श्रद्धा मनु – जयशंकर प्रसाद
Shraddha Manu – Jayshanakr Prasad
Class | 12th (class 12) Intermediate |
Subject | General Hindi (सामान्य हिंदी ) |
Chapter | Shraddha Manu श्रद्धा मनु (Kamayani Ka Shraddha Sarg) |
Topic | पद्यांशों पर आधारित सभी प्रश्नों का हल |
Board | UP BOARD |
By | Arunesh Sir |
Other | वीडियो के माध्यम से समझें |
प्रश्नोत्तर सहित पद्यांश
- ” कौन तुम? संसृत्ति – जलनिधि तीर
तरंगों से फेंकी मणि एक
कर रहे निर्जन का चुपचाप
प्रभा की धारा से अभिषेक ?
मधुर विश्रान्त और एकांत
जगत का सुलझा हुआ रहस्य ;
एक करुणामय सुन्दर मौन
और चंचल मन का आलस्य ।
- पद्यांश के पाठ और कवि का नाम लिखिए ।
उ०- पाठ/ शीर्षक का नाम – श्रद्धा मनु
लेखक का नाम – जयशंकर प्रसाद
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उ०- श्रद्धा मनु से प्रश्न करती है कि तुम कौन हो ? जिस प्रकार सागर की लहरें अपनी तरंगों से मणियों को अपने किनारे पर फेंक देती हैं , उसी प्रकार संसाररूपी सागर की लहरों के द्वारा इस निर्जन स्थान में फेंके हुए तुम कौन हो ? तुम चुपचाप बैठकर इस निर्जन स्थान को अपनी आभा से उसी प्रकार सुशोभित / सिंचित कर रहे हो , जैसे सागर – तट पर पड़ी हुई मणि उसके निर्जन तट को आलोकित करती है ।
- भाषा – खड़ीबोली ।
- अलंकार – रूपक ,उत्प्रेक्षा , उल्लेख , विशेषण – विपर्यय और विरोधाभास
- शब्दशक्ति – लक्षणा ।
- गुण – माधुर्य ।
- छन्द -16 मात्राओं का श्रृंगार छन्द |
- प्रस्तुत पद्यांश में कौन किससे उसका परिचय पूछ रहा है ?
उ०-प्रस्तुत पद्यांश में श्रद्धा एक निर्जन स्थान में बैठे मनु , का परिचय पूछती है कि तुम कौन हो और इस निर्जन स्थान में क्यों बैठे हो ?
- श्रद्धा के शब्दों में मनु चुपचाप बैठकर उस निर्जन स्थान को अपनी आभा से किस प्रकार सुशोभित कर रहे हैं ?
उ०- श्रद्धा के शब्दों में मनु चुपचाप बैठकर उस निर्जन स्थान को अपनी आभा से इस प्रकार सुशोभित कर रहे हैं , मानो सागर के तट पर पड़ी हुई मणि उसके निर्जन तट को आलोकित करती है|
- मनु श्रद्धा को किस प्रकार एक रहस्य की भाँति प्रतीत हो रहे हैं ?
उ०- मनु श्रद्धा को मधुरता , थकावट और नवीनता से भरे संसार में सुलझे हुए रहस्य की भाँति प्रतीत हो रहे हैं
- और देखा वह सुन्दर दृश्य
नयन का इन्द्रजाल अभिराम ;
कुसुम – वैभव में लता समान
चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम ;
हृदय की अनुकृति बाह्य उदार
एक लम्बी काया , उन्मुक्त ;
मधु पवन क्रीड़ित ज्यों शिशु साल
सुशोभित हो सौरभ संयुक्त |
- भाषा – परिष्कृत खड़ीबोली ।
- अलंकार – उपमा , रूपकातिशयोक्ति एवं अनुप्रास ।
- रस – शृंगार ।
- शब्दशक्ति – लक्षणा
- गुण – माधुर्य
- छन्द – शृंगार छन्द ।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उ०- जब मनु ने कुतूहलवश ऊपर की ओर देखा तो उन्हें सौन्दर्य से परिपूर्ण श्रद्धा अपने निकट खड़ी हुई दिखाई दी । यह एक अभूतपूर्व और सुन्दर दृश्य था । यह दृश्य उनके नेत्रों को जादू के समान अपनी ओर आकर्षित कर रहा था । मनु ने श्रद्धा को देखा तो उन्हें लगा कि वह फूलों से लदी हुई सौन्दर्यमयी लता के समान है । उन्होंने अनुभव किया कि जैसे चन्द्रमा की शीतल चाँदनी से लिपटा हुआ बादल का कोई टुकड़ा उनके सामने खड़ा है ।
- जब मनु ने कुतूहलवश ऊपर की ओर देखा तो उन्हें क्या दिखाई दिया ?
