जयशंकर प्रसाद जीवन एवं साहित्यिक परिचय
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जीवन परिचय
छायावादी युग के प्रवर्तक महाकवि जयशंकरप्रसाद का जन्म काशी के एक सम्पन्न वैश्य – परिवार में सन् 1890 (1889)ई ० में हुआ था । उनके पिता तथा बड़े भाई बचपन में ही स्वर्गवासी हो गए थे । अल्पावस्था में ही लाड़ – प्यार से पले प्रसादजी को घर का सारा भार वहन करना पड़ा । उन्होंने विद्यालयीय शिक्षा छोड़कर घर पर ही अंग्रेजी , हिन्दी , बाँग्ला तथा संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञानार्जन किया ।
अपने पैतृक कार्य को करते हुए भी उन्होंने अपने भीतर काव्य – प्रेरणा को जीवित रखा । जब भी समय मिलता , उनका मन भाव – जगत् के पुष्प चुनता , जिन्हें वे दुकान की बही के पन्नों पर सँजो दिया करते थे । अत्यधिक श्रम तथा जीवन के अन्तिम दिनों में राजयक्ष्मा से पीड़ित रहने के कारण 15 नवम्बर , सन् 1937 ई ० को अल्पायु में ही उनका स्वर्गवास हो गया ।
साहित्यिक-परिचय :-
द्विवेदी युग से अपनी काव्य – रचना का प्रारम्भ करनेवाले महाकवि जयशंकरप्रसाद छायावादी काव्य के जन्मदाता एवं छायावादी युग के प्रवर्तक समझे जाते हैं । इनकी रचना ‘ कामायनी ‘ एक कालजयी कृति है , जिसमें छायावादी प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का समावेश हुआ है । अन्तर्मुखी कल्पना एवं सूक्ष्म अनुभूतियों की अभिव्यक्ति प्रसाद के काव्य की मुख्य विशेषता रही है|
प्रसाद छायावादी युग के सर्वश्रेष्ठ कवि रहे हैं । प्रेम और सौन्दर्य इनके काव्य का प्रमुख विषय रहा है , किन्तु इनका दृष्टिकोण इसमें भी विशुद्ध मानवतावादी रहा है । इन्होंने अपनी कविताओं में सूक्ष्म अनुभूतियों का रहस्यवादी चित्रण प्रारम्भ किया और हिन्दी काव्य – जगत् में एक नवीन क्रान्ति उत्पन्न कर दी । इनकी इसी क्रान्ति ने एक नए युग का सूत्रपात किया , जिसे ‘ छायावादी युग ‘ के नाम से जाना जाता है ।
कृतियाँ –
प्रसादजी सर्वतोन्मुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे । उन्होंने कुल 67 रचनाएँ प्रस्तुत की । इनकी प्रमुख काव्य – रचनाओं का विवरण इस प्रकार है –
( 1 ) कामायनी – यह महाकाव्य छायावादी काव्य का कीर्ति – स्तम्भ है । इस महाकाव्य और श्रद्धा के माध्यम से मानव को हृदय ( श्रद्धा ) और बुद्धि ( इड़ा ) के समन्वय का सन्देश दिया गया है ।
( 2 ) आँसू – यह वियोग पर आधारित काव्य है । इसके एक – एक छन्द में दु : ख और पीड़ा साकार हो उठी है ।
( 3 ) चित्राधार — यह प्रसादजी का ब्रजभाषा में रचित काव्य संग्रह है ।
( 4 ) लहर – इसमें प्रसादजी की भावात्मक कविताएँ संगृहीत हैं ।
( 5 ) झरना — यह प्रसादजी की छायावादी कविताओं का संग्रह है । इस संग्रह में सौन्दर्य और प्रेम की अनुभूतियों को मनोहारी रूप में वर्णित किया गया है ।
इनके अतिरिक्त प्रसादजी ने अन्य विधाओं में भी साहित्य – रचना की है । उनका विवरण इस प्रकार है –
( 1 ) नाटक – नाटककार के रूप में उन्होंने ‘ चन्द्रगुप्त ‘ , ‘ स्कन्दगुप्त ‘ , ‘ ध्रुवस्वामिनी ‘ , ‘ जनमेजय का नागयज्ञ ‘ , ‘ कामना ‘ , ‘ एक घुट ‘ , ‘ विशाख ‘ , ‘ राज्यश्री ‘ , ‘ कल्याणी ‘ , ‘ अजातशत्रु ‘ और ‘ प्रायश्चित्त ‘ नाटकों की रचना की है ।
( 2 ) उपन्यास – ‘ कंकाल ‘ , ‘ तितली ‘ और ‘ इरावती ‘ ( अपूर्ण रचना ) ।
( 3 ) कहानी – संग्रह – प्रसादजी उत्कृष्ट कोटि के कहानीकार थे । उनकी कहानियों में भारत का अतीत मुस्कराता है । ‘ प्रतिध्वनि ‘ , ‘ छाया ‘ , ‘ आकाशदीप ‘ , ‘ आँधी ‘ और ‘ इन्द्रजाल ‘ उनके कहानी – संग्रह हैं ।
( 4 ) निबन्ध – ‘ काव्य और कला ‘ ।