Up board solution of class 10 Hindi – तुमुल (खण्डकाव्य) (Tumul) charitr chitran sarans -up board class 10 syllabus 2022-23

Up board solution of class 10 Hindi – तुमुल (खण्डकाव्य) (Tumul) charitr chitran sarans -up board class 10 syllabus 2022-23

up board class 10 syllabus 2022-23– Class 10 Hindi Chapter – तुमुल (खण्डकाव्य) – तुमुल -खंडकाव्य-सभी-सर्ग-10th, charitr chitran sarans kathavastu. तुमुल खण्डकाव्य के आधार पर पात्रों का चरित्र-चित्रण कीजिए तुमुल खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए। UP Board Solution Class 10 Hindi Chapter Question Answer. Tumul. सर्गों का सरांश.

तुमुल

प्रश्न 1. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का सारांश (कथावस्तु) अपने शब्दों में लिखिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का कथानक संक्षेप में लिखिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर पंष्ठ सर्ग मेघनाद – प्रतिज्ञा का वर्णन कीजिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश लिखिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का कथानक लिखिए।

 

उत्तर- ‘तुमुल’ खण्डकाव्य श्याम नारायण पाण्डेय की वीर रस की उत्तम कृति है। ‘तुमुल’ की कथा रामकथा से सम्बन्धित है। ‘लक्ष्मण’ इसका नायक है। कथा की योजना में कवि ने साहित्य तथा पुराणों के मार्मिक स्थलों को पहचान कर उन्हें इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि पाठक मन्त्रमुग्ध हो जाता है। 15 सगों में विभक्त इस कथा का सारांश निम्नवत् है

प्रथम सर्ग (ईश स्तवन) – काव्य के प्रथम सर्ग में ईश्वर की स्तुति की गयी है।

द्वितीय सर्ग (दशरथ पुत्रों का जन्म एवं बाल्यकाल) – इस सर्ग में दशरथ के चारों पुत्रों की जन्म कथा है। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, ये चारों पुत्र इक्ष्वाकु वंश के यश को बढ़ाने वाले हैं। ये पुत्र अपनी बाल लीलाओं से राजमहल को आनन्दित कर रहते हैं। राजा दशरथ की प्रसिद्धि सम्पूर्ण भारत में व्याप्त थी। राजा दशरथ कर्तव्यपरायण, दानवीर एवं युद्धविद्या में अद्वितीय थे। युद्धों में सदैव अपराजित रहते थे। वे नीतिज्ञ, सच्चरित्र तथा सुख- शान्त में विश्वास रखने वाले थे।

तृतीय सर्ग (मेघनाद) – तृतीय सर्ग में रावण के पुत्र मेघनाद के जन्म का वर्णन है। मेघनाद बड़ा नियमशील, ज्ञानी तथा वीर था। तीनों लोक उसके सामने काँपते थे । काल भी उसकी गति को रोकने में समर्थ नहीं था । चतुर्थ सर्ग में जब राम रावण के पुत्र मकराक्ष का वध कर देते हैं तब रावण अपने वीर पुत्र मेघनाद को युद्ध में भेजने का निश्चय करता है। पंचम सर्ग में पिता की चिन्ता का समाचार पाकर मेघनाद स्वयं पिता के सामने उपस्थित होता है। रावण, मेघनाद की शक्ति और वीरता की प्रशंसा करते हुए उसे आदेश देता है कि वह लंका की रक्षा तथा मकराक्ष के वध का प्रतिकार करे ।

मेघनाद की प्रतिज्ञा (षष्ठ सर्ग) – गर्जन करते हुए मेघनाद पिता को कष्ट निवारण का आश्वासन देता है तथा प्रतिज्ञा करता है कि “यदि वह इस युद्ध में विजय प्राप्त न कर सका तो कभी भी युद्ध न करेगा। सातवें सर्ग में मेघनाद युद्ध के लिए प्रस्थान करता है। सारी सृष्टि में भय व्याप्त हो जाता है। देवताओं को राम के प्राण संकट की आशंका थी। मेघनाद और लक्ष्मण, दोनों युद्ध के मैदान में आमने-सामने उपस्थित हो गये। लक्ष्मण के तीखे बाणों के प्रहार से शत्रु सेना में भगदड़ मच गयी भूमि लाशों से पट गयी। मेघनाद ने लक्ष्मण पर शक्तिवाण का प्रहार किया। उस वाण के प्रयोग से लक्ष्मण मुर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ते हैं।