उ०- जब मनु ने कुतूहलवश ऊपर की ओर देखा तो उन्हें सौन्दर्य से परिपूर्ण श्रद्धा अपने निकट खड़ी हुई दिखाई दी । यह एक अभूतपूर्व और सुन्दर दृश्य था । यह दृश्य उनके नेत्रों को जादू के समान अपनी ओर आकर्षित कर रहा था ।
- श्रद्धा के प्रति मनु की प्रतीति को कवि ने एक लता और बादल के टुकड़े के रूप में किस प्रकार व्यक्त कराया है ?
उ०- श्रद्धा के प्रति मनु की प्रतीति को कवि ने इस रूप में व्यक्त किया है कि वह फूलों से लदी हुई सौन्दर्यमयी लता है । उसके रूप में जैसे चन्द्रमा की शीतल चाँदनी से लिपटा हुआ बादल का कोई टुकड़ा उनके सामने खड़ा हो|
- इस काव्यांश में कवि ने श्रद्धा के किन गुणों को दर्शाया हैं ?
उ०- इस काव्यांश में कवि ने श्रद्धा के सभी उदात्त गुणों – उदारता , हृदय की व्यापकता , गम्भीरता , मधुरिमा आदि को दर्शाया है ।
- नील परिधान बीच सुकुमार
खुल रहा मृदुल अधखुला अंग ,
खिला हो ज्यों बिजली का फूल
मेघ – बन बीच गुलाबी रंग ।
ओह ! वह मुख ! पश्चिम के व्योम
बीच जब घिरते हों घन श्याम
अरुण रवि मंडल उनको भेद
दिखाई देता हो छविधाम ||
- भाषा – खड़ीबोली
- अलंकार – उत्प्रेक्षा , रूपक एवं विरोधाभास
- रस – शृंगार ।
- शब्दशक्ति – अभिधा और लक्षणा ।
- गुण – माधुर्य ।
- छन्द – 16 मात्राओं का श्रृंगार छन्द ।
- प्रस्तुत पंक्तियों में किसकी सुन्दरता का वर्णन किया है ?
उ०- प्रस्तुत पंक्तियों में श्रद्धा की सुन्दरता का वर्णन किया है ।
- श्रद्धा के बालों ‘ और ‘ मुख ‘ की तुलना किससे की गई है ?
उ०- श्रद्धा के बालों की तुलना बादलों से और मुख की तुलना उन बादलों के बीच दिखाई देते सूर्य से की गई है ।
- मेघ – वन ‘ में कौन – सा अलंकार है ?
