ।
- कुरु राजद्रोहम् ।
कर राजद्रोह !
- दुर्मुख ! कशाघातः एकः ( दुर्मुखः चन्द्रशेखरं कशया ताडयति ) ।
हे दुर्मुख ! एक कोड़ा मारो ( दुर्मुख चन्द्रशेखर को कोड़े से मारता है )
- चन्द्रशेखरः : जयतु भारतम् ।
चन्द्रशेखर – भारत को जय हो ।
- गण्डासिंहः : दुर्मुख ! द्वितीयः कशाघातः । ( दुर्मुखः पुनः ताडयति । )
गण्डासिंह हे दुर्मुख ! दूसरा कोड़ा ( मारो ) । ( दुर्मुख फिर से पीटता है । )
- ताडितः चन्द्रशेखरः पुनः पुनः ‘ भारतं जयतु ‘ इति वदति ।
पिटते हुए चन्द्रशेखर बार – बार ‘ भारतमाता की जय हो ‘ , ऐसा कहते हैं ।
- ( एवं स पञ्चदशकशाघातैः ताडितः )
( इस प्रकार वे पन्द्रह कोड़ों से पीटे जाते हैं । )
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- यदा चन्द्रशेखरः कारागारात् मुक्तः बहिः आगच्छति ,
जब चन्द्रशेखर कारागार से मुक्त होकर बाहर आते हैं ,
- तदैव सर्वे जनाः तं परितः वेष्टयन्ति ,
तब सारे लोग उन्हें चारों ओर से घेर लेते हैं ।
- बहवः बालकाः तस्य पादयोः पतन्ति ,
बहुत – से बालक उनके पैरों पर गिर पड़ते हैं
- तं मालाभिः अभिनन्दयन्ति च ।
और उनका मालाओं से अभिनन्दन करते हैं ।
- चन्द्रशेखरः : किमिदं क्रियते भवद्भिः ?
चन्द्रशेखर – आप लोग यह क्या कर रहे हैं ?
- वयं सर्वे भारतमातुः अनन्यभक्ताः ।
हम सभी भारतमाता के अनन्य भक्त हैं ।
- तस्याः शत्रूणां कृते मदीयाः , इमे रक्तबिन्दवः अग्निस्फुलिङ्गाः भविष्यन्ति ।
उसके शत्रुओं के लिए मेरी, ये रक्त की बूंदें अग्नि की चिनगारियाँ हो जाएंगी ।
- (‘ जयतु भारतम् ‘ इति उच्चैः कथयन्तः सर्वे गच्छन्ति )
[ भारत को जय हो ‘ ऐसा उच्च स्वर से कहते ( नारे लगाते ) हुए सब चले जाते हैं|