मेघनाद अभियान (सप्तम सर्ग) – जब मेघनाद रावण के सम्मुख प्रतिज्ञा करके युद्ध के लिए प्रस्थान करने लगा तो देवता काँपने लगे। मेघनाद अत्यन्त क्रोधित था। उसके हुंकार से बड़े-बड़े योद्धाओं का साहस छूटने लगा। बड़े-बड़े सेनापतियों ने मेघनाद के क्रोध का कारण पूछा। मेघनाद ने युद्ध के वाद्य बजाने के आदेश दिए। इसके पश्चात मेघनाद ने सुसज्जित रथ लेकर युद्धक्षेत्र की और प्रस्थान कर दिया। देवतागण आकुल होकर सोचने लगे कि श्रीराम किस प्रकार मेघनाद का सामना कर पायेंगे क्योंकि मेघनाद जब बाणों की वर्षा करता है तो पृथ्वी काँपने लगती है और सूर्य तथा चन्द्रमा भी अपना धैर्य छोड़ देते हैं।

अष्टम सर्ग (युद्धासन्न सौमित्र) – मेघनाद का गर्जन सुनकर लक्ष्मण आकुल थे। उन्होंने राम से आज्ञा ली । मेघनाद और लक्ष्मण, दोनों के मैदान में आमने-सामने उपस्थित हो गये। लक्ष्मण को चतुर तथा युद्ध का ज्ञाता समझ कर मेघनाद सावधानी -युद्ध से युद्ध करने का निश्चय करता है।

राम की चिन्ता एवं आकुलता – लक्ष्मण की मूर्छा से वानरों में शोक की लहर दौड़ गयी। हनुमान वानरों को उपदेश देते लक्ष्मण के विषय में शोक करने की आवश्यकता नहीं है। हनुमान के उपदेश को सुनकर वानर सेना में आशा का संचार हुआ। लक्ष्मण की मूर्छा का समाचार सुनकर श्रीराम चिन्तामग्न हो जाते हैं। अधीर राम की आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगती हैं और वे भूमि पर गिर पड़ते हैं।

लक्ष्मण का पुनर्जीवन तथा प्रतिज्ञा – जाम्बवान का आदेश पाकर हनुमान लंका से सुषेण वैद्य को ले आते हैं। सुषेण के बताने पर हनुमान संजीवनी बूटी लाते हैं। संजीवनी बूटी के प्रयोग से लक्ष्मण निद्रा त्याग कर सिंह की भांति उठ खड़े होते हैं।

सम्पूर्ण सेना में हर्ष की लहर दौड़ जाती है। उसी समय विभीषण बताता है कि मेघनाद यज्ञ कर रहा है और यदि उसका यज्ञ पूर्ण हो गया तो फिर उसे कोई पराजित न कर सकेगा। तब लक्ष्मण प्रतिज्ञा करता है- “मैं आज मेघनाद का वध करके ही लौदूंगा। यदि मैं ऐसा करने में असफल रहा तो भविष्य में कभी धनुष धारण न करूँगा।”

मख-विध्वंस और मेघनाद वध (चतुर्दश सर्ग) – लक्ष्मण ने मेघनाद की यज्ञशाला में पहुँच कर विपवाणों की वर्षा की । पुरोहित को बाण लगा। यज्ञ में पुरोहित के रक्त की धार गिरने लगी। मेघनाद ने लक्ष्मण को देखा। उसके मन में तिरस्कार भावना जागी, किन्तु वह यज्ञ में आहुति देता रहा। सब राक्षसों का संहार कर लक्ष्मण अकेले मेघनाद पर बाण बरसाने लगते हैं। लक्ष्मण के वाण से मेघनाद का सिर कट गया और उसने युवा हाथ में लिए ही यज्ञशाला में प्राण त्याग दिये। लक्ष्मण की इस विजय पर राम ने लक्ष्मण की भूरि भूरि प्रशंसा की । तब लक्ष्मण राम की स्तुति करते हुए कहते हैं कि आपकी आज्ञा के बिना जगत में कुछ भी नहीं होता है। आप ही जगत के बन्धु, पिता सब कुछ हो। आप के असंख्य रूप इस संसार में दिखाई पड़ते हैं। स्तुति के साथ ही काव्य की कथा समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 2. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘लक्ष्मण मेघनाद युद्ध एवं लक्ष्मण की मूर्च्छा’ शीर्षक सर्ग (नवम सर्ग) का वर्णन कीजिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मख विध्वंस और मेघनाद वध सर्ग ( चतुर्दश सर्ग) का सारांश लिखिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के किसी एक सर्ग की कथावस्तु लिखिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य की जिस घटना ने आपको प्रभावित किया हो उसका वर्णन कीजिए ।