उ०- रूपक अलंकार है ।
- रेखांकित अंश का भावार्थ लिखिए ।
उ०- श्रद्धा अपने शरीर पर नीले रंग का मेष – चर्म ( भेड़ की खाल ) धारण किए है । उसकी वेशभूषा में से कहीं – कहीं उसके कोमल और सुकुमार अंग दिखाई दे रहे हैं । उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था , मानो नीले बादलों के वन में गुलाबी रंग का सुन्दर बिजली का फूल खिला हुआ हो ।
- घिर रहे थे घुघराले बाल
अंश अवलम्बित मुख के पास
नील घन – शावक – से सुकुमार
सुधा भरने को विधु के पास ।
और उस मुख पर वह मुसक्यान
रक्त किसलय पर ले विश्राम ;
अरुण की एक किरण अम्लान|
अधिक अलसाई हो अभिराम ।
- अलंकार – रूपक , उपमा एक उत्प्रेक्षा
- रस – शृंगार
- रेखांकित अंश की व्याख्या / भावार्थ कीजिए ।
उ०- श्रद्धा के मुखड़े पर झूलनेवाली बालों की लट ऐसी प्रतीत हो रही थी , मानो कोई नन्हा बादल का टुकड़ा अमृत पीने के लिए सागर के तल को छूने का प्रयत्न कर रहा हो ।
- प्रस्तुत पंक्तियों में किसकी मनोरम छवि का चित्रण किया गया है ? अथवा यहाँ किसकी सुन्दरता का मनोरम वर्णन किया गया है ?
उ०- प्रस्तुत पंक्तियों में श्रद्धा की मनोरम सुन्दरता का चित्रण किया गया है ।
- श्रद्धा के मुखड़े पर झूलनेवाली बालों की लट कैसी प्रतीत हो रही थी ?
उ०- श्रद्धा के मुखड़े पर झूलनेवाली बालों की लट ऐसी प्रतीत हो रही थी , मानो कोई नन्हा बादल का टुकड़ा अमृत पीने के लिए सागर के तल को छूने का प्रयत्न कर रहा हो ।
- इन पंक्तियों में सूर्य की अलसायी – सी किरण के सन्दर्भ में क्या कहा गया है ?
उ०- पंक्तियों में कवि ने सूर्य की अलसायी – सी किरण के सन्दर्भ में लिखा है कि श्रद्धा के मुखड़े पर मोहक मुस्कान ऐसी लग रही थी , जैसे लाल रक्तिम नवीन कोपल पर सूर्य की एक अलसायी – सी स्निग्ध किरण विश्राम कर रही हो
- ‘ अरुण की एक किरण अम्लान अधिक अलसाई हो अभिराम ‘ में कौन – सा अलंकार है ?
उ०- ‘ अरुण की एक किरण अम्लान अधिक अलसाई हो अभिराम ‘ में ‘ अ ‘ वर्ण की पुनरावृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार और किरण के अलसाने में मानवीकरण अलंकार है ।
- ‘ अम्लान ‘ तथा ‘ अभिराम ‘ शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उ०- ‘ अम्लान ‘ का अर्थ स्वच्छ , चटकीली तथा ‘ अभिराम ‘ का अर्थ मनोरम है |
- कहा मनु ने , ” नभ धरणी बीच बना जीवन रहस्य निरुपाय ;
एक उल्का – सा जलता भ्रान्त , शून्य में फिरता हूँ असहाय । ”
‘ कौन हो तुम वसन्त के दूत बिरस पतझड़ में अति सुकुमार;
घन तिमिर में चपला की रेख तपन में शीतल मन्द बयार ! ‘
लगा कहने आगन्तुक व्यक्ति मिटाता उत्कंठा सविशेष
दे रहा हो कोकिल सानन्द सुमन को ज्यों मधुमय सन्देश ।
- भाषा – साहित्यिक खड़ीबोली ।
- शैली – प्रतीकात्मक और लाक्षणिक ।
- अलंकार – श्लेष , उपमा , रूपक एवं रूपकातिशयोक्ति
- रस – शृंगार ।
- शब्दशक्ति – लक्षणा ।
- गुण – प्रसाद एवं माधुर्य
- छन्द -16 मात्राओं का श्रृंगार छन्द
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उ०- मनु अपना परिचय श्रद्धा को देते हुए कहते हैं कि पृथ्वी और आकाश के बीच में इस नीरव स्थान पर मेरा एकाकी जीवन एक पहेली बना हुआ है । उसे सुलझाने का मेरे पास कोई उपाय भी नहीं है । मैं इस निर्जन स्थान मैं असहाय ( बेसहारा ) होकर अपनी वेदना से जलता हुआ उसी प्रकार इधर – उधर भटक रहा हूँ , जिस प्रकार एक जलता हुआ तारा टूटकर बिना किसी आश्रय के आकाश में इधर – उधर भटकता रहता है|
- मनु ने श्रद्धा को आशा की किरण बताते हुए क्या कहा ?
