Hindi Samas & Samas ke Bhed prakar – Samas in Hindi

समास/Samas

Hindi Samas & Samas ke Bhed prakar – Samas in Hindi | समास परिभाषा व भेद और उदाहरण – हिन्दी व्याकरण and Samas Grammer Vyakaran In Hindi – Types of Samas in Hindi & समास – परिभाषा, भेद और उदाहरण- Samas In Hindi.

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Hindi Samas & Samas ke Bhed prakar - Samas in Hindi

  1. अव्ययीभाव समास- Avyayi Bhav Samas
  2. तत्पुरुष समास – Tatpurush samas
  3. कर्मधारय समास – Karmdharay samas 
  4. द्विगु समास – Dvigu samas 
  5. द्वन्द समास – Dvand samas 
  6. बहुव्रीहि समास – Bahubrih samas 

समास शब्द का शाब्दिक अर्थ है – संग्रह , सम्मिलन , संक्षेप , मिश्रण आदि ।

व्याकरणिक दृष्टि से दो – या – दो से अधिक पदों के मेल से जो नया शब्द बनता है , उसे समस्त – पद कहते हैं और शब्दों के मेल से नवीन शब्द बनाने की प्रक्रिया को समास कहते हैं ।
जैसे – गंगाजल , रामावतार , पत्रोत्तर आदि ।

वास्तव में , कम – से – कम शब्दों में अधिक अर्थ प्रकट करना ही समास का मुख्य प्रयोजन है ।
जैसे- विद्या का आलय विद्यालय, शुभ है जो आगमन -शुभागमन, कमल के समान नयन – कमलनयन, चक्र है पाणि में जिसके- चक्रपाणि ( विष्णु ) समास में दो पद होते हैं – पूर्व पद और उत्तर पद । कभी पूर्व पद , कभी उत्तर पद और कभी दोनों पद प्रधान होते हैं ।
कभी – कभी दोनों ही पद अप्रधान हो जाते हैं और उनका एक विशिष्ट अर्थ महत्त्वपूर्ण हो जाता है ।

समास विग्रह –
समस्तपदों को अलग करने की विधि को समास विग्रह कहते हैं ।
जैसे- विद्यालय, विद्या का आलय, पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट आदि।

समास के भेद

समास के मुख्यतः छ : भेद होते हैं-
1. तत्पुरुष समास
2. द्विगु समास
3. द्वंद्व समास
4. कर्मधारय समास ।
5. बहुव्रीहि समास
6. अव्ययीभाव समास

1. तत्पुरुष समास :-

तत्पुरुष समास में उत्तर पद प्रधान होता है तथा पूर्व पद गौण होता है ।
इस समास में समस्तपदों का लिंग और वचन अंतिम पद के अनुसार ही होता है ।
तत्पुरुष समास में बहुधा दोनों पद संज्ञा या पहला पद संज्ञा और दूसरा विशेषण होता है ।
इस समास में समस्तपद करते समय कारक – विभक्ति या एकाधिक शब्दों का लोप होता है , इसलिए लुप्त ( गायब हुई ) विभक्ति के कारक के अनुसार इस समास के निम्नलिखित भेद किए जाते हैं –

( i ) कर्म तत्पुरुष:- कर्म तत्पुरुष के अंतर्गत समस्तपद में कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लोप होता है ; जैसे

समस्तपद -.  विग्रह
आतिथ्यर्पण- अतिथि को अर्पण
गृहागत – गृह को आया हुआ
यशप्राप्त – यश को प्राप्त
मरणासन्न- मरण को पहुँचा हुआ
परलोकगमन-  परलोक को गमन
ग्रामगत – ग्राम को गया हुआ
स्वर्गगत – स्वर्ग को गया हुआ
कष्टभोगी-  कष्ट को भोगने वाला
गिरहकट – गिरह को काटने वाला

( ii ) करण तत्पुरुष – करण तत्पुरुष के अंतर्गत समस्तपद में करण कारक की विभक्ति से , ‘के द्वारा’ का लोप होता है एवं पूर्वपद का उत्तरपद से संबंध स्थापित किया जाता है ;

जैसे-
गुणयुक्त – गुणों से युक्त
जन्मांध – जन्म से अंधा
भुखमरा – भूख
रोगपीड़ित- रोग से पीड़ित
रेखांकित- रेखा से अंकित
तुलसीकृत – तुलसी द्वारा कृत
मनगढंत – मन से गढ़ा हुआ
बिहारीरचित- बिहारी द्वारा रचित

( iii ) संप्रदान तत्पुरुष-
संप्रदान तत्पुरुष के अंतर्गत समस्तपद में संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ का लोप होता है ;

जैसे-
रसोईघर- रसोई के लिए घर
युद्धक्षेत्र – युद्ध के लिए क्षेत्र
देवबलि- देव के लिए बलि
हथकड़ी – हाथ के लिए कड़ी
हवनसामग्री – हवन के लिए सामग्री
देशभक्ति – देश के लिए भक्ति
गुरुदक्षिणा- गुरु के लिए दक्षिणा
पुण्यदान – पुण्य के लिए दान

( iv ) अपादान तत्पुरुष –
अपादान तत्पुरुष के अंतर्गत समस्तपद में अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ का लोप होता है एवं पूर्वपद का उत्तरपद से संबंध स्थापित नहीं किया जाता है ;

जैसे-
ऋणमुक्त- ऋण से मुक्त
रोगमुक्त- रोग से मुक्त
धर्मभ्रष्ट- धर्म से भ्रष्ट
श्रापमुक्त – श्राप से मुक्त
शक्तिहीन- शक्ति से हीन
लक्ष्यभ्रष्ट- लक्ष्य से भ्रष्ट
धर्मविमुख- धर्म से विमुख
भयभीत- भय से भीत
कामचोर- काम से जी चुराने वाला

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