Up board class 11 Hindi sanskrit khand chapter 3 sadacharopadesh संस्कृत दिग्दर्शिका तृतीयः पाठः – UP Board Class 11 Sahityik & Samanya Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 3 सदाचारोपदेशः| कक्षा 11 संस्कृत श्लोक का हिन्दी अनुवाद| Class 11 संस्कृत दिग्दर्शिका |
तृतीय: पाठ: – सदाचारोपदेश: हिंदी अनुवाद & Prayag -chapter 3 Sanskrit Digdarshika Hindi Anuvad with word to word Meaning Class 11 जो Up Board Hindi Sahityik sanskrit digdarshika anuvad तथा with Question Answer सरल भाषा में दिए जा रहे हैं|
Board | बोर्ड | UP Board (UPMSP) |
Class | कक्षा | 11th (XI) |
Subject | विषय | Hindi | हिंदी कक्षा ११वी (संस्कृत दिग्दर्शिका) |
Topic | शीर्षक | सदाचारोपदेश: पाठ का हिन्दी अनुवाद और प्रश्न उत्तर |
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श्लोक -1 , 2, 3
सन्दर्भ – प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘ संस्कृत दिग्दर्शिका ‘ के ‘ सदाचारोपदेशः ‘ नामक पाठ से अवतरित है ।
- संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
साथ – साथ चलो , साथ – साथ बोलो और अपने मनों को मिलकर जानो |
- देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानानाः उपासते।।१ ।।
जिस प्रकार पूर्ववर्ती देवता ज्ञानपूर्वक अपने – अपने भाग को जानते हुए उपासना करते थे ( वैसे ही तुम भी ज्ञानपूर्वक अपने – अपने हिस्से को प्राप्त करो ) ।
- कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः ।
इस संसार में कर्म करते हुए ही सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करे ।
- एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे।।२ ।।
इससे अलग तुम्हारे लिए कोई मार्ग नहीं है और ऐसा करने से व्यक्ति कर्मों में लिप्त नहीं होता ।
- मधुमन्मे निष्क्रमणं मधुमन्मे परायणम् ।
मेरा पास जाना( सांसारिक कार्यों में प्रवृत्ति) मधुमय हो , मेरा ( सांसारिक कार्यों से दूर जाना (निवृत्ति) मधुमय हो , मैं मधुरता से युक्त वाणी बोलूँ और मैं मधुर देखनेवाला होऊँ
- वाचा वदामि मधुमद् भूयासं मधुसदृशः।।३ ।।
मैं मधुरता से युक्त वाणी बोलूँ और मैं मधुर देखनेवाला होऊँ
श्लोक -4, 5 , 6
- आचाराल्लभते ह्यायुराचाराल्लभते श्रियम् ।
पुरुष निश्चित रूप से सदाचार से आयु को प्राप्त करता है , सदाचार से लक्ष्मी ( धन ) पाता है ,
- आचारात् कीर्तिमाप्नोति पुरुषः प्रेत्य चेह च।।४ ।।
सदाचार से इस लोक में और परलोक में कीर्ति ( यश ) प्राप्त करता है ।
- ये नास्तिकाः निष्क्रियाश्च गुरुशास्त्रातिलविनः ।
जो व्यक्ति ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास न करनेवाले , अकर्मण्य तथा गुरु और शास्त्रों की आज्ञा का उल्लंघन करनेवाले होते हैं ,
- अधर्मज्ञा दुराचारास्ते भवन्ति गतायुषः।।५ ।।
धर्म को न जाननेवाले और दुराचारी होते हैं , वे कम आयुवाले होते हैं ।
- ब्राह्म मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थों चानुचिन्तयेत् ।
व्यक्ति को ब्राह्ममुहूर्त में जागना चाहिए और धर्म तथा धन का चिन्तन करना चाहिए
- उत्थायाचम्य तिष्ठेत पूर्वां सन्ध्यां कृताञ्जलिः।।६ ।।
उठकर , आचमन करके और हाथ जोड़कर पूर्व ( प्रभातकालीन ) सन्ध्या के लिए बैठना चाहिए ।
श्लोक -7, 8, 9
- अक्रोधनः सत्यवादी भूतानामविहिंसकः ।
क्रोध न करनेवाला , सत्य बोलनेवाला , जीवों की हिंसा न करनेवाला ,
- अनुसूयुरजिह्मश्च शतं वर्षाणि जीवति।।७ ।।
दूसरों के गुणों में दोष न निकालनेवाला और कुटिलता से रहित व्यक्ति सौ वर्षों तक जीता है ।
- अकीर्ति विनयो हन्ति हन्त्यनर्थं पराक्रमः ।
विनय सदा अपयश को नष्ट करती है , पराक्रम अनर्थ को नष्ट करता है ,
- हन्ति नित्यं क्षमा क्रोधमाचारो हन्त्यलक्षणम् ।।८ ।।
क्षमा क्रोध को नष्ट करती है और सदाचार बुरे लक्षणों का नाश करता है ।
- अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।
अभिवादन करने की आदतवाले और नित्य वृद्धों की सेवा करनेवाले की
- चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।९ ।।
आयु , विद्या , यश और ।। बल- ( ये ) चारों बढ़ते हैं ।
श्लोक -10, 11, 12
- वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमायाति याति च ।
चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए । धन ( तो ) आता है और चला जाता है ।
- अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः ।१० ।।
धन से हीन ( व्यक्ति ) दीन ( निर्धन ) नहीं होता , परन्तु चरित्र से क्षीण व्यक्ति मरे हुए के समान होता है ।
- सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते ।
सत्य से धर्म की रक्षा की जाती है , योग से विद्या की रक्षा की जाती है ,
- मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते।।११ ।।
स्वच्छता से रूप की रक्षा की जाती है और चरित्र से कुल की रक्षा की जाती है ।
- श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम् ।
धर्म का सार सुनो और सुनकर धारण भी करो ।
- आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।।१२ ।।
स्वयं को अनुचित लगनेवाले व्यवहार दूसरों के लिए मत करो ।