Up Board Chapter 5 अथातो घुमक्कड़ – जिज्ञासा ( राहुल सांकृत्यायन )

Athato Ghumakkad Jigyasa |अथातो घुमक्कड़ – जिज्ञासा ( राहुल सांकृत्यायन )

Up Board Chapter 5 अथातो घुमक्कड़ – जिज्ञासा ( राहुल सांकृत्यायन )- Up Board Hindi Class 11 अथातो घुमक्कड़ – जिज्ञासा राहुल संकृत्यायन. UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 7 अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा (राहुल सांकृत्यायन)


Up Board Chapter 5 अथातो घुमक्कड़ - जिज्ञासा ( राहुल सांकृत्यायन )

1. मैं मानता हूँ , पुस्तकें भी कुछ – कुछ घुमक्कड़ी का रस प्रदान करती हैं , लेकिन जिस तरह फोटो देखकर आप हिमालय के देवदार के गहन वनों और श्वेत हिम – मुकुटित शिखरों के सौन्दर्य , उनके रूप , उनकी गंध का अनुभव नहीं कर सकते , उसी तरह यात्रा – कथाओं से आपको उस बूंद से भेंट नहीं हो सकती जो कि एक घुमक्कड़ को प्राप्त होती है । अधिक से अधिक यात्रा – पाठकों के लिए यही कहा जा सकता है कि दूसरे धन्धों की अपेक्षा उन्हें थोड़ा आलोक मिल जाता और साथ ही ऐसी प्रेरणा भी मिल सकती है जो स्थायी नहीं तो कुछ दिनों के लिए तो उन्हें घुमक्कड़ बना ही सकती है

शब्दार्थ – रस – आनन्द । गहन वन – घने जंगल । श्वेत – सफेद । हिम – मुकुटित – चर्फ रूपी मुकुट वाले । अपेक्षा बनिस्बत । आलोक – प्रकाश । स्थायी – टिकाऊ ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए ।
उत्तर- ( क ) उपर्युक्त गद्यांश ‘ अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा ‘ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक राहुल सांकृत्यायन हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक उदाहरण देकर समझाता है कि जैसे हिमालय का चित्र देखकर उसके रूप – स्वरूप का तो पता चल जाता है , किन्तु वहाँ के देवदारु वृक्षों के घने वनों और सफेद बर्फ से ढके हुए शिखरों के सौन्दर्य , वहाँ के सच्चे स्वरूप एवं सुगन्धि का अनुभव नहीं हो सकता है ; ठीक उसी प्रकार से यात्रा – कथाओं को पढ़कर उस सच्चे आनन्द की बूँद का अनुभव नहीं हो सकता जो एक घुमक्कड़ को होता है ।
( ग ) घुमक्कड़ी करने और घुमक्कड़ी से सम्बन्धित कथाएँ पढ़ने में क्या अन्तर है ?
( ग ) यात्रा – कथाएँ पढ़ – सुनकर केवल घुमक्कड़ी का आनन्द प्राप्त किया जा सकता उसका अनुभव नहीं किया जा सकता है । दोनों में यही अन्तर है ।
( घ ) ‘ घुमक्कड़ ‘ शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय क्या है ?
( घ ) ‘ घुमक्कड़ ‘ शब्द में ‘ अक्कड़ ‘ प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है ।
( ङ) यात्रा – साहित्य पढ़ने के क्या लाभ हैं ?
( ङ ) यात्रा – साहित्य पढ़ने वाला घुमक्कड़ बनने के लिए प्रोत्साहित होता है ।

2. लेकिन कूप – मण्डूकता तेरा सत्यानाश हो । इस देश के बुद्धओं ने उपदेश करना शुरु किया कि समुन्दर के खारे पानी और हिन्दू धर्म में बड़ा वैर है , उसे छूने मात्र से वह नमक की पुतली की तरह गल जायगा । इतना बतला देने पर क्या कहने की आवश्यकता है कि समाज के कल्याण के लिए घुमक्कड धर्म कितनी आवश्यक चीज है ? जिस जाति या देश ने इस धर्म को अपनाया , वह चारों फलों का भागी हुआ , और जिसने उसे दुराया , उसको नरक में भी ठिकाना नहीं । आखिर घुमक्कड़ धर्म को भूलने के कारण ही हम सात शताब्दियों तक धक्का खाते रहे , ऐरे – गैरे जो भी आये , हमें चार लात लगाते गये । शब्दार्थ – कूप – मण्डूकता – कुएँ का मेंढक होना , बाहरी दुनिया का ज्ञान न होना । सत्यानाश – पूरा विनाश । बुद्धुओं – मूर्ख पण्डितों । दुराया दूर किया , छिपाया । चार लात लगाना – अपमानित करना ।

