Kaikeyi ka Anutap padyansh कैकेयी का अनुताप पद्यांश

Kaikeyi ka Anutap (कैकेयी का अनुताप )

Class 12th (class 12) Intermediate
Subject General Hindi (सामान्य हिंदी )
Chapter Kaikeyi ka Anutap (कैकेयी का अनुताप )
Topic पद्यांशों पर आधारित प्रश्नों का  हल  (Padyanh Based Questions and Answers)
Board UP BOARD
By Arunesh Sir
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Hello  my dear student here i am talking about paydays of keikogi ka Anutan written by Maithili Sharan Gupte general Hindi for class 12th Hindi up board exam for all. पाठ कैकेयी का अनुताप लेखक मैथिलीशरण गुप्त हैं | 

पद्यांशों से बनने वाले सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों का संकलन

          (1)

‘ यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को ।

‘ चौंके सब सुनकर अटल केकयी – स्वर को ।

सबने रानी की ओर अचानक देखा ,

वैधव्य तुषारावृता यथा विधु – लेखा ।

बैठी थी अचल तथापि असंख्यतरंगा ,

वह सिंही अब थी हहा ! गोमुखी गंगा

” हाँ , जनकर भी मैंने न भरत को जाना ,

सब सुन लें , तुमने स्वयं अभी यह माना ।

यह सच है तो फिर लौट चलो घर भैया ,

अपराधिन मैं हूँ तात , तुम्हारी मैया ||

पद्यांश का प्रसंग क्या है?

उ०- श्रीराम ने कैकेयी को सम्बोधित करते हुए कहा था कि भरत की जननी होते हुए भी वे उन्हें समझ नहीं पाई । उसी बात को लक्ष्य कर कैकेयी राम से कहती हैं |

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए |

उ०- उस समय विधवा के वेश में वह सफेद वस्त्र धारण किए ऐसी प्रतीत हो रही थी , मानो कुहरे से ढकी चाँदनी हो । यद्यपि कैकेयी निश्छल और स्थिर बैठी हुई थी , तथापि उसके हृदय में अनेक प्रकार के भावों की लहरें उठ रही थीं । सिंहनी जैसा रूप धारण करनेवाली वह कैकेयी अब गोमुखी गंगा के समान शान्त , शीतल और पवित्र हो उठी थी ; अर्थात् उसके मुख से गंगाजल के समान कल्याणकारी और मधुर शब्द निकल रहे थे । कैकेयी ने राम से कहा कि यह सत्य है कि भरत को जन्म देकर भी मैं उसे न पहचान सकी । सभी व्यक्ति मेरी इस बात को सुन लें । राम ने भी अभी इसी बात को स्वीकार किया है ।

भाषा- साहित्यिक खड़ीबोली

अलंकार – उत्प्रेक्षा , उपमा एवं रूपका

रस – शान्त ।

छन्द – सवैया ।

पद्यांश के पाठ का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए ।

उ०- प्रस्तुत पद्यांश राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित महाकाव्य ‘ साकेत ‘ के आठवें सर्ग से हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक के काव्य भाग में संकलित ‘ कैकेयी का अनुताप ‘ शीर्षक से उद्धृत है ।

राम की उस रात्रिकालीन सभा में सभी क्या सुनकर चौंक पड़े ?

उ०- राम की उस रात्रिकालीन सभा में सभी कैकेयी के इस दृढ़ स्वर को सुनकर चौंक पड़े कि हे राम ! यदि तुम्हारी बात सत्य है कि मैं माँ होते भी भरत की बात न समझ पाई तो अब तुम घर को लौट चलो ; अर्थात् अपनी नासमझी में मैंने जो तुम्हारे वनवास की कामना की थी , मेरी उस भूल को तुम भुला दो ।

एक विधवा के वेश में कैकेयी उस समय कैसी प्रतीत हो रही थी ?

उ०- एक विधवा के वेश में कैकेयी उस समय सफेद वस्त्र धारण किए हुए ऐसी प्रतीत हो रही थी , मानो कुहरे से ढकी चाँदनी हो ।

सिंहनी जैसा रूप धारण करनेवाली कैकेयी इस समय किस रूप में दिखाई दे रही थी ?

उ०- सिंहनी जैसा रूप धारण करनेवाली कैकेयी इस समय गोमुख गंगा के समान शान्त , शीतल और पवित्र रूप में दिखाई दे रही थी ।

प्रस्तुत पद्यांश में किन – किन पात्रों के बीच संवाद हो रहा है ?

