UP Board Class 12 Question Bank 2026 : Gyansindhu Pariksha Prahar General Hindi सामान्य हिंदी की क्वेश्चन बैंक 2026 (Full Book – PAGE-16)
गद्य खंड के अंतर्गत गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
Chapter 1. राष्ट्र का स्वरुप – डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल (Part-1)
(1) भूमि का निर्माण देवों ने किया है, वह अनंत काल से है। उसके भौतिक रूप, सौन्दर्य और समृद्धि के प्रति सचेत होना हमारा आवश्यक कर्तव्य है। भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति हम जितने अधिक जागरूक होंगे, उतनी ही हमारी राष्ट्रीयता बलवती हो सकेगी। यह पृथिवी सच्चे अर्थों में समस्त राष्ट्रीय विचारधाराओं की जननी है। जो राष्ट्रीयता पृथिवी के साथ नहीं जुड़ी वह निर्मूल होती है। राष्ट्रीयता की जड़ें पृथिवी में जितनी गहरी होंगी, उतना ही राष्ट्रीय भावों का अंकुर पल्लवित होगा। इसलिए पृथिवी के भौतिक स्वरूप की आद्योपांत जानकारी प्राप्त करना, उसकी सुन्दरता, उपयोगिता और महिमा को पहचानना आवश्यक धर्म है।
गद्यांश का भाव – इन पंक्तियों में लेखक ने राष्ट्रीयता के विकास हेतु राष्ट्र के महत्त्वपूर्ण तत्त्व ‘भूमि’ के रूप, उपयोगिता एवं महिमा के प्रति सचेत रहने तथा भूमि को समृद्ध बनाने पर बल दिया है।
समस्त गद्यांशों की भाषा-शैली की विशेषताएँ-
गद्यांश से सम्बंधित प्रश्न-
- गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए। अथवा उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश सुविदित साहित्यकार डॉ0 वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। यह निबन्ध हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक के गद्य भाग में संकलित है।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या- जो राष्ट्रीय विचारधारा पृथ्वी से सम्बद्ध नहीं होती, वह आधारविहीन होती है और उसका अस्तित्व अल्प समय में ही समाप्त हो जाता है। वस्तुतः हम पृथ्वी के गौरवपूर्ण अस्तित्व के प्रति जितना अधिक सचेत रहते हैं, उतनी ही अधिक राष्ट्रीयता के बलवती होने की सम्भावना रहती है। राष्ट्रीयता का आधार जितना मजबूत होगा, राष्ट्रीय भावनाएँ भी उतनी ही अधिक विकसित होंगी। अतः प्रारम्भ से अन्त तक पृथ्वी के भौतिक स्वरूप की जानकारी रखना तथा उसके रूप, सौन्दर्य, उपयोगिता एवं महिमा को पहचानना प्रत्येक मनुष्य का न केवल परम कर्त्तव्य है, अपितु उसका धर्म भी है ।
- ‘‘राष्ट्रीयता की जड़ें पृथिवी में जितनी गहरी होंगी, उतना ही राष्ट्रीय भावों का अंकुर पल्लवित होगा।“ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- ‘‘राष्ट्रीयता की जड़ें पृथिवी में जितनी गहरी होंगी, उतना ही राष्ट्रीय भावों का अंकुर पल्लवित होगा।’’ इस पंक्ति का आशय यह है कि हम पृथ्वी के गौरवपूर्ण अस्तित्व के प्रति जितना अधिक सचेत रहेंगे, उतनी ही अधिक राष्ट्रीयता के बलवती होने की सम्भावना होगी। अन्य शब्दों में राष्ट्रीयता का आधार जितना सशक्त होगा, राष्ट्रीय भावनाएँ भी उतनी ही अधिक विकसित होंगी।
- गद्यांश के केन्द्रीय भाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- गद्यांश का केन्द्रीय भाव- इस गद्यांश अन्तर्गत पृथ्वी की महिमा और उपयोगिता को अत्यन्त प्रभावपूर्ण ढंग से स्पष्ट किया गया है। साथ ही पृथ्वी को ही समस्त राष्ट्रीय विचारधाराओं की जननी मानकर उसके गौरवपूर्ण अस्तित्व को बनाए रखने के लिए सचेत किया गया है।
- देवताओं द्वारा निर्मित भूमि के प्रति मानव-जाति का क्या कर्त्तव्य है?
उत्तर- देवताओं द्वारा निर्मित भूमि के प्रति मानव जाति का यह कर्त्तव्य है कि वह इस भूमि के सौन्दर्य के प्रति सचेत रहे और इसका रूप किसी भी दशा में विकृत न होने दे। साथ ही प्रत्येक मनुष्य का यह भी कर्तव्य है कि वह भूमि को विभिन्न प्रकार से समृद्ध बनाने की दशा में सचेष्ट रहे।
- पृथ्वी के प्रति हमारा क्या धर्म है?
