Hindi Sahity ka itihas Madhyakal (मध्यकाल)

मध्यकाल 

(सं0- 1375 से 1900 तक)

Madhyakal (purva madhyakal utttar madhyakal)

पूर्व मध्यकाल  {भक्तिकाल}  (सं0- 1375 से 1700 तक) (Bhaktikal)

  •  भक्ति शब्द की उत्पत्ति ‘भज्’ धातु से हुई – मोनियर विलियम्स|
  • भक्ति शब्द का प्रथम प्रयोग श्वेताश्वेतर उपनिषद् में मिलता है|
  • भक्तिकाल को हिंदी का स्वर्णयुग जार्ज ग्रियर्सन ने कहा है|
  • भक्तिकाल को लोकजागरण काल के नाम से डॉ. रामविलास शर्मा ने पुकारा है |

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निर्गुण भक्ति (Nirgun Bhakti)

निर्गुण भक्ति के प्रवर्तक कबीरदास जी हैं|

  • ज्ञानाश्रयी शाखा – इस शाखा के कवियों ने निर्गुण ब्रह्म की उपासना की तथा ज्ञान के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति के मार्ग को खोजा , अतः यह शाखा ज्ञानाश्रयी शाखा कहलायी |

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प्रमुख कवि –

Trick- क. दा. सुं. म. रै. ना.

  • कबीर – बीजक (संकलनकर्त्ता – कबीर के शिष्य  धर्मदास

                                 (साखी , सबद , रमैनी संकलित हैं |)

  • दादूदयाल
  • सुन्दरदास
  • मलूकदास
  • रैदास – इनकी शिष्या मीराबाई जी थी|
  • नानक
  • प्रमुख प्रवृत्तियाँ / विशेषताएँ
  • निर्गुण ब्रह्म की उपासना
  • एकेश्वरवाद का समर्थन
  • नाम स्मरण का महत्त्व
  • गुरू का महत्व
  • जाति-पांति का विरोध
  • प्रेमाश्रयी शाखा- लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना की है , इसी कारण इसे प्रेमाख्यानक काव्य सूफी काव्य आदि नामो से जाना  जाता है |
  • प्रमुख कवि –

Trick- जा. कुतु. मंझन. उस्. मुल्ला. के.

  • मालिक मुहम्मद जायसी –(malik muhammad jayasi)

  रचनाएं – 

  • पदमावत में नागमती, पद्मावती और रत्नसेन की प्रेम कहानी है |
  • पद्मावत में प्रतीक

राजा – मन (आत्मा ) का प्रतीक

सिंहल – ह्रदय

पद्मावती – बुद्धि

सुआ/ हीरामन तोता – गुरु

नागमती – दुनिया धंधा

राघव चेतन – शैतान

अलाउद्दीन – माया

  • अखरावट- वर्णमाला के एक-एक अक्षर से सिद्धांत निरूपण|
  • आखिरी कलाम – क़यामत का वर्णन|
  • चित्ररेखा – लघु प्रेमाख्यानक
  • कहरानामा – अध्यात्मिक विवाह वर्णन है ,कहरवा शैली|
  • मसलानामा – ईश्वर भक्ति के प्रति प्रेमनिवेदन|
  • कन्हावत |
  • कुतुबन – मृगावती
  • मंझन – मधुमालती
  • उस्मान – चित्रावली
  • मुल्ला दाऊद – चंदायन

अन्य कवि एवं महत्वपूर्ण रचनाएं –

          कवि          रचना

  • असाईत – हंसावली
  • ईश्वरदास – सत्यवती कथा
  • नन्ददास – रूपमंजरी
  • नारायणदास – छितईवार्त्ता
  • पुहकर – रसरतन
  • शेख नबी – ज्ञानदीप
  • कासिमशाह – हंस जवाहिर
  • नूरमुहम्मद – इन्द्रावती, अनुराग बांसुरी|
  • प्रमुख प्रवृत्तियाँ / विशेषताएँ
  • नारी के अनुपम सौन्दर्य का वर्णन
  • प्रेम तत्व की प्रधानता
  • प्रकृति का नाना रूपों में चित्रण
  • प्राचीन अवधी का प्रयोग
  • सूफी दर्शन का प्रभाव
  • गुरू की महत्ता का प्रतिपादन

