Class 12 Hindi Khandkavy खण्डकाव्य Chapter 4 आलोक वृत्त Alokvratt- Saransh Charitra Chitran kathavastu.
UP Board solution of Class 12 & sahitya Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 “आलोक वृत्त” (गुलाब खंडेलवाल) is new syllabus of UP Board exam Class 12 Hindi.
Class | 12 Intermediate |
Subject | Hindi || General Hindi |
Board | UP Board-UPMSP |
Chapter | Alokvritt आलोक वृत्त -Khandkavy |
आलोक- वृत्त (गुलाब खण्डेलवाल)
इलाहाबाद, सहारनपुर, अलीगढ़, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, अल्मोड़ा, मिर्जापुर, सीतापुर, उत्तरकाशी,तथा सोनभद्र जनपदों के लिए।
कथावस्तु
प्रश्न १ – ‘ आलोक – वृत्त’ की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
अथवा ‘ आलोक-वृत्त’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा ‘आलोक-वृत्त’ खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा ‘आलोक-वृत्त’ के आधार पर गांधीजी की डाँडी – यात्रा का वर्णन कीजिए।
अथवा ‘आलोक- वृत्त’ के आधार पर सन् १९४२ की जनक्रान्ति का वर्णन कीजिए।
अथवा ‘आलोक- वृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर विचार व्यक्त कीजिए ।
अथवा ”’ आलोक-वृत्त’ खण्डकाव्य में भारत के महान् स्वाधीनता संग्राम की झाँकी है।” इस कथन को सिद्ध कीजिए ।
अथवा ‘आलोक-वृत्त’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग के आधार पर गांधीजी के अफ्रीका-प्रवास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा ‘आलोक- वृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर – कविवर गुलाब खण्डेलवाल द्वारा रचित ‘आलोक- वृत्त’ खण्डकाव्य की कथा युगपुरुष महात्मा गांधी के जीवन-वृत्त पर आधारित है। सर्गानुसार इस खण्डकाव्य की संक्षिप्त कथावस्तु निम्नलिखित है
प्रथम सर्ग: भारत का स्वर्णिम अतीत (सरांश)
सन् १८५७ ई० के स्वतन्त्रता संग्राम प्रारम्भ होने के ठीक बारह वर्ष के बाद महात्मा गांधी का जन्म पोरबन्दर में हुआ। गांधीजी के व्यक्तित्व से दानवीय एवं पाशविक शक्तियाँ भी डगमगा गईं। ब्रिटिश शासन सहम उठा। शासन के क्रूर अत्याचारों एवं दमनात्मक कार्यों से पीड़ित भारतीय जनता को गांधीजी की वाणी ने साहस, शान्ति एवं शक्ति प्रदान की। गांधीजी के रूप में भारतीय जनता को नया जीवनदान मिला।
द्वितीय सर्ग : गांधीजी का प्रारम्भिक जीवन(सरांश)
समय बीतते-बीतते मोहनदास युवक हो गए। उनका विवाह कस्तूरबा के साथ सम्पन्न हुआ। उनके रुग्ण पिता का स्वर्गवास हो गया, परन्तु उनकी मृत्यु के समय मोहनदास गांधी पिता के पास भी न रह सके। फिर गांधीजी उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड चले गए। गांधीजी की माता को भय था कि उनका पुत्र विदेश में जाकर मांस-मदिरा का सेवन न करने लगे; अतः गांधीजी के विदेशगमन के समय उन्होंने अपने पुत्र से वचन लिया
मद्य मांस-मदिराक्षी से बचने की शपथ दिलाकर ।
माँ ने तो दी विदा पुत्र को मंगल-तिलक लगाकर ॥
इंग्लैण्ड में सात्त्विक जीवन व्यतीत करते हुए भी वे एक दिन ‘पोर्टस्मिथ शाकाहारी सम्मेलन’ में सम्मिलित होने गए। वहाँ वे एक कलुषित स्थान पर पहुँच गए, परन्तु प्रभु कृपा से ही वे अपने चरित्र को कलुषित होने से बचा सके। अपनी शिक्षा समाप्त कर गांधीजी भारत लौट आए, परन्तु जब वे भारत पहुँचे तो उन्हें अपनी माताजी की मृत्यु का समाचार सुनकर अत्यधिक कष्ट हुआ।
तृतीय सर्ग : गांधीजी का अफ्रीका प्रवास(सरांश)
एक बार गांधीजी रेल में प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे थे। एक गोरे ने उन्हें प्रथम श्रेणी के डिब्बे से नीचे धक्का देकर उतार दिया। गांधीजी शान्त भाव से तथा एकान्त में बैठे ठण्ड से ठिठुरते रहे। वे वहाँ बैठे-बैठे भारतीयों की दीन-हीन दशा पर चिन्ता कर रहे थे। उनके मन में विचारों का संघर्ष चल रहा था । उन्होंने अपनी जन्मभूमि से दूर विदेश की भूमि पर बैठकर मानवता के उद्धार का प्रण लिया