उत्तर- ‘तुमुल’ खण्डकाव्य’ की कथा लक्ष्मण मेघनाद युद्ध से सम्बन्धित है। अन्त में विजय लक्ष्मण की ही होती है किन्तु लक्ष्मण की विजय की अपेक्षा मेघनाद की पराजय अधिक महत्त्वपूर्ण है।

विभीषण ने सूचना दी कि मेघनाद यज्ञ कर रहा है और यदि उसका यज्ञ पूर्ण हो गया तो राम की जीत नहीं हो सकती । इसलिए यही उचित है कि यज्ञ करते हुए मेघनाद पर आक्रमण करके उसके यज्ञ को खण्डित कर दिया जाये। विभीषण के तर्क को उचित समझ कर लक्ष्मण ने युद्ध में जाने के लिए आज्ञा माँगी। राम की आज्ञा पाकर लक्ष्मण ने प्रतिज्ञा की – “मैं आज मेघनाद

का वध करके ही लौहूँगा । यदि मैं ऐसा करने में असफल रहा तो भविष्य में कभी धनुष धारण न करूँगा।” प्रतिज्ञा करके लक्ष्मण पूरे दल-बल के साथ उस स्थान पर पहुँचा जहाँ मेघनाद यज्ञ कर रहा था। लक्ष्मण ने विषबाणों की वर्षा की। पुरोहित को बाण

लगा । रक्त की धारा बह चली । रक्त यज्ञ की अग्नि में हवन होने लगा । मेघनाद ने लक्ष्मण को देखा। उसके हृदय में तिरस्कार की भावना थी, तथापि वह आहूति देता रहा। वानरों की बाणवर्षा से पुरोहित, यजमान आदि मारे गये। कुछ ही समय में सब राक्षसों का संहार हो गया। केवल मेघनाद शेष रह गया। तब मेघनाद ने लक्ष्मण को धिक्कारा- “धिक्कार है, तुम्हारी वीरता को !

युद्ध में मुझसे पराजित होकर अब छल-कपट से वीर के प्राण लेना चाहते हो ! यह अनीति और अधर्म करके तुमने रघुकुल की कलंकित किया है।”

इस धिक्कार को सुनकर लक्ष्मण का मस्तक झुक गया, परन्तु वे पुनः मेघनाद पर बाण बरसाने लगे। मेघनाद बोला, “तुम्हारा यह कार्य वीरोचित नहीं है लक्ष्मण ! तुम्हारी इस विजय में भी पराजय है। तुम्हारा यह घृणित कार्य सर्वथा निन्दनीय है।” विभीषण का संकेत पाकर लक्ष्मण निहत्थे मेघनाद पर वाण बरसाते गये। मेघनाद ने युवा हाथ में लिए हुए यज्ञशाला में ही प्राण त्याग दिये। लक्ष्मण की इस विजय की अपेक्षा मेघनाद की पराजय अधिक प्रभावपूर्ण सिद्ध होती है क्योंकि एक निहत्ये वीर को छल से मारना धर्मयुद्ध के सर्वथा विरुद्ध था।

प्रश्न 3. ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘राम विलाप और सौमित्र उपचार’ सर्ग (द्वादश सर्ग) की कथा संक्षेप में लिखिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्ड के आधार पर किसी एक सर्ग का कथानक लिखिए जिसने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया हो।