उ०- मनु ने श्रद्धा को आशा की किरण बताते हुए यह कहा कि मेरे इस निराशापूर्ण जीवन में तुम आशा की किरण जैसी दिखाई दे रही हो । साथ ही वेदना और व्यथा से तपे हुए इस मेरे जीवन में शीतल और मन्द पवन की भाँति नवीन चेतना का संचार कर रही हो ।
- एक टूटे हुए तारे के रूप में मनु की स्थिति की तुलना करते हुए कवि ने किसका चित्रण किया है ?
उ०- एक टूटे हुए तारे के रूप में मनु की स्थिति की तुलना करते हुए कवि ने मनु की निराश्रित और उद्देश्यहीन स्थिति का चित्रण किया है ।
- श्रद्धा को वसन्त का दूत बताते हुए कवि क्या संकेत देना चाह रहे हैं
उ०- श्रद्धा को वसन्त का दूत बताते हुए कवि यह संकेत देना चाह रहे हैं कि श्रद्धा मनु के जीवन में आशाओं का संचार करने के लिए उपस्थित हुई है ।
- आगन्तुक व्यक्ति से किसकी ओर संकेत किया गया है ?
उ०- आगन्तुक व्यक्ति से श्रद्धा की ओर संकेत किया गया है ।
- पद्यांश में किस पात्र की उत्कण्ठा मिटाने की बात कही गई है ?
उ०- पद्यांश में मनु की उत्कण्ठा मिटाने की बात कही गई है ।
- पद्यांश में किन पात्रों के बीच संवाद हो रहा है ?
उ०- पद्यांश में श्रद्धा – मनु के बीच संवाद हो रहा है ।
- दुःख की पिछली रजनी बीच
विकसता सुख का नवल प्रभात
एक परदा यह झीना नील
छिपाए है जिसमें सुख गात ।
जिसे तुम समझे हो अभिशाप ,
जगत की ज्वालाओं का मूल ;
ईश का वह रहस्य वरदान
कभी मत इसको जाओ भूल ।
- अलंकार – उत्प्रेक्षा , रूपक एवं उपना ।
- रस – शान्त ।
- शब्दशक्ति – लक्षणा ।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उ०- श्रद्धा मनु को सान्त्वना देते हुए तथा उन्हें प्रेरित करते हुए कहती है कि दुःख की पिछली काली रात के बीच ही सुख का नया सवेरा विकसित होता है । बीती हुई रात के झीने नीले धुंधलके के समान बीते हुए दुःख की अनुभूति सुख के बीच परदा बनी हुई है । वह सुखमय अरुण के प्रकट होने का ही पूर्व संकेत है|
- इन पंक्तियों में श्रद्धा किसके हताश मन को प्रेरणा दे रही है ?
उ०- इन पंक्तियों में श्रद्धा मनु के हताश मन को प्रेरणा दे रही है ।
- ” दुःख की पिछली रजनी बीच , विकसता सुख का नवल प्रभात । ” इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए ।
उ०- “ दुःख की पिछली रजनी बीच , विकसता सुख का नवल प्रभात । ” इस पंक्ति का भाव यह है कि दुःख की पिछली काली रात के बीच ही सुख का नया सवेरा विकसित होता है । इसलिए मनुष्य को दुःख पाकर निराश होकर नहीं बैठ जाना चाहिए ।
- यहाँ शाप समझे जानेवाले दुःख के सन्दर्भ में क्या कहा गया है ?
