Up board class 11 Hindi Sant Kabiradas कबीर दास कक्षा 11

सन्त कबीरदास
साखी

Up board class 11 Hindi Sant Kabiradas कबीर दास कक्षा 11: UP Board exam Class 11 Sahityik & Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter Ist कबीरदास so Hey Guys! gyansindhuclasses.com presenting here Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter Ist कबीरदास are part of UP Board exam Class 11th Sahityik Hindi . UP Board class 11th padyansh Solution for Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter Ist कबीरदास प्रश्न उत्तर .

Board | बोर्डUP Board (UPMSP)
Class | कक्षा11th (XI)
Subject  | विषयHindi | हिंदी कक्षा ११वी  (काव्यांजलि) 
Topic | शीर्षककबीर सखी के पद्यांशो पर आधारित प्रश्नोत्तर
Video LectureClick Here
Full Syllabus Link (हिन्दी का सम्पूर्ण पाठ्यक्रम )Click Here

पद्यांश -1

Up board class 11 Hindi Sant Kabiradas कबीर दास कक्षा 111. दीपक दीया तेल भरि , बाती दई अघट्ट ।
पूरा किया बिसाहुणाँ , बहुरि न आवौं हट्ट ॥
बूड़े थे परि ऊबरे , गुर की लहरि चमंकि ।
भेरा देख्या जरजरा , ऊतरि पड़े फरंकि ॥ ( दोहा 3-4 )

शब्दार्थ – अघट्ट – न घटने वाली , मजबूत । बिसाहुँणा – लेना – देना , क्रय – विक्रय । हट्ट – बाजार । बूड़े – डूबे । परि – परन्तु । ऊबरे – उद्धार हो गया , निकल आये । लहरि – ज्ञान की लहर , ज्ञान का प्रकाश । भेरा – बेड़ा । जरजरा – कमजोर , टूटा फूटा । फरंकि – उछलकर , फड़क कर ।
प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
उत्तर- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ साखी ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – कवीरदास जी कहते हैं कि इस दीपक के प्रकाश में ही मैंने इस संसार रूपी बाजार का लेन – देन पूरा कर लिया है । इसलिए अब पुन : इस बाजार में नहीं आना पड़ेगा । कवि का भाव यह है कि संसार एक बाजार के समान है जिसमें अनेक जीव मोह के कारण कर्म बन्धन में फँसे रहते हैं , परन्तु गुरु की कृपा से जब ज्ञान का प्रकाश मिल जाता है तो अज्ञान का अन्धकार दूर हो जाता है और जीव सांसारिक मोह ममता का त्याग करके मोक्ष प्राप्त करता है तथा आवागमन से मुक्त हो जाता है ।
( ग ) कबीरदास जी ने हृदय को किसके समान बताया है ?
( ग ) कबीरदास जी ने हृदय को ऐसे दीपक के समान बताया है जिसमें सच्चे गुरु ने प्रेमरूपी तेल भर दिया है और उसमें कभी न घटने वाली ज्ञानरूपी वाती डाल दी है ।
( घ ) ज्ञान के प्रकाश में कवि ने क्या देखा ?
( घ ) ज्ञान के प्रकाश में कवि ने देखा कि वह जिस मायाजाल की नाव पर सवार है वह टूटी फूटी है और वह नाव उसे बीच में ही डुबो देगी ।
( ङ ) सतगुरु द्वारा ज्ञान प्राप्त होने पर क्या होता है ? ( ङ ) सतगुरु द्वारा ज्ञान प्राप्त होने पर माया का पर्दा हट जाता है और साधक मोहजाल को छोड़कर मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।

पद्यांश -2

2 . चिंता तो हरि नाँव की , और न चिंता दास ।
जे कुछ चितवै राम बिन , सोइ काल की पास ।
तूं तूं करता तू भया , मुझ मैं रही न हूँ ।
बारी फेरी बलि गयी , जित देखौं तित लूँ ॥ ( दोहा 5-6 )

शब्दार्थ – नाव – नाम । दास – कबीरदास । चितवै – दिखाई पड़ता है । काल – समय , मृत्यु । पास – जाल । भया हो गया । हूँ – अहंकार , घमंड । बारी फेरि न्यौछावर कर दिया । बलिगयी – बलिहार हो गयी , जल गयी , समाप्त हो गयीं । जित – जिधर । तित – उधर ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ साखी ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं ।

( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि हे परमात्मा ! मैं तुम्हें पुकारता हुआ , तुम्हारा ध्यान करता हुआ , तुम में ही लीन हो गया हूँ । अब मुझ में अहंकार नाम की कोई चीज नहीं बची है । अब मैं तुझ पर न्यौछावर हो गया हूँ , तुझ पर बलिहार हो गया हूँ ।
( ग ) कवि को किस बात की चिन्ता है ?
( ग ) कवि को केवल परमात्मा के नाम की चिन्ता है ।
( घ ) राम – नाम के अतिरिक्त संसार की सभी वस्तुएँ कैसी हैं ?
( घ ) राम – नाम के अतिरिक्त संसार की सभी वस्तुएँ मिथ्या और नश्वर हैं ।
( ङ ) अहंकार समाप्त हो जाने पर भक्त को कैसा अनुभव हुआ ?
( ङ ) अहंकार समाप्त हो जाने पर भक्त को कण – कण में परमात्मा के दर्शन होते हैं ।

पद्यांश -3

3. कै बिरहन को मींच दे , के आपा दिखलाइ ।
आठ पहर का दाझणा , मोपै सह्या न जाइ ॥
कबीर रेख स्यदूर की , काजल दिया न जाइ ।
नैनूं रमइया रमि रह्या , दूजा कहाँ समाइ ॥ ( दोहा 11-12 )

शब्दार्थ – कै – या तो । मींच – मृत्यु । आपा – अपने आप को । दाझणा जलना । मोपै – मुझसे । विरहनि विरहिणी आत्मा । स्यदूर – सिन्दूर । काजल – आँखों में डालने का कज्जल , स्याही । नैनूं – आँखों में । रमइया रमण करने वाला , ईश्वर । दूजा – दूसरा , अन्य ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ साखी ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं ।

( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – कबीरदास की आत्मा परमात्मा के विरह में आकुल है । कबीर की आत्मा की आवाज है कि हे प्रियतम ( परमात्मा ) ! इस विरहिणी जीवात्मा को या तो मृत्यु दो या अपने दर्शन कराओ । विरह की अग्नि में यह रात – दिन का जलना अब इससे सहा नहीं जाता ।

जब भक्त भगवान् से मिलने के लिए वास्तव में व्याकुल होता है तो उसके सच्चे प्रेम के वशीभूत भगवान् भक्त से अवश्य मिलते हैं ।

( ग ) प्रस्तुत पद में कबीर ने आत्मा को क्या बताया है ?
( ग ) कबीर ने आत्मा को विरहिणी बताया है जो परमात्मा से मिलने को व्याकुल है ।
( घ ) कबीर के अनुसार काजल आँख में ही क्यों लगाया जाता है ?
( घ ) कबीर के अनुसार काजल आँख में इसलिए लगाया जाता है क्योंकि काजल आँखों में रम जाता है ।
( ङ ) यदि आँखों में परमात्मा रम जाए तो क्या होता है ?
( ङ ) यदि आँखों में प्रियतम परमात्मा रम जाए तो वहाँ अन्य नहीं समा सकता अर्थात ईश्वर से सच्चा प्रेम हो जाने पर किसी अन्य से प्रेम नहीं हो सकता ।

पद्यांश -4

4. पाणी ही तैं हिम भया , हिम हदै गया बिलाइ ।
जो कुछ था सोई भया , अब कुछ कहा न जाइ ॥
पंखि उड़ाणी गगन . , प्यंड रच्या परदेस ।
पाणी पीया चंच बिन , भूलि गया यहू देस ॥

शब्दार्थ – हिम – बर्फ । भया – हुआ । हवै – होकर । बिलाइ – पिघलना । पंसि – पक्षी । प्यंड – शरीर । चंच चोंच ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
– ( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ साखी ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – कबीर कहते हैं कि पक्षी रूपी आत्मा आकाश में उड़ गयी और उसका शरीर संसार रूपी परदेश में रह गया । उस आत्मा ने बिना चोंच के पानी पी लिया और इस देश को भूल गयी ।

( ग ) कबीर ने पानी में क्या – क्या परिवर्तन बताए हैं ?
( ग ) कबीर ने बताया है कि पानी से बर्फ बनता है और वही बर्फ पिघलकर पुन : पानी वन जाता है ।
( घ ) पानी के उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं ?
( घ ) कबीर कहना चाहते हैं कि जैसे पानी बर्फ बनकर पुन : पानी में बदल जाता है वैसे ही परमात्मा से जीवात्मा और जीवात्मा से फिर परमात्मा बन जाता है ।
( ङ ) आत्मा कब मुक्त होती है ?
( ङ ) जब आत्मा बिना चोंच के पानी पी लेती है , तब वह इस संसार से मुक्त हो जाती है ।

