Hasya ras & karun ras (हास्य और करुण रस) – gyansindhuclasses

Hasya ras & karun ras (हास्य और करुण रस)

Hasya ras & karun ras (हास्य और करुण रस) – gyansindhuclasses: हास्य रस व करुण रस का लक्षण और उदाहरण, स्थायी भाव लिखिए तथा एक उदाहरण व  परिभाषा उदाहरण सहित प्रस्तुत है 

Board | बोर्डUP Board (UPMSP)
Class | कक्षा10th  (X)
Subject  | विषय Hindi || हिंदी कक्षा 10वी
Topic | शीर्षकHasya Ras | Karun Ras [हास्य रस और करुण रस ]
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[हास्य रस]

परिभाषा — किसी की आकृति , वेशभूषा , चेष्टा आदि को देखकर हृदय में जो विनोद का भाव जाग्रत होता है वह ‘ हास ‘ कहा जाता है । यही हास नामक स्थायी भाव जब विभाव , अनुभाव तथा संचारी भाव से पुष्ट हो जाता है तब ‘ हास्य रस ‘ की निष्पत्ति होती है।

हास्य रस के उपकरण
( क ) स्थायी भाव – हास ।
( ख ) विभाव- ( 1 ) आलम्बन विभाव – विकृत वेशभूषा , आकार , चेष्टाएँ आदि । ( 2 ) उद्दीपन विभाव – आलम्बन की अनोखी आकृति , बातचीत तथा चेष्टाएँ आदि ।
( ग ) अनुभाव – आश्रय की मुस्कान , नेत्रों का मिचमिचाना , अट्टहास आदि ।
( घ ) संचारी भाव – हर्ष , आलस्य , निद्रा , चपलता , कम्पन , उत्सुकता आदि ।

उदाहरण –
बिन्ध्य के बासी उदासी तपोव्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे
गोतमतीय तरी , तुलसी , सो कथा सुनि भै मुनिबृन्द सुखारे ।।
ह्वै हैं सिला सब चन्द्रमुखी परसे पद – मंजुल – कंज तिहारे ।
कीन्हीं भली रघुनायकजू करुना करि कानन को पगु धारे ।

स्पष्टीकरण-
( क ) स्थायी भाव – हास ।
( ख ) विभाव- ( 1 ) आलम्बन – विन्ध्य के उदास वासी ; आश्रय पाठक । ( 2 ) उद्दीपन – गौतम की स्त्री का उद्धार ।
( ग ) अनुभाव – मुनियों की कथा आदि सुनना ।
( घ ) संचारी भाव – हर्ष , उत्सुकता , चंचलता आदि । अत : उपर्युक्त उदाहरण में हास्य रस है ।

[करुण रस]

परिभाषा — किसी भी इष्टवस्तु , व्यक्ति आदि के अनिष्ट की आशंका अथवा इनके विनाश से उत्पन्न क्षोभ अथवा दुःख की संवेगात्मक स्थिति को ‘ करुण रस ‘ कहा जाता है । विभाव , अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से पूर्णता को प्राप्त होने पर ‘ शोक ‘ नामक स्थायी भाव से ‘ करुण रस ‘ की निष्पत्ति होती है ।

उपकरण
( क ) स्थायी भाव – शोक ।
( ख ) विभाव- ( 1 ) आलम्बन – विनष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु । ( 2 ) उद्दीपन – आलम्बन का दाहकर्म , इष्ट के गुण तथा उससे सम्बन्धित वस्तुएँ , इष्ट के चित्र का दर्शन आदि ।
( ग ) अनुभाव – भूमि पर गिरना , नि : श्वास , छाती पीटना , रोदन , प्रलाप , मूर्छा , देव – निन्दा , कम्प आदि ( घ ) संचारी भाव – निर्वेद , मोह , अपस्मार , व्याधि , ग्लानि , स्मृति , श्रम , विषाद , जड़ता , दैन्य , उन्माद आदि ।

उदाहरण-
अभी तो मुकुट बँधा था माथ , हुए कल ही हल्दी के हाथ
खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुम्बन शून्य कपोल
हाय रुक गया यहीं संसार , बना सिन्दूर अनल अंगार ।
वातहत लतिका यह सुकुमार । पड़ी है छिन्नाधार !

स्पष्टीकरण
( क ) स्थायी भाव – शोक ।
( ख ) विभाव- ( 1 ) आलम्बन – विनष्ट पति । ( 2 ) उद्दीपन – मुकुट का बँधना , हल्दी के हाथ होना , लाज के बोल न खुलना ।
( ग ) अनुभाव – वायु से आहत लतिका के समान नायिका का बेसहारा पड़े होना ।
( घ ) संचारी भाव – विषाद , दैन्य , स्मृति , जड़ता आदि ।इसलिए उपर्युक्त उदाहरण में करुण रस है ।

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