Class 10th Up Board Sanskrit Chapter 8 Bhartiya Sanskriti अष्टम: पाठ: –  भारतीया संस्कृति: का हिंदी अनुवाद

Class 10th  Sanskrit Chapter 3 Veera Veeren Pujyate

Class 10th Up Board Sanskrit Chapter 8 Bhartiya Sanskriti अष्टम: पाठ: –  भारतीया संस्कृति: का हिंदी अनुवाद: संस्कृत हिंदी पाठ्य-पुस्तक Class 10th  Anivarya Sanskrit  के प्रथम पाठ Chapter 8th  Bhartiya Sanskriti /अष्टम: पाठ: –  भारतीया संस्कृति:   के Chapter 8 के आधार पर पाठ 8 का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद सरल भाषा में दिए जा रहे है , यूपी बोर्ड की कक्षा 10 के पाठयक्रम के आधार पर सम्पूर्ण पाठ का अनुवाद दिया जा रहा है , विगत वर्षों में आये हुए प्रश्नों का बेहतरीन संकलन है , सभी विद्यार्थी Sanskrit Chapter Varanasi  का लाभ उठायें|

Class 10th Up Board Sanskrit Chapter 8 Bhartiya Sanskriti अष्टम: पाठ: -  भारतीया संस्कृति: का हिंदी अनुवाद
 Chapter 8 Bhartiya Sanskriti अष्टम: पाठ: –  भारतीया संस्कृति: का हिंदी अनुवाद

आवश्यक बात – इस पाठ का अनुवाद हर वाक्य अलग कर के किया गया है |यदि कोई समस्या हो तो नीचे  दिए गए लिंक पर क्लिक कर के वीडियो के माध्यम से समझें|

 Book Name / पाठ्य पुस्तक का नामScert
Class / कक्षाClass 10th / कक्षा -10
Subject / विषयHindi /हिंदी
Chapter Number /  पाठ संख्याChapter 8 पाठ -8
Name of Chapter / पाठ का नामBhartiya Sanskriti /अष्टम: पाठ: –  भारतीया संस्कृति:
Board Name /  बोर्ड का नामयूपी बोर्ड 10th हिंदी/up board 10th Hindi
 Book Name / पाठ्य पुस्तक का नामNon NCERT / एन सी आर टी
Class / कक्षा

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Class 10th / कक्षा -10

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       Up  board non NCERT textbook for Class 10 Hindi explanations

अष्टम: पाठ: –  भारतीया संस्कृति:   ( भारत की संस्कृति )

सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक  के ‘ संस्कृत खंड ‘ के ‘ भारतीया संस्कृतिः ‘ नामक पाठ से उद्धृत है ।

  • मानव – जीवनस्य संस्करणं संस्कृतिः ।

मानव – जीवन को संवारना ही संस्कृति है ।

  • अस्माकं पूर्वजाः मानवजीवन संस्कर्तुं महान्तं प्रयत्नम् अकुर्वन् ।

हमारे पूर्वजों ने मानव – जीवन को सँवारने के लिए महान् प्रयत्न किया था ।

  • ते अस्माकं जीवनस्य संस्करणाय

उन्होंने हमारे जीवन को संवारने के लिए,

  • यान् आचारान् विचारान् च अदर्शयन् तत् सर्वम् अस्माकं संस्कृतिः ।

जिन आचरणों और विचारों को प्रदर्शित किया , वह सब ( ही ) हमारी संस्कृति हैं ।

  • ‘ विश्वस्य स्रष्टा ईश्वरः एक एव ‘

” विश्व का रचयिता ईश्वर एक ही है ”

  • इति भारतीय – संस्कृतेः मूलम् ।

यह भारतीय संस्कृति का मूल है ।

  • विभिन्नमतावलम्बिनः विविधैः नामभिः एकम् एव ईश्वरं भजन्ते ।

विभिन्न मतों के अनुयायी अनेक नामों से एक ही ईश्वर का भजन करते हैं ।

  • अग्निः , इन्द्रः , कृष्णः , करीमः , रामः , रहीमः , जिनः , बुद्धः , ख्रिस्तः , अल्लाहः

अग्नि , इन्द्र , कृष्ण , करीम , राम , रहीम , जिन , बुद्ध , ईसा , अल्लाह

  • इत्यादीनि नामानि एकस्य एव परमात्मनः सन्ति ।

इत्यादि नाम एक ही ईश्वर के हैं ।

  • तम् एव ईश्वरं जनाः गुरुः इत्यपि मन्यन्ते ।

उसी ईश्वर को लोग ‘ गुरु ‘ के रूप में भी मानते हैं ।

  • अतः सर्वेषां मतानां समभावः सम्मानश्च अस्माकं संस्कृतेः सन्देशः ।

अतः सभी मतों के प्रति समान भाव और सम्मान ( ही ) हमारी संस्कृति का सन्देश है ।

  • भारतीया संस्कृतिः तु सर्वेषां मतावलम्बिनां संगमस्थली ।

भारतीय संस्कृति तो सभी मतों को मानने वालों की संगमस्थली है ।

  • काले काले विविधाः विचाराः भारतीय – संस्कृतौ समाहिताः ।

समय – समय पर भारतीय संस्कृति में विविध विचार आ मिले ।

  • एषा संस्कृतिः सामासिकी संस्कृतिः

यह संस्कृति समन्वयात्मक संस्कृति है ,

Next

  • यस्याः विकासे विविधानां जातीनां सम्प्रदायानां विश्वासानांच योगदानं दृश्यते ।

जिसके विकास में विविध जातियों , सम्प्रदायों और विश्वासों का योगदान दृष्टिगोचर होता है ।

