नर हो, न निराश करो मन को (मैथिलिशरण गुप्त)
Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko
Powerful Motivational Hindi Kavita – Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko – नर हो, न निराश करो मन को – Inspirational Poem
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को
सँभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्व कहाँ
तुम स्वत्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
सब जाए अभी पर मान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को
प्रभु ने तुमको हैं दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को
किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को
करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरंतर भेद करो
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
नर हो, न निराश करो मन को
– मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त के बारे में – 
मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे, जिन्हें “राष्ट्रकवि” की उपाधि प्राप्त है। उनका जन्म 3 अगस्त 1886 को उत्तर प्रदेश के चिरगांव में हुआ था। उन्होंने खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया और भारतीय संस्कृति, राष्ट्रप्रेम, धर्म, नीति और मानवता को अपनी रचनाओं का आधार बनाया। गुप्त जी की प्रमुख काव्य कृतियों में भारत-भारती, जयद्रथ वध, साकेत और यशोधरा विशेष प्रसिद्ध हैं। उनकी कविताएँ पाठकों में आत्मबल, आशा और कर्तव्यबोध जगाती हैं। वे 12 दिसंबर 1964 को स्वर्ग सिधार गए।.
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ मुख्यतः राष्ट्रप्रेम, धर्म, नीति, स्त्री-जीवन और सामाजिक जागरण पर आधारित हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:
📚 प्रमुख काव्य रचनाएँ:
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भारत-भारती – राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत काव्य (1912)
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साकेत – रामायण की कथा उर्मिला के दृष्टिकोण से
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पंचवटी – रामायण के वनवास प्रसंग पर आधारित
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यशोधरा – बुद्ध की पत्नी यशोधरा के भावों की अभिव्यक्ति
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जयद्रथ वध – महाभारत आधारित वीर-रस काव्य
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विक्रमादित्य – ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित
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सिद्धराज – ऐतिहासिक गाथा
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द्वापर – महाभारत और कृष्ण चरित्र पर आधारित
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झंकार – काव्य संग्रह
“नर हो, न निराश करो मन को – मैथिलीशरण गुप्त की सबसे प्रेरणादायक कविता जो ज़िंदगी बदल दे”
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