उत्तर- पृथ्वी के प्रति हमारा यह धर्म है कि हम प्रारम्भ से अन्त तक पृथ्वी के भौतिक स्वरूप की जानकारी रखें तथा उसके रूप, सौन्दर्य, उपयोगिता एवं महिमा को भली-भाँति पहचानें।
- राष्ट्र भूमि के प्रति हमारा आवश्यक कर्त्तव्य क्या है?
उत्तर- राष्ट्र भूमि के भौतिक रूप, सौन्दर्य और समृद्धि के प्रति सचेत होना हमारा आवश्यक कर्तव्य है।
- किस प्रकार की राष्ट्रीयता को लेखक ने निर्मूल कहा है?
उत्तर- जो राष्ट्रीयता पृथिवी के साथ नहीं जुड़ी हो, उसे लेखक ने निर्मूल कहा है।
- यह पृथिवी सच्चे अर्थों में क्या है?
उत्तर- यह पृथिवी सच्चे अर्थों में समस्त राष्ट्रीय विचारधाराओं की जननी है ।
- भूमि का निर्माण किसने किया है, और कब से है?
उत्तर- भूमि का निर्माण देवों ने किया है और यह अनन्तकाल से है।
- भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति जागरूक रहने का परिणाम क्या होगा?
उत्तर- भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति जागरूक रहने का परिणाम यह होगा कि इससे हमारी राष्ट्रीयता बलवती होगी।
- लेखक पृथ्वी को सच्चे अर्थों में क्या मानता है ?
उत्तर- लेखक पृथ्वी को सच्चे अर्थों में समस्त राष्ट्रीय विचारधाराओं की जननी मानता है।
- पार्थिव व आद्योपांत शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर- पार्थिव – पृथ्वी संबंधी, पृथ्वी से उत्पन्न।
आद्योपांत- शुरू से अंत तक, आद्यंत।
- हमारी राष्ट्रीयता कैसे बलवती होगी?
उत्तर- भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति हम जितने अधिक जागरूक होंगे, उतनी ही हमारी राष्ट्रीयता बलवती हो सकेगी।
(2) धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियाँ भरी हैं, जिनके कारण वह वसुन्धरा कहलाती है उससे कौन परिचित न होना चाहेगा? लाखों-करोड़ों वर्षों से अनेक प्रकार की धातुओं को पृथिवी के गर्भ में पोषण मिला है। दिन-रात बहनेवाली नदियों ने पहाड़ों को पीस-पीसकर अगणित प्रकार की मिट्टियों से पृथिवी की देह को सजाया है। हमारे भावी आर्थिक अभ्युदय के लिए इन सबकी जाँच-पड़ताल अत्यन्त आवश्यक है। पृथिवी की गोद में जन्म लेनेवाले जड़-पत्थर कुशल शिल्पियों से संवारे जाने पर अत्यन्त सौन्दर्य के प्रतीक बन जाते हैं। नाना भाँति के अनगढ़ नग विन्ध्य की नदियों के प्रवाह में सूर्य की धूप से चिलकते रहते हैं, उनको जब चतुर कारीगर पहलदार कटाव पर लाते हैं तब उनके प्रत्येक घाट से नई शोभा और सुन्दरता फूट पड़ती है, वे अनमोल हो जाते हैं। देश के नर-नारियों के रूप-मण्डन और सौन्दर्य-प्रसाधन में इन छोटे पत्थरों का भी सदा से कितना भाग रहा है। अतएव हमें उनका ज्ञान होना भी आवश्यक है ।
गद्यांश का भाव- लेखक ने राष्ट्र के निर्माण के प्रथम तत्त्व ‘भूमि’ यानी पृथ्वी का महत्त्व प्रतिपादित किया है। उनके अनुसार भूमि के पार्थिव स्वरूप के प्रति हम जितने अधिक जाग्रत होंगे, हमारी राष्ट्रीयता उतनी ही बलवती हो सकेगी और हमारी आर्थिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
गद्यांश से सम्बंधित प्रश्न-
- गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर- उपर्युक्त
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
रेखांकित अंश की व्याख्या- हमारे देश के भावी आर्थिक विकास की दृष्टि से इन सब तथ्यों का परीक्षण परम आवश्यक है। पृथ्वी के भीतर विभिन्न प्रकार के पत्थर उत्पन होते हैं। उन चेतनाहीन पत्थरों को पृथ्वी के गर्भ से निकालकर कुशल मूर्तिकार और दूसरे मूर्तिकार उनसे अनेक प्रकार की मूर्तियाँ और अन्य वस्तुएँ बनाकर उनमें प्राण फूंक देते हैं। इस प्रकार शिल्पकार के हाथों का स्पर्श पाकर ये पत्थर सौन्दर्य के प्रतीक बन जाते हैं। विन्ध्य पर्वत से निकलनेवाली नदियों की धारा में अनगिनत अनगढ़ चिकने पत्थर सूर्य की धूप में अपनी चमक बिखरते रहते हैं; किन्तु जब इन पत्थरों को कुशल कारीगर काटकर उनमें विभिन्न प्रकार के उभार देकर किसी कृति की रचना करते हैं तो उसका प्रत्येक कटाव नए सौन्दर्य की परिभाषा गढ़ता है। इस सौन्दर्य के कारण वह अनगढ़ पत्थर बहुमूल्य बन जाता है।
- हमारे भावी आर्थिक अभ्युदय के लिए किसकी जाँच-पड़ताल अत्यन्त आवश्यक है ?