उ०- प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी और राम के बीच संवाद हो रहा है|

घर लौट चलने के लिए कौन किससे आग्रह कर रहा है ?

उ०- घर लौट चलने के लिए कैकेयी राम से आग्रह कर रही है ।

सिंहनी और गोमुखी गंगा से क्या अभिप्राय है ?

उ०- सिंहनी ‘ का अभिप्राय यहाँ पर वीरांगना और साहसिनी से है । ‘ गोमुखी ‘ से अभिप्राय शान्त और पवित्र वाणीवाली है ।

(2)

दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है ,

पर , अबलाजन के लिए कौन – सा पथ है ?

यदि मैं उकसाई गई भरत से होऊँ ,

तो पति समान ही स्वयं पुत्र भी खोऊँ ।

ठहरो , मत रोको मुझे , कहूँ सो सुन लो ,

पाओ यदि उसमें सार उसे सब चुन लो ।

करके पहाड़ – सा पाप मौन रह जाऊँ ?

राईभर भी अनुताप न करने पाऊँ ?

” थी सनक्षत्र शशि – निशा ओस टपकाती ,

रोती थी नीरव सभा हृदय थपकाती ।

उल्का – सी रानी दिशा दीप्त करती थी ,

सबमें भय – विस्मय और खेद भरती थी ।

” क्या कर सकती थी , मरी मन्थरा दासी ,

मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी

क. रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए |

उ०- सौगन्ध  खाना यद्यपि व्यक्ति की कमजोरी का प्रमाण है , तथापि मुझ अबला के लिए सौगन्ध खाकर अपनी बात को प्रमाणित करने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है । इस प्रकार सौगन्ध खाते हुए कैकेयी ने कहा कि वास्तविकता यह है कि इस कार्य के लिए भरत ने मुझे नहीं उकसाया है । यदि कोई इस बात को सिद्ध कर दे कि मुझे भरत ने इस कार्य के लिए प्रेरित किया है तो मैं पति के समान ही अपने पुत्र को भी खो दूं ।

अलंकार – उपमा एवं अनुप्रास ।

रस – शान्त ।

पद्यांश के पाठ और कवि का नाम लिखिए ।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित महाकाव्य ‘ साकेत ‘ के आठवें सर्ग

कैकेयी का अनुताप ‘ शीर्षक से उद्धृत है ।

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

“दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है ।” इस पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए ।

“दुर्बलता की ही चिह्न विशेष शपथ है ।” इस पंक्ति को कैकेयी ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए पंचवटी में उपस्थित सभा और श्रीराम के समक्ष कहा था । जिसका आशय यह था कि सौगन्ध खाना यद्यपि व्यक्ति की कमजोरी का प्रमाण है , तथापि मुझ अबला के लिए सौगन्ध खाकर अपनी बात को प्रमाणित करने के अतिरिक्त और कोई उपाय शेष नहीं रह गया है |

अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए कैकेयी के पास एकमात्र क्या उपाय था ?

अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए कैकेयी के पास एकमात्र उपाय शपथ खाकर अपनी बात कहना ही था ।

अपने पाप और पश्चात्ताप के सन्दर्भ में कैकेयी ने क्या कहा ?

अपने पाप और पश्चात्ताप के सन्दर्भ में कैकेयी ने कहा कि मेरे लिए यह सम्भव नहीं है कि मैं पहाड़ से बड़ा पाप करके भी चुप रह जाऊँ और राई जैसा छोटा – सा पश्चात्ताप भी न कर सकूँ ।

कहते आते थे यही अभी नरदेही ,

‘ माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही ।

‘ अब कहें सभी यह हाय! विरुद्ध विधाता ,

‘ है पुत्र पुत्र ही, रहे कुमाता माता । ‘

  • रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए |

हे पुत्र राम ! अभी तक लोग कहावत के रूप में यही कहते आए हैं कि पुत्र माता के प्रति चाहे कितने ही अपराध कर ले , किन्तु माता कभी भी उस पर क्रोध नहीं करती और न ही वह क्रोध में भरकर पुत्र का कोई अहित करती है । इसीलिए कहा जाता है कि पुत्र भले ही कुपुत्र सिद्ध हो , किन्तु माता कभी कुमाता नहीं होती । परन्तु मैंने तो माता होकर भी पुत्र भरत और तुम्हारा दोनों का ही अहित किया है ; अत : मैं वास्तव में लोगों की दृष्टि में एक बुरी माता हूँ ।

