Hindi 9th UP Board Solution of Class 9th Hindi Chapter 3 – Gurunanak Dev (Gadya Khand) गुरु नानकदेव (गद्य खंड)

Hindi 9th UP Board Solution of Class 9th Hindi Chapter 3 – Gurunanak Dev (Gadya Khand) गुरु नानकदेव (गद्य खंड) 

Chapter 3 - Gurunanak DevHindi 9th UP Board Solution of Class 9th Hindi Chapter 3 – Gurunanak Dev (Gadya Khand) गुरु नानकदेव (गद्य खंड) – upmsp exam prepareation for class 9th home exam guru nanak dev written by Hajariprasad Dvivedi. लेखक – हजारीप्रसाद द्विवेदी. 

पाठ-3 गुरु नानक देव – हिन्दी कक्षा-9 हिन्दी गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर

Gadyansh – 1

प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांशों के नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

(1) आकाश में जिस प्रकार षोडश कला से पूर्ण चन्द्रमा अपनी कोमल स्निग्ध किरणों से प्रकाशित होता है, उसी प्रकार मानव चित्त में भी किसी उज्ज्वल प्रसन्न ज्योतिपुंज का आविर्भाव होना स्वाभाविक है। गुरु नानकदेव ऐसे ही षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे। लोकमानस में अर्से से कार्तिकी पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव का सम्बन्ध जोड़ दिया गया है। गुरु किसी एक ही दिन को पार्थिव शरीर में आविर्भूत हुए होंगे, पर भक्तों के चित्त में वे प्रतिक्षण प्रकट हो सकते हैं।

पार्थिव रूप को महत्त्व दिया जाता है, परन्तु प्रतिक्षण आविर्भूत होने को आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक महत्त्व मिलना चाहिए। इतिहास के पण्डित गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के विषय में वाद विवाद करते रहें, इस देश का सामूहिक मानव चित्त उतना महत्त्व नहीं देता ।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर —सन्दर्भ – उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘गुरु नानकदेव’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसके लेखक संस्कृत एवं हिन्दी के मूर्द्धन्य विद्वान् आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हैं।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

. रेखांकित अंश की व्याख्या – प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने यह बताया है कि आकाश में जिस प्रकार सोलह कलाओं से युक्त चन्द्रमा प्रकाशित होता है ठीक उसी प्रकार मानव के मस्तिष्क में किसी ज्योतिपुंज का उत्पन्न होना अत्यन्त स्वाभाविक है। गुरुनानक देव ऐसे ही सोलह कलाओं से युक्त स्निग्ध ज्योति महामानव थे। हमारे देश की जनता बहुत समय से गुरु नानकदेव के जन्म को कार्तिक महीने की पूर्णिमा के दिन मनाती आ रही है।

प्र.(iii) लेखक की दृष्टि में गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के स्थान पर किसको महत्त्व मिलना चाहिए?

उ.लेखक की दृष्टि में गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के स्थान पर उनके आध्यात्मिकता को महत्त्व मिलना चाहिए।

प्र.(iv) चन्द्रमा कितनी कलाओं से परिपूर्ण होता है ?

उ. चन्द्रमा षोडश कलाओं से परिपूर्ण होता है।

प्र.(v) कार्तिक पूर्णिमा का सम्बन्ध किस महामानव से है?