( क ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए ।
( क ) उपर्युक्त गद्यांश ‘ अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा ‘ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक राहुल सांकृत्यायन हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक घुमक्कड़ी की आवश्यकता पर बल देते हुए कहता है कि इससे यह बात सिद्ध हो जाती है कि समाज की भलाई के लिए घुमक्कड़ धर्म को ही अपनाना आवश्यक हो गया है । जिस भी देश और समाज ने इस घुमक्कड़ी के धर्म को अपनाया , उसी की चहुँमुखी उन्नति हुई है । इसके विपरीत जिस जाति या देश ने इस घुमक्कड़ी के धर्म को त्याग दिया , वह नरक से भी अधिक बुरी अवस्था को प्राप्त हुआ है । इसी धर्म को भूल जाने के कारण हम भारत के लोग हजारों वर्षों से हानि उठाते आ रहे हैं ।
( ग ) लेखक कूप – मण्डूकता को क्यों कोसता है ?
( ग ) लेखक कूप – मण्डूकता को इसलिए कोसता है क्योंकि कूप – मण्डूकता अर्थात एक ही जगह पड़े रहने की प्रवृत्ति ने ही विकास का मार्ग अवरुद्ध किया है ।
( घ ) घुमक्कड़ी को रोकने के लिए मूों ने क्या किया ?
( घ ) घुमक्कड़ी को रोकने के लिए मूरों ने कहा कि यदि समुद्री यात्रा करेंगे तो खारे जल से हिन्दू धर्म नष्ट हो जायेगा ।
( ङ ) घुमक्कड़ी धर्म को भूल जाने का क्या परिणाम हुआ ?
( ङ ) घुमक्कड़ी धर्म भूल जाने के कारण हम शताब्दियों तक धक्के खाते रहे और विदेशी आकर हमें कुचलते रहे और हम अपमानित होते रहे और लुटते रहे ।

3. शंकर बराबर घूमते रहे – केरल – देश में थे तो कुछ ही महीनों बाद मिथिला में और अगले साल काश्मीर या हिमालय के किसी दूसरे भाग में । शंकर तरुणाई में ही शिवलोक सिधार गये , किन्तु थोड़े से जीवन में उन्होंने सिर्फ तीन भाष्य ही नहीं लिखे , बल्कि अपने आचरण से अनुयायियों को वह घुमक्कड़ी का पाठ पढ़ा गये कि आज भी उनके पालन करने वाले सैकड़ों मिलते हैं । वास्को डिगामा के भारत पहुंचने से बहुत पहले शंकर के शिष्य मास्को और यूरोप तक पहुँचे थे । उनके साहसी शिष्य सिर्फ भारत के चारों धामों से ही संतुष्ट नहीं थे बल्कि उनमें से कितनों ने जाकर वाक् ( रूस ) में धूनी रमाई । एक ने पर्यटन करते हुए बोल्या तट पर निजी नोवोग्राद के महामेले को देखा ।
शब्दार्थ – तरुणाई – युवावस्था । भाष्य -टीका
प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए ।
( क ) उपर्युक्त गद्यांश ‘ अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा ‘ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक राहुल सांकृत्यायन हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – राहुल सांकृत्यायन कहते हैं कि शंकराचार्य जी युवावस्था में ही शिवलोक चले गये ( मर गये ) लेकिन वे जितने समय इस पृथ्वी पर जीवित रहे उन्होंने अपने छोटे – से जीवनकाल में मात्र तीन ( ब्रह्म ) भाष्य ही नहीं लिखे वरन् अपने उच्च एवं श्रेष्ठ आचरण से अपने शिष्यों को प्रभावित किया । उन्हें भ्रमणशील बनाया । आज उनके अनेक शिष्य उनके बताये हुए नियमों का पालन कर रहे हैं ।
( ग ) ‘ शंकर ‘ से लेखक का आशय किससे है ?
( ग ) ‘ शंकर ‘ से लेखक का आशय शंकराचार्य जी से है ।
( घ ) शंकराचार्य जी ने किन ग्रन्थों की रचना की थी ?
( घ ) शंकराचार्य जी ने तीन भाष्यों की रचना की थी ।
( ङ ) शंकराचार्य जी अच्छे घुमक्कड़ थे , इस बात का क्या प्रमाण है ?
( ङ ) शंकराचार्य जी के अच्छे घुमक्कड़ होने का प्रमाण यह है कि वह निरन्तर केरल , मिथिला , कश्मीर तथा हिमालय आदि में घूमते रहे ।