मगर मैंने यह सब दुष्कृत्य कोई अपने आप जान – बूझकर नहीं किया है , बल्कि मेरा भाग्य मेरे विपरीत था , जिसने मुझसे यह सब कार्य कराया ; फिर मैं अपने दुर्भाग्य के आगे क्या कर सकती थी ? अब तो मेरे दुष्कृत्य को देखकर लोग यही कहेंगे कि पुत्र ने तो माता के प्रति अपने कर्तव्यों का पूर्ण निर्वाह करते हुए स्वयं को सच्चा पुत्र सिद्ध कर दिया , किन्तु माता कुमाता हो गई । इस प्रकार अब लोग पुरानी कहावत के स्थान पर यह नई कहावत कहा करेंगे कि पुत्र तो सदैव पुत्र ही रहता है , भले ही माता कुमाता बन जाए ।

अलंकार – अनुप्रास , बीप्सा ।

रस – करुण एवं शान्त ।

छन्द – सवैया ।

गुण – प्रसाद ।

कविता का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए ।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखित महाकाव्य ‘ साकेत ‘ के आठवें सर्ग

कैकेयी का अनुताप ‘ शीर्षक से उद्धृत है ।

” कहते आते थे यही अभी नरदेही , माता न कुमाता , पुत्र कुपुत्र भले ही । ” इस पंक्ति के माध्यम से कैकेयी ने क्या कहा है ?

इस पंक्ति के माध्यम से कैकेयी ने यह कहा है कि अभी तक लोग कहावत के रूप में यही कहते आए हैं कि पुत्र माता के प्रति चाहे कितने ही अपराध कर ले , किन्तु माता कभी भी उस पर क्रोध नहीं करती और न ही क्रोध में अपने पुत्र का कोई अहित करती है , परन्तु मैंने तो माता होकर पुत्र भरत और तुम्हारा ; दोनों का ही अहित किया है । इसलिए मैं वास्तव में लोगों की दृष्टि में एक बुरी माता हूँ ।

⇒कैकेयी के अनुसार उनसे हुआ पाप किसने कराया ?

कैकेयी के अनुसार उन्होंने कोई भी दुष्कृत्य जानबूझकर नहीं किया । उनका भाग्य ही उनके विपरीत था , जिसने उनसे ऐसा अपराध कराया ।

⇒कैकेयी के अनुसार उनके दुष्कृत्य को देखकर अब लोग क्या कहेंगे ?

यही कहेंगे कि पुत्र तो सदैव पुत्र ही रहता है , भले ही माता कुमाता बन जाए ।

⇒नरदेही ‘ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए |

नरदेही शब्द का अर्थ है – नर को देह धारण करनेवाला अर्थात् मनुष्य

              (4)

बस मैंने इसका बाह्य – मात्र ही देखा ,

दृढ़ हृदय न देखा , मृदुल गात्र ही देखा ।

परमार्थ न देखा , पूर्ण स्वार्थ ही साधा ,

इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा ।

युग युग तक चलती रहे कठोर कहानी ‘

रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी ।

‘ निज जन्म जन्म में सुने जीव यह मेरा

‘ धिक्कार! उसे था महा स्वार्थ ने घेरा

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

मैंने अपने इस पुत्र ( भरत ) का मात्र ऊपरी रूप ही देखा , मैं उसके दृढ़ हृदय को नहीं देख सकी । मैंने इसके कोमल गात ( शरीर ) को ही देखा , मैं इसके पारमार्थिक स्वरूप को न देख पाई और अपना पूर्ण स्वार्थ साधना चाहा । इस कारण ही तो आज मेरा जीवन बाधाग्रस्त है ।

भाषा – शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली ।

अलंकार – अनुप्रास ।

रस – शांत |

” युग – युग तक चलती रहे कठोर कहानी , रघुकुल में थी एक अभागिन रानी । ” इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए ।

“ युग – युग तक चलती रहे कठोर कहानी , रघुकुल में थी एक अभागिन रानी । ” इस पंक्ति का भाव कैकेयी के इस कथन में निहित है कि उसने अपने जीवन में इतना अधिक गम्भीर अपराध किया है कि युग – युग तक सारा संसार इस कहानी को सुनता रहेगा कि राजा रघु के कुल में एक ऐसी रानी थी , जो सर्ववैभव – सम्पन्न होकर भी बहुत अभागी थी ।

⇒कैकेयी के अनुसार उन्होंने भारत में केवल क्या देखा ?

