Class 10th Sanskrit Chapter 1 Varanasi
संस्कृत हिंदी पाठ्य-पुस्तक Class 10th Anivarya Sanskrit के प्रथम पाठ Chapter 1 वाराणसी Varanasi के Chapter 1 के आधार पर पाठ 1 का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद सरल भाषा में दिए जा रहे है , यूपी बोर्ड की कक्षा 10 के पाठयक्रम के आधार पर सम्पूर्ण पाठ का अनुवाद दिया जा रहा है , विगत वर्षों में आये हुए प्रश्नों का बेहतरीन संकलन है , सभी विद्यार्थी Sanskrit Chapter Varanasi का लाभ उठायें|
आवश्यक बात – इस पाठ का अनुवाद हर वाक्य अलग कर के किया गया है |यदि कोई समस्या हो तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर के वीडियो के माध्यम से समझें|
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Scert |
Class / कक्षा | Class 10th / कक्षा -10 |
Subject / विषय | Hindi /हिंदी |
Chapter Number / पाठ संख्या | Chapter 1 पाठ -1 |
Name of Chapter / पाठ का नाम | Varanasi /वाराणसी |
Board Name / बोर्ड का नाम | यूपी बोर्ड 10th हिंदी/up board 10th Hindi |
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Non NCERT / एन सी आर टी |
Class / कक्षा | Class 10th / कक्षा -10 |
Up board non NCERT textbook for Class 10 Hindi explanations
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘ संस्कृत परिचायिका ‘ के ‘ वाराणसी ‘ नामक पाठ से लिया गया है । इसमें वाराणसी नगर की शोभा का वर्णन किया गया है ।
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वाराणसी सुविख्याता प्राचीना नगरी ।
वाराणसी अत्यधिक विख्यात प्राचीन नगरी है ।
इयं विमलसलिलतरङ्गायाः गङ्गायाः कूले स्थिता ।
यह स्वच्छ जल की तरंगोंवाली गंगा के किनारे स्थित है ।
अस्याः घट्टानां वलयाकृतिः पंक्तिः धवलायां चन्द्रिकायां बहु राजते ।
इसके घाटों की घुमावदार आकृतिवाली पंक्ति श्वेत चाँदनी में बहुत सुन्दर लगती है ।
अगणिताः पर्यटकाः सुदूरेभ्यः देशेभ्यः नित्यम् अत्र आयान्ति , अस्याः घट्टानाञ्च शोभां विलोक्य इमां बहु प्रशंसन्ति ।
दूर – दूर के देशों से असंख्य पर्यटक यहाँ नित्य प्रति आते हैं और इसके घाटों की शोभा को देखकर इसकी बहुत प्रशंसा करते हैं ।
वाराणस्यां प्राचीनकालादेव गेहे गेहे विद्यायाः दिव्यं ज्योतिः द्योतते ।
वाराणसी में प्राचीनकाल से ही घर – घर में विद्या की अलौकिक ज्योति प्रकाशित है ।
अधुनाऽपि अत्र संस्कृतवाग्धारा सततं प्रवहति , जनानां ज्ञानञ्च वर्द्धयति ।
अब भी यहाँ संस्कृत – वाणी की धारा निरन्तर बह रही है और लोगों के ज्ञान को बढ़ा रही है ।
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अत्र अनेके आचार्याः मूर्धन्याः विद्वांसः वैदिकवाङ्मयस्य अध्ययने अध्यापने च इदानीं निरताः ।
इस समय यहाँ अनेक आचार्य , उच्च कोटि के विद्वान् वैदिक – साहित्य के अध्ययन – अध्यापन में लगे हुए हैं ।
