Class 10th Hindi Kshitiz Chapter 1 Pad Surdas
हिंदी क्षितिज पाठ्य-पुस्तक Class 10 Hindi Kshitiz के प्रथम पाठ Chapter 1 सूरदास के पद surdas ke pad के Chapter 1 पद के आधार पर पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग -2 के प्रश्नों के उत्तर सरल भाषा में दिए जा रहे है
सीबीएसई बोर्ड की कक्षा 10 के पाठयक्रम के आधार पर सरे प्रश्नों के उत्तर हैं, विगत वर्षों में आये हुए प्रश्नों का बेहतरीन संकलन है , सभी विद्यार्थी इसका लाभ उठायें| सीबीएसई हिंदी – अ कक्षा 10 पाठ्य-पुस्तक – क्षितिज भाग-2 पाठ – सूरदास के पद CBSE Hindi Class-10th Pathya pustak Khsitij Bhag-2 Cbse ncert class x hindi book kshitij bhag 2 ke prashnottar preious year questions and answer- gyansindhuclasses.com
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | NCERT / एन सी आर टी |
Class / कक्षा | Class 10th / कक्षा -10 |
Subject / विषय | Hindi Kshitiz हिंदी क्षितिज |
Chapter Number / पाठ संख्या | Chapter 1 पाठ -1 |
Name of Chapter / पाठ का नाम | पद Pad |
Board Name / बोर्ड का नाम | CBSE सीबीएसई 10th हिंदी |
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | NCERT / एन सी आर टी |
Class / कक्षा | Class 10th / कक्षा -10 |
Cbse board NCERT textbook for Class 10 Hindi explanations
- गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है ?
उत्तर- गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में यह व्यंग्य निहित है कि तुम तो बहुत दुर्भाग्यशाली हो , जो श्रीकृष्ण के साथ रहते हुए भी अभी तक उनसे प्रेम नहीं कर सके । नहीं तो उनका रूप ही ऐसा है कि कठोर हृदय वाले व्यक्ति के मन में भी उनके प्रति प्रेम उत्पन्न हो जाए । तुमने कभी प्रेम को जाना ही नहीं , इसलिए कृष्ण के प्रेम के धागे से दूर रहे हो ।
- उद्धव के व्यवहार की तुलना किस – किस से की गई है ?
अथवा ‘ सूरदास ‘ के पद के आधार पर लिखिए कि गोपियों ने किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं|
उत्तर – गोपियों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना निम्नलिखित दो तत्त्वों से की है –
( i ) एक पानी अंदर रहने वाले कमल के उस पत्ते से , जो पानी के अंदर रहते हुए भी पानी एवं कीचड़ के दाग – धब्बों अछूता रहता है ।
( ii ) दूसरा जल में रखी हुई तेल की मटकी से , जिसकी एक बूंद पर भी जल का प्रभाव नहीं पड़ता ।
- गोपियों ने किन – किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं ?
उत्तर गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं –
( i ) जिस प्रकार पानी के अंदर रहने वाला कमल का पत्ता पानी एवं कीचड़ से अछूता रहता है ,उसी प्रकार तुम श्रीकृष्ण के साथ रहते हुए भी उनके प्रेम से अछूते हो .
( ii ) वे कृष्ण से अपेक्षा करती थीं कि वे उनके प्रेम की मर्यादा को रखेंगे । वे उनके प्रेम का बदला प्रेम से देंगे , किंतु उन्होंने योग – संदेश भेजकर प्रेम की मर्यादा ही तोड़ डाली ।
उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम कैसे किया ?
उत्तर -गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम और विरह में पहले से ही व्याकुल हो रही थीं । उन्हें आशा थी कि श्रीकृष्ण मथुरा से शीघ्र ही वापस लौट आएँगे , किंतु जब श्रीकृष्ण ने उनके लिए उद्धव के माध्यम से योग का संदेश भेजा तो इसने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया , क्योंकि वे तो श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती थीं ।
- ‘ मरजादा न लही ‘ के माध्यम से कौन – सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है ?
उत्तर -कृष्ण ने गोपियों के प्रेम के महत्त्व को ठीक से नहीं समझा , इसी का परिणाम था कि उन्होंने गोपियों को प्रेम का संदेश भिजवाने की अपेक्षा उद्धव से योग का संदेश भिजवाया । यह गोपियों के प्रेम का अपमान था । गोपियों के प्रेम का तिरस्कार करके कृष्ण ने प्रेम की मर्यादा को तोड़ा ।
- कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ?