उ. कार्तिक पूर्णिमा का सम्बन्ध महामानव गुरु नानकदेव से है ।

Gadyansh – 2

(2) गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जायँ, वही क्षण उत्सव का है, वही क्षण उल्लसित कर देने के लिए पर्याप्त है। नवो नवो भवसि जायमानः — गुरु, तुम प्रतिक्षण चित्तभूमि में आविर्भूत होकर नित्य नवीन हो रहे हो । हजारों वर्षों से शरत्काल की यह सर्वाधिक प्रसन्न तिथि प्रभामण्डित पूर्णचन्द्र के साथ उतनी ही मीठी ज्योति के धनी महामानव का स्मरण कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का सम्बन्ध जोड़ने में इस देश का समष्टि चित्त, आह्लाद अनुभव करता है। हम ‘रामचन्द्र’, ‘कृष्णचन्द्र’ आदि कहकर इसी आह्लाद को प्रकट करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जनता के मानस के अनुकूल है। आज वह अपना आह्लाद प्रकट करती है।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर — (i) सन्दर्भ – उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘गुरु नानकदेव’ नामक पाठ से उद्धृत है। लेखक आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक का मत है कि गुरु जिस किसी भी शुभ मुहूर्त्त में हृदय में उत्पन्न हो जायँ वही समय वही मुहूर्त्त आनन्द का है, प्रसन्नता का है। वह ऐसा समय है जो जीवन में हर्षोल्लास भर देनेवाला होता है। परमात्मा की ये महान् विभूतियाँ प्रतिक्षण भक्तों के हृदय में जन्म लेकर नित्य नया रूप धारण करती रहती हैं।

प्र.(iii) शरदकाल की यह तिथि किसकी याद कराती रही है?

उ. शरदकाल की यह तिथि प्रभामंडित पूर्णचन्द्र के साथ गुरुनानक जी की याद कराती रही है।

प्र.(iv) उत्सव का क्षण कौन-सा है?

उ. गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जायँ, वह क्षण उत्सव का है।

प्र.(v) शरद पूर्णिमा किसका स्मरण कराती है?

उ. शरद पूर्णिमा महामानव गुरु नानकदेव का स्मरण कराती है।

Gadyansh – 3 Chapter 3 – Gurunanak Dev

(3) विचार और आचार की दुनिया में इतनी बड़ी क्रान्ति ले आनेवाला यह सन्त इतने मधुर, इतने स्निग्ध, इतने मोहक वचनों को बोलनेवाला है। किसी का दिल दुखाये बिना, किसी पर आघात किये बिना, कुसंस्कारों को छिन्न करने की शक्ति रखनेवाला, नयी संजीवनी धारा से प्राणिमात्र को उल्लसित करनेवाला यह सन्त मध्यकाल की ज्योतिष्क मण्डली में अपनी निराली शोभा से शरत् पूर्णिमा के पूर्णचन्द्र की तरह ज्योतिष्मान् है। आज उसकी याद आये बिना नहीं रह सकती। वह सब प्रकार से लोकोत्तर है। उसका उपचार प्रेम और मैत्री है। उसका शास्त्र सहानुभूति और हित चिन्ता है।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर- (i) सन्दर्भ – उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के ‘गुरु नानकदेव’ नामक पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी हैं। इन पंक्तियों में गुरु नानकदेव के महान् व्यक्तित्व और उनकी महत्ता पर प्रकाश डाला गया है।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – बुराइयों को दूर करने और सामाजिक आचरणों में सुधार लाने के लिए गुरु नानकदेव ने न तो किसी की निन्दा की और न ही तर्क-वितर्क द्वारा किसी की विचारधारा का खण्डन किया। उन्होंने अपने आचरण और मधुर वाणी से ही दूसरों के विचारों और आचरण में परिवर्तन करने का प्रयास किया और इस दृष्टि से उन्होंने आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की। बिना किसी का दिल दुखाये और बिना किसी को किसी प्रकार की चोट पहुँचाये, उन्होंने दूसरों के बुरे संस्कारों को नष्ट कर दिया। उनकी सन्त वाणी को सुनकर दूसरों का हृदय हर्षित हो जाता था और लोगों को नवजीवन प्राप्त होता था।

लोग उनके उपदेशों को जीवनदायिनी औषध की भाँति ग्रहण करते थे। मध्यकालीन सन्तों के बीच गुरु नानकदेव इसी प्रकार प्रकाशमान दिखायी पड़ते हैं, जैसे आकाश में आलोक बिखेरने वाले नक्षत्रों के मध्य; शरद पूर्णिमा का चन्द्रमा शोभायमान होता है। विशेषकर शरद पूर्णिमा के अवसर पर ऐसे महान् सन्त का स्मरण हो आना स्वाभाविक है। वे सभी दृष्टियों से एक अलौकिक पुरुष थे। प्रेम और मैत्री के द्वारा ही वे दूसरों की बुराइयों को दूर करने में विश्वास रखते थे। दूसरों के प्रति सहानुभूति का भाव रखना और उनके कल्याण के प्रति चिन्तित रहना ही उनका आदर्श था।

प्र.(iii) गुरुनानक जी का उपचार क्या है?