उत्तर- वानर सेना मूर्छित दशा में लक्ष्मण को उठाकर लाती है। लक्ष्मण की इस दशा को देखकर श्रीराम विलाप करने लगे। उन्होंने कहा—“हे लक्ष्मण! तुम्हारी इस दशा से मैं अत्यन्त चिन्तित हूँ। हे धनुर्धर ! तुम धनुष हाथ में लेकर उठो। मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता। एक बार अपनी आँखों को खोलकर तो देखो।” राम की इस कारुणिक दशा को देख कर जाम्बवान बहुत दुः हुए। विभीषण ने बताया- “यदि लंका प्रसिद्ध वैद्य सुषेण लक्ष्मण का उपचार करें तो लक्ष्मण के जीवन की रक्षा हो सकती है।” जाम्बवान ने हनुमान को वैद्य के पास जाने का आदेश दिया। हनुमान तुरन्त सुषेण वैद्य के यहाँ पहुँचे। वैद्य जी उस समय मो रहे थे। हनुमान सोये हुए वैद्य जी को बिस्तर समेत वहाँ उठा लाये। सुषेण वैद्य ने बताया कि यदि लक्ष्मण को सूर्योदय से पूर्व संजीवनी बूटी मिल जाये तो उनका जीवन बच सकता है, अन्य कोई उपाय नहीं। हनुमान संजीवनी बूटी लाने के लिए द्रोणाचल पर जाते हैं। औषधि की सही पहचान न होने के कारण वे उस पुरे पर्वत खण्ड को ही उठा लाते हैं। मार्ग में भरत जी हनुमान को राक्षस समझ कर बाण से भूमि पर गिरा देते हैं लेकिन बाद में उन्हें राम का सेवक जान कर अपने बाण पर बैठा कर सूर्योदय से पूर्व राम के शिविर में पहुँचा देते हैं। निराश एवं चिन्तित वानर सेना में आशा का संचार हो जाता है । वैद्य लक्ष्मण को औषधि देते हैं। लक्ष्मण निद्रा त्याग कर उठ बैठते हैं और सब लोग प्रसन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 4. ‘तुमुल’ के आधार पर लक्ष्मण का चरित्र-चित्रण कीजिए ।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर लक्ष्मण की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

(अथवा) ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए ।

उत्तर- ‘तुमुल’ काव्य के कथानक का केन्द्र बिन्दु लक्ष्मण है। लक्ष्मण के चरित्र को लेकर ही सम्पूर्ण कथानक का ताना-बाना बुना गया है। लक्ष्मण के उदात्त चरित्र का उद्घाटन करना ही इस काव्य में कवि का उद्देश्य रहा है। लक्ष्मण के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

सौन्दर्य- लक्ष्मण भगवान राम के अनुज और महाराज दशरथ के सौन्दर्यशाली गुण-सम्पन्न राजकुमार हैं। उनकी वाणी में अमृत तथा हृदय में दया है। तेज में वह सूर्य के समान हैं।

परोपकारी – लक्ष्मण हृदय से दयालु और परोपकारी हैं। उनके हृदय में जनहित की असीम इच्छा है। वह दूसरों के दुःख’ को देखकर बेचैन जाते हैं और दूसरों के सुख को देखकर हर्षित होते हैं। वास्तव में उनका सारा जीवन त्यागमय ऋषियों के समान है।

शीलवान — बचपन से ही लक्ष्मण स्वभाव से बड़े कोमल हैं। वह अत्यन्त शीलवान हैं। दया, उदारता, मृदुभाषिता आदि सभी गुण उनके चरित्र में विद्यमान हैं।

नीतिज्ञ – लक्ष्मण ने बचपन में ही वेदशास्त्रों का अध्ययन किया था। मेघनाद के साथ युद्ध में उनका कुशल व्यवहार उनकी नीतिज्ञता का प्रमाण है। शत्रु मेघनाद भी उनकी नीतिज्ञता को स्वीकार करता है।

लक्ष्मण इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि शत्रु के साथ किस समय कैसा व्यवहार करना चाहिए। आरम्भ में मेघनाद की प्रशंसा कर वह मेघनाद को हतोत्साहित करना चाहते हैं परन्तु जब मेघनाद युद्ध की बात कहता है तो लक्ष्मण समय के अनुसार शत्रु को शत्रु समझकर साम नीति के बाद दण्ड नीति को स्वीकार करते हैं, इससे उनकी बुद्धिमत्ता का परिचय मिलता है।

वीर – लक्ष्मण महान धनुर्धर और वीर हैं। वह रण कौशल से परिपूर्ण युद्धकला में पारंगत हैं। मेघनाद द्वारा युद्ध के लिए ललकारे जाने पर उनका मुखमण्डल दीप्त हो उठता है। उनके विकराल रूप को देखकर सम्पूर्ण पृथ्वी और आकाश काँपने लगते हैं। लक्ष्मण के पराक्रम को देखकर शत्रु पक्ष के सैनिकों के मुख पीले पड़ जाते हैं। युद्ध में मेघनाद पर बाणवर्षा करने पर युद्ध में भगदड़ मच जाती है।

