UP Board Class 12 Question Bank 2026 : Gyansindhu Pariksha Prahar General Hindi सामान्य हिंदी की क्वेश्चन बैंक 2026 (Full Book – PAGE-18)
राष्ट्र का स्वरुप – डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल (Part-3)
(7) जन का प्रवाह अनन्त होता है। सहस्रों वर्षों से भूमि के साथ राष्ट्रीय जन ने तादात्म्य प्राप्त किया है। जब तक सूर्य की रश्मियाँ नित्य प्रातः काल भुवन को अमृत से भर देती हैं, तब तक राष्ट्रीय जन का जीवन भी अमर है। इतिहास के अनेक उतार-चढ़ाव पार करने के बाद भी राष्ट्र- निवासी जन नई उठती लहरों से आगे बढ़ने के लिए अजर-अमर हैं। जन का संततवाही जीवन नदी के प्रवाह की तरह है, जिसमें कर्म और श्रम के द्वारा उत्थान के अनेक घाटों का निर्माण करना होता है।
गद्यांश का भाव- इस में राष्ट्र के दूसरे अनिवार्य तत्त्व ‘जन’ पर विचार किया गया है, राष्ट्र के निवासियों की जीवन-शृंखला कभी समाप्त नहीं होती। उन्होंने जनजीवन की तुलना नदी के प्रवाह से की है।
- राष्ट्रीय जन ने किसके साथ तादात्म्य स्थापित किया है?
उत्तर- राष्ट्रीय जन ने भूमि के साथ तादात्म्य स्थापित किया।
- जन का संततवाही जीवन किसकी तरह है?
उत्तर- जन का संततवाही प्रवाह नदी के प्रवाह की तरह है।
- ‘रश्मि’ और ‘संततवाही’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- ‘रश्मि’ का अर्थ ‘प्रकाश की किरण’ और ‘संततवाही’ का अर्थ ‘निरन्तर बहनेवाला’ है।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या- प्रत्येक राष्ट्र का इतिहास निरन्तर बदलता रहता है तथा उसमें अनेक उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, किन्तु राष्ट्र के निवासियों की श्रृंखला निरन्तर चलती रहती है। मनुष्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने राष्ट्र के साथ जुड़ा रहता है। इसी कारण हजारों वर्षों से मनुष्य ने अपनी भूमि के साथ तादात्म्य स्थापित किया हुआ है तथा विभिन्न दृष्टियों से एकरूपता बनाई हुई है। जब तक राष्ट्र रहेगा और राष्ट्र की प्रगति होती रहेगी, तभी तक राष्ट्रीय ‘जन’ का जीवन भी रहेगा। हमारे राष्ट्र के इतिहास में उन्नति और अवनति के अनेक उतार-चढ़ाव आते रहे हैं, किन्तु हमारे राष्ट्र के लोगों ने नवीन शक्ति का निर्माण करते हुए उन्हें सहन किया है, उन्हें पार किया है और आज भी हमारे राष्ट्र के ये निवासी इन उतार-चढ़ावों का धैर्य के साथ मुकाबला करने के लिए उत्साहपूर्वक जीवित हैं।
- पाठ का शीर्षक और लेखक का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त
- राष्ट्रीय जन का जीवन भी कब तक अमर है?
उत्तर- जब तक सूर्य की किरणें नित्य प्रातःकाल भुवन को अमृत से भर देती हैं, तब तक राष्ट्रीय जन का जीवन भी अमर है।
- ‘जन का प्रवाह’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- ‘जन का प्रवाह’ से तात्पर्य जीवन की गतिशीलता से है।
- राष्ट्र निवासी जन किसके समान आगे बढ़ने के लिए अजर-अमर हैं?
उत्तर- राष्ट्र- निवासी जन नई उठती लहरों से आगे बढ़ने के लिए अजर-अमर हैं।
- उत्थान के घाटों का निर्माण कैसे होगा?
उत्तर- उत्थान के घाटों का निर्माण कर्म और श्रम के द्वारा होगा।
- तादात्म्य व उत्थान शब्दों का क्या अर्थ है?
उत्तर- तादात्म्य- तल्लीनता/अभिन्नता। उत्थान- उन्नति।
- जन का प्रवाह किस तरह का होता है?
उत्तर- जन का प्रवाह अनंत होता है।
- सूर्य की रश्मियों का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- राष्ट्रीय जन का जीवन भी अमर है।
- घाटों का निर्माण का क्या आशय है?
उत्तर- घाटों का निर्माण से आशय, मनुष्य का अपने कर्म और श्रम के द्वारा उन्नति के लिए पद चिन्ह छोड़ना है।
- जन-जीवन के प्रवाह को नदी की तरह क्यों कहा गया है?