उत्तर- हमारे भावी आर्थिक अभ्युदय के लिए यह आवश्यक है कि पृथ्वी की कोख में भरी अमूल्य निधियों, पृथ्वी में पोषित अनेक प्रकार की धातुओं और पृथ्वी की देह को सजानेवाली अनेक प्रकार की मिट्टियों आदि की सही प्रकार से जाँच-हड़ताल या परीक्षण करके देखा जाए कि वे सब किस-किस दृष्टि से उपयोगी हैं।
- उपर्युक्त गद्यांश में राष्ट्र-निर्माण के किस प्रथम तत्त्व का महत्त्व दर्शाया गया है?
उत्तर- उपर्युक्त गद्यांश में राष्ट्र-निर्माण के प्रथम तत्त्व ‘भूमि’ अथवा पृथ्वी का महत्त्व दर्शाया गया है।
- धरती को ‘वसुन्धरा’ क्यों कहते हैं?
उत्तर- धरती को ‘वसुन्धरा’ इसलिए कहा गया है; क्योंकि पृथ्वी अपनी कोख में अनेक प्रकार के मूल्यवान् रत्नों (वस्तुओं) को धारण किए हुए है।
- पृथ्वी की देह को किसने और किससे सजाया है ?
उत्तर- पृथ्वी की देह को दिन-रात बहनेवाली नदियों ने पहाड़ों को पीस-पीसकर अगणित प्रकार की मिट्टियों से सजाया है।
- अमूल्य निधियाँ कहाँ भरी हैं?
उत्तर- अमूल्य निधियाँ घरती माता की कोख में भरी हैं।
- पृथिवी की गोद में जन्म लेने वाले जड़ पत्थर कैसे सौन्दर्य के प्रतीक बन जाते हैं?
उत्तर- पृथिवी की गोद में जन्म लेनेवाले जड़-पत्थर कुशल शिल्पियों से संवारे जाने पर अत्यन्त सौन्दर्य के प्रतीक बन जाते हैं।
- लेखक ने हमें किनके योगदान के बारे में बताते हुए उनसे परिचित होने की प्रेरणा दी है?
उत्तर- लेखक ने हमें छोटे-छोटे पत्थरों के योगदान के बारे में बताते हुए उन अमूल्य निधियों से परिचित होने की प्रेरणा दी है।
- हमारे आर्थिक अभ्युदय के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर- हमारे आर्थिक अभ्युदय के लिए यह जाँच-पड़ताल आवश्यक है कि पृथ्वी के गर्भ में स्थित मूल्यवान रत्न, धातुएँ, खनिज पदार्थ, अन्न, फल, जल और इसी प्रकार की अनेक अनमोल वस्तुओं, जिन्हें धरती छिपाए रखती है तथा देह को सजाने वाली अनेक प्रकार की मिट्टियों का परीक्षण करे कि वह कौन-से कार्यों में उपयोगी है।
- गद्यांश के माध्यम से लेखक क्या सन्देश देना चाहता है?