कैकेयी के अनुसार उन्होंने भरत का मात्र ऊपरी रूप ही देखा , वे अपने पुत्र के दृढ़ हृदय को नहीं देख पाई । उन्होंने भरत के कोमल गात को ही देखा और उसके रूप में केवल अपना स्वार्थ ही देखा , उसके हृदय के पारमार्थिक रूप को नहीं देख पाई ।

⇒कैकेयी के शब्दों में प्रत्येक जन्म में उनकी आत्मा क्या सुनेगी ?

उ०- कैकेयी के शब्दों में प्रत्येक जन्म में उनकी आत्मा यही सुनेगी कि धिक्कार है उस रानी कैकेयी को , जिसे महास्वार्थ ने घेर लिया था|

⇒प्रस्तुत पद्यांश में किन – किन पात्रों के बीच संवाद हो रहा है ?

प्रस्तुत पद्यांश में राम और कैकेयी पात्रों के बीच संवाद हो रहा है ।

  • दृढ़ हृदय और मृदुल गात्र शब्द से किसकी ओर संकेत है ?

दृढ़ हृदय और मृदुल गात्र शब्द से भरत की ओर संकेत है ।

  • किस पात्र को महास्वार्थ ने घेर लिया था ?

कैकेयी को महास्वार्थ ने घेर लिया था ।

युग – युग तक कौन – सी कठोर कहानी चलती रहे ?

युग – युग तक यह कठोर कहानी चलती रहे कि रघुकुल में एक अभागिन रानी थी ।

रानी कैकेयी को जन्म – जन्मान्तर क्या सुनना पड़ेगा ?

रानी कैकेयी को जन्म – जन्मान्तर तक यह सुनना पड़ेगा कि उस कैकेयी को धिक्कार है , जिसे महास्वार्थ ने घेर लिया था ।

गात्र ‘ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

गात्र शब्द का अर्थ है – शरीर ।

 

5. ” हा ! लाल ? उसे भी आज गमाया मैंने ,

विकराल कुयश ही यहाँ कमाया मैंने ।

निज स्वर्ग उसी पर वार दिया था मैंने ,

हर तुम तक से अधिकार लिया था मैंने ।

पर वही आज यह दीन हुआ रोता है ;

शंकित तब से धृत हरिण – तुल्य होता है ।

श्रीखण्ड आज अंगार – चण्ड है मेरा ,

तो इससे बढ़कर कौन दण्ड है मेरा||

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

वही मेरा पुत्र आज दीन – हीन होकर रुदन कर रहा है । वह पकड़े हुए हिरन की भाँति सबसे भयभीत है । चन्दन के समान शीतल स्वभाववाला मेरा पुत्र भरत जलते हुए अंगारे के समान प्रचण्ड हो रहा है । इससे बढ़कर दण्ड मुझ अभागी माँ के लिए और क्या हो सकता है कि मेरा पुत्र ही मुझसे कुपित है । अतः मुझे और बड़ा दण्ड न दो ।

भाषा – साहित्यिक खड़ीबोली ।

शैली – प्रबन्ध ।

अलंकार – उपमा एवं अनुप्रास

रस – शान्त ।

शब्दशक्ति – लक्षणा

गुण – प्रसाद ।

कैकेयी ने भरत को खोने के सन्दर्भ में श्रीराम से क्या कहा ?

कैकेयी ने भरत को रोकने के सन्दर्भ में श्रीराम से कहा कि मैंने आज अपने उस पुत्र को भी खो दिया है , जिसके लिए मैंने यह कुकृत्य किया है । अपने इस कृत्य से मैंने ‘ भयंकर अपयश ही प्राप्त किया है ।

कैकेयी ने भरत के रुदन और उसके भय के सम्बन्ध में क्या कहा ?

कैकेयी ने भरत के रुदन और उसके भय के सम्बन्ध में श्रीराम से कहा कि आज भरत दीन – हीन होकर रुदन कर रहा है । वह आज पकड़े हुए हिरन की भाँति सबसे भयभीत है । up board hindi

अपने दण्ड के सम्बन्ध में कैकेयी ने अन्त में श्रीराम से क्या कहा ?

अंत में कैकेयी ने कहा कि मेरा पुत्र ही मुझसे पर क्रोधित है इससे बढ़कर और कौन सा दंड मुझ अभागन के लिए हो सकता है, अत: अब आप मुझे दंड न दो |

 

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