पद्यांश -5

5. कबीर हरि रस यौं पिया , बाकी रही न थाकि ।

पाका कलस कुम्हार का , बहुरि न चढ़ई चाकि ॥

हेरत हेरत हे सखी , रह्या कबीर हिराइ ।

बूंद समानी समद मैं , सो कत हेरी जाइ ॥ ( दोहा 18-19 )

शब्दार्थ – हरि रस – भगवान् की भक्ति का आनन्द । थाकि – थकान । कलस – घड़ा । बहुरि – फिर , दोबारा । चाकि कुम्हार का चाक । हेरत – हेरत – देखते – देखते । हिराइ – खोया गया । समद – समुद्र । समानी – समा गयी , मिल गयी । कत – कैसे । हेरी जाइ – देखी जाये ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ साखी ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि अब तो यह जीवात्मा कुम्हार के पके हुए घड़े के सदृश हो गयी है जो दोबारा चाक पर चढ़ने वाला नहीं है । ऐसे ही परमात्मा के आनन्द में मग्न हो जाने के बाद फिर जीवात्मा जन्म – मरण के चक्कर से छूटकर मोक्ष को प्राप्त हो जाती है ।

( ग ) हरिनाम रूपी रसपान करके क्या अनुभव हुआ ?
( ग ) हरिनाम रूपी रसपान करके सारी थकान मिट गयी ।
( घ ) परमात्मा को खोजते – खोजते आत्मा किसमें समा गयी ?
( घ ) , परमात्मा को खोजते – खोजते आत्मा परमात्मा में समा गयी ।
( ङ ) आ कब तक पृथक रहती है ?
( ङ ) जब तक आत्मा स्थूल शरीर में है तब तक वह परमात्मा से पृथक रहती है ।

पद्यांश -6

6. कबीर यह घर प्रेम का , खाला का घर नाहिं ।
सीस उतारै हाथि करि , सो पैठे घर माहिं ॥
जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मैं नाहिं ।
सब अँधियारा मिटि गया , जब दीपक देख्या माहि ॥
( दोहा 20-21 )

शब्दार्थ – खाला – मौसी । पैठे – धुसे । मैं – अहंकार । हरि – परमात्मा । माहि – अन्दर ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ साखी ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि इस भगवान् की भक्ति के घर में तो वही घुस सकता है जो अपने सिर को उतार कर हाथ पर रख ले , त्याग और बलिदान से ही भगवद्भक्ति की प्राप्ति हो सकती है ।

( ग ) ‘ खाला के घर ‘ से कबीर का क्या तात्पर्य है ?
( ग ) ‘ खाला का घर ‘ से कवीर का तात्पर्य है कि भक्ति मार्ग सरल नहीं है । जैसे हम खाला ( मौसी ) के घर सरलता से चले जाते हैं उसी प्रकार भक्ति मार्ग पर नहीं जा सकते हैं ।
( घ ) “ जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मैं नाहिं । ” पंक्ति का क्या तात्पर्य है ?
( घ ) “ जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि है मैं नाहिं ” पंक्ति का तात्पर्य है कि जब तक मेरे अन्दर अहंकार था तब तक मुझे परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो पायी । जैसे ही मेरा अहंकार समाप्त हुआ वैसे ही मुझे परमात्मा की प्राप्ति हो गयी ।
( ङ ) अहंकार का विनाश कब हुआ ?
( ङ ) जब ज्ञानरूपी दीपक का प्रकाश फैला तभी अहंकाररूपी अन्धकार का विनाश हो गया ।

पदावली

1. हम न मरै मरिहैं संसारा ।
हम को मिल्या जियावनहारा ।
हम न मरे मरनैं मन माना , तेड़ मुए जिनि राम न जाना ।
साकत मरें संत जन जीवै . भरि भरि राम – रसाइन पीवै ॥
हरि मरिहैं तो हमहूँ मरिहैं , हरि न मरे न हम काहे कूँ मरिहैं ।
कहै कबीर मन मनहि मिलावा , अमर भये सुख सागर पावा । ( पद 4 )

