UP Board Class 10 Hindi Chapter 3 क्या लिखूं ? (गद्य खंड)

क्या लिखूं? Kya likhoo Gadyansh

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

UP Board चैप्टर्स  for Class 10 Hindi Chapter 3 क्या लिखूँ ? (गद्य खंड)

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निम्नलिखित गद्यांशों के नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

गद्यांश -1

मुझे आज लिखना ही पड़ेगा । अंग्रेजी के प्रसिद्ध निबन्ध लेखक एजी ० गार्डिनर का कथन है,  कि लिखने की एक विशेष मानसिक स्थिति होती है । उस समय मन में कुछ ऐसी उमंग – सी उठती है , हृदय में कुछ ऐसी स्फूर्ति – सी आती है , मस्तिष्क में कुछ ऐसा आवेग – सा उत्पन्न होता है कि लेख लिखना ही पड़ता है । उस समय विषय की चिन्ता नहीं रहती । कोई भी विषय हो , उसमें हम अपने हृदय के आवेग को भर ही देते हैं । हैट टाँगने के लिए कोई भी खूटी काम दे सकती है । उसी तरह अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए कोई भी विषय उपयुक्त है । असली वस्तु है हैट , खुंटी नहीं । इसी तरह मन के भाव ही तो यथार्थ वस्तु हैं , विषय नहीं ।

  1. उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी के गद्य खंड में संकलित     निबंध क्या लिखूं? से उद्धृत है इसके लेखक  पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी हैं|

  1. गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर – रेखांकित अंश की व्याख्या अंग्रेजी के प्रसिद्ध निबन्धकार ए.जी. गार्डिनर हुए हैं। जिन्होंने कहा है कि मन की विशेष स्थिति में ही निबन्ध लिखा जाता है। उसके लिए मन के भाव ही वास्तविक होते हैं, विषय नहीं। मनोभावों को व्यक्त करने के लिए कोई भी विषय उपयुक्त हो सकता है। उनका कहना है कि उस समय मन में एक विशेष प्रकार का उत्साह और फुर्ती आती है | दिमाग में एक विशेष प्रकार की आवेगपूर्ण स्थिति बनती है और उस आवेग को उमंग के कारण विषय की चिन्ता किये बिना निबन्ध लिखने को बाध्य होना ही पड़ता है।

  • उपर्युक्त गद्यांश में मनोभावों को क्या बताया गया है ?

उत्तर -मनोभावों को यथार्थ वस्तु बताया गया है |

  1. लिखने की विशेष मानसिक स्थिति कैसी होती है ?

उत्तर- लिखने की विशेष मानसिक स्थिति में मन में कुछ ऐसी उमंग – सी उठती है , हृदय में कुछ ऐसी स्फूर्ति – सी आती है , मस्तिष्क में कुछ ऐसा आवेग – सा उत्पन्न होता है कि लेख लिखना ही पड़ता है ।

गद्यांश -2

ऐसे निबन्धों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे मन की स्वच्छन्द रचनाएं हैं । उनमें न कविता की उदात्त कल्पना रहती है , न आख्यायिका – लेखक की सूक्ष्म दृष्टि और न विज्ञों की गम्भीर तर्कपूर्ण विवेचना । उनमें लेखक की सच्ची अनुभूति रहती है । उनमें उसके सच्चे भावों की सच्ची अभिव्यक्ति होती है , उनमें उसका उल्लास रहता है । ये निबन्ध तो उस मानसिक स्थिति में लिखे जाते हैं , जिसमें न ज्ञान की गरिमा रहती है और न कल्पना की महिमा , जिसमें हम संसार को अपनी ही दृष्टि से देखते हैं और अपने ही भाव से ग्रहण करते हैं । तब इसी पद्धति का अनुसरण कर मैं भी क्यों न निबन्ध लिखू । पर मुझे तो दो निबन्ध लिखने होंगे ।

  1. उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी के गद्य खंड में संकलित निबंध क्या लिखूं? से उद्धृत है इसके लेखक  पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी हैं |

