रस एवं उनके स्थायी भाव /Ras sthayi bhav /रस परिचय रस
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रस की अनुभूति कैसे होती है ? इस सम्बन्ध में भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में लिखा है-
“ विभावानुभाव व्यभिचारिसंयोगाद्रस निष्पत्तिः “
अर्थात् विभाव , अनुभाव और व्यभिचारियों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है ।
मनुष्य के हृदय में रति , शोक आदि कुछ भाव हर समय सुप्तावस्था में रहते हैं , जिन्हें ‘ स्थायी भाव ‘ कहते हैं । ये स्थायी भाव अनुकूल सामग्री उपस्थित होने पर जागृत हो जाते हैं और उस समय काव्य के पाठक , स्रोता या नाटक के दर्शक को एक ऐसे अलौकिक आनन्द का अनुभव होता है कि वह अपनी सुध – बुध भूलकर आनन्द में मग्न हो जाता है । यही आनन्द काव्यशास्त्र में ‘ रस ‘ कहलाता है । यही रस काव्य की आत्मा होता है ।
स्थायी भाव – रस रूप में परिणत होने वाले तथा मनुष्य के हृदय में स्थायी रूप से रहने वाले भावों को स्थायी भाव कहते हैं । स्थायी भावों की संख्या 9 मानी गयी है ।
ये निम्नलिखित हैं-
( 1 ) रति ( दाम्पत्य प्रेम ) , ( 2 ) उत्साह , ( 3 ) शोक , ( 4 ) क्रोध , ( 5 ) हास , ( 6 ) भय , ( 7 ) जुगुप्सा , ( 8 ) विस्मय , तथा ( 9 ) निर्वेद ।
कुछ विद्वान् वात्सल्य ( सन्तान प्रेम ) को दसवां स्थायी भाव मानते हैं ।
रस के अंग
( 1 ) . विभाव , ( 2 ) अनुभाव , ( 3 ) व्यभिचारी अथवा संचारी भाव ।
- विभाव – जिस सामग्री द्वारा स्थायी भाव जागृत तथा तीव्र होता है , उसे ‘ विभाव ‘ कहते हैं । विभाव के दो भेद होते हैं –
( i ) आलम्बन विभाव , तथा ( ii ) उद्दीपन विभाव । .
( i ) आलम्बन विभाव – जिस व्यक्ति अथवा वस्तु के कारण कोई स्थायी भाव जागृत होता है , उसे ‘ आलम्वन विभाव ‘ कहते हैं ।
इसके दो अंग होते हैं –
( क ) आश्रय – जिस व्यक्ति के हृदय में स्थायी भाव जागृत होता है , उसे ‘ आश्रय ‘ कहा जाता है ।
( ख ) विषय – जिस वस्तु या व्यक्ति के कारण आश्रय के हृदय में रति आदि स्थायी भाव जागृत होते हैं , उसे विषय कहते हैं । ( साधारण रूप से विषय के लिए ही ‘ आलम्बन ‘ शब्द का प्रयोग होता है । )
जैसे- ‘ लक्ष्मण – परशुराम – संवाद में लक्ष्मण के प्रति परशुराम जी के हृदय में क्रोध नाम का स्थायी भाव जागृत होता है ; अतः लक्ष्मण आलम्बन विभाव है । इनमें ‘ परशुराम ‘ आश्रय है और लक्ष्मण ‘ विषय है ।
( ii ) उद्दीपन विभाव – जिस व्यक्ति , दृश्य अथवा आलम्बन की चेष्टा से पूर्व जागृत स्थायी भाव और उद्दीप्त ( तीव्र ) हो , उसे ‘ उद्दीपन विभाव ‘ कहते हैं । जैसे पुष्प वाटिका में सीता को देखकर राम के रति भाव का वर्णन हो तो राम ‘ आश्रय ‘ , सीता ‘ आलम्बन ‘ , रति ‘ स्थायी ‘ भाव तथा चारों ओर खिले फूल , सुगन्धित वायु , चाँदनी आदि उद्दीपन विभाव होंगे ।