उत्तर- जिस तरह नदी का प्रवाह निरंतर चलता रहता है, उसी प्रकार जन-जीवन भी सदैव गतिमान रहता है।
- ‘अजर’ और ‘उत्थान’ शब्दों का अर्थ लिखिए।
उत्तर- अजर- जो कभी बूढा न हो, उत्थान- उन्नति।
(8) राष्ट्र का तीसरा अंग जन की संस्कृति है। मनुष्यों ने युग-युगों में जिस सभ्यता का निर्माण किया है, वही उसके जीवन की श्वास-प्रष्वास है। बिना संस्कृति के जन की कल्पना कबन्धमात्र है। संस्कृति ही जन का मस्तिष्क है। संस्कृति के विकास और अभ्युदय के द्वारा ही राष्ट्र की वृद्धि सम्भव है। राष्ट्र के समग्र रूप में भूमि और जन के साथ-साथ जन की संस्कृति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यदि भूमि और जन अपनी संस्कृति से विरहित कर दिए जायँ तो राष्ट्र का लोप समझना चाहिए। जीवन के विटप का पुष्प संस्कृति है। संस्कृति के सौन्दर्य और सौरभ में ही राष्ट्रीय जन के जीवन का सौन्दर्य और यश अन्तर्निहित है। ज्ञान और कर्म दोनों के पारस्परिक प्रकाश की संज्ञा संस्कृति है।
भूमि पर बसनेवाले जन ने ज्ञान के क्षेत्र में जो सोचा है और कर्म के क्षेत्र में जो रचा है, दोनों के रूप में हमें राष्ट्रीय संस्कृति के दर्शन मिलते हैं। जीवन के विकास की युक्ति ही संस्कृति के रूप में प्रकट होती है। प्रत्येक जाति अपनी-अपनी विशेषताओं के साथ इस युक्ति को निश्चित करती है और उससे प्रेरित संस्कृति का विकास करती है। इस दृष्टि से प्रत्येक जन की अपनी-अपनी भावना के अनुसार पृथक्-पृथक् संस्कृतियाँ राष्ट्र में विकसित होती हैं, परन्तु उन सबका मूल-आधार पारस्परिक सहिष्णुता और समन्वय पर निर्भर है।
- पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए ।
अथवा उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश सुविदित साहित्यकार डॉ0 वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। यह निबन्ध हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक के गद्य भाग में संकलित है।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या- वस्तुतः संस्कृति मनुष्य का मस्तिष्क है और मनुष्य के जीवन में मस्तिष्क सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है; क्योंकि मानव शरीर का संचालन और नियन्त्रण उसी से होता है। जिस प्रकार से मस्तिष्क से रहित धड़ को व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है अर्थात् मस्तिष्क के बिना मनुष्य की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी प्रकार संस्कृति के बिना भी मानव-जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। संस्कृति और मनुष्य एक-दूसरे के पूरक होने के साथ-साथ एक-दूसरे के लिए अनिवार्य भी हैं। एक के न रहने पर दूसरे का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि जीवनरूपी वृक्ष का फूल ही संस्कृति है; अर्थात् किसी समाज के ज्ञान और उस ज्ञान के आलोक में किए गए कर्तव्यों के सम्मिश्रण से जो जीवन-शैली उभरती है या सभ्यता विकसित होती है, वही संस्कृति है। समाज ने अपने ज्ञान के आधार पर जो नीति या जीवन का उद्देश्य निर्धारित किया है, उस उद्देश्य की दिशा में उसके द्वारा सम्पन्न किया गया उसका कर्तव्य उसके रहन-सहन, शिक्षा, सामाजिक व्यवस्था आदि को प्रभावित करता है और इसे ही संस्कृति कहा जाता है।
- भूमि और जन के पश्चात् राष्ट्र के किस तीसरे अंग पर इस गद्यांश में लेखक ने विचार किया है?
उत्तर- इस गद्यांश में लेखक ने भूमि और जन के पश्चात् राष्ट्र के तीसरे अंग ‘संस्कृति’ पर विचार किया है।
- ‘संस्कृति’ धरती के जन का किस रूप में अभिन्न एवं अनिवार्य अंग है?