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सगुण भक्ति

  • रामाश्रयी शाखा- जिन कवियों ने राम के सगुन रूप की उपासना की वे रामभक्त कवि कहलाए, हिंदी में रामकाव्य के प्रवर्तक रामानंद माने जाते हैं| राम भक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि तुलसीदास जी माने जाते हैं|
  • प्रमुख कवि –

रामानंद – के गुरू – राघवानन्द

रामानदं के 12 शिष्य थे –

  • सुखानंद
  • अनंतानंद
  • सुरसुरानन्द
  • नर्हर्यानन्द – शिष्य – तुलसीदास
  • भावानन्द
  • पीपा
  • सेन
  • कबीर
  • धन्ना
  • रैदास
  • पद्मावती (स्त्री)
  • सुरसरी (स्त्री)

Trick- सुख अनंत सुर नरहरि भावा|

पी से कबीर ध रै प सु गावा||

                             तुलसीदास

जन्म – 1532मृत्यु –  1623 ई०
पिता – आत्माराम दुबेमाता -हुलसी
दीक्षा गुरु – नरहर्यानंदशिक्षा गुरू – शेष सनातन
पत्नी – रत्नावली  
  • तुलसी को नाभादास ने – कलिकाल का वाल्मीकि कहा है|
  • मुग़ल काल का सबसे महान व्यक्ति – स्मिथ ने कहा है|
  •  बुद्धदेव के बाद सबसे बड़ा लोकनायक – जार्ज ग्रियर्सन ने कहा है|
  •  हिंदी का जातीय कवि – रामविलास शर्मा ने कहा है|
  •  मानस का हंस – अमृतलाल नागर ने कहा है|
  •  प्रथम रचना ‘ वैराग्य संदीपनी ‘ तथा अन्तिम रचना ‘ कवितावली ‘

को माना जाता है| अधिकांश विद्वान ‘ रामलला नहछू ‘ को प्रथम कृति मानते हैं ।

  • तुलसीदास की 12 प्रमाणिक रचनाएँ मानी गयीं हैं|

ट्रिक – कृ. गी. रा. दो. वि. रा. पा. जा. वै. ब. रा. क.

  1. कृष्ण गीतावली – ब्रजभाषा – कृष्ण गीतावली में गोस्वामीजी ने कृष्ण से सम्बन्धी पदों की रचना की तथा
  2. गीतावली – ब्रजभाषा
  3. रामलला नहछू — ठेठ अवधी- विवाह गीत संकलित है |
  4. दोहावली – ब्रजभाषा
  5. विनयपत्रिका – ब्रजभाषा
  6. रामचरितमानस – अवधी — रामचरितमानस की रचना संवत् 1631 में चैत्र शुक्ल रामनवमी ( मंगलवार ) को हुआ । इसकी रचना में कुल 2 वर्ष 7 महीना 26 दिन लगा ।

7 कांड क्रमशः है-        TRICK-—-BAAKSLU

बालकाण्ड अयोध्याकाण्ड अरण्य कांड किष्किन्धाकाण्ड         सुन्दरकाण्ड     लंकाकाण्ड   उत्तरकाण्ड 

  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ‘ रामचरितमानस ‘ को ‘ लोकमंगल की साधनावस्था ‘ का काव्य माना है ।
    1. पार्वती मंगल – अवधी-  पार्वती मंगल में पार्वती और शिव के विवाह का वर्णन किया ।
    2. जानकी मंगल — अवधी   – सीता व राम का विवाह वर्णित है |
    3. वैराग्य संदीपनी – ब्रजभाषा- संतो महात्माओं के लक्षण बताये गए है |
    4. बरवे रामायण – अवधी- बरवे छंद में रामायण लिखी है |
  • रामाज्ञा प्रश्न – अवधी–रामाज्ञा प्रश्न एक ज्योतिष ग्रन्थ है ।
  1. कवितावली – ब्रजभाषा —  कवितावलीमें बनारस ( काशी ) के तत्कालीन समय में फैले महामारी का वर्णन उत्तरकाण्ड में किया गया है ।  ‘ कवितावली के परिशिष्ट में हनुमानबाहुक भी संलग्न है । अपने बाहु रोग से मुक्ति के लिए हनुमानबाहुक की रचना की