उ०- यहाँ शाप समझे जानेवाले दुःख के सन्दर्भ में श्रद्धा मनु से कहती है कि जिस दुःखं को तुम शाप समझते हो और यह समझते हो कि यह संसार ही पीड़ाओं ( दुःखों ) का कारण है , वह मनुष्य को ईश्वर का रहस्यमय वरदान है ; क्योंकि यही पीड़ा मनुष्य को सुख प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है ।
- कहा आगन्तुक ने सस्नेह
“अरे , तुम इतने हुए अधीर ;
हार बैठे जीवन का दाँव
जीतते मर कर जिसको वीर ।
तप नहीं केवल जीवन सत्य
करुण यह क्षणिक दीन अवसाद ;
तरल आकांक्षा से हैं भरा
सो रहा आशा का आह्लाद ।
- शैली – संवादात्मक एवं प्रतीकात्मक
- अलंकार – मानवीकरण ।
- रस – शान्त
- छन्द -16 मात्राओं का शृंगार छन्द ।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए
उ०- मनु की बात सुनकर , आनेवाले ( व्यक्ति ) अर्थात् श्रद्धा ने स्नेह भाव के साथ मनु से कहा कि अरे ! ऐसा प्रतीत होता है कि तुम तो अपना धैर्य खो बैठे हो और अपने जीवन में उस सफलता को प्राप्त करने के प्रति निराश हो चुके हो , जिसे कर्मशील एवं साहसी पुरुष अपने कठिन परिश्रम के आधार पर प्राप्त करते हैं ।
- श्रद्धा मनु को किस प्रकार उत्साहित करती है ?
उ०- श्रद्धा मनु को उल्लास के साथ कर्मरत बने रहने की प्रेरणा देते हुए उत्साहित करती है ।
- मनु की बात सुनकर श्रद्धा ने उनसे स्नेहपूर्वक क्या कहा ?
उ०- मनु की बात सुनकर श्रद्धा ने उनसे स्नेहपूर्वक कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि तुम अपना धैर्य खो बैठे हो और अपने जीवन में उस सफलता को प्राप्त करने के प्रति निराश हो चुके हो , जिसे कर्मशील और साहसी पुरुष अपने कठिन परिश्रम के आधार पर प्राप्त करते हैं ।
- “ तप नहीं , केवल जीवन सत्य । ” इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उ०- “ तप नहीं , केवल जीवन सत्य । ” इस पंक्ति का आशय श्रद्धा के मनु के प्रति व्यक्त किए गए इस कथन में निहित है कि केवल तपस्या करते रहना ही जीवन का सत्य नहीं है । दीनता और करुणा के भावों से ओत – प्रोत तुम्हारी यह मनःस्थिति क्षणिक है । जीवन तो प्रगति की अभिलाषाओं , आशाओं तथा प्रसन्नता से भरा हुआ है । इसलिए तुम अपनी अभिलाषाओं को जगाओ और उत्साहपूर्वक जीवन व्यतीत करो ।
- प्रकृति के यौवन का श्रृंगार
करेंगे कभी न बासी फूल ;
मिलेंगे वे जाकर अति शीघ्र
आह उत्सुक है उनको धूल ।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उ०-प्रसाद जी कहते हैं कि प्रकृति में प्राकृतिक छटा कभी भी बासी और मुरझाए हुए फूल से नहीं आती है । निर्जीव और बेजान फूल किसी भी रूप में प्रकृति को नया उल्लास नहीं प्रदान कर सकते हैं । ऐसे फूलों का हश्र तो धूल में मिलकर काल – कवलित होना ही हो सकता है ।
- अलंकार उपमा , उत्प्रेक्षा एवं रूपक
- “ प्रकृति के यौवन का श्रृंगार , करेंगे कभी न बासी फूल । ” इस पंक्ति में निहित भावार्थ को स्पष्ट कीजिए |
उ०- “ प्रकृति के यौवन का श्रृंगार , करेंगे कभी न बासी फूल । ” इस पंक्ति में निहित भावार्थ श्रद्धा की इन पंक्तियों में निहित है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है । प्रकृति अपने यौवन का शृंगार मुरझाए हुए बासी फूलों से नहीं करती , वरन् नव – विकसित पुष्पों को ही अपने शृंगार हेतु उपयोग में लाती है ।
पुराने दु : खों की याद करके अपने जीवन को निराशा की गर्त में ढकेल देना उचित नहीं है । जिस प्रकार से प्रकृति नवीनता पसन्द करती है , उसी प्रकार हमें भी नवीन उत्साह और ताजगी के साथ कर्म – पथ पर आगे बढ़ते रहना चाहिए ।
- कवि के अनुसार वास्तविक प्राकृतिक छटा कभी भी किस प्रकार के फूलों से नहीं आती है ?
