up board class 10 syllabus 2022-23- Up Board solution of class 10 Hindi -खंडकाव्य मुक्तिदूत (Muktidut) charitr chitran sarans kathavastu- gyansindhu

up board class 10 syllabus 2022-23– Up Board solution of class 10 Hindi –खंडकाव्य मुक्तिदूत (Muktidut) charitr chitran sarans kathavastu- gyansindhu

up board class 10 syllabus 2022-23- Class 10 Hindi Chapter 1  मुक्ति -दूत (खण्डकाव्य)- डॉ० राजेन्द्र मिश्र – मुक्ति-दूत-खंडकाव्य-सभी-सर्ग-10th, charitr chitran sarans kathavastu. मुक्ति-दूत खण्डकाव्य के आधार पर पात्रों का चरित्र-चित्रण कीजिए. ‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।UP Board Solution Class 10 Hindi Chapter Question Answer. सर्गों का सरांश.

मुक्ति- दूत

प्रश्न 1. ‘मुक्ति दूत’ नामक खण्डकाव्य का कथानक (कथावस्तु) संक्षेप में लिखिए।

(अथवा) ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर जलियाँवाला बाग की घटना (किसी प्रमुख घटना) का वर्णन कीजिए।

(अथवा) ‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य का सारांश लिखिए।

(अथवा) ‘मुक्ति-दूत’ खण्डकाव्य के नाम द्वारा चलाए गये एक मुख्य आन्दोलन और उसके प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर- ‘मुक्ति दूत’ डॉ० राजेन्द्र मिश्र द्वारा लिखित एक ऐतिहासिक खण्डकाव्य है। इसमें स्वतन्त्रता के लिए किये गये संघर्षो तथा आन्दोलनों का वर्णन है । पाँच खण्डों में विभक्त इस खण्डकाव्य का सार इस प्रकार है

प्रथम सर्ग (ईश्वर के अवतार)

जब-जब धर्म का नाश और अधर्म का उत्थान होता है, तब-तब ईश्वर महापुरुषों के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेता है। महावीर, गौतम, ईसा, मुहम्मद, गुरु गोविन्द सिंह, लिंकन आदि ऐसी ही ईश्वरीय शक्तियाँ थीं । गाँधी जी भी ईश्वर के अवतार थे। उन्होंने काठियावाड़ के पोरबन्दर नामक नगर में कर्मचन्द के यहाँ जन्म लिया था। उनका शरीर दुबला-पतला था किन्तु शक्ति असीम थी । हरिश्चन्द्र और श्रवण कुमार उनके आदर्श थे ।

द्वितीय सर्ग (गाँधी जी की प्रतिज्ञा)

गाँधी जी को एक दिन स्वप्न में माँ दिखाई दी। उनकी आँखें खुलीं तो माँ का उपदेश याद आ गया । उपदेश था- ‘जो तुम्हारे साथ थोड़ा उपकार करे, तुम उसके साथ महान उपकार करो, दुःखियों की सहायता करो।’ गाँधी जी सोचने लगे- ‘माँ अब नहीं है, परन्तु मातृभूमि तो है। मैं जन्मभूमि की सेवा करूँगा। माँ को स्वतन्त्र करूँगा।’ उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक भारत का एक छोटा-सा बच्चा भी नंगा भूखा रहेगा, मैं चैन से न रहूँगा, भूखा ही सो जाऊँगा।

जब तक भारत की सारी बेटियाँ अपने पूरे शरीर को ढकने के लिए वस्त्र नहीं पा लेतीं, तब तक मैं भी केवल एक धोती पहनूंगा। इसके पश्चात गाँधी जी देश की दयनीय दशा तथा छुआछूत की समस्या पर विचार करने लगे। गाँधी जी ने हरिजनों को भी आश्रम में प्रवेश देना स्वीकार कर लिया जिससे लोगों ने उन्हें चन्दा देना बन्द कर दिया। आश्रम में अन्न की कमी हो गयी।

परन्तु गाँधी जी ने भूखों रहकर भी हरिजनों के साथ रहना पसन्द किया। गाँधी जी ने कसम खायी- “मैं घृणा द्वेष की आँधी न चलाऊँगा, न चलने दूंगा। मैं या तो स्वयं मर जाऊँगा या इस छुआछूत की भावना को ही समाप्त कर दूँगा।” गाँधी जी की इन बातों को सुनकर आश्रम में नयी चेतना आ गयी और सबने जान लिया कि गाँधी जी महान हैं।