4. इतना कहने के बाद कोई संदेह नहीं रह गया कि घुमक्कड़ धर्म से बढ़कर दुनियाँ में धर्म नहीं है । धर्म की छोटी बात है , उसे घुमक्कड़ के साथ लगाना “ महिमा घटी समुद्र की रावण वसा पड़ोस ” वाली बात होगी । घुमक्कड होना आदमी के लिए परम सौभाग्य की बात है । यह पंय अपने अनुयायी को मरने के बाद किसी काल्पनिक स्वर्ग का प्रलोभन नहीं देता , इसके लिए तो कह सकते हैं , ” क्या खूब सौदा नकद है , इस हाथ उस हाथ ले । “
शब्दार्थ – महिमा – महानता । घटी – कम हुई । पड़ोस – बगल में , अतिनिकट । प्रलोभन – लोभ । काल्पनिक बनावटी , अवास्तविक , ख्याली । नकद सौदा – तुरन्त पैसे देकर लिया गया माल , खरीददारी ।
( क ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए ।
( क ) उपर्युक्त गद्यांश ‘ अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा ‘ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक राहुल सांकृत्यायन हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ग ) लेखक के किस सन्देह का समाधान हो गया है ?
( ग ) घुमक्कड़ धर्म से बढ़कर अन्य कोई धर्म नहीं है , इस विषय के सन्दर्भ में लेखक के सन्देह का समाधान हो गया है ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक कहता है कि घुमक्कड़ होना मानव के लिए परम सौभाग्य की बात है , रमता जोगी बहता पानी निर्मल माना जाता है , धर्म स्वर्ग – नरक का प्रलोभन देता है , लेकिन घुमक्कड़ धर्मी अपने अनुयायियों को मरने के बाद किसी कल्पना लोक स्वर्ग आदि का लोभ नहीं देते , यह तो नकद सौदा है जिसमें इस हाथ लेना उस हाथ देना , भ्रमणशील बनना और आनन्द प्राप्त करना ।
( घ ) ‘ महिमा घटी समुद्र की रावण बसा पड़ोस ‘ कहावत का अर्थ क्या है ?
( घ ) “ महिमा घटी समुद्र की रावण बसा पड़ोस ‘ का अर्थ है कि रावण के पास रहने के कारण समुद्र की महिमा कम हो गयी ।
( ङ ) यह धर्म या पंथ अपने अनुयायियों को क्या आश्वासन नहीं देता ?
( ङ ) यह धर्म या पंथ अपने अनुयायियों को यह आश्वासन नहीं देता कि मरने के बाद उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी ।

5. घुमक्कड़ी में कष्ट भी होते हैं लेकिन उसे उसी तरह समझिए , जैसे भोजन में मिर्च । मिर्च में यदि कड़वाहट न हो , तो क्या कोई मिर्च प्रेमी उसमें हाथ भी लगायेगा ? वस्तुत : घुमक्कडी में कभी कभी होने वाले कड़वे अनुभव उसके रस को और बढ़ा देते हैं – उसी तरह जैसे काली पृष्ठभूमि में चित्र अधिक खिल उठता है ।

( क ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए ।
( क ) उपर्युक्त गद्यांश ‘ अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा ‘ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक राहुल सांकृत्यायन हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक – घुमक्कड़ी के अनुभवों पर प्रकाश डालते हुए कहता है कि घुमक्कड़ी में आनन्दों के रहते हुए कभी – कभी कटु अनुभव भी झेलने पड़ते हैं । कटु अनुभव भी घुमक्कड़ी को आनन्ददायी एवं आकर्षक बनाने में योग देते हैं । लेखक कहता है कि जैसे काली पृष्ठभूमि पर निर्मित चित्र आकर्षित करता है , मनोरंजक होता है वैसे ही कटु अनुभवों पर आधारित घुमक्कड़ी भी सरस , आकर्षक एवं आनन्ददायिनी होती है ।
( ग ) लेखक ने घुमक्कड़ी में आने वाले कष्टों की तुलना किससे की है ?
( ग ) लेखक ने घुमक्कड़ी में आने वाले कष्टों की तुलना भोजन में पड़ी मिर्च की कड़वाहट एवं तीक्ष्णता से की है ।
( घ ) घुमक्कड़ी में कभी – कभी प्राप्त होने वाले अनुभव क्या करते हैं ?
घ ) घुमक्कड़ी में कभी – कभी प्राप्त होने वाले अनुभव घुमक्कड़ी के रस ( आनन्द ) एवं आकर्षण को अधिक बढ़ा देते हैं ।
( ङ ) ‘ भोजन में मिर्च होना ‘ का क्या तात्पर्य है ?
( ङ ) ‘ भोजन में मिर्च होना ‘ का तात्पर्य यह है कि मिर्च भले ही तीखी होती है लेकिन वह भोजन में विशेष स्वाद को बढ़ा देती है ।

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