- अनुभाव – आलम्बन तथा उद्दीपन के द्वारा आश्रय के हृदय में स्थायी भाव के जागृत तथा उद्दीप्त होने पर आश्रय में जो चेष्टाएँ होती हैं , उन्हें ‘ अनुभाव ‘ कहते हैं । जैसे – उत्साह में शत्रु को ललकारना , क्रोध में आँखें लाल होना आदि ।
अनुभाव दो प्रकार के होते हैं- ( i ) सात्त्विक , तथ ( ii ) कायिक ।
( i ) सात्त्विक अनुभाव – जो अनुभाव बिना प्रयास के आप से आप होते हैं , वे ‘ सात्त्विक अनुभाव ‘ कहलाते हैं ।
ये आठ होते है– ( 1 ) स्तम्भ ( अंगों की गति रुक जाना ) , ( 2 ) स्वेद ( पसीना आ जाना ) , ( 3 ) रोमांच ( रोंगटे खड़े हो जाना ) , ( 4 ) स्वर भंग , ( 5 ) कम्प , ( 6 ) वैवर्ण्य ( रंग फीका पड़ जाना ) , ( 7 ) अश्रु , ( 8 ) प्रलय ( सुध – बुध खो जाना ) ।
( ii ) कायिक अनुभाव – इनका सम्बन्ध शरीर से होता है । शरीर जो चेष्टाएँ आश्रय की इच्छानुसार जान – बूझ कर प्रयत्नपूर्वक करता है , उन्हें ‘ कायिक अनुभाव ‘ कहते हैं ।
जैसे– क्रोध में कठोर शब्द कहना , उत्साह में पैर पटकना आदि ।
- व्यभिचारी अथवा संचारी भाव – आश्रय के हृदय में स्थायी भाव जागृत होने पर कुछ क्षणिक भाव बीच – बीच में उठते तथा विलीन होते रहते हैं । इनके द्वारा स्थायी भाव और भी तीव्र तथा संचरणशील हो जाता है । इन्हें ‘ संचारी ‘ अथवा ‘ व्यभिचारी भाव ‘ कहते हैं ।
यद्यपि ये अनेक हो सकते हैं तथापि इनकी संख्या 33 मानी गयी है । ये निम्नलिखित-
( 1 ) निर्वेद , ( 2 ) ग्लानि , ( 3 ) आवेग , ( 4 ) दैन्य , ( 5 ) श्रम , ( 6 ) जड़ता , ( 7 ) उग्रता , ( 8 ) मोह , ( 9 ) मद , ( 10 ) शंका , ( 11 ) चिन्ता , ( 12 ) विषाद , ( 13 ) व्याधि , ( 14 ) आलस्य , ( 15 ) अमर्ष , ( 16 ) हर्ष , ( 17 ) असूया , ( 18 ) गर्व , ( 19 ) धृति , ( 20 ) मति , ( 21 ) चापल्य , ( 22 ) बीड़ा , ( 23 ) अवहित्था , ( 24 ) निद्रा , ( 25 ) स्वप्न , ( 26 ) विबोध , ( 27 ) उन्माद , ( 28 ) अपस्मार , ( 29 ) स्मृति , ( 30 ) औत्सुक्य , ( 31 ) त्रास ,
( 32 ) वितर्क , ( 33 ) मरण ।
विशेष – कभी – कभी एक स्थायी भाव की जागृत दशा में दूसरा स्थायी भाव क्षणिक रूप से उठता है और विलीन हो जाता है , तब स्थायी भाव भी संचारी भाव हो जाता है । जैसे रति भाव की जागृत दशा में ‘ हास ‘ संचारी भाव हो जाता है ।
नीचे स्थायी भावों तथा रसों के नाम दिये जाते हैं , इन्हें याद कर लेना आवश्यक है स्थायी भाव –
क्र० | रस | स्थाई भाव | |
1 | श्रृंगार | रति | |
2 | वीर | उत्साह | |
3 | करुण | शोक | |
4 | हास्य | हास | |
5 | भयानक | भय | |
6 | रौद्र | क्रोध | |
7 | वीभत्स | जुगुप्सा | |
8 | अद्भुत | विस्मय | |
9 | शांत | निर्वेद | |
10 | वात्सल्य | वत्सलता / पुत्र विषयक रति | |
11 | भक्ति | भगवद विषयक रति | |