तृतीय सर्ग (अंग्रेजों के अत्याचार)

उस समय अंग्रेजों के अत्याचारों से सारा देश दुःखी था। देश के उद्योग-धन्धे चौपट हो गये थे। भारतीयों के लिए सम्मान से जीना भी कठिन था। छोटे-छोटे अपराधों को भी राजद्रोह कहकर फाँसी दे दी जाती थी। लिए चिन्तित थे। वे अंग्रेजों से लड़ने के बजाय कह सुनकर ही उनसे कुछ प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सविनय सत्याग्रह आरम्भ कर दिया।

सविनय सत्याग्रह – अंग्रेजों के अत्याचारों और भारत की दीन दशा पर गाँधी जी बहुत दुःखी थे । गाँधी जी स्वतन्त्रता के लिए चिन्तित थे। वे अंग्रेजों से लड़ने के बजाय कह सुनकर ही उनसे कुछ प्राप्त करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सविनय सत्याग्रह आरम्भ कर दिया।

जलियाँवाला बाग की घटना- अंग्रेजों के अत्याचारों से सारा देश क्षुब्ध था। गाँधी जी ने सत्याग्रह शुरू कर दिया। देश के अनेक नेताओं ने सत्याग्रह में भाग लिया। गाँधी जी के आह्वान पर पूरे देश में हड़ताल हुई। इसी समय जलियाँवाला बाग में भयंकर घटना हो गयी। स्त्रियों और बच्चों सहित हजारों निर्दोष स्त्री-पुरुषों को अंग्रेजों ने गोलियों से भून डाला। इस अत्याचार से सारा देश क्षुब्ध हो उठा।

चतुर्थ सर्ग (आन्दोलन)

जलियाँवाला बाग की घटना से क्षुब्ध होकर गाँधी जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ दिया। सारी जनता उनके पीछे थी । उपाधिधारियों ने उपाधियाँ त्याग दीं। विद्यार्थियों ने विद्यालय, वकीलों ने कचहरियों और नौकरों ने नौकरियों का त्याग कर दिया।

साइमन कमीशन- इसी समय साइमन कमीशन भारत आया। भारतीय नेताओं ने साइमन कमीशन का बहिष्कार किया और उसके वापिस लौट जाने की माँग की। इससे क्रुद्ध होकर अंग्रेजों ने लाहौर में भयंकर अत्याचार किये ।

डांडी यात्रा व नमक सत्याग्रह – अंग्रेजों ने नमक कानून बनाया। गाँधी जी ने अगस्त 1930 में तथा असहयोग आन्दोलन करते डांडी यात्रा की और नमक कानून तोड़ा। सरकार ने खीझकर गाँधी जी को जेल में डाल दिया। इसके विरोध में भारतीयों ने सत्याग्रह करके जेलें भर दीं।

‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आन्दोलन – सन् 1939 ई० में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हुआ। अंग्रेजों ने युद्ध में भारत के सहयोग के लिए गाँधी जी से समझौता करना चाहा तो गाँधी जी ने स्वतन्त्रता की मांग रख दी। इससे अंग्रेज एकदम बौखला गये। इस समय गाँधी जी ने स्वतन्त्रता के लिए अन्तिम युद्ध का बिगुल बजा दिया। गाँधी जी ने नारा दिया- ‘अंग्रेजो ! भारत छोड़ो। पूरे देश में ‘अंग्रेजो! भारत छोड़ो’ का नारा गूंजने लगा। देश में भयंकर क्रान्ति की आग जल उठी। हजारों भारतीयों का बलिदान गाँधी जी ने 21 दिन का अनशन आरम्भ किया। इसी समय गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा की मृत्यु हो गयी ।

पंचम सर्ग (स्वतन्त्रता की भूमिका)

पत्नी की मृत्यु के बाद गाँधी जी काफी दुःखी थे। उस समय वे जेल में थे। उनकी हालत दिन-प्रतिदिन गिरती जा रही थी। गाँधी जी की बीमारी से अंग्रेज घबरा गये। उन्होंने गाँधी जी को जेल से छोड़ दिया । सन् 1945 में जर्मनी के हारते ही संसार की राजनीति बदल गयी। अंग्रेज समझ गये थे कि अब भारत पर अन्याय करना सम्भव नहीं । इसी समय इंग्लैण्ड में मजदूर दल की सरकार बनी। ‘एटली’ प्रधानमन्त्री बने जिनका दृष्टिकोण उदार था। उन्होंने जून 1948 ई० से पहले भारत को छोड़ देने की घोषणा कर दी।