भ्रातृवत्सल – लक्ष्मण का भ्रातृप्रेम भारतीय जनों के लिए सदैव से ही एक आदर्श रहा है। वे समस्त क्रियाओं को राम की कृपा का फल ही स्वीकार करते हैं। लक्ष्मण राम को बड़ा भाई ही नहीं, जगत के पिता और रक्षक भी मानते हैं। राम उन्हें प्राणों से भी प्रिय हैं।

इस प्रकार लक्ष्मण विद्वान, दयालु, परोपकारी,शीलवान, नीतिज्ञ तथा वीर पुरुष हैं। वे परम ज्ञानी व्यक्ति हैं।

प्रश्न 5. ‘तुमुल’ काव्य के आधार पर मेघनाद का चरित्र चित्रण कीजिए ।

उत्तर – मेघनाद राक्षसराज रावण का पुत्र है। वह भी नामक लक्ष्मण की भाँति ही नीतिज्ञ, योद्धा और शीलवान है। यदि लक्ष्मण संजीवनी की सहायता से जीवित न हुए होते तो राम पक्ष की विजय संदिग्ध ही थी । प्रतिनायक मेघनाद के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं

वीर — मेघनाद अप्रतिम वीर हैं। वीरता और साहस का उसमें सुन्दर सम्मिश्रण है। पिता की आज्ञा पाते ही वह तत्का उत्साह से पूरित होकर युद्ध की तैयारियाँ करने लगता है। भय तो मेघनाद को छूता तक नहीं, काल भी मेघनाद का सामना करने में समर्थ नहीं, चन्द्रमा और सूर्य भी अपना धैर्य खो देते हैं। रावण भी मेघनाद की वीरता को स्वीकारता है।

तेजस्वी पुत्र – मेघनाद अत्यन्त तेजस्वी प्रभावशाली पुरुष है। जब वह रावण की सभा में उपस्थित होता है तो संभाभवन उसके मुखमण्डल के आलोक से प्रकाशित हो उठता है । सम्पूर्ण सभासद उसके मुखमण्डल को देखते के देखते ही रह जाते हैं। युद्ध के मैदान में उसकी कान्ति को लक्ष्मण भी सूर्य की कान्ति के समान कहते हैं।

शीलवान – मेघनाद लक्ष्मण की भांति ही शीलवान तथा सदगुणों का आगार है। वह अपने पिता का आज्ञाकारी पुत्र है। उसकी बुद्धि तीव्र और वाणी मधुरता से पूर्ण है। जब वह अपने गुणों के सामने उपस्थित होता है तो पहले पिता के चरणों का स्पर्श करता है।

दृढ़-प्रतिज्ञ—मेघनाद अपने वचन का पक्का है। जब उसका पिता रावण उसे मकराक्ष वध का प्रतिकार करने के लिए प्रेरित करता है तो मेघनाद निःसंकोच उस चुनौती को स्वीकार कर लेता है और प्रतिज्ञा करता है-“यदि मैं आज आपके हर लूँगा तो फिर कभी धनुष धारण नहीं करूँगा।” यह उसकी गर्वोक्ति मात्र नहीं है, लक्ष्मण को मूर्छित कर वह अपनी इस प्रतिज्ञा को पूर्ण कर दिखाता है।

विवेकी – मेघनाद वीर और पराक्रमी होने के साथ-साथ अत्यन्त विवेकशील भी है। वह हर बात को तर्क के आधार पर सोचता है। लक्ष्मण के मुख से आत्मप्रशंसा सुनकर वह एकदम मुग्ध नहीं होता बल्कि विवेक से काम लेता है। जब लक्ष्मण मेघनाद के यश को खण्डित करते हैं तो मेघनाद समझ जाता है कि निश्चित ही यह सब विभीषण के परामर्श से हुआ होगा ।

याज्ञिक–गेपनाद यज्ञ-क्रिया में अटूट विश्वास रखता है। उसने यज्ञ करके अनेक दिव्य अस्त्र तथा शक्तियाँ प्राप्त कर ली थीं। मकराक्ष का प्रतिकार करने के लिए जब वह राम की सेना पर आक्रमण करता है तो युद्ध में जाने से पहले यज्ञ करता है। लक्ष्मण मूर्छा के पश्चात युद्ध में पूरी तरह विजय पाने की कामना से भी वह यज्ञ करता है। वास्तव में मेघनाद को मन्त्रों की अपूर्व शक्ति प्राप्त थी।

मेघनाद के चरित्र का बस एक दुर्बल पक्ष यही है कि वह रावण का पुत्र है। इसके अतिरिक्त उसका चरित्र सभी दृष्टियों से उज्ज्वल है।

 

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