Class 12 Samanya Hindi Khandkavy खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ Muktiyagy- Saransh Charitra Chitran kathavastu.
Class | 12 Intermediate |
Subject | Hindi || General Hindi |
Board | UP Board-UPMSP |
Chapter | Muktiyagya -Khandkavy |
मुक्तियज्ञ (सुमित्रानन्दन पन्त)
मुरादाबाद, कानपुर, जौनपुर, फैजाबाद, एटा, चमोली, ललितपुर, पौड़ी गढ़वाल, पिथौरागढ़ जनपदों तथा | कानपुर देहात के लिए।
कथावस्तु
प्रश्न १ – ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए। –
अथवा ‘मुक्तियज्ञ’ में वर्णित मुख्य घटना का उल्लेख कीजिए ।
अथवा ‘मुक्तियज्ञ’ में गांधीयुग के स्वर्ण- इतिहास का काव्यात्मक आलेख है । पुष्टि कीजिए ।
अथवा ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में कवि ने इतिहास की प्रामाणिकता की रक्षा करते हुए सत्याग्रह आन्दोलन का चित्रण काव्यात्मक ढंग से किया है। इस कथन की सम्यक् विवेचना कीजिए। अथवा ‘ ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य सत्याग्रह आन्दोलन का काव्यात्मक इतिहास है ।” सतर्क उत्तर दीजिए ।
अथवा ‘मुक्तियज्ञ’ के आधार पर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा ‘मुक्तियज्ञ’ में भारत के स्वतन्त्रता युद्ध का आद्योपान्त वर्णन है । इस कथन के पक्ष में अपने विचार लिखिए।
उत्तर—कविवर सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा लिखित ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में सन् १९२१ ई० से १९४७ ई० तक के मध्य घटित भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं और राष्ट्रीय एवं देशभक्ति की भावनाओं को चित्रित किया गया है।
अंग्रेज शासकों ने नमक पर कर बढ़ा दिया था। महात्मा गांधी ने उसका डटकर विरोध किया। गांधीजी ने नमक कानून तोड़ने व सत्याग्रह के लिए साबरमती आश्रम से २०० मील की दूरी पर समुद्र तट पर स्थित ‘डाण्डी’ ग्राम को चुना। वहाँ पहुँचकर उन्होंने समुद्र के पास से नमक उठाकर ‘नमक कानून’ भंग किया।
गांधीजी का उद्देश्य नमक बनाना नहीं था, वे तो इस कानून का विरोध करना और जनता में चेतना उत्पन्न करना चाहते थे। वे शासन का विरोध करके भारतीयों का आह्वान स्वतन्त्रता प्राप्ति के महान् यज्ञ हेतु करना चाहते थे। गांधीजी ने जन-जागरण के – उद्देश्य से ‘डाण्डी’ ग्राम तक पैदल जाने का निश्चय किया। वे २४ दिन की पैदल यात्रा के बाद ‘डाण्डी’ ग्राम पहुँचे –
वह चौबीस दिनों का पथ व्रत, दो सौ मील किए पद पावन ।
स्थल-स्थल पर रुक पा जन पूजन, दिया दीप्त सत्याग्रह दर्शन !
गांधीजी का यह कार्य ‘डाण्डी यात्रा’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गांधीजी का डण्डी – सत्याग्रह सफल हुआ और – अंग्रेज शासकों को नमक कानून हटाना पड़ा। गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के प्रभाव को जान चुके थे, अतः वे भारतीयों को भी परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए मसीहा बनकर आए। वे सत्य और अहिंसा की शक्ति को बड़ी प्रभावी शक्ति मानते थे और भारतीयों को भी इसी शक्ति का परिचय देना चाहते थे।
गांधीजी के सत्याग्रह से अंग्रेज शासक क्षुब्ध हो गए और उन्होंने भारतीयों पर दमन चक्र चलाना प्रारम्भ कर दिया। इसके विरोध में भारतीयों द्वारा जेलें भरी जाने लगीं। गांधीजी को भी जेल में डाल दिया गया।
जैसे-जैसे दमनचक्र बढ़ता गया, वैसे-वैसे ही मुक्ति यज्ञ भी तीव्र होता गया। गांधीजी ने भारतीयों को स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए प्रोत्साहित किया और स्वदेशी अपनाने की प्रेरणा दी। इस प्रकार गांधीजी ने भारतीयों में एक अपूर्व उत्साह एवं जागृति उत्पन्न कर दी।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीयों ने अंग्रेजों से संघर्ष का निर्णय लिया। संघर्ष बढ़ता गया । सन् १९२७ ई० में भारत में साइमन कमीशन आया। भारतीयों ने इसका पूर्ण बहिष्कार किया। साइमन कमीशन को वापस जाना पड़ा। इसके उपरान्त भारत में स्थान-स्थान पर ‘अंग्रेजो ! भारत छोड़ो’ का नारा सुनाई पड़ने लगा। अब गांधीजी पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते थे।
