Class 10th Hidni Chapter तुलसीदास का जीवन परिचय
Up Board Class 11th Tulasidas Ka Sahityika Parichay तुलसीदास का जीवन परिचय: हिंदी पाठ्य-पुस्तक Class 12th