उ. गुरुनानक जी का उपचार प्रेम और मैत्री है।

प्र.(iv) क्रान्ति लाने वाले यहाँ किस सन्त का वर्णन है ?

(iv) क्रान्ति लाने वाले यहाँ सन्त गुरु नानकदेव का वर्णन है।

प्र.(v) शरद पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र की तरह कौन ज्योतिष्मान है ?

उ. शरद पूर्णिमा पूर्ण चन्द्र की तरह गुरु नानकदेव ज्योतिष्मान हैं?

 

Gadyansh – 4 Chapter 3 – Gurunanak Dev

(4) किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना । क्षुद्र अहमिकाओं और अर्थहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने के लिए तर्क और शास्त्रार्थ का मार्ग कदाचित् ठीक नहीं है। सही उपाय है बड़े सत्य को प्रत्यक्ष कर देना। गुरु नानक ने यही किया। उन्होंने जनता को बड़े-से-बड़े सत्य के सम्मुखीन कर दिया, हजारों दीये उस महाज्योति के सामने स्वयं फीके पड़ गये।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर— (i) सन्दर्भ — उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा ‘लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबन्ध से अवतरित है।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – यदि हम अपने मन के अहंकार और तुच्छ भावनाओं को दूर करना चाहते हैं, तो उसके लिये भी हमें महानता की बड़ी । लकीर खींचनी होगी। अहंकार, तुच्छ भावना, संकीर्णता आदि को शास्त्रज्ञान के आधार पर वाद-विवाद करके या तर्क देकर छोटा नहीं किया जा सकता; उसके लिये व्यापक और बड़े सत्य का दर्शन आवश्यक है। इसी उद्देश्य से मानव जीवन की संकीर्णताओं और क्षुद्रताओं को छोटा सिद्ध करने के लिए गुरु नानकदेव ने जीवन की महानता को प्रस्तुत किया।

प्र.(iii) हजारो दीये किसके सामने स्वयं फीके पड़ गये?

उ. हजारों दीये गुरु नानकदेव की महाज्योति के सामने फीके पड़ गये ।

प्र.(iv) छोटी लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच देने का क्या तात्पर्य है?

उ. किसी लकीर को मिटाये बिना छोटी बना देने का उपाय है बड़ी लकीर खींच देना ।

प्र.(v) अहमिकाओं और कार्यहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने का सही उपाय क्या है?

उ. अहमिकाओं और अर्थहीन संकीर्णताओं की क्षुद्रता सिद्ध करने के लिए सही उपाय है बड़े सत्य को प्रत्यक्ष कर देना ।

Gadyansh – 5 Chapter 3 – Gurunanak Dev

(5) भगवान् जब अनुग्रह करते हैं तो अपनी दिव्य ज्योति ऐसे महान् सन्तों में उतार देते हैं। एक बार जब यह ज्योति मानव देह को आश्रय करके उतरती है तो चुपचाप नहीं बैठती। वह क्रियात्मक होती है, नीचे गिरे हुए अभाजन लोगों को वह प्रभावित करती है, ऊपर उठाती है। वह उतरती है और ऊपर उठाती है। इसे पुराने पारिभाषिक शब्दों में कहें तो कुछ इस प्रकार होगा कि एक ओर उसका ‘अवतार’ होता है, दूसरी ओर औरों का ‘उद्धार’ होता है।