परन्तु इसी समय मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान की मांग खड़ी कर दी। गाँधी जी ने मुस्लिम लीग को समझाने की बहुत कोशिश की किन्तु उनका प्रयत्न निष्फल गया। नोआखाली में साम्प्रदायिक दंगे हुए। गाँधी जी समझ गये कि देश के विभाजन के सिवाय और कोई चारा नहीं है। 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हो गया ।

प्रश्न 2. ‘मुक्ति- दूत’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का कथानक लिखिए।

प्रश्न 3. ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग का सारांश संक्षेप में लिखिए।

प्रश्न 4. ‘मुक्ति दूल’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।

प्रश्न 5. ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के चतुर्थ सर्ग ( आन्दोलन सर्ग) का कथानक अपने शब्दों में लिखिए। (

प्रश्न 6. ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के अन्तिम सर्ग (पंचम सर्ग) की कथा संक्षेप में लिखिए।

प्रश्न 7. ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य की कौन-सी घटना आपको सर्वाधिक प्रभावित करती है?

(अथवा) ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर जलियाँवाला बाग की घटना का वर्णन कीजिए।

PLEAS VISIT  Q N 1 ⇑

 

प्रश्न 8. ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के नायक (गाँधी जी) की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।

(अथवा ) ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि गाँधी जी को ‘मुक्ति दूत’ क्यों कहा गया है?

(अथवा) ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के ऐसे पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए जिसने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है।

(अथवा) ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के प्रधान पात्र गाँधी जी का चरित्र चित्रण कीजिए ।

उत्तर- ‘मुक्ति दूत’ काव्य का कथानक महात्मा गाँधी से सम्बन्धित है। काव्य की सभी प्रमुख घटनाएँ गाँधी जी से सम्बद्ध हैं। गाँधी जी द्वारा हो स्वतन्त्रता प्राप्ति का फल प्राप्त होता है, अत: गाँधी जी इस खण्डकाव्य के नायक हैं। गाँधी जी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

मातृभक्त – गाँधी जी अपनी माता से अत्यन्त स्नेह करते हैं। माता में उनकी गहरी श्रद्धा है। स्वप्न में भी माँ के उपदेशों की याद आने पर उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं।

छुआछूत के विरोधी – गाँधी जी छुआछूत तथा जात-पाँत के कट्टर विरोधी हैं। वे हरिजनों के स्पर्श से अपवित्र होने वाले मन्दिरवासी भगवान को पत्थर मानते हैं। मगन लाल जब उन्हें बताते हैं कि हरिजनों के आश्रम में प्रवेश के कारण श्र धन मिलना बन्द हो गया है तो गाँधी जी क्षुब्ध हो उठते हैं और हरिजनों के साथ रहने को कहते हैं। गाँधी जी साम्प्रदायिकता के भी कट्टर विरोधी हैं। हिन्दू और मुसलमान, दोनों को वे एक डाली के दो फूल मानते हैं। नोआखाली में साम्प्रदायिक दंगे होने पर वे अपने प्राणों की चिन्ता न करके वहाँ जाते हैं और दंगों को शान्त करते हैं।

दृढ़-प्रतिज्ञ – गाँधी जी अपनी प्रतिज्ञा के पक्के हैं। वे जो कुछ कहते हैं उसे पूरा करते हैं। मुक्ति दूत काव्य में उन्होंने भारत को स्वतन्त्र कराने तथा हरिजनों का उद्धार करने की प्रतिज्ञाएँ कीं और उन्हें अपने जीवन में पूरा भी कर दिखाया।

मन से पवित्र — गाँधी जी का हृदय पवित्र है । छल-कपट से वे सर्वथा अपरिचित हैं। वे मन, वचन और कर्म में एकरूप हैं। जो सोचते हैं, वही कहते हैं। जो कहते हैं, वही करते हैं। वे किसी से द्वेष भी नहीं करते। अंग्रेजी शासन और अत्याचारों के वे विरोधी हैं किन्तु अंग्रेजों से वे द्वेष नहीं रखते। वे पापी से घृणा नहीं करते, पाप से घृणा करते हैं।

अहिंसक—गाँधी जी अहिंसा के पुजारी हैं। शत्रु से भी वे हिंसा का व्यवहार नहीं करते। अंग्रेजों के अत्याचार सहकर भी वे उन्हें अपशब्द तक नहीं कहते। वे शत्रुओं को भी प्रेम से जीतने का उपदेश देते हैं।