उत्तर- ‘संस्कृति’ धरती पर निवास करनेवाले जन का उसी प्रकार से अभिन्न एवं अनिवार्य अंग है, जिस प्रकार से जीवन के लिए श्वास-प्रष्वास अनिवार्य है।
- ‘‘बिना संस्कृति के जन की कल्पना कबन्धमात्र है।’’ इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘‘बिना संस्कृति के जन की कल्पना कबन्धमात्र है।’’ इस पंक्ति में निहित भाव यह है कि जिस प्रकार से मस्तिष्क से रहित धड़ को व्यक्ति नहीं कहा जा सकता; अर्थात् मस्तिष्क के बिना मनुष्य की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी प्रकार संस्कृति के बिना मानव-जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
- ‘‘जीवन के विटप का पुष्प संस्कृति है।“ इस पंक्ति के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर- ‘‘जीवन के विटप का पुष्प संस्कृति है।“ इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह कहना चाहते हैं कि जीवनरूपी वृक्ष का फूल ही संस्कृति है; अर्थात किसी समाज के ज्ञान और उस ज्ञान के आलोक में किए गए कर्तव्यों के सम्मिश्रण से जो जीवन-शैली उभरती है या सभ्यता विकसित होती है, वही संस्कृति है।
- राष्ट्र की वृद्धि कैसे सम्भव है?
उत्तर- संस्कृति के विकास और अभ्युदय के द्वारा ही राष्ट्र की वृद्धि सम्भव है।
- किसी राष्ट्र का लोप कब हो जाता है?
उत्तर- जब किसी राष्ट्र की भूमि और जन को उसकी संस्कृति से विरहित कर दिया जाता है तो उस राष्ट्र का लोप हो जाता है।
- भूमि और जन के अतिरिक्त राष्ट्र में और क्या महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर- भूमि और जन के अतिरिक्त राष्ट्र में उसकी संस्कृति महत्त्वपूर्ण है।
- विटप, अन्तर्निहित, समन्वय, सहिष्णुता, सौरभ, विटप, यश आदि शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर- विटप- वृक्ष, अन्तर्निहित- भीतर छिपा हुआ, समन्वय- संयोग, सहिष्णुता- सहन करना, सौरभ- सुगंध, महक, यश- ख्याति, प्रसिद्धि।
- राष्ट्र का तीसरा अंग क्या है?
उत्तर- राष्ट्र का तीसरा अंग जन की संस्कृति है।
- ज्ञान और कर्म के संयुक्त प्रकाश को क्या कहा गया है?
उत्तर- ज्ञान और कर्म के संयुक्त प्रकाश को संस्कृति कहा जाता है।
- संस्कृति का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- संस्कृति का तात्पर्य है- सभ्यता, किसी समाज के ज्ञान और उस ज्ञान के आलोक में किए गए कर्त्तव्यों के सम्मिश्रण से जो जीवन- शैली उभरती है या सभ्यता विकसित होती है, वही संस्कृति है।
- लेखक ने क्यों कहा है कि संस्कृति के सौन्दर्य में जीवन का सौन्दर्य छिपा हुआ है?
उत्तर- लेखक ने कहा है कि जिस प्रकार किसी भी वृक्ष का सारा सौन्दर्य, सारा गौरव और सारा मधुरस उसके पुष्य में विद्यमान रहता है, उसी प्रकार राष्ट्र के जीवन का चिंतन, मनन एवं सौन्दर्य-बोध उसकी संस्कृति में ही निवास करता है।
- राष्ट्रीय संस्कृति किसे कहते हैं?
उत्तर- भूमि पर बसने वाले जन ने ज्ञान के क्षेत्र में जो सोचा है और कर्म के क्षेत्र में जो रचा है, इन दोनों के रूप में हमें जिस संस्कृति का दर्शन प्राप्त होता है, उसे राष्ट्रीय संस्कृति कहते हैं।
- संस्कृति जन का मस्तिष्क किस प्रकार है?
उत्तर- संस्कृति के अभाव में जन की कल्पना करना व्यर्थ है। इसीलिए संस्कृति को जन का मस्तिष्क कहा गया है।
- जन की संस्कृति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- व्यक्ति के जीवन में जिस सदाचरण एवं सभ्यता का विकास होता है। उसी को जन की संस्कृति कहते हैं।
- विकास और अभ्युदय का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- विकास व्यक्ति या समाज जब उन्नत अवस्था में होता है, वो उसे विकास की संज्ञा दी जाती है। अभ्युदय-जो उदय की ओर उन्मुख हो।
- जन का मस्तिष्क क्या है?
उत्तर- संस्कृति जन का मस्तिष्क है।
- राष्ट्र के समग्र रूप में भूमि और जन के साथ-साथ किसका महत्वपूर्ण स्थान है?
