UP Board Class 12 Question Bank 2026 : Gyansindhu Pariksha Prahar General Hindi सामान्य हिंदी की क्वेश्चन बैंक 2026 (Full Book – PAGE-23)
अशोक के फूल -हजारीप्रसाद द्विवेदी (Part-4)
(7) भगवान् बुद्ध ने मार-विजय के बाद वैरागियों की पलटन खड़ी की थी। असल में ’मार’ मदन का भी नामान्तर है। कैसा मधुर और मोहक साहित्य उन्होंने दिया। पर न जाने कब यक्षों के वज्रपाणि नामक देवता इस वैराग्यप्रवण धर्म में घुसे और बोधिसत्त्वों के शिरोमणि बन गए, फिर बज्रयान का अपूर्व धर्म-मार्ग प्रचलित हुआ। त्रिरत्नों में मदन देवता ने आसन पाया। वह एक अजीब आंधी थी। इसमें बौद्ध वह गए, शैव बह गए, शाक्त बह गए। उन दिनों ‘श्रीसुन्दरीसाधनतत्पराणां योगश्च भोगश्च करस्थ एव’ की महिमा प्रतिष्ठित हुई। काव्य और शिल्प के मोहक अशोक ने अभिचार में सहायता दी।
- भगवान् बुद्ध ने मार-विजय के बाद क्या किया?
उत्तर- भगवान् बुद्ध ने मार-विजय के बाद समाज में वैरागियों की बड़ी फौज खड़ी की।
- बोधिसत्त्वों का शिरोमणि कौन बन गया?
उत्तर- बोधिसत्त्वों का शिरोमणि यक्षों का देवता वज्रपाणि (इन्द्र) बन गया।
- ‘बोधिसत्त्व’ और ‘अभिसार’ शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘बोधिसत्त्व’ का अर्थ ‘बुद्धत्व प्राप्त करनेवाला’ और ‘अभिचार’ का अर्थ है ‘बुरे कर्मों के लिए मन्त्र का प्रयोग करना’।
- ‘मार’ शब्द किसका पर्यायवाची है?
उत्तर- ‘मार’ शब्द ‘कामदेव’ का पर्यायवाची है।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- उस समय धन और सुन्दरी की प्राप्ति को सर्वोच्च साधन माना गया। इन्हीं दोनों को योग और भोग के रूप में प्राप्त करना जीवन का लक्ष्य बन गया। जिसने इन दोनों का जितना अधिक उपभोग किया, वह उतने प्रतिष्ठित सन्त के रूप में सम्मान पाने लगा। इस कुत्सित वातावरण से काव्य और कला का मोहक प्रतीक अशोक भी अछूता न रहा। उसने भी दोहद कर्म के रूप में समाज में व्यभिचार (बुरे कर्मों) को बढ़ावा देने में बड़ी भूमिका निभायी।
- उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- पाठ का शीर्षक- अशोक के फूल। लेखक- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी।
- ‘श्रीसुन्दरीसाधनतत्पराणां योगश्च भोगश्च करस्थ एव।’ पंक्तियों का क्या आषय है?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों का आषय है कि योग और भोग उन लोगों के हाथ में हैं जो श्री सुन्दरी के साधनों के प्रति समर्पित हैं।
(8) मगर उदास होना भी बेकार है। अशोक आज भी उसी मौज में है, जिसमें आज से दो हजार वर्ष पहले था। कहीं भी तो कुछ नहीं बिगड़ा है, कुछ भी तो नहीं बदला है। बदली है मनुष्य की मनोवृत्ति। यदि बदले बिना वह आगे बढ़ सकती तो शायद वह भी नहीं बदलती। और यदि वह न बदलती और व्यावसायिक संघर्ष आरम्भ हो जाता-मशीन का रथ घर्घर चल पड़ता- विज्ञान का सावेग धावन चल निकलता तो बड़ा बुरा होता।
- लेखक के अनुसार किसमें परिवर्तन हुआ है?
