नौका विहार पद्यांश के प्रश्न Nauka Vihar Padyansh
UPMSP Uttar Pradesh Madhyamik Shiksha Parishad Intermediate Hindi UP Board Hindi for Class 12 General Hindi Kayanjali सामान्य हिंदी काव्यांजलि Chapter 4 नौका विहार सुमित्रानन्दन पन्त are part of UP Board hindi for Class -12 Samanya Hindi. यहाँ पर हम दे रहे हैं – UP Board साहित्यिक हिंदी Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 4 सुमित्रानन्दन पन्त|
Class | 12th (class 12) Intermediate कक्षा -12 |
Subject | General Hindi (सामान्य हिंदी ) |
Chapter | नौका विहार Nauka Vihar |
Topic | padyansh adharit prashn पद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर |
Board | UP BOARD (upmsp) |
By | Arunesh Sir |
Other | वीडियो के माध्यम से समझें |
नौका-विहार – सुमित्रानन्दन पन्त
पद्यांश -1
शान्त , स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्ज्वल ! अपलक अनन्त नीरव भूतल !
सैकत शय्या पर दुग्ध धवल , तन्वंगी गंगा , ग्रीष्म विरल ,
लेटी है श्रान्त , क्लान्त , निश्चल ! तापस – बाला गंगा निर्मल ,
शशिमुख से दीपित मृदु करतल , लहरें उर पर कोमल कुन्तल !
गोरे अंगों पर सिहर – सिहर , लहराता तार – तरल सुन्दर
चंचल अंचल – सा नीलाम्बर ! साड़ी की सिकुड़न – सी जिस पर ,
शशि की रेशमी विभा से भर सिमटी हैं वर्तुल , मूदुल लहर !
- भाषा – शुद्ध संस्कृतनिष्ठ , खड़ीबोली ।
- अलंकार – मानवीकरण , सांगरूपक , उपमा , अनुप्रास , पुनरुक्तिप्रकाश एवं स्वभावोक्ति
- रस – शृंगार ।
- शब्दशक्ति – लक्षणा
- गुण – माधुर्य ।
- छन्द – स्वच्छन्द ।
प्रश्नोत्तर – 1
प्र० – पद्यांश के पाठ और कवि का नाम लिखिए|
उ०- प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘ गुंजन ‘ काव्य से हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक के काव्य भाग में संकलित ‘ नौका – विहार ‘ शीर्षक कविता से उद्धृत है ।
प्र० – रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उ०- पन्त जी कहते हैं कि , तारों – भरे आकाश की चंचल परछाई गंगा के जल में पड़ती हुई ऐसी प्रतीत होती है , मानो उस गंगारूपी तपस्विनी बाला के गोरे – गोरे अंगों के स्पर्श से बार – बार काँपता , तारों – जड़ा उसका नीला आँचल लहरा रहा हो ।
उस आकाशरूपी नीले आँचल पर चन्द्रमा की कोमल चाँदनी में प्रकाशित छोटी – छोटी कोमल , टेढ़ी , बलखाती लहरें ऐसी प्रतीत होती हैं , मानो लेटने के कारण उसकी रेशमी साड़ी में सिलवटें पड़ गई हों ।
प्रस्तुत पद्यांश में किसका चित्रण किया गया है ?
उ०- पन्तजी द्वारा चाँदनी रात में अपनी मित्र – मण्डली के साथ गंगा में किए गए नौका विहार का चित्रण किया गया है ।
प्र० – गंगा के जल में झलकता हुआ चन्द्रमा का बिम्ब कैसा प्रतीत हो रहा है ?
उ०- गंगा के जल में झलकता हुआ चन्द्रमा का बिम्ब ऐसा प्रतीत हो रहा है और मानो गंगारूपी कोई तपस्विनी अपने चन्द्रमुख को उसी के प्रकाश से प्रकाशित कोमल हथेली पर रखकर लेटी हो और छोटी – छोटी लहरों के रूप में उसके वक्षस्थल पर कोमल केश लहरा रहे हो ।
प्र० – गंगा के जल में पड़ती हुई तारों – भरी आकाश की परछाईं किस प्रकार की प्रतीत हो रही है ?