शब्दार्थ – मरिहैं मरेगा । मनमाना – मन में चिन्ता करूँ । मुए – मरे हैं । साकत – शक्ति की उपासना करने वाले , शाक्त सम्प्रदाय के लोग । रसाइन – अमृत । काहे कूँ – किस कारण से ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
उत्तर- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ पदावली ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं ।

( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं कि वास्तव में आत्मा अजर – अमर है , उसके जन्म – मरण का प्रश्न ही नहीं होता । इसलिए कवि कहता है कि अब मैं न तो मरूँगा , न मन में मरने का भय मानूंगा । वे लोग मरते हैं जिन्हें राम का ज्ञान नहीं होता । अज्ञानियों को ही मृत्यु का भय होता है । शाक्त लोग मरते हैं , सन्त लोग तो जीवित ही रहते हैं । सन्तजन तो राम के प्रेम रूपी अमृत का पान करते हैं ।

( ग ) ‘ हम न मरै मरिहैं संसारा ‘ से क्या तात्पर्य है ?
( ग ) ‘ हम न मरै मरिहैं संसारा ‘ से आशय है कि भक्त संसार के स्वरूप को जान चुका है उसे ज्ञान प्राप्त हो गया और ईश्वर की कृपा उस पर हो गयी है इसलिए वह कहता है कि हम नहीं सारा संसार मरेगा ।
( घ ) आत्मा का स्वरूप क्या है ?

( ङ ) उपर्युक्त पद का मुख्य भाव लिखिए ।

( घ ) आत्मा का स्वरूप अजर – अमर है इसलिए उसके जीवन – मरण का प्रश्न ही नहीं उठता है ।
( ङ ) उपर्युक्त पद का मुख्य भाव है कि आत्मा परमात्मा का अंश है , वह अजर – अमर जीवन – मरण की बाधाओं से मुक्त है जो यह बात जानते हैं , वह मुखी रहते हैं और जो नहीं जानते वह मृत्यु के भय से बार – बार मरते रहते हैं ।

पद्यांश –

2. काहे री नलनीं कुम्हिलानी , तेरे ही नालि सरोवर पानी ।
जल मैं उतपति जल मैं बास . जल मैं नलनी तोर निबास ॥
ना तलि तपति न ऊपरि आगि , तोर हेतु कहु कासनि लागि ॥
कहै कबीर जे उदिक समान , ते नहिं मूए हमारे जान ॥ ( पद 5 )

शब्दार्थ – नलिनी कमलिनी । सरोवर – तालाब । तोर – तुम्हारा । हेतु – के लिए । कासिन – कष्ट , दुःख । उदिक – जल । मुए – मरते । जान – ज्ञान , समझ ।

प्रश्न- ( क ) प्रस्तुत पद्यांश के पाठ एवं कवि का नाम लिखिए ।
( क ) प्रस्तुत पद्यांश ‘ पदावली ‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है जिसके रचयिता कबीरदास जी है ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
( ख ) रेखांकित अंश की व्याख्या – कवि कमलिनी से प्रश्न करता है कि हे कमलिनी ! तू क्यों कुम्हिलाती है , तेरी नाल तो सरोवर के पानी में है । हे कमलिनी , तेरा जन्म जल में हुआ है , तेरा निवास भी जल में है , तेरा वर भी जल में है – न तेरे नीचे तपन है , न तेरे ऊपर अग्नि है , ऐसी दशा में तेरे दु : ख का क्या कारण हो सकता है ?

( ग ) कमलिनी किसका प्रतीक है ?
( ग ) कमलिनी आत्मा का प्रतीक है ।
( घ ) कमलिनी को दुःख क्यों नहीं हो सकता है ?
( घ ) कमलिनी अर्थात आत्मा परमात्मा में समाई रहती है तो कमलिनी को अपने ही घर में रहने में कोई दु : ख नहीं हो सकता है ।
( ङ ) उपर्युक्त पद के सार को संक्षेप में लिखिए ।
( ङ ) आत्मा अजर , अमर और अविनाशी है । उस पर कोई भी दु : ख – सुख का प्रभाव नहीं डाल सकता है । वह जल के समान स्वच्छ और आनन्दमयी है । यदि अज्ञान का अन्धकार उसे घेर ले तो वह कुम्हला सकती है वरना सदैव मुक्त रहती है ।

Comments are closed.

error: Content is protected !!