  1. गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर – ऐसे निबन्ध लेखक के हृदय की बन्धनमुक्त रचनाएँ होते हैं। इसमें कवि के समान उच्च कल्पनाएँ और किसी कहानी लेखक के समान सूक्ष्म दृष्टि की आवश्यकता नहीं होती|  न ही विद्वानों के समान गम्भीर तर्कपूर्ण विवेचना की आवश्यकता होती है। इसमें लेखक अपने मन की सच्ची भावनाओं को स्वतन्त्रता और प्रसन्नता के साथ व्यक्त करता है। इन निबन्धों को लिखते समय लेखक पाण्डित्य-प्रदर्शन की अवस्था से भी दूर रहता है। वह अपने भावों को जिस रूप में चाहता है, उसी रूप में अभिव्यक्त करता है।

  • उपर्युक्त गद्यांश में किस प्रकार के निबन्ध में सच्चे भावों की सच्ची अभिव्यक्ति होती है ?

उत्तर – जिनमें न कविता की उदात्त कल्पना रहती है , न आख्यायिका न लेखक की सूक्ष्म दृष्टि और न विज्ञों की गम्भीर तर्कपूर्ण विवेचना । उनमें लेखक की सच्ची अनुभूति अभिव्यक्ति रहती है ।

  1. निबन्ध की किन विशेषताओं का उल्लेख हुआ है ?

उत्तर – निबंध की स्वच्छन्दतावादी, बन्धनमुक्त शैली आदि विशेषताओं का उल्लेख हुआ है|

गद्यांश -3

दूर के ढोल सहावने होने हैं , क्योंकि उनकी कर्कशता दूर तक नहीं पहुँचती । जब डोल के पास बैठे हुए लोगों के कान के पर्दे फटते रहते हैं , तब दूर किसी नदी के तट पर , संध्या समय किसी दूसरे के कान में वही शब्द मधुरता का संचार कर देते हैं । ढोल के उन्हीं शब्दों को सुनकर वह अपने हृदय में किसी के विवाहोत्सव का चित्र अंकित कर लेता है ।

कोलाहल से पूर्ण घर के एक कोने में बैठी हुई किसी लज्जाशीला नव – वधू की कल्पना वह अपने मन में कर लेता है | उस नव – वधू के प्रेम , उल्लास , संकोच , आशंका और विषाद से युक्त हृदय के कम्पन ढोल की कर्कश ध्वनि को मधुर बना देते हैं ,क्योंकि उसके साथ आनन्द का कलग्ब , उत्सव व प्रमोद और प्रेम का संगीत ये तीनों मिले रहते हैं , तभी उसकी कर्कशता समीपस्थ लोगों को भी कटु नहीं प्रतीत होती| दूरस्थ लोगों के लिए तो वह अत्यन्त मधुर बन जाती है ।

  1. उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी के गद्य खंड में संकलित निबंध क्या लिखूं? से उद्धृत है इसके लेखक  पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी हैं|

  1. गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

बख्शी जी कहते है कि दूर के ढोल इसलिए अच्छे लगते हैं क्योंकि उनकी कर्णकटु ध्वनि बहुत दूर तक नहीं पहुँचती है। जब वे बज रहे होते हैं तो समीप बैठे हुए लोगों के कान के पर्दे फाड़ रहे होते हैं जब कि दूर किसी भी नदी के किनारे सन्ध्याकालीन समय के शान्त वातावरण में बैठे हुए लोगों को अपने मधुर स्वर से प्रसन्न कर रहे होते हैं।

  • ढोल की कर्कशता समीपस्थ लोगों को कब कटु प्रतीत नहीं होती है ?

उत्तर – जब उसके साथ आनन्द का कलरव, उत्सव व प्रमोद और प्रेम का संगीत ये तीनों मिले रहते हैं। तभी उसकी कर्कशता समीपस्थ लोगों को भी कटु नहीं प्रतीत होती है|