अंग्रेजों ने ‘फूट डालो’ की नीति को अपनाकर ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना करा दी और हिन्दू-मुसलमानों को संघर्ष के रास्ते पर खड़ा कर दिया। गांधीजी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए अनशन किया और अनशन तभी तोड़ा, जब उन्हें यह विश्वास दिलाया गया कि यह एकता बनाए रखी जाएगी।
सन् १९४२ ई० में भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की गई। अंग्रेजों के प्रोत्साहन से मुस्लिम लीग ने भारत-विभाजन की माँग की सन् १९४७ ई० में भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता की घोषणा की गई। इधर मुस्लिम लीग के भड़काने से हिन्दू-मुस्लिम दंगे शुरू हो गए। यह देखकर महात्मा गांधी बहुत दुःखी हुए। जिस समय देश में स्वतन्त्रता की खुशियाँ मनाई जा रही थीं, उस समय महात्मा गांधी मौन व्रत धारण किए हुए थे। वे चाहते थे कि हिन्दू-मुस्लिम पारस्परिक वैर को त्यागकर सत्य, अहिंसा, आपसी प्रेम आदि नैतिक गुणों को अपनाएँ और भाईचारे से रहें।
इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य, गांधी युग के स्वर्णिम इतिहास का काव्यात्मक आलेख है। इसमें उस युग का इतिहास अंकित है, जब भारत में सर्वत्र हलचल मची हुई थी और सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की आग सुलग रही थी।
प्र. 2. ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का नायक कौन है? उसका चारित्रिक विश्लेषण कीजिए |
या ‘मुक्तियज्ञ’ के आधार पर गांधी जी (नायक) की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर.‘मुक्तियज्ञ’ काव्य के आधार पर गांधी जी की चारित्रिक विशेषताएँ अग्रवत् हैं—
- प्रभावशाली व्यक्तित्व — गांधी जी का आन्तरिक व्यक्तित्व बहुत अधिक प्रभावशाली है। उनकी वाणी में अद्भुत चुम्बकीय प्रभाव था । उनकी डाण्डी यात्रा के सम्बन्ध में कवि ने लिखा है
वह प्रसिद्ध डाण्डी यात्रा थी, जन के राम गये थे फिर वन ।
सिन्धु तीर पर लक्ष्य विश्व का, डाण्डी ग्राम बना बलि प्रांगण ||
- सत्य, प्रेम और अहिंसा के प्रबल समर्थक — ‘मुक्तियज्ञ’ में गांधी जी के जीवन के सिद्धान्तों में सत्य, प्रेम और अहिंसा प्रमुख हैं। अपने इन तीन आध्यात्मिक अस्त्रों के बल पर ही गांधी जी ने अंग्रेज सरकार की नींव हिला दी। इन सिद्धान्तों को वे अपने जीवन में भी अक्षरशः उतारते थे। उन्होंने कठिन-से-कठिन परिस्थिति में भी सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग नहीं छोड़ा।
- दृढ़प्रतिज्ञ – ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गांधी जी ने जो भी कार्य आरम्भ किया, उसे पूरा करके ही छोड़ा। वे अपने निश्चय पर अटल रहते हैं। उन्होंने नमक कानून तोड़ने की प्रतिज्ञा की तो उसे पूरा भी कर दिखाया –
प्राण त्याग दूँगा पथ पर ही, उठा सका मैं यदि न नमक – कर।
लौट न आश्रम में आऊँगा, जो स्वराज ला सका नहीं घर ॥
- जन-नेता – ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गांधी जी सम्पूर्ण भारत में जन-जन के प्रिय नेता हैं। उनके एक संकेतमात्र पर ही लाखों नर-नारी अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं; यथा—
मुट्ठी-भर हड्डियाँ बुलातीं, छात्र निकल पड़ते सब बाहर ।
लोग छोड़ घर-द्वार, मान, पद, हँस-हँस बन्दी – गृह देते भर ॥
