Essay On Women | हिंदी निबंध लेखन वर्तमान समाज में नारी की स्थिति

वर्तमान समाज में नारी की स्थिति

Essay On Women | हिंदी निबंध लेखन वर्तमान समाज में नारी की स्थिति – यहां पर हमने महिला सशक्तीकरण और समाज पर आधारित निबंध की चर्चा की है इससे संबंधित अन्य टॉपिक पर भी यही निबंध लिख सकते हैं -अन्य सम्बन्धित शीर्षक आधुनिक नारी , नारी चिन्तन का बदलता स्वरूप अथवा , महिला सशक्तीकरण और समाज, नारी स्वातन्त्र्य : उच्छृंखलता या प्रगतिशीलता आदि |  Essay On Women | हिंदी निबंध लेखन वर्तमान समाज में नारी की स्थिति –  Here we have discussed the essay based on the Modern Woman, Changing Nature of Women’s Thought or, Women’s Empowerment and Society, Women’s Freedom: Disorderly or Progressiveness , you can write the same essay on other topics related to it like. UP Board Mp Board RBSE, CBSE Board class  9,10,11,12  Essential and important essay for Students of all Classes. We have explained the topic heading by heading along with the outline here.

  • प्रस्तावना – पुरुष और नारी मानव समाज के दो मुख्य तत्व हैं । पुरुष और नारी के पारस्परिक सहयोग की आधारशिला पर ही मानव समाज की नींव टिकी हुई है । ये दोनों एक दूसरे के अभाव में महत्त्वहीन हैं । किसी एक के अभाव में भी समाज का अस्तित्व सम्भव नहीं है । इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि तटस्थ भाव से देखा जाये तो मानव समाज में पुरुष एवं नारी का समान महत्त्व एवं स्थान होना चाहिए । एक समय था जब भारतीय समाज में नारी और पुरुष का महत्त्व समान था । नारी पुरुषों के साथ समानता के आधार पर बैठकर शास्त्रार्थ करती थीं । इसके विपरीत भारतीय समाज में ही ऐसा काल भी आया था जब भारतीय नारी को उपभोग की वस्तु समझा जाने लगा । अब पुनः स्थिति परिवर्तित हो रही है । वर्तमान भारत में पुनः नारी को समानता का स्थान प्राप्त हो रहा है । इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय समाज में नारी का स्थान एवं महत्त्व परिवर्तित होता रहा है । भारतीय समाज में नारी के वास्तविक महत्त्व एवं स्थान को जानने के लिए भारतीय समाज के विभिन्न कालों का अवलोकन करना अनिवार्य है ।
  • प्राचीन भारत में नारी का स्थान – सभ्यता एवं संस्कृति की दृष्टि से प्राचीन काल में भारतीय समाज पर्याप्त उन्नत था । प्राचीन काल में भारतीय समाज में नारी तथा पुरुष को समानता का स्थान प्राप्त था । इस काल में नारी को किसी भी प्रकार से हीन नहीं माना जाता था । नारी का कार्य क्षेत्र पर्याप्त विस्तृत था , वह केवल घर तक ही सीमित न था । सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों में नारियाँ पुरुषों के समान भाग लेती थीं । इस युग में विदूषी स्त्रियाँ हुई हैं जिन्होंने गम्भीर दार्शनिक विषयों पर भी पुरुषों से शास्त्रार्थ किये थे । वे पुरुषों के समान अधिक से अधिक शिक्षा ग्रहण कर सकती थीं । विवाह के लिए वे स्वयं योग्य पति का चुनाव कर सकती थीं । स्वयंवर प्रथा इसी तथ्य का प्रमाण है । इस काल में स्त्रियाँ अपने पति के साथ युद्ध में भी जाया करती थीं । राजा दशरथ के साथ उनकी रानी कैकेयी युद्ध में जाया करती थी । युद्ध के अतिरिक्त धार्मिक कार्यों में भी स्त्रियों को पूर्ण एवं समानता के अधिकार प्राप्त थे । बिना स्त्री ( पत्नी ) के कोई भी महायज्ञ सम्पन्न नहीं हो सकता था । प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति बहुत अच्छी थी । नारी को जो महत्त्वपूर्ण स्थान प्राचीन भारतीय समाज में प्राप्त था वह शायद विश्व के किसी भी समाज में कभी भी प्राप्त न था ।