केशवदास

  • कठिन काव्य का प्रेत कहा जाता है |
  • केशव को उडगन भी कहा जाता है |
  • रामचंद्रिका को छंदों का अजायबघर कहा जाता है |
  • छंदों का बादशाह कहा जाता है |

कृतियाँ –

Trick– र. क. रा. ज. र. वी. वि.

  • रसिकप्रिया
  • कविप्रिया
  • रामचंद्रिका
  • जहाँगीर जस चंद्रिका
  • रतनबावनी
  • वीरसिंह देव चरित
  • विज्ञानगीता

अन्य प्रसिद्ध कवि एवं उनकी कृतियां

  • सेनापति – कवित्त रत्नाकर ,काव्य कल्पद्रुम
  • नाभादास – अष्टयाम ,भक्तमाल |
  • प्राणचंद चौहान – रामायण महानाटक
  • हृदयराम – हनुमन्नाटक

प्रमुख प्रवृत्तियाँ / विशेषताएँ  –

  • राम का लोकनायक रूप में चित्रण
  • दास्य भाव की भक्ति
  • लोकमंगल की भावना
  • अवधी और ब्रज भाषा का प्रमुख रूप प्रयोग|
  • प्रबंध तथा मुक्तक काव्य शैली |

कृष्णाश्रयी शाखा-

जिन कवियों ने कृष्ण के सगुन रूप की उपासना की वे कृष्णभक्त कवि कहलाए|

  • कृष्णभक्त कवियों का आधार ग्रन्थ ‘भागवत महापुराण’ है |
  • कृष्णकाव्य के प्रमुख सम्प्रदाय एवं उनके प्रवर्तक निम्नलिखित हैं –
संप्रदाय प्रवर्तक
सनकादि सं०निम्बार्काचार्य
रूद्र सं०बल्लभाचार्य
सखी सं०स्वामी हरिदास
गौडीय सं०चैतन्य महाप्रभु
राधावल्लभ सं०हितहरिवंश

 

 मुख्य वाद एवं प्रवर्तक –

वाद प्रवर्तक
द्वैतवाद माधवाचार्य
अद्वैतवाद शंकराचार्य
द्वैताद्वैतवाद निम्बार्काचार्य
शुद्धाद्वैतवाद बल्लभाचार्य
विशिष्टाद्वैतवाद रामानुजाचार्य

 

                       प्रमुख कवि –

  • सूरदास
  • हिंदी में भ्रमरगीत काव्य परम्परा के प्रवर्तक सूरदास जी हैं |
  • सूर की भक्ति सख्य भाव की थी|

गुरु – बल्लभाचार्य

रचनाएँ –

  • सूर वात्सल्य सम्राट कहे जाते हैं|
  • सूरसागर – इसका उपजीव्य ग्रन्थ भागवत महापुराण का दशम स्कंध है |
  • सूरसारावली – इसकी रचना संसार को होली मानकर की गयी है|
  • साहित्यलहरी- इसमें 118 दृष्टिकूट पद संकलित है|
  • सूर की मुख्य भाषा ब्रज है |
  • मीराबाई –
  • इनकी भक्ति माधुर्य भाव की थी |
  • रचनाएँ –
    • गीतगोबिंद का टीका
    • रागागोबिंद
    • नरसी जी का मायरा
    • राग सोरठ
    • रुक्मिणी मंगल

अष्टछाप के कवि

  • अष्टछाप की स्थापना १५६५ ई. में विट्ठलनाथ ने की|

ट्रिक – सू. कु. प. कृ.  छी. गो. च. न. 

बल्लभाचार्य के शिष्य

सूरदास

परमानंद दास

कुम्भनदास

कृष्णदास

विट्ठलनाथ के शिष्य

छीतस्वामी

चतुर्भुजदास

गोबिन्ददास

नंददास

 

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