न केवलं भारतीयाः अपितु वैदेशिकाः गीर्वाणवाण्याः अध्ययनाय अत्र आगच्छन्ति , निःशुल्कं च विद्यां गृह्णन्ति ।
न केवल भारतीय अपितु विदेशी भी देववाणी – संस्कृत के अध्ययन के लिए यहाँ आते हैं और निःशुल्क विद्या ग्रहण करते हैं ।
अत्र हिन्दूविश्वविद्यालयः , संस्कृतविश्वविद्यालयः , काशीविद्यापीठम् इत्येते त्रयः विश्वविद्यालयाः सन्ति , येषु नवीनानां प्राचीनानाञ्च ज्ञानविज्ञानविषयाणाम् अध्ययनं प्रचलितः ।
यहाँ हिन्दू विश्वविद्यालय , संस्कृत विश्वविद्यालय और काशी विद्यापीठ – ये तीन विश्वविद्यालय हैं , जिनमें नवीन और प्राचीन ज्ञान – विज्ञान के विषयों का अध्ययन चलता रहता है ।
एषा नगरी भारतीयसंस्कृतेः संस्कृतभाषायाश्च केन्द्रस्थलम् अस्ति ।
यह नगरी भारतीय संस्कृति और संस्कृत – भाषा का केन्द्र – स्थल है ।
इत एव संस्कृतवाङ्मयस्य संस्कृतेश्च आलोकः सर्वत्र प्रसृतः ।
यहीं से संस्कृत – साहित्य और संस्कृति का प्रकाश सर्वत्र फैला है ।
मुगलयुवराजः दाराशिकोहः अत्रागत्य भारतीय – दर्शन – शास्त्राणाम् अध्ययनम् अकरोत् ।
मुगल युवराज दारा शिकोह ने यहाँ आकर भारतीय दर्शनशास्त्रों का अध्ययन किया था ।
स तेषां ज्ञानेन तथा प्रभावितः अभवत् , यत् तेन उपनिषदाम् अनुवादः पारसीभाषायां कारितः ।
वह उनके ज्ञान से ऐसा प्रभावित हुआ कि उसने उपनिषदों का अनुवाद फारसी भाषा में कराया ।
इयं नगरी विविधधर्माणां संगमस्थली ।
यह नगरी अनेक धर्मों की संगमस्थली है ।
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महात्मा बुद्धः , तीर्थङ्करः पार्श्वनाथः , शङ्कराचार्यः , कबीरः , गोस्वामी तुलसीदासः , अन्ये च बहवः महात्मानः अत्रागत्य स्वीयान् विचारान् प्रासारयन् ।
महात्मा बुद्ध , तीर्थंकर पार्श्वनाथ , शंकराचार्य , कबीर , गोस्वामी तुलसीदास और दूसरे अनेक महात्माओं ने यहाँ आकर अपने विचारों का प्रसार किया ।
न केवलं दर्शने , साहित्य , धर्मे , अपितु कलाक्षेत्रेऽपि इयं नगरी विविधानां कलानां , शिल्पानाञ्च कृते लोके विश्रुता ।
न केवल दर्शन , साहित्य और धर्म में ही अपितु कला के क्षेत्र में भी यह नगरी तरह – तरह की कलाओं और शिल्पों के लिए विश्व में प्रसिद्ध है ।
अत्रत्याः कौशेयशाटिकाः देशे देशे सर्वत्र स्पृह्यन्ते ।
यहाँ की रेशमी साड़ियाँ हर देश में सर्वत्र पसन्द की जाती हैं ।
अत्रत्याः प्रस्तरमूर्तयः प्रथिताः ।
यहाँ की पत्थर की मूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं ।
इयं निजां प्राचीनपरम्पराम् इदानीमपि परिपालयति — तथैव गीयते कविभिः-
यह अपनी प्राचीन परम्परा का इस समय भी पालन कर रही है । अतएव कवियों के द्वारा गाया गया है –
मङ्गलं मरणं यत्र विभूतिर्यत्र भूषणम् ।
जहाँ मरना कल्याणकारी है , जहाँ भस्म ही आभूषण है और जहाँ लँगोट ( ही ) रेशमी वस्त्र है ,
कौपीनं यत्र कौशेयं काशी केनोपमायते ॥
वह काशी किसके द्वारा मापी जा सकती है ? (इसकी तुलना किससे की जा सकती है ?