उत्तर- राष्ट्र के समग्र रूप में भूमि और जन के साथ-साथ जन की संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान है।
(9) जंगल में जिस प्रकार अनेक लता, वृक्ष और वनस्पति अपने अदम्य भाव से उठते हुए पारस्परिक सम्मिलन से अविरोधी स्थिति प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार राष्ट्रीय जन अपनी संस्कृतियों के द्वारा एक-दूसरे के साथ मिलकर राष्ट्र में रहते हैं। जिस प्रकार जल के अनेक प्रवाह नदियों के रूप में मिलकर समुद्र में एकरूपता प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार राष्ट्रीय जीवन की अनेक विधियाँ राष्ट्रीय संस्कृति में समन्वय प्राप्त करती हैं। समन्वयुक्त जीवन ही राष्ट्र का सुखदायी रूप है।
गद्यांश का भाव- लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि पारस्परिक सौहार्द एवं एकता की भावना पर ही किसी राष्ट्र का सुखद जीवन निर्भर करता है।
- गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश सुविदित साहित्यकार डॉ0 वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा लिखित ‘राष्ट्र का स्वरूप’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। यह निबन्ध हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक के गद्य भाग में संकलित है।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
रेखांकित अंश की व्याख्या- जिस प्रकार विभिन्न नामों से पुकारी जानेवाली नदियाँ अपने पृथक्-पृथक् अस्तित्व को भूलकर एक विशाल सागर का रूप धारण कर लेती हैं, उसी प्रकार किसी राष्ट्र के नागरिकों के लिए भी यह आवश्यक है कि वे अपनी विभिन्न संस्कृतियों का अस्तित्व बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय संस्कृति को महत्त्व प्रदान करें। यदि राष्ट्रीय संस्कृति का अस्तित्व बना रहेगा तो राष्ट्र की विभिन्न संस्कृतियों का अस्तित्व भी सुरक्षित रह सकेगा; अतः राष्ट्रीय संस्कृति अथवा राष्ट्र के अस्तित्व के लिए भाषा, धर्म, जाति, सम्प्रदाय आदि पर आधारित भेदभावों को विस्मृत कर देना चाहिए और पारस्परिक सौहार्द एवं विविधता में एकता की भावना का परिचय देना चाहिए। इस प्रकार की समन्वयात्मक भावना के परिणामस्वरूप ही किसी राष्ट्र के नागरिक सुखद जीवन व्यतीत करने में सफल हो सकते हैं।
- जंगल में लता, वृक्ष और वनस्पति किस अदम्य भाव के कारण अविरोधी स्थिति प्राप्त करते हैं?
उत्तर- जंगल में लता, वृक्ष और वनस्पति अपने अदम्य भाव से उठते हुए पारस्परिक सम्मिलन अर्थात् पारस्परिक मेल-जोल एवं एकता की भावना से अविरोधी स्थिति प्राप्त करते हैं; जैसे- लताएँ वृक्षों से लिपटी रहती हैं और वृक्ष उन्हें सहारा प्रदान करते हैं।
- राष्ट्र के जन किसके द्वारा एक-दूसरे के साथ मिलकर राष्ट्र में रहते हैं?
उत्तर- राष्ट्र के जन अपनी संस्कृतियों के द्वारा एक-दूसरे के साथ मिलकर राष्ट्र में रहते हैं।
- जल के अनेक प्रवाह किसके रूप में मिलकर कहाँ एकरूपता प्राप्त करते हैं?
उत्तर- जल के अनेक प्रवाह नदियों के रूप में मिलकर समुद्र में एकरूपता प्राप्त करते हैं।
- किस प्रकार के जीवन को राष्ट्र का सुखदायी रूप कहा गया है?
उत्तर- समन्वययुक्त जीवन ही राष्ट्र का सुखदायी रूप कहा गया है। अर्थात् विभिन्न संस्कृतियाँ अपने अस्तित्व को बनाए रखने के साथ ही राष्ट्रीय संस्कृति को भी महत्त्व प्रदान करें, तभी उनका अस्तित्व भी बना रह सकता है और देश के सभी निवासियों का जीवन सुखदायी हो सकता है।
- अदम्य, पारस्परिक, अविरोधी, एकरूपता, समन्वयुक्त आदि शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर- अदम्य-न बदनेवाला, प्रबल, पारस्परिक-आपस का, अविरोधी-बिना विरोध के, एकरूपता-समता, समानता, समन्वयुक्त- संयोग से युक्त।
- जंगल और राष्ट्रीय जन में क्या समानता है?
उत्तर- जिस प्रकार जंगल में अनेक लताएँ, पेड़-पौधे तथा वनस्पतियाँ सामूहिक रूप में रहते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक देश में अनेक संस्कृतियों के लोग एक-दूसरे से मिलकर राष्ट्र रहते हैं।
- विभिन्न संस्कृतियों में मिलन की तुलना किससे की गई है?
उत्तर- विभिन्न संस्कृतियों के मिलन की तुलना नदी से की गई है।
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