- मानवता के अग्रदूत – ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गांधी जी अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता के कल्याण में ही लेगा देते हैं। उनका दृढ़ विश्वास है कि मानव-मन में उत्पन्न घृणा, घुणा से नहीं अपितु प्रेम से मारती है, वे हिंसा पर टिकी हुई संस्कृति को मानवीय नहीं मानते घृणा, घृणा से नहीं मरेगी, बल प्रयोग पशु साधन निर्दय ।
हिंसा पर निर्मित भू-संस्कृति, मानवीय होगी न, मुझे भय ॥
- लोकपुरुष — ‘मुक्तियज्ञ’ में गांधी जी एक लोकपुरुष के रूप में पाठकों के समक्ष आते हैं। इस सम्बन्ध में कवि कहता है—
संस्कृति के नवीन त्याग की मूर्ति, अहिंसा ज्योति, सत्यव्रत ।
लोक-पुरुष स्थितप्रज्ञ, स्नेह धन, युगनायक, निष्कास कर्मरत ॥
- समदृष्टा — गांधी जी सबको समान दृष्टि से देखते थे। उनकी दृष्टि में न कोई बड़ा था और न ही कोई छोटा । छुआछूत को वे समाज का कलंक मानते थे। उनकी दृष्टि में कोई अछूत नहीं था
इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गांधी जी महान् लोकनायक; सत्य, अहिंसा और प्रेम के समर्थक; दृढ़प्रतिज्ञ, निर्भीक और साहसी पुरुष के रूप में सामने आते हैं। कवि ने गांधी जी में सभी लोक-कल्याणकारी गुणों का समावेश करते हुए उनके चरित्र को एक नया स्वरूप प्रदान किया है।
प्र. 3. ‘मुक्तियज्ञ’ में निरूपित आजाद हिन्द सेना की भूमिका पर प्रकाश डालिए ।
या ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की किसी एक महत्त्वपूर्ण घटना का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर.द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में अपने घर में ही नजरबन्द सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेजों को चकमा देकर जनवरी सन् 1941 में नजरबन्दी से निकल भागे तथा अफगानिस्तान, जर्मनी होते हुए जापान पहुँच गये। दिसम्बर 1941 में जापान ने विश्वयुद्ध में प्रवेश किया। उस समय मलाया में अमेरिकी, ऑस्ट्रेलियन और अंग्रेजी सैन्य विभागों के साथ लगभग 60,000 भारतीय सैनिक और उच्च पदाधिकारी भी नियुक्त थे।
पराधीन देश के सैनिक होने के कारण उनके तथा अन्य देश के सैनिकों में वेतन और अन्य सुविधाओं की दृष्टि से बहुत भेदभाव रखा गया था । जापानियों ने बड़ी आसानी से मलाया पर अधिकार कर लिया। इन्हीं दिनों बंगाल के क्रान्तिकारी नेता श्री रासबिहारी बोस ने जापानी सैन्य अधिकारियों से मिलकर युद्ध में बन्दी भारतीय सिपाहियों की एक देशभक्त सेना बनायी ।
सितम्बर सन् 1942 में भारतीय सेनानायकों के नेतृत्व में ‘आजाद हिन्द सेना’ बनी। मलाया, बर्मा, हाँगकाँग, जावा आदि देशों के अनेक प्रवासी भारतीय भी उसमें सम्मिलित हुए। सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में ‘आजाद हिन्द सेना’ एक महत्वपूर्ण और बलशाली सैन्य-संगठन बन गया।
26 जून, सन् 1945 को भारत के प्रति रेडियो सन्देश भेजते हुए आजाद हिन्द रेडियो से उन्होंने घोषित किया था कि आजाद हिन्द सेना कोई पराधीन और शक्तिहीन सेना नहीं थी। इसके नायक धुरी राष्ट्रों की सहायता से भारत को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने की योजना बना रहे थे।
मई, 1945 में विश्वयुद्ध समाप्त हुआ और जून में कांग्रेस के बन्दी नेता छोड़ दिये गये। सारे देश में उत्साह की लहर छा गयी । इन्हीं दिनों लाल किले में बन्दी आजाद हिन्द सेना के नायकों पर मुकदमा चलाया गया। मुकदमे के दौरान जब इन वीरों की शौर्य गाथाएँ जनता के सामने आयीं, तब समस्त भारतीय जनता का प्यार उन पर उमड़ पड़ा।
इसी समय हवाई दुर्घटना में हुई सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के समाचार से सम्पूर्ण भारत पर अवसाद (निराशा) के बादल छा गये। उनके कठिन प्रवास की दुःखद कहानियों को सुन-सुनकर जनता का यह अवसाद क्रोध में बदल गया। इस प्रकार युद्ध समाप्त होते-होते सम्पूर्ण भारत में फिर क्रान्ति की उत्तेजना व्याप्त हो गयी।
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