आकाश की परछाईं ऐसी प्रतीत हो रही है और मानो गंगारूपी तपस्विनी बाला के गोरे अंगों के स्पर्श से बार – बार काँपता
तारों – जड़ा उसका नीला आँचल लहरा रहा हो ।
प्र० – तन्वंगी एवं ज्योत्स्ना का अर्थ लिखिए |
उ०- तन्वंगी – दुबले पतले / कमजोर शारीर वाली स्त्री
ज्योत्स्ना – चांदनी
प्र० – कुंतल एवं वर्तुल शब्दों का अर्थ लिखो?
उ०- कुंतल – केश / बाल
वर्तुल – टेढ़ी
पद्यांश -2
चाँदनी रात का प्रथम प्रहर , हम चले नाव लेकर सत्वर ।
सिकता की सस्मित सीपी पर मोती की ज्योत्स्ना रही विचर
लो , पालें चढ़ीं , उठा लंगर ! मृदु मन्द – मन्द , मन्थर – मन्थर ,
लघु तरणि , हंसिनी – सी सुन्दर , तिर रही , खोल पालों के पर !
निश्चल जल के शुचि दर्पण पर बिम्बित हो रजत पुलिन निर्भर
दुहरे ऊँचे लगते क्षण भर ! कालाकाँकर का राजभवन
सोया जल में निश्चिन्त , प्रमन पलकों पर वैभव – स्वप्न सघन
- अलंकार – उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रांस
- रस – शान्त
- शब्दशक्ति – अभिधा ।
प्रश्नोत्तर – 2
प्र० – रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उ०- पन्त जी कहते हैं कि लंगर उठते ही छोटी – छोटी नावें अपने पालरूपी पंख खोलकर सुन्दर हंसिनियों के समान चित्ताकर्षक मन्थर गति से धीरे – धीरे गंगा में तैरने लगीं । गंगा का जल शान्त और निश्चल है , जो दर्पण के समान सुशोभित है । उस जलरूपी स्वच्छ दर्पण में चाँदनी में नहाया रेतीला तट प्रतिबिम्बित होकर दुगुने परिमाण में व्यक्त हो रहा है । गंगा – तट पर सोभित कालाकांकर के राजभवन का प्रतिबिम्ब गंगा – जल में झलक रहा है ।
वह प्रतिबिम्ब ऐसा लगता है , मानो वह राजभवन गंगाजलरूपी शैया पर निश्चिन्त होकर सो रहा है और उसकी झुकी पलकों तथा शान्त मन में मानो वैभवरूप स्वप्न तैर रहे हैं ।
प्र० – कवि नौका – विहार हेतु किस समय प्रस्थान करते हैं ?
उ०- कवि चाँदनी रात के प्रथम पहर में गंगा की धारा में नौका विहार के लिए निकला ।
प्र० – गंगा के तट के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कवि क्या कहते हैं ?
उ०- कवि पन्त कहते हैं कि गंगा का तट ऐसा मनोरम लग रहा है , मानो मुस्काती ; अर्थात् खुली पड़ी रेतीली सीपी पर चन्द्रमारूपी मोती की चमक / विचरण कर रही हो
प्र० – रात्रि में गंगा नदी की रेती की शोभा कैसी लग रही है ?
उ०- रात्रि में गंगा नदी की रेती की शोभा खुली पड़ी सीपी जैसी लग रही है ।
प्र० – लघु तरणि हंसिनी – सी सुन्दर ‘ में कौन – सा अलंकार है ?
उ०- ‘ लघु तरणि हंसिनी – सी सुन्दर ‘ में उपमा अलंकार है ।
प्र० – गंगा के तट पर स्थित राजभवन के सौन्दर्य का कवि ने किस प्रकार वर्णन किया है ?
उ०- गंगा के तट पर स्थित राजभवन के सौन्दर्य का चित्रण करते हुए कवि कहते हैं कि गंगा के तट पर शोभित कालाकाँकर के राजभवन का प्रतिबिम्ब गंगा के जल में झलक रहा है । वह प्रतिबिम्ब ऐसा प्रतीत होता है , मानो वह राजभवन गंगाजलरूपी शैया पर निश्चिन्त होकर सो रहा है और उसकी झुकी पलकों तथा शान्त मन में मानो वैभवशाली स्वप्न तैर रहे हों ।
पद्यांश -3
ज्यों – ज्यों लगती है नाव पार उर में आलोकित शत विचार ।
इस धारा – सा ही जग का क्रम +शाश्वत इस जीवन का उद्गम ,
शाश्वत है गति , शाश्वत संगम ! – शाश्वत नभ का नीला विकास
साश्वत शशि का यह रजत हास – शाश्वत लघु लहरों का विलास !