उ०-कवि के अनुसार वास्तविक प्राकृतिक छटा कभी भी बासी और मुरझाए हुए फूलों से नहीं आती हैं ।
- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने क्या दिया है ?
उ०- प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने निराश व्यक्तियों की बासी फूल से तुलना करते हुए उन्हें उल्लासमय बने रहने का प्रभावपूर्ण सन्देश दिया है ।
- समर्पण लो सेवा का सार
सजल संसृति का यह पतवार ;
आज से यह जीवन उत्सर्ग
इसी पद तल में विगत विकार ।
बनो संसृति के मूल रहस्य
तुम्हीं से फैलेगी वह बेल ;
विश्व भर सौरभ से भर जाय
सुमन के खेलो सुन्दर खेल ।
- अलंकार रूपक तथा अनुप्रास
- रस – संयोग शृंगार ।
- समर्पण लो सेवा का सार ‘ किसने किससे कहा है ?
उ०-‘ समर्पण लो सेवा का सार ‘ श्रद्धा ने मनु से कहा ।
- बनो संसृति के मूल रहस्य ‘ किसके लिए कहा गया है ?
उ०-‘ बनो संसृति के मूल रहस्य ‘ मनु के लिए कहा गया है|
- विश्वभर सौरभ से भर जाए ‘ का क्या आशय है ?
उ०-विश्वभर सौरभ से भर जाए ‘ का आशय संसार के सुगन्ध से भर जाने से है ।
- रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
उ०- श्रद्धा मनु को अपना समर्पण स्वीकार करने के लिए प्रेरित करती हुई कहती है कि आप मेरे इस समर्पण को स्वीकार करके सृष्टि के क्रम को अनवरत जारी रखते हुए जीवन – मरण के मूल – रहस्यों को जाननेवाले बनो । यदि तुम अब भी जीवन से तटस्थ बने रहे तो इस सृष्टि का यहीं अन्त हो जाएगा । इसलिए मेरा समर्पण स्वीकार करके अर्थात् मुझे अपनी जीवन – संगिनी बनाकर इस मानव – सृष्टि की बेल को आगे बढ़ाओ । तुम मेरे संयोग से मानवरूपी सुमनों की रचना करके जीवन के सुन्दर खेल को जीभरकर खेलो , जिससे सारा संसार उन सुमनों की किलकारियोंरूपी सुगन्ध से महक उठे ।
- जलधि के फूटे कितने उत्स द्वीप ,
कच्छप डूबें – उतराय ;
किन्तु वह खड़ी रहे दृढ़ मूर्ति
अभ्युदय का कर रही उपाय ।
शक्ति के विद्युत्कण , जो व्यस्त
विकल बिखरे हैं , हो निरुपाय ;
समन्वय उसका करे समस्त
विजयिनी मानवता हो जाय
- रेखांकित अंश की व्याख्या / भावार्थ कीजिए ।
उ०- श्रद्धा मनु को समझाती है -किन्तु मेरे और तुम्हारे रूप में यह मानवता आज भी सुदृढ़ मूर्ति के समान खड़ी हुई अपने नवीन उत्थान का प्रयास कर रही है । श्रद्धा के कहने का आशय यह है कि मानवता महाप्रलय पर भी विजय प्राप्त करके स्वयं के अस्तित्व को बचाने में सफल हुई है , तब तुम्हारी जीवन के असहाय होने की शंका बेकार ही है । इस सृष्टि की रचना शक्तिशाली विद्युत्कणों ( मनुष्यों ) से हुई है ; किन्तु जब तक ये विद्युत्कण अलग – अलग होकर भटकते रहते हैं , तब तक ये शक्तिहीन बने रहते हैं ;