पशुबल के सम्मुख आत्मा की शक्ति जगानी होगी।
मुझे अहिंसा से हिंसा की आग बुझानी होगी।
गांधीजी ने सत्याग्रह का अमोघ अस्त्र लेकर अपने संघर्ष को दक्षिण अफ्रीका की सरकार के विरुद्ध छेड़ दिया। हजारों भारतीयों ने सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लिया। गांधीजी ने सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व किया और संघर्ष में विजय प्राप्त की।
चतुर्थ सर्ग : गांधीजी का भारत आगमन(सरांश)
गांधीजी अफ्रीका से भारत वापस आए और उन्होंने ‘कलकत्ता कांग्रेस’ में भाग लिया। वहाँ से उन्होंने देशबन्धु चितरंजनदास, पं० मोतीलाल नेहरू, डॉ० राजेन्द्रप्रसाद एवं सरदार पटेल आदि नेताओं का आह्वान किया। गांधीजी के आह्वान पर देश के महान् नेता एकजुट होकर सत्याग्रह की तैयारी में जुट गए, फिर गांधीजी ने बिहार प्रान्त के चम्पारन क्षेत्र में नील की खेती को लेकर सत्याग्रह छेड़ा। उनके भाषण सुनकर विदेशी सरकार विषम स्थिति में पड़ गई। चम्पारन के आन्दोलन में सफल होकर उन्होंने खेड़ा में सत्याग्रह आन्दोलन छेड़ा। इस आन्दोलन में सरदार पटेल का व्यक्तित्व निखरकर सामने आया।
पंचम सर्ग : असहयोग आन्दोलन(सरांश)
चौरा चौरी की दु:ख घटना बाद गांधीजी ने अपना आन्दोलन स्थगित कर दिया, परन्तु . अंग्रेज ने फिर भी गांधीजी को बन्दी बना लिया। जेल में गांधीजी अस्वस्थ हो गए; अतः उन्हें छोड़ दिया गया। जेल से आकर गांधीजी हरिजनोद्धार, हिन्दू-मुस्लिम एकता एवं खादी-प्रचार आदि के रचनात्मक कार्य में लग गए। उसी अवधि में उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए २१ दिन का उपवास किया—
आत्मशुद्धि का यज्ञ कठिन यह, पूरा होने को जब आया।
बापू ने इक्कीस दिनों के अनशन का संकल्प सुनाया || सरकार
षष्ठ सर्ग: नमक सत्याग्रह(सरांश)
अंग्रेजों के द्वारा लगाए गए नमक कानून को तोड़ने के लिए पूज्य गांधीजी ने समुद्र-तट पर बसे ‘डाण्डी’ नामक स्थान तक की पैदल यात्रा २४ दिनों में पूरी की। तत्पश्चात् अंग्रेज शासकों ने ‘गोलमेज कॉन्फ्रेन्स’ का आयोजन किया, जिसमें गांधीजी को बुलाया गया। इस कॉन्फ्रेन्स के साथ-साथ कवि ने सन् १९३७ ई० के ‘प्रान्तीय `स्वराज्य’ की स्थापना सम्बन्धी कार्यकलापों का भी सुन्दर वर्णन किया है। –
सप्तम सर्ग : १९४२ ई० की जनक्रान्ति(सरांश)
द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। अंग्रेज सरकार युद्ध में भारतीयों का सक्रिय सहयोग प्राप्त करने की भावना से उनके साथ समझौता तो करना चाहती थी, परन्तु उन्हें कुछ सीमित अधिकार भी देने के लिए तैयार नहीं थी। ‘क्रिप्स मिशन’ की असफलता के बाद गांधीजी ने सन् १९४२ ई० में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन छेड़ दिया। इस आन्दोलन से देश के सभी भागों में जागृति की लहर दौड़ गई—
थे महाराष्ट्र-गुजरात उठे,
पंजाब – उड़ीसा साथ उठे।
बंगाल इधर, मद्रास उधर,
मरुथल में थी ज्वाला घर-घर ।
कवि ने इस आन्दोलन का बड़ा ही ओजस्वी भाषा में वर्णन किया है। ‘बम्बई अधिवेशन’ के बाद गांधीजी सहित सभी भारतीय नेता जेल में डाल दिए गए। इस पर सम्पूर्ण भारत में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी
जब क्रान्ति – लहर चल पड़ती है,
हिमगिरि की चूल उखड़ती है।
साम्राज्य उलटने लगते हैं,
इतिहास पलटने लगते हैं।
कवि ने पूज्य बापू व कस्तूरबा के मध्य हुए एक वार्त्तालाप का भी भावमय चित्रण किया है। इस प्रसंग में गांधीजी के मानवीय स्वभाव एवं पूज्य ‘बा’ की सेवा-भावना, बापू के प्रति अटूट प्रेम, मूक त्याग और बलिदान का उद्घाटन हुआ है।
अष्टम सर्ग: भारतीय स्वतन्त्रता का अरुणोदय(सरांश)