अवतार और उद्धार की यह लीला भगवान् के प्रेम का सक्रिय रूप है, जिसे पुराने भक्तजन ‘अनुग्रह’ कहते हैं। आज से लगभग पाँच सौ वर्ष से पहले परम प्रेयान् हरि का यह ‘ अनुग्रह’ सक्रिय हुआ था, वह आज भी क्रियाशील है। आज कदाचित् गुरु की वाणी की सबसे अधिक तीव्र आवश्यकता अनुभूत हो रही है।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर — (i) सन्दर्भ – उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबन्ध से अवतरित है। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि गुरु नानक जैसे महान् सन्तों में ईश्वर अपनी ज्योति अवतरित करते हैं और ये महान् सन्त इस ज्योति के सहारे गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाते हैं।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – द्विवेदी जी का मत है कि जब संसार पर ईश्वर की विशेष कृपा होती हैं तो उसकी अलौकिक ज्योति किसी सन्त के रूप में इस संसार में अवतरित होती है। तात्पर्य यह है कि ईश्वर अपनी ज्योति को किसी महान् सन्त के रूप में प्रस्तुत करके उसे इस जगत् का उद्धार करने के लिए पृथ्वी पर भेजता है। महान् सन्त ईश्वर की ज्योति से आलोकित होकर संसार का मार्गदर्शन करता है। ईश्वर निरीह लोगों के कष्टों को दूर करना चाहता है, इसलिए उसकी यह दिव्य ज्योति मानव-शरीर प्राप्त करके चैन से नहीं बैठती, वरन् अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सक्रिय हो उठती है। मानव रूप में जब भी ईश्वर अवतार लेता है, तभी इस विश्व का उद्धार तथा या होता है प्राचीन भक्ति-साहित्य में ईश्वर की दिव्य ज्योति का मानव रूप में जन्म ‘अवतार और उद्धार’ कहा गया है।

प्र.(iii) भगवान के प्रेम में क्या सक्रिय रूप है?

उ. भगवान् के प्रेम में अवतार और उद्धार की यह लीला सक्रिय रूप है।

प्र.(iv) सन्तजन क्या कार्य करते हैं?

उ. सन्तजन लोगों का उद्धार करते हैं।

प्र.(v) अनुग्रह का क्या तात्पर्य है?

उ. भगवान का अवतार लेकर गिरे जनों का उद्धार करने की लीला को अनुग्रह करते हैं ।

Gadyansh – 6 Chapter 3 – Gurunanak Dev

(6) महागुरु, नयी आशा, नयी उमंग, नये उल्लास की आशा में आज इस देश की जनता तुम्हारे चरणों में प्रणति निवेदन कर रही है। आशा की ज्योति विकीर्ण करो, मैत्री और प्रीति की स्निग्ध धारा से आप्लावित करो। हम उलझ गये हैं, भटक गये हैं, पर कृतज्ञता अब भी हम में रह गयी है। आज भी हम तुम्हारी अमृतोपम वाणी को भूल नहीं गये हैं कृतज्ञ भारत का प्रणाम अंगीकार करो।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।

उत्तर — (i) सन्दर्भ – उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘गुरु नानकदेव’ नामक निबन्ध से अवतरित है।

 

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक गुरु से प्रार्थना करता है कि वे भटके हुए भारतवासियों के हृदय में प्रेम, मैत्री एवं सदाचार का विकास करके उनमें नयी आशा, नये उल्लास व नयी उमंग का संचार करें। इस देश की जनता उनके चरणों में अपना प्रणाम निवेदन करती है। लेखक का कथन है कि वर्तमान समाज में रहनेवाले भारतवासी कामना, लोभ, तृष्णा, ईर्ष्या, ऊँच नीच, जातीयता एवं साम्प्रदायिकता जैसे दुर्गुणों से ग्रसित होकर भटक गये हैं, फिर भी इनमें कृतज्ञता का भाव विद्यमान है। इस कृतज्ञता के कारण ही आज भी ये भारतवासी आपकी अमृतवाणी को नहीं भूले हैं। हे गुरु! आप कृतज्ञ भारतवासियों के प्रणाम क स्वीकार करने की कृपा करें।

प्र.(iii) ‘कृतज्ञ भारत का प्रणाम अंगीकार करो’ का क्या मतलब है?

उ. कृतज्ञ भारत का प्रणाम अंगीकार करो का मतलब आप कृतज्ञ भारतवासियों के प्रणाम को स्वीकार करने की कृपा करे।

प्र.(iv) कृतज्ञता से आप क्या समझते हैं?

उ. किसी के उपकार को अंगीकार करके सम्मान देना और उसके प्रति न्यौछावर होना कृतज्ञता है।

प्र.(v) लेखक गुरु से किस प्रकार की ज्योति विकीर्ण करने का निवेदन कर रहा है?

उ. लेखक गुरु से आशा की ज्योति विकीर्ण करने का निवेदन कर रहा है।

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