अपूर्व देशभक्त – गाँधी जी महान देशभक्त हैं। देश के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग दिया। देश की स्वतन्त्रता के लिए वे जीवनभर संघर्ष करते हैं और देश के लिए प्राणों का बलिदान कर देते हैं। वे देश के लिए यातनाएं सहते हैं, नंगे रहते हैं,भूखों भरते हैं।

दूरदर्शी – गाँधी जी बहुत दूरदर्शी हैं। वे किसी काम के दूरगामी परिणाम को सोचकर ही कोई काम करते हैं। वे जानते हैं कि शक्तिशाली अंग्रेजी शासन पर शस्त्रास्त्रों से विजय प्राप्त करना सम्भव नहीं, बेकार का खून-खराबा ही होगा । इसलिए वे क्रान्तिकारियों को हिंसा छोड़ने का उपदेश देते हैं।

संक्षेप में, गाँधी जी मातृभक्त, छुआछूत और साम्प्रदायिकता के विरोधी, दृढ़-प्रतिज्ञ और महान देशभक्त नेता हैं। वे करुणा और सहानुभूति की साक्षात मूर्ति हैं। सदाचार, सहयोग और सद्भावना उनकी नस-नस में समाई है। वास्तव में वे एक आदर्श

महापुरुष और ईश्वर के अवतार थे। वे जिस पथ पर चले, जन-जन ने उनका अनुसरण किया –

“जिस ओर बढ़े पग गाँधी के उस ओर समूचा देश बढ़ा।”

प्रश्न 9. ‘मुक्ति दूत’ खण्डकाव्य के प्रतिपाद्य विषय (उद्देश्य) को समझाइए ।

उत्तर- ‘मुक्ति दूत’ काव्य में महात्मा गाँधी के तेजस्वी व्यक्तित्व के आलोक में मुख्य रूप से दो बातें सामने आती हैं 1. भारत का स्वतन्त्रता संग्राम, तथा 2.हरिजन समस्या ।

इनमें भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम इस काव्य का सबसे प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है जिसे कवि ने ‘संगर’ कहकर पुकारा है और हरिजन समस्या इस प्रतिपाद्य की पृष्ठभूमि है। काव्य की भूमिका में कवि ने स्वयं इस तथ्य को स्वीकार किया है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का वर्णन करना ही इस काव्य में कवि का उद्देश्य हैं और संग्राम की पृष्ठभूमि में हरिजन समस्या को उभारा गया है।

इस खण्डकाव्य में सन् 1919 से लेकर सन् 1947 तक लगभग 28 वर्षों के संग्राम का वर्णन है। इनमें प्रमुख घटनाएँ हैं—जलियाँवाला बाग काण्ड, रौलट एक्ट का विरोध, असहयोग आन्दोलन, डांडी यात्रा, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन, पाकिस्तान की माँग तथा भारतीय स्वतन्त्रता आदि ।

स्वाधीनता संग्राम के बीच-बीच में हरिजनों पर ढाए जा रहे अन्यायों और अत्याचारों के चित्र भी प्रस्तुत किये गये हैं।साबरमती आश्रम में हरिजनों के प्रवेश के कारण कुछ लोगों ने चन्दा देना बन्द कर दिया था, इससे गाँधी जी को गहरी पीड़ा हुई। उन्होंने हरिजनों के उद्धार के लिए मन ही मन प्रतिज्ञा की – ” मैं इस घृणा और द्वेष की आँधी को न स्वयं चलाऊँगा, न दूसरों को चलाने दूँगा, या तो इस आँधी को समाप्त कर दूँगा या स्वयं मर जाऊँगा।”

गाँधी जी ने हरिजनों के उद्धार की प्रतिज्ञा तो की किन्तु उस समय स्वाधीनता संग्राम धीरे-धीरे तेज होता जा रहा था । इसलिए गाँधी जी निश्चय करते हैं

“पहले स्वतन्त्र हो जाये देश, फिर छुआछूत से लड़ लूँगा।”

इस प्रकार हरिजन उद्धार की समस्या पृष्ठभूमि बन जाती है और स्वतन्त्रता संग्राम मुख्य प्रतिपाद्य हो जाता है।

 

 

मुक्तिदूत MUKTIDUT मुक्तिदूत MUKTIDUT मुक्तिदूत MUKTIDUT मुक्तिदूत MUKTIDUT

Comments are closed.

error: Content is protected !!