उत्तर- लेखक के अनुसार मनुष्य की मनोवृत्ति में परिवर्तन हुआ है।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या- द्विवेदी जी मनुष्य की मनोवृत्ति में परिवर्तन को अनिवार्य मानते हैं, इसलिए वे कहते हैं कि अशोक का काम तो बिना बदले चल गया, किन्तु मनुष्य का काम इससे नहीं चल सकता। यदि मनुष्य का काम भी बिना बदले चल सकता तो उसकी मनोवृत्ति कभी परिवर्तित न होती और आज भी मनुष्य सदियों ’पुराना जंगली आदिमानव ही होता। यदि आदिमानव के बाद की व्यावसायिक परिस्थिति में मनुष्य का जीवन स्थिर हो जाता तो आज उसमें भयंकर व्यावसायिक संघर्ष होता। यदि इसके बाद विज्ञान का मशीनी रथ अपने पूर्ण घर्घर नाद के साथ अपनी पूरी गति से दौड़ने लगता तो आज बड़ी विकट समस्या उत्पन्न हो जाती। लोगों के हाथों का रोजगार छिन जाता, केवल मुट्ठीभर लोग, जो मशीनों के संचालन में कुशल होते, सर्वसम्पन्न होते और शेष सम्पूर्ण समाज दीन-हीन अवस्था में होता।
- ‘मनोवृत्ति’ और ‘धावन’ शब्दों का आशय लिखिए।
उत्तर- ‘मनोवृत्ति’ का आशय मन की भावनाओं और आदतों से है। ‘धावन’ का आशय दौड़ से है।
- अशोक आज भी उसी मौज में क्यों है?
उत्तर- अशोक आज भी उसी मस्ती में है; क्योंकि उसने उदास होना नहीं सीखा और अपनी मनोवृत्तियों को भी उसने नहीं बदला है।
- उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का शीर्षक और उसके लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर- पाठ का शीर्षक- अशोक के फूल। लेखक का नाम-आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
(9) अशोक वृक्ष की पूजा इन्हीं गंधर्वों और यक्षों की देन है। प्राचीन साहित्य में इस वृक्ष की पूजा के उत्सवों का बड़ा सरस वर्णन मिलता है। असल पूजा अशोक की नहीं, बल्कि उसके अधिष्ठाता कंदर्प देवता की होती थी। इसे ‘मदनोत्सव’ कहते थे। महाराज भोज के ‘सरस्वती-कंठाभरण’ से जान पड़ता है कि यह उत्सव त्रयोदशी के दिन होता था। ‘मालविकाग्निमित्र’ और ‘रत्नावली’ में इस उत्सव का बड़ा सरस, मनोहर वर्णन मिलता है। मैं जब अशोक के लाल स्तवकों को देखता हूँ तो मुझे वह पुराना वातावरण प्रत्यक्ष दिखाई दे जाता है। राजघरानों में साधारणतः रानी ही अपने सनूपुर चरणों के आघात से इस रहस्यमय वृक्ष को पुष्पित किया करती थीं। कभी-कभी रानी अपने स्थान पर किसी अन्य सुंदरी को नियुक्त कर दिया करती थीं।
- उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
उत्तर- सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश ‘आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी’ द्वारा लिखित ‘अशोक के फूल’ नामक निबन्ध से उद्धृत है।
- अशोक वृक्ष की पूजा किसकी देन है?
उत्तर- अशोक वृक्ष की पूजा गन्धर्वों और यक्षों की देन है।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- रेखांकित अंश की व्याख्या- द्विवेदी जी कहते हैं कि अशोक के वृक्ष की पूजा का प्रचलन गन्धर्वो एवं यक्षों द्वारा किया गया। इस उत्सव में अशोक वृक्ष के अधिष्ठाता देवता कामदेव की पूजा की जाती थी। इसीलिए इस उत्सव को ‘मदनोत्सव’ कहा जाता था।
- अशोक वृक्ष को कौन पुष्पित किया करती थीं?
उत्तर- राजघरानों में रानी अपने चरणों के आघात से अशोक वृक्ष को पुष्पित किया करती थीं।
- लेखक को पुराना वातावरण कब प्रत्यक्ष दिखाई देता है?
उत्तर- लेखक जब अशोक के लाल स्तवकों को देखता है तो उसे वह पुराना वातावरण प्रत्यक्ष दिखाई देता है।
- ‘अधिष्ठाता’ और ‘स्तवक’ शब्दों का अर्थ लिखिए।
उत्तर- ‘अधिष्ठाता’ का अर्थ ‘अध्यक्ष, नियामक, मुखिया, प्रधान, ईष्वर’ है और ‘स्तवक’ का अर्थ ‘गुच्छा’ है।
- महाराज भोज के ‘सरस्वती-कंठाभरण’ से क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर- महाराज भोज के ‘सरस्वती-कंठाभरण’ से जानकारी मिलती है कि यह उत्सव त्रयोदशी के दिन होता था।
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