UP Board Class 12 Gyansindhu General Hindi Question Bank 2026 [Page -6]

UP Board Class 12 Question Bank 2026 : Gyansindhu Pariksha Prahar General Hindi सामान्य हिंदी की क्वेश्चन बैंक 2026 (Full Book – PAGE-6

द्विवेदी युग (जागरण-सुधार काल) 1900 से 1920 ई0 तक

  • नामकरण – द्विवेदी युग आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर रखा गया।
  • डॉ0 नगेन्द्र ने द्विवेदी युग को ‘जागरण-सुधार काल’ भी कहा है।
  • द्विवेदी युग के जीवनी लेखक – विनय मोहन शर्मा हैं।
  • प्रमुख लेखक- महावीर प्रसाद द्विवेदी, श्यामसुन्दर दास, गुलाबराय, जयशंकर प्रसाद, सरदार पूर्णसिंह, चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ मिश्रबन्धु, बालमुकुन्द गुप्त आदि।
  • द्विवेदी युगीन काव्य की प्रवृत्तियाँ :
    1. जागरण -सुधार, 
    2. राष्ट्रीयता की भावना,
    3. समस्या पूर्ति,
    4. नैतिकता एवं आदर्शवाद,
    5. विषय-विस्तार,
    6. इतिवृत्तात्मकता/विवरणात्मकता व उपदेशात्मकता, 
    7. प्रकृति चित्रण।

द्विवेदी युग के प्रमुख कवि :

(1) अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध’ : प्रिय प्रवास, पद्मप्रसून, चुभते चौपदे, चोखे चौपदे,  वैदेही वनवास।

(2) मैथलीशरण गुप्त :  साकेत, यशोधरा। खण्ड काव्य – रंग में भंग, जयद्रथ वध, किसान, पंचवटी।

भारत-भारती – मैथिलीशरण गुप्त जी की ऐसी काव्यकृति है, जिसे अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था।

(3) श्यामनारायण पाण्डेय : हल्दीघाटी, जौहर।

(4) नाथूराम शर्मा’ शंकर’: गर्भरण्डारहस्य, शंकर सर्वस्व, अनुराग रत्न, शंकर सरोज।

(5) राम नरेश त्रिपाठी : मिलन, पथिक, स्वप्न, मानसी।

(6) महावीर प्रसाद द्विवेदीकाव्य-मंजूषा,सुमन,कान्यकुब्ज-अबला-विलाप।

द्विवेदी युग की प्रमुख पत्रिकाएँ

               सरस्वती पत्रिकाः- 1903 ई. से दिसंबर, 1920 ई. तक महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती नामक मासिक पत्रिका का संपादन कर एक कीर्तिमान स्थापित किया था, इसीलिए इस काल को हिन्दी साहित्येतिहास में ‘द्विवेदी-युग’ के नाम से जाना जाता है।

सरस्वती पत्रिका के संस्थापक-  चिंतामणि घोष  प्रथम सम्पादक- बाबू श्यामसुंदर दास    द्वितीय सम्पादक- महावीर प्रसाद द्विवेदी

पत्रिका             संपादक        स्थान

सरस्वती       महावीर प्रसाद द्विवेदी काशी

समालोचक     चंद्रधर शर्मा गुलेरी  जयपुर

इंदु    अम्बिकाप्रसाद गुप्त     काशी

प्रताप गणेश शंकर विद्यार्थी  कानपुर

मर्यादा  कृष्णकान्त मालवीय  प्रयाग

प्रभा    कालूराम  खंडवा

सुदर्शन  देवकीनंदन खत्री   काशी

पाटलिपुत्र      काशी प्रसाद जायसवाल  पटना

अभ्युदय   मदन मोहन मालवीय  काशी

     छायावाद युग (1919 से 1938 ई0 तक)

  ‘‘छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है।’’ डॉ0 नगेन्द्र ने कहा।  लिखित रूप में छायावाद शब्द के प्रथम प्रयोक्ता मुकुटधर पांडेय थे, इन्होंने’ हिंदी में छायावाद’ लेख में सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया।

छायावादी युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ –

जयशंकर प्रसाद (1889-1936 ई0)

छायावादी रचनाएं – झरना (1918 ई0), आंसू (1925 ई0), लहर (1933 ई0), कामायनी (1935 ई0)

अन्य रचनाएं :  उर्वशी, वनमिलन,  प्रेम राज्य, अयोध्या का उद्धार, शोकोच्छवास, वभ्रुवाहन, कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, महाराणा का महत्व, चित्राधार  (ब्रज भाषा में रचित कविताएं)

(जयशंकर प्रसाद कृत’ कामायनी’ महाकाव्य का संक्षिप्त विवरण)

  • अंगीरस – शांत (निर्वेद) रस है
  • दर्शन – शैवदर्शन के अन्तर्गत आने वाले प्रत्यभिज्ञान दर्शन की मान्यताओं के अनुरूप समरसतावाद एवं आनंदवाद की स्थापना की है।
  • कामायनी का उद्देश्य – आनंदवाद की स्थापना है।     मुख्य छंद – ताटंक छंद है।
  • कामायनी के सर्ग-  प्रसाद की अंतिम कृति’ कामायनी’ है, जिसमें 15 सर्ग है।

1. चिन्ता, 2. आशा, 3. श्रद्धा, 4. काम, 5. वासना, 6. लज्जा, 7 . कर्म, 8. ईर्ष्या, 9. इडा, 10. स्वप्न, 11. संघर्ष , 12 . निर्वेद, 13. दर्शन, 14. रहस्य, 15.आनन्द

  • कामायनी में प्रतीकमनु–  मन,  श्रद्धा– हृदय,  इड़ा – बुद्धि,  कुमार–  मानव,
  • आचार्य शांतिप्रिय द्विवेदी ने ‘कामायनी’ को छायावाद का उपनिषद् कहा है।
  • गजानन माधव मुक्तिबोध’ ने कामायनी को फैंटेसी माना है।
  • नंद दुलारे वाजपेयी ने ‘कामायनी’ को नये युग का प्रतिनिधि काव्य माना है।

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