अर्थात् किसी भी प्रकार के निर्माण में असमर्थ रहते हैं । पर जिस क्षण ये परस्पर मिल जाते हैं , तब इनमें से अपार शक्ति का स्रोत प्रस्फुटित होता है । ठीक इसी प्रकार जब तक मानव अपनी शक्ति को संचित न करके उसे बिखेरता रहता है , तब तक वह शक्तिहीन बना रहता है । किन्तु यदि वह समन्वित हो जाए तो उसमें विश्वभर को जीत लेने की अपार शक्ति प्रकट होगी और मानवता अपने पूर्ण विकसित रूप में प्रतिष्ठित हो जाएगी ।
- इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को किसका उपाय बताया है ?
उ०- इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को मानवता
- ” शक्ति के विद्युत्कण , जो व्यस्त , विकल बिखरे हैं , हो निरुपाय ” इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए ।
उ०- इस पंक्ति का भाव यह है कि इस सृष्टि की रचना शक्तिशाली विद्युत्कणों ( मनुष्यों ) से हुई है , किन्तु जब तक ये विद्युत्कण अलग – अलग होकर भटकते रहते हैं , तब तक वे शक्तिहीन बने रहते हैं ; अर्थात् किसी भी प्रकार के सृजन या निर्माण में असमर्थ रहते हैं ।
- श्रद्धा के अनुसार मानव कब तक शक्तिहीन बना रहता है और यदि वह सभी उ०- उ०- उपायों से समन्वित हो जाए तो इसके क्या परिणाम होंगे ?
श्रद्धा के अनुसार मानव तभी तक शक्तिहीन बना रहता है जब तक वह अपनी शक्ति को संचित न करके उसे व्यर्थ में ही बिखेरता रहता है , किन्तु यदि वह सभी उपायों से समन्वित हो जाए तो उसमें सम्पूर्ण विश्व तक को जीत लेने की अपार शक्ति प्रकट हो जाती है । इस स्थिति में मानवता को भी अपने पूर्ण विकसित रूप में प्रतिष्ठित होने का अवसर प्राप्त हो सकता है ।
- ‘ दृढ़ मृर्ति ‘ से आशय किसकी मूर्ति से है ?
उ०-‘ दृढ़ – मूर्ति ‘ से आशय मानवता की मूर्ति से है ।
- ‘ उत्स ‘ और ‘ अभ्युदय ‘ शब्दों का अर्थ लिखिए ।
उ०-‘ उत्स ‘ का अर्थ स्रोत और ‘ अभ्युदय ‘ का अर्थ नवीन उत्थान है ।
- ‘ द्वीप -कच्छप ‘ में कौन – सा अलंकार है ?
उ०- पद्यांश के अनुसार ‘ द्वीप , कच्छप ‘ में ‘ प ‘ वर्ण की पुनरावृत्ति में अनुप्रास अलंकार है , किन्तु प्रश्नानुसार ‘ द्वीप- कच्छप ‘ में रूपक अलंकार ( द्वीपरूपी कच्छप ) होगा ।
————————————
Subscribe My other YouTube Channel:
⇨⇨ Click Here
- For More Vedios and Notes :-
- UP Board Full Hindi Syllabus –
Please Visit My Website Click Here
- Visit Playlist :
- General Hindi : Click Here
- Sahityik Hindi : Click Here