हे जग – जीवन के कर्णधार ! चिर जन्म – मरण के आरपार ,
शाश्वत जीवन – नौका – विहार ! मैं भूल गया अस्तित्व ज्ञान ,
जीवन का यह शाश्वत प्रमाण , करता मुझको अमरत्व दान !
- खड़ीबोली ।
- अलंकार – उपमा एवं रूपक ।
- रस – शृंगार ।
- शब्दशक्ति – लक्षणा
प्रश्नोत्तर – 3
प्र० – रेखांकित अंश की व्याख्या / भावार्थ कीजिए ।
उ०- कवि भावनाओं के सागर में डूब गया और सोचने लगा कि हे संसार की जीवनरूपी नौका को चलानेवाले भगवान् ! जन्म के पश्चात् सदैव मृत्यु और मृत्यु के पश्चात् सदैव जन्म है । इसी प्रकार यह जीवनरूपी नौका का विहार निरन्तर चलता रहता है । भावनाओं में डूबा कवि कह उठता है कि मैं चिन्तनशील होकर भी अपनी सत्ता का ज्ञान भूल गया । जीवन की शाश्वतता का जलधारारूपी यह प्रमाण ही मुझे अमरत्व प्रदान करता है |
प्र० – कवि नौका – विहार के समय संसार के क्रम के बारे में क्या सोचते हैं ?
उ०- कवि नौका – विहार के . समय संसार के क्रम के बारे में यह सोचते हैं कि इस संसार का क्रम भी इसी जलधारा के समान ही है ।
प्र० – जीवन की गति और मिलन को किसके समान शाश्वत बताया गया है ?
उ०- जीवन की गति और मिलन को जलधारा के समान शाश्वत बताया गया है
प्र० – किस अदृश्य सत्ता की ओर पन्तजी का संकेत है ?
उ०- ईश्वर की अदृश्य सत्ता की ओर पन्तजी का संकेत है ।
प्र० – ‘ जगजीवन के कर्णधार ‘ का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उ०- ‘ जगजीवन के कर्णधार ‘ का आशय संसार की जीवनरूपी नौका को चलानेवाले मल्लाह से है ।
प्र० – नौका – विहार के समय जीवन और मृत्यु के सन्दर्भ में कवि के मन में क्या विचार आता है ?
उ०- नौका – विकार के समय जीवन और मृत्यु के सन्दर्भ में कवि के मन में यह विचार आता है कि जन्म के पश्चात् सदैव मृत्यु और मृत्यु के पश्चात् सदैव जन्म है । इसी प्रकार यह जीवनरूपी नौका का विहार निरन्तर चलता रहता है ।
प्र० – ‘ जग का क्रम ‘ कैसा है ?
उ०- जग का क्रम नदी की धारा के जैसा है ।
इस पद्यांश के अनुसार क्या – क्या तथ्य शाश्वत हैं ?
उ०- इस पद्यांश के अनुसार जीवन का उद्गम , गति , संगम , नभ का नीला विकास , चन्द्रमा का रजत – हास , लघु लहरों का विलास , जीवनरूपी नौका का . विहार आदि तथ्य शाश्वत हैं ।
प्र० – रजत हास ‘ और ‘ कर्णधार ‘ का क्या अर्थ है ?
उ०- रजत हास ‘ का अर्थ चन्द्रमा की चाँदनी और ‘ कर्णधार ‘ का अर्थ -पतवार चलानेवाला अथवा सहारा है ।
प्र० – कर्णधार ‘ तथा ‘ शाश्वत ‘ शब्द का अर्थ लिखिए ।
‘ कर्णधार ‘ का अर्थ मल्लाह तथा शाश्वत ‘ का अर्थ सदैव विद्यमान है ।