  • अतएव अस्माकं भारतीयानाम् एका संस्कृतिः एका च राष्ट्रीयता ।

तएव हम भारतीयों की एक संस्कृति और एक राष्ट्रीयता है ।

  • सर्वेऽपि वयं एकस्याः संस्कृतेः समुपासकाः , एकस्य राष्ट्रस्य च राष्ट्रियाः ।

हम सभी एक संस्कृति के उपासक हैं और एक राष्ट्र के नागरिक हैं ।

  • यथा भ्रातरः परस्परं मिलित्वा सहयोगेन सौहार्देन च परिवारस्य उन्नतिं कुर्वन्ति ,

जिस प्रकार भाई – भाई परस्पर मिलकर सहयोग और प्रेम से परिवार की उन्नति करते हैं ,

  • तथैव अस्माभिः अपि सहयोगेन सौहार्देन च राष्ट्रस्य उन्नतिः कर्त्तव्या ।

उसी प्रकार हमें भी सहयोग और प्रेम से राष्ट्र की उन्नति करनी चाहिए ।

  • अस्माकं संस्कृतिः सदा गतिशीला वर्तते ।

हमारी संस्कृति सदा गतिशील है ।

  • मानवजीवनं संस्कर्तुम् एषा यथासमयं नवां नवां विचारधारां स्वीकरोति ,

मानव – जीवन को शुद्ध करने के लिए यह समय – समय पर नई – नई विचारधारा को स्वीकार करती है

  • नवां शक्ति च प्राप्नोति ।

और नई शक्ति प्राप्त करती है ।

  • अत्र दुराग्रहः नास्ति ,

यहाँ हठधर्मिता नहीं है ।

  • यत् युक्तियुक्तं कल्याणकारि च तदत्र सहर्षं गृहीतं भवति ।

जो उचित और कल्याणकारी है , वह यहाँ हर्षपूर्वक स्वीकार होता है ।

  • एतस्याः गतिशीलतायाः रहस्यं मानव – जीवनस्य शाश्वतमूल्येषु निहितम् ,

इसकी गतिशीलता का रहस्य मानव – जीवन के सदा रहनेवाले आदर्शो में निहित है ;

  • तद् यथा सत्यस्य प्रतिष्ठा , सर्वभूतेषु समभावः, विचारेषु औदार्यम् , आचारे दृढ़ता चेति ।

जैसे कि सत्य की प्रतिष्ठा , सभी प्राणियों के प्रति समान भाव , विचारों में उदारता और आचरण की दृढ़ता में निहित है

  • एषा कर्मवीराणां संस्कृतिः ।

यह कर्मवीरों की संस्कृति है ।

  • ‘ कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः ‘

” इस लोक में कर्म करते हुए ( मनुष्य ) सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करें “,

Next

  • इति अस्याः उद्घोषः ।

यह इसकी घोषणा है ।

  • पूर्व कर्म , तदनन्तरं फलम् इति अस्माकं संस्कृते नियमः ।

पहले कर्म और उसके बाद फल – यह हमारी संस्कृति का नियम है ।

  • इदानीं यदा वयं राष्ट्रस्य नवनिर्माणे संलग्नाः स्मः |

इस समय जब कि हम राष्ट्र के नव – निर्माण में लगे हुए हैं|

  • निरन्तरं कर्मकरणम् अस्माकं मुख्यं कर्त्तव्यम् ।

निरन्तर कर्म करना हमारा मुख्य कर्तव्य है ।

  • निजस्य श्रमस्य फलं भोग्यं ,

अपने परिश्रम का फल भोगने योग्य है ,

  • अन्यस्य श्रमस्य शोषणं सर्वथा वर्जनीयम् ।

दूसरे के परिश्रम का शोषण सब प्रकार से वर्जित है ।

  • यदि विपरीतम् आचरामः,

यदि हम विपरीत आचरण करते हैं ,

  • तदा न वयं सत्यं भारतीय – संस्कृतेः उपासकाः ।

तब हम भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक नहीं है |

  • वयं तदैव यथार्थं भारतीयाः , यदा अस्माकम् आचारे विचारे च , अस्माकं संस्कृतिः लक्षिता भवेत् ।

हम तभी यथार्थ रूप में भारतीय हैं,  जब हमारे आचार और  विचार में , हमारी संस्कृति दिखाई दे ।

  • अभिलाषामः वयं, यत् विश्वस्य अभ्युदयाय

हम चाहते हैं , कि विश्व के उत्थान के लिए

  • भारतीय संस्कृतेः, एषः दिव्यः सन्देशः लोके सर्वत्र प्रसरेत् ।

भारतीय संस्कृति का, यह दिव्य सन्देश संसार में सर्वत्र फैले|

  • ” सर्वे भवन्तु सुखिनः

सब सुखी हों ,

  • सर्वे सन्तु निरामयाः ।

सब रोगरहित हों ।

  • सर्वे भद्राणि पश्यन्तु

सब कल्याण देखें ( पाएँ ) ,

  • मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ॥ “

कोई भी दुःखी न हो ।

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