उत्तर- कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को अभिव्यक्त करते हुए गोपियों ने कहा है –
( i ) वे श्रीकृष्ण के प्रेम में उसी तरह बँधी हुई हैं , जैसे चींटियाँ गुड़ से चिपकी रहती हैं ।
( ii ) उनके लिए श्रीकृष्ण तो हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं , जिन्हें उन्होंने मन , कर्म और वचन से अपने हृदय में बसाया हुआ है ।
( iii ) वे तो जागते – सोते , सपने में और दिन – रात कान्हा – कान्हा रटती रहती हैं ।
- गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है ?
उत्तर -गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने की बात कही है , जिनका मन चकरी के समान चंचल है । उनका मन तो सदैव श्रीकृष्ण के प्रेम में ही रमा रहता है , इसलिए उन्हें योग की आवश्यकता नहीं है । यहाँ पर श्रीकृष्ण पर ही चंचल होने संबंधी व्यंग्य किया गया है , क्योंकि वे मथुरा जाकर उन्हें भूल गए थे ।
- प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग – साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – यहाँ गोपियों का योग – साधना के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण दिखाई देता है । उन्हें श्रीकृष्ण से अनन्य प्रेम था । उनके अनुसार , योग – साधना का महत्त्व तो उनके लिए होता है , जो जीवन से प्यार करते हैं । वे तो केवल श्रीकृष्ण से प्यार करती हैं । अतः वे योग को तुच्छ वस्तु समझती हैं । इसीलिए वे कहती हैं योग का संदेश उन्हें सौंप दो जिनके मन चंचल हैं ।
- गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए ?
उत्तर- गोपियों के अनुसार राजा का परम धर्म यह है कि वह अन्याय का विरोध करे और अपनी प्रजा को हर प्रकार के अन्याय से दूर रखे । जो राजा अपनी प्रजा पर अन्याय करता है या उसे अन्याय से नहीं बचाता , उसे राजा होने का कोई अधिकार नहीं है । राजा का परम धर्म यह है कि उसे अपनी प्रजा को नहीं सताना चाहिए |
- गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन – से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस लेने की बात कहती हैं ?
उत्तर- श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गए योग के संदेश को सुनकर गोपियों को लगने लगा है कि वे उन्हें भूल गए हैं । वे पहले तो हर व्यक्ति को अन्याय से बचाते थे , अब वे उन पर ही अन्याय कर रहे हैं । वे तो पहले ही बहुत चतुर थे । अब तो उन्होंने राजनीति को भी पढ़ लिया है , जिससे उनकी बुद्धि बहुत बढ़ गई है । इस प्रकार उनमें बहुत से परिवर्तन आ गए हैं ।
- गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया , उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर- गोपियों के वाक्चातुर्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
( i ) गोपियाँ व्यंग्य के माध्यम से उद्धव से कहती हैं कि तुम तो बहुत भाग्यशाली हो जो श्रीकृष्ण के साथ रहते हुए भी उनके प्रेम में नहीं डूब सके ।
( ii ) गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में डूबी हैं , इसलिए उनकी ज्ञान की बातों को वे नहीं समझ पाती हैं । उनके लिए तो योग कड़वी ककड़ी के समान है ।
- संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के ‘ भ्रमरगीत ‘ की विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – सूर के ‘ भ्रमरगीत ‘ की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
( i ) श्रीकृष्ण के प्रेम की उदात्तता को प्रकट किया गया है , जिससे अछूता रहना कठिन है ।
( ii ) श्रीकृष्ण की भक्ति को सांसारिक भवबाधा से मुक्ति का मार्ग बताया है ।
( iii ) श्रीकृष्ण की आराधना के माध्यम से सगुण भक्ति को निर्गुण भक्ति से श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास किया है ।
( iv ) श्रीकृष्ण के माध्यम से जनता का शोषण करने वाले शासकों पर कटाक्ष किया है ।
( v ) ‘ भ्रमरगीत ‘ एक भाव – प्रधान गीतिकाव्य है ।
( vi ) ‘ भ्रमरगीत ‘ का कला – पक्ष अत्यंत सशक्त , प्रभावशाली और रमणीय है ।
( vii ) शुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है ।
( viii ) उपमा ,रूपक , अनुप्रास, दृष्टांत आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है |