भारत स्वतन्त्र हुआ। स्वतन्त्रता – प्राप्ति के साथ ही देश में साम्प्रदायिक झगड़े प्रारम्भ हो गए। हिंसा व मारकाट की आग सारे देश में भड़क उठी। बापू को इससे मानसिक पीड़ा और उन्हें अत्यधिक ठेस पहुँची। वे कह उठे
प्रभो ! इस देश को सत्पथ दिखाओ,
लगी जो आग भारत में, बुझाओ।
मुझे दो शक्ति इसको शान्त कर दूँ,
लपट में रोष की निज शीश धर दूँ ।।
गांधीजी की मनोकामना के साथ ही इस खण्डकाव्य की कथा समाप्त हो जाती है।
प्र. 1. आलोकवृत्त’ के आधार पर गांधी जी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के नायक ( प्रमुख पात्र) का चरित्रांकन कीजिए।
उत्तर. ‘आलोकवृत्त खण्डकाव्य के आधार पर गांधी जी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं
- सामान्य मानवीय दुर्बलताएँ – गांधी जी का आरम्भिक जीवन एक साधारण मनुष्य की भाँति मानवीय दुर्बलताओं वाला रहा है। उन्होंने एक बार अपने गुरु से छुपकर मांसभक्षण किया था; किन्तु बाद में उन्होंने अपनी इन दुर्बलताओं पर अपनी आत्मिक शक्ति के बल पर पूर्ण विजय पा ली।
- देश-प्रेमी – ‘आलोकवृत्त’ में गांधी जी के चरित्र की सर्वप्रथम विशेषता उनका देशप्रेम है। वे देशप्रेम के कारण अनेक बार कारागार जाते हैं, जहाँ उन्हें अंग्रेजों के अपमानं अत्याचार सहने पड़ते हैं। उन्होंने अपना सर्वस्व देश के लिए न्योछावर कर दिया। भारत के लिए उनका कहना था—
तू चिर प्रशान्त, तू चिर अजेय सुर-मुनि- वन्दित, स्थित, अप्रमेय
हे सगुण ब्रह्म, वेदादि-गेय हे चिर अनादि हे चिर अशेष मेरे भारत मेरे स्वदेश।
- सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक—गांधी जी देश की स्वतन्त्रता केवल सत्य और अहिंसा के द्वारा ही प्राप्त करना चाहते हैं। असत्य और हिंसा का मार्ग उन्हें अच्छा नहीं लगता। वे कहते हैं
पशुबल के आत्मा की शक्ति जगानी होगी।
मुझे अहिंसा से हिंसा की आग बुझानी होगी।
- दृढ आस्तिक — गांधी जी पुरुषार्थी हैं तो वे ईश्वर की सत्ता में अटूट विश्वास रखते हैं। वे प्रत्येक कार्य ईश्वर को साक्षी मानकर करते हैं। यही कारण है कि वे मात्र पवित्र साधनों का प्रयोग ही उचित समझते हैं
क्या होगा परिणाम सोच लूँ, पर क्यों सोचूं, वह तो । मेरा क्षेत्र नीं, खष्टा का, जो प्रभु करे वही हो ।
- स्वतन्त्रता प्रेमी – गांधी जी के जीवन का मूल उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र करवाना है। वे भारतमाता की स्वतन्त्रता के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। वे देशवासियों को परतन्त्रता की बेड़ियाँ काटने के लिए प्रेरित करते हुए कहते हैं
जाग तुझे तेरी अतीत, स्मृतियाँ धिक्कार रही हैं।
जाग जाग तुझे भावी पीढ़ियाँ पुकार रही हैं ॥
- मानवतावादी — गांधी जी मानव-मानव में अन्तर नहीं मानते। वे सबसे लिए समानता के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं। उन्होंने जीवन-भर ऊँच-नीच, जाति-पांति और रंगभेद का डटकर विरोध किया। इस भेदभाव से उन्हें बहुत दुःख होता था
जिसने मारा मुझे, कौन वह, हाथ नहीं क्या मेरा । मानवता तो एक, भिन्न, बस उसका मेरा घेरा ॥
- भावनात्मक, राष्ट्रीय और हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक — गांधी जी ‘विश्वबन्धुत्व’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से ओत-प्रोत थे। वे सभी को सुखी व समृद्ध देखना चाहते थे। इन्होंने भारत की समग्र जनता को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए जीवन पर्यन्त प्रयास किया और – हिन्दू-मुसलमानों को भाई- भाई की तरह रहने की प्रेरणा दी। उनका कहना था
यदि मिलकर इस राष्ट्रयज्ञ में सब कर्त्तव्य निभायें अपना,
एक वर्ष में ही पूरा हो मेरा रामराज्य का सपना।
निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि एक श्रेष्ठ मानव में जितने भी मानवोचित गुण हो सकते हैं, वे सभी महात्मा गांधी में विद्यमान थे।