  • मध्यकालीन भारतीय समाज में नारी – मध्यकाल , भारतीय समाज के लिये अवनति का काल था । हमारे सामाजिक आदर्श एवं नियम क्रमशः फीके पड़ने लगे । इन सब परिवर्तनों का प्रभाव भारतीय नारी पर भी पड़ा । भोग – विलास की प्रवृत्ति बढ़ जाने के कारण नारी के शारीरिक पक्ष को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा । धीरे – धीरे नारी को वासना पूर्ति का साधन माना जाने लगा । इस स्थिति के उत्पन्न होने पर नारी पर तरह – तरह के बन्धन लगाये जाने लगे । नारी की स्वतन्त्रता समाप्त हो गई । वह क्रमशः अज्ञान के अंधकार में डूबने लगी । अज्ञानता एवंतरह – तरह के प्रतिबन्धों के कारण मध्यकालीन भारतीय नारी सामाजिक एवं धार्मिक गतिविधियों से वंचित हो गई । अब उसे योग्य वर चुनने का अधिकार भी न था । सामाजिक व्यवस्था एवं सामाजिक नियम पुरुष के हाथ में थे । पुरुष ने अपने निजी स्वार्थी के लिए नारी के जीवन को मनमाने ढंग से परिचालित करना प्रारम्भ कर दिया । अल्पायु की कन्याओं का विवाह होने लगा । विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय समाज में बाल विधवाओं की संख्या बढ़ने लगी । मध्यकालीन भारतीय विधवा स्त्री का जीवन इतना दयनीय एवं कष्टदायक था कि उसका वर्णन करना असम्भव है । कहने का तात्पर्य यह है कि मध्यकालीन भारतीय समाज में स्त्री की स्थिति बहुत ही निम्न एवं तुच्छ थी । इसके लिये मध्यकालीन भारतीय समाज निन्दा का पात्र है ।
  • आधुनिक भारतीय समाज में नारी – शताब्दियों की दासता सहने के बाद आधुनिक युग में पुनः भारत में राष्ट्रीय चेतना की लहर आयी । इसी काल में हमारे समाज सुधारकों का ध्यान नारी कल्याण की ओर भी आकृष्ट हुआ । सभी समाज सुधारकों एवं नेताओं ने एक स्वर में नारी की स्वतन्त्रता एवं समानता की पुकार की । कवियों ने भी नारी की दयनीय स्थिति का मार्मिक वर्णन करना प्रारम्भ कर दिया । गुप्त जी कह उठे ” अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी , आँचल में है दूध आँखों में पानी । ” समाज सुधारकों ने भारतीय नारी को पुरुष के समान स्तर पर लाये जाने के भरसक प्रयास प्रारम्भ किये । उन सभी सामाजिक कुरीतियों और कुप्रथाओं को समाप्त करने का प्रयास किया जाने लगा , जिससे नारी की स्थिति दयनीय हो गयी है । महान् समाज सुधारक राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को समाप्त करने का सफल प्रयास किया । महर्षि दयानन्द ने भारतीय नारी को समाज में समानता का स्थान दिलाने के लिये नारी – शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया । स्थान – स्थान पर कन्या पाठशालायें एवं विद्यालय खोले जाने लगे । बाल विवाह तथा पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक कुप्रथाओं का विरोध किया जाने लगा । इन समाज सुधारकों के प्रयासों एवं आह्वान से भारतीय समाज में चेतना की लहर आ गयी । पूरा भारतीय समाज नारी की सामाजिक स्थिति के विषय में सोचने के लिए बाध्य हुआ ।
  • स्वतन्त्र भारत के लिए नया संविधान बनाया गया । भारतीय संविधान में स्त्री – पुरुष के सभी अधिकार समान माने गये हैं । ” भारतीय नारी अब अबला नहीं है , वह सबला है । उसकी घुटनभरी चहारदीवारी अब टूट चुकी है । अब वह घर और बाहर दोनों स्थानों पर सुदृढ़ है । प्रतिभा पाटिल के रूप में वह भारत की राष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित थीं । इन्दिरा गाँधी के रूप में प्रधानमंत्री बनी , कल्पना चावला के रूप में वह अंतरिक्ष में भ्रमण कर आयी । किरणवेदी के रूप में वरिष्ठ महिला आई ० पी ० एस ० अधिकारी बनी । आज वह वैज्ञानिक है , सेना में अधिकारी है , ट्रेन , बस और हेलीकॉप्टर चलाती है , और बछेन्द्रीपाल के रूप में एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ती है । में पुरुष के समान है । भारतीय नारी अपनी योग्यता के अनुसार प्रत्येक पद की अधिकारिणी है । सेना एवं पुलिस विभाग में भी नारियों ने अनेक पद सफलतापूर्वक ग्रहण किये हुये हैं । कहने का हर क्षेत्रतात्पर्य यह है कि सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों प्रकार से आधुनिक भारतीय समाज ने स्त्रियों को समानता का स्थान देकर सामाजिक उदारता तथा मानवतावाद का प्रमाण प्रस्तुत किया है वर्तमान भारतीय समाज पुनः सभ्यता के शिखर की ओर अग्रसर है ।
  • उपसंहार — भारतीय समाज के विभिन्न कालों क अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि भिन्न – भिन्न कालों मे .भारतीय समाज में नारी की स्थिति भिन्न – भिन्न थी । वास्तव में सामाजिक व्यवस्था एवं सभ्यता के विकास के अनुसार ही समाज में नारी की स्थिति भी बदलती रही है । गर्व एवं हर्ष का विषय है कि वर्तमान भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर्याप्त सन्तोषप्रद है । हमें आशा है कि निकट भविष्य में भारतीय नारी की सामाजिक स्थिति और भी सुधर जायेगी तथा उसे पूर्ण समानता का स्थान प्राप्त हो जायेगा

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