उत्तर- लेखक यह सन्देश देना चाहता है कि हमें पृथ्वी अर्थात् भूमि के महत्व को समझते हुए उसके विविध पक्षों से परिचित होना चाहिए, जिससे कि हमारे हृदय में राष्ट्रीयता की भावना उजागर हो सके।
- ‘दिन-रात’ का समास विग्रह करते हुए उसका भेद लिखिए।
उत्तर- ‘दिन और रात’ (समास विग्रह), यह द्वन्द्व समास का भेद है।
(3) पृथिवी और आकाश के अंतराल में जो कुछ सामग्री भरी है, पृथिवी के चारों ओर फैले हुए गंभीर सागर में जो जलचर एवं रत्नों की राशियाँ हैं, उन सबके प्रति चेतना और स्वागत के नए भाव राष्ट्र में फैलने चाहिए। राष्ट्र के नवयुवकों के हृदय में उन सबके प्रति जिज्ञासा की नई किरणें जब तक नहीं फूटती, तब तक हम सोए हुए के समान हैं।
गद्यांश का भाव- यहाँ लेखक ने राष्ट्रीय चेतना की जागृति में भौतिक ज्ञान-विज्ञान के महत्त्व को स्पष्ट किया है।
गद्यांश से सम्बंधित प्रश्न-
- गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए। अथवा उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- उपर्युक्त
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या- पृथ्वी और आकाश के बीच स्थित नक्षत्रों, गैसों एवं वस्तुओं का ज्ञान, समुद्र में स्थित जलचरों, खनिजों तथा रत्नों का ज्ञान एवं पृथ्वी के सीने में छिपी अपार सम्पदा की जानकारियों पर आधारित ज्ञान भी राष्ट्रीय चेतना को सबल बनाने के लिए आवश्यक है। इससे राष्ट्रीय प्रगति के लिए आवश्यक साधन प्राप्त होते हैं। इसी के फलस्वरूप नवयुवकों में राष्ट्रीय चेतना और इन सबके प्रति जिज्ञासा विकसित होती है, जिससे राष्ट्र की वास्तविक उन्नति होती है। जब तक राष्ट्र के नवयुवक जिज्ञासु और जागरूक नहीं होते, तब तक राष्ट्र को सुप्त ही समझना चाहिए।
- राष्ट्रीयता की भावना के लिए किसके प्रति चेतना जाग्रत होनी आवश्यक है?
उत्तर- राष्ट्रीयता की भावना के लिए आवश्यक है कि यह भावना केवल भावनात्मक रूप में ही न हो, वरन् राष्ट्रीयता की भावना के अन्तर्गत भौतिक ज्ञान के प्रति चेतना भी जाग्रत हो, तभी राष्ट्रीयता की भावना सार्थक सिद्ध हो सकती है।
- पृथ्वी और आकाश के बीच तथा समुद्र में कौन-कौन-सी अपार सम्पदा देखने को मिलती है?
उत्तर- पृथ्वी और आकाश के बीच अनेक नक्षत्र, विभिन्न प्रकार की गैसें आदि तथा समुद्र में जलचर, विभिन्न प्रकार के खनिज और रत्नों जैसी अपार सम्पदा देखने को मिलती है।
- राष्ट्र अथवा राष्ट्र के निवासियों को कब तक सुप्त ही समझना चाहिए?
उत्तर- राष्ट्र अथवा राष्ट्र के निवासियों को तब तक सुप्त ही समझना चाहिए, जब तक राष्ट्र के नवयुवक जागरूक और जिज्ञासु नहीं होते।
- राष्ट्रीय चेतना में भौतिक ज्ञान-विज्ञान के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- राष्ट्रीयता की भावना केवल भावनात्मक स्तर तक ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि भौतिक ज्ञान-विज्ञान के प्रति जागृति के स्तर पर भी होनी चाहिए, क्योंकि पृथ्वी एवं आकाश के बीच विद्यमान नक्षत्र, समुद्र में स्थित जलचर, खनिजों एवं रत्नों का ज्ञान आदि भौतिक ज्ञान-विज्ञान राष्ट्रीय चेतना को सुदृढ़ बनाने हेतु आवश्यक होते हैं।
- ‘जिज्ञासा की नई किरणें जब तक नहीं फूटतीं, तब तक हम सोए के हुए समान हैं।’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि राष्ट्र के नवयुवकों में जब तक जिज्ञासा और जागरूकता नहीं होती, तब तक हम सोए हुए व्यक्ति के समान हैं। अतः तब तक राष्ट्र को सुप्त ही समझना चाहिए।
- लेखक के अनुसार, राष्ट्र समृद्धि का उद्देश्य कब पूर्ण नहीं हो पाएगा?
उत्तर- लेखक के अनुसार, राष्ट्र समृद्धि का उद्देश्य तब तक पूर्ण नहीं हो पाएगा, जब तक देश का कोई भी नागरिक बेरोजगार होगा, क्योंकि राष्ट्र का निर्माण एक-एक व्यक्ति से होता है। यदि एक भी व्यक्ति को रोजगार नहीं मिलेगा, तो राष्ट्र की प्रगति अवरुद्ध हो जाएगी।
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