गद्यांश -4 

जो तरुण संसार के जीवन – संग्राम से दूर हैं , उन्हें संसार का चित्र बड़ा ही मनमोहक प्रतीत होता है , जो वृद्ध हो गये हैं , जो अपनी बाल्यावस्था और तरुणावस्था से दूर हट आए हैं , उन्हें अपने अतीत काल की स्मृति बड़ी सुखद लगती है । वे अतीत का ही स्वप्न देखते हैं । तरुणों के लिए जैसे भविष्य उज्ज्वल होता है , वैसे ही वृद्धों के लिए अतीत । वर्तमान से दोनों को असन्तोष होता है । तरुण भविष्य को वर्तमान में लाना चाहते हैं और वृद्ध अतीत को खींचकर वर्तमान में देखना चाहते हैं । तरुण क्रान्ति के समर्थक होते हैं और वृद्ध अतीत – गौरव के संरक्षक । इन्हीं दोनों के कारण वर्तमान सदैव क्षुब्ध रहता है और इसी से वर्तमान काल सदैव सुधारों का काल बना रहता है ।

  1. उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी के गद्य खंड में संकलित निबंध क्या लिखूं? से उद्धृत है इसके लेखक  पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी हैं|

  1. गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर – जिन नौजवानों ने संसार के कष्टों, समस्याओं और कठिनाइयों का सामना नहीं किया, उन्हें यह संसार बड़ा आकर्षक और सुन्दर प्रतीत होता है, क्योंकि वे अपने उज्ज्वल भविष्य के स्वप्न देखते हैं, जीवन-संघर्षों से बहुत दूर रहते हैं और दूर के ढोल तो सभी को सुहावने लगते हैं। जो अपनी बाल्यावस्था और जवानी को पार करके अब वृद्ध हो गये हैं, वे बीते समय के गीत गाकर प्रसन्न होते हैं। नवयुवकों से भविष्य दूर होता है और वृद्धों से उनका बचपन बहुत दूर हो गया होता है। इसीलिए नवयुवकों को भविष्य तथा वृद्धों को अतीत प्रिय लगता है।

  • तरुण और वृद्ध दोनों क्या चाहते हैं ?

                उत्तर – तरुण और वृद्ध दोनों ही वर्तमान से असन्तुष्ट होते हैं। तरुण भविष्य को वर्तमान में लाना चाहते हैं और वृद्ध अतीत को, तरुण क्रान्ति का समर्थन करते हैं और वृद्ध अतीत के गौरव का संरक्षण।

  1. तरुण जीवन के संग्राम के अनुभव किस प्रकार से देखना चाहते हैं ?

उत्तर – तरुण जीवन के संघर्षों से अत्यधिक दूर होते हैं, उनको यह संसार मनमोहक एवं आकर्षक लगता है, क्योंकि उन्होंने जीवन संग्राम का सामना नहीं किया होता है, उनको भविष्य प्रिय लगता है, इसलिए वे भविष्य को वर्तमान में लाना चाहते हैं|

  • वर्तमान सदैव क्षुब्ध क्यों रहता है ?

उत्तर – तरुण भविष्य को वर्तमान में लाना चाहते हैं और वृद्ध अतीत को खींचकर वर्तमान में देखना चाहते हैं ,

तरुण क्रान्ति के समर्थक होते हैं और वृद्ध

अतीत गौरव के संरक्षक इन्हीं दोनों के कारण वर्तमान सदैव क्षुब्ध रहता है

गद्यांश -5

मनुष्य जाति के इतिहास में कोई ऐसा काल ही नहीं हुआ , जब सुधारों की आवश्यकता न हुई हो । तभी तो आज तक कितने ही सुधारक हो गए हैं पर सुधारों का अन्त कब हुआ ? भारत के इतिहास में बुद्धदेव , महावीर स्वामी , नागार्जुन , शंकराचार्य , कबीर , नानक , राजा राममोहन राय , स्वामी दयानन्द और महात्मा गाँधी में ही सुधारकों की गणना समाप्त नहीं होती । सुधारकों का दल नगर – नगर और गाँव – गाँव में होता है । यह सच है कि जीवन में नये – नये क्षेत्र उत्पन्न होते जाते हैं और नये – नये सुधार हो जाते हैं । न दोषों का अन्त है और न सुधारों का । जो कभी सुधार थे . वही आज दोष हो गये हैं और उन सुधारों का फिर नवसुधार किया जाता है । तभी तो यह जीवन प्रगतिशील माना गया है ।

  1. उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी के गद्य खंड में संकलित निबंध क्या लिखूं? से उद्धृत है इसके लेखक  पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी हैं|

 

  1. गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

समाज विस्तृत है। इसमें सदैव सुधार होते रहते हैं। बुद्ध से गाँधी तक सुधारकों के एक बड़े समूह का जन्म इस देश में हुआ है। जीवन में दोषों की श्रृंखला बहुत लम्बी होती है। इसीलिए सुधारों का क्रम सदैव चलता रहता है। सुधारकों के दल प्रत्येक नगर और ग्राम में होते हैं। जीवन में अनेकानेक क्षेत्र होते हैं और नित नवीन उत्पन्न भी होते जाते हैं। प्रत्येक में कुछ दोष होते हैं, जिनमें सुधार अवश्यम्भावी होता है। सुधार किये जाने पर इनमें तात्कालिक सुधार तो हो जाता है परन्तु आगे चलकर कालक्रम में वे ही सुधार फिर दोष माने जाने लगते हैं और  उनमें फिर से सुधार किये जाने की आवश्यकता प्रतीत होने लगती है। इसी सुधारक्रम और परिवर्तनशीलता से जीवन प्रगतिशील माना गया है।

  • जीवन प्रगतिशील क्यों माना गया है ?

उत्तर- जीवन में नये – नये क्षेत्र उत्पन्न होते जाते हैं और नये – नये सुधार हो जाते हैं । न दोषों का अन्त है और न सुधारों का । जो कभी सुधार थे . वही आज दोष हो गये हैं और उन सुधारों का फिर नवसुधार किया जाता है । तभी तो यह जीवन प्रगतिशील माना गया है ।

 

गद्यांश -6

हिन्दी में प्रगतिशील साहित्य का निर्माण हो रहा है । उसके निर्माता सह समझ रहे हैं कि उनके साहित्य में भविष्य का गौरव निहित है । पर कुछ ही समय के बाद उनका यह साहित्य भी अतीत का स्मारक हो जायगा और आज जो तरुण हैं , वही वृद्ध होकर अनीत के गौरव का स्वप्न देखेंगे । उनके स्थान में तरुणों का फिर दूसग दल आ जाएगा , जो भविष्य का स्वप्न देखेगा । दोनों के ही स्वप्न सुखद होते हैं , क्योंकि दूर के ढोल सुहावने होते हैं ।

  1. उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए ।

उत्तर – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी के गद्य खंड में संकलित निबंध क्या लिखूं? से उद्धृत है इसके लेखक  पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी हैं|

  1. गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर- साहित्यिक सुधार की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए विद्वान लेखक श्री बख्शी जी कहते हैं कि आज के युवा लेखक भी एक दिन वृद्ध होकर अतीत का गुणगान करेंगे। उस समय के जो युवा साहित्यकार होंगे वे वर्तमान से असन्तुष्ट होकर,  कोई और नया साहित्य रचने लगेंगे। वे भी भविष्य के लिए चिन्तित होंगे। यह क्रम सनातन है। युवाओं से भविष्य दूर है और वृद्धों से अतीत, इसीलिए दोनों को ये सुखद लगते हैं। यह मानव स्वभाव है कि जो वस्तु उसकी पहुँच से दूर होती है, वह उसे अच्छी लगती है और वह उसे पाने का प्रयत्न करती रहता है। इसीलिए ‘दूर के ढोल सुहावने वाली कहावत चरितार्थ हुई है।

  • प्रगतिशील साहित्य-निर्माता क्या समझकर साहित्य निर्माण कर रहे हैं ?

उत्तर- प्रगतिशील साहित्य-निर्माता यह समझकर साहित्य निर्माण कर रहे हैं कि उनके साहित्य में भविष्य का गौरव निहित है ।

  1. ‘ दूर के ढोल सुहावने होते हैं ‘ का भावार्थ लिखिए ।

उत्तर- जो वस्तु व्यक्ति की पहुँच से दूर होती है, वही उसे अच्छी लगती है और वह उसी को पाने का प्रयत्न भी करती है। इसीलिए कहा जाता है कि ‘दूर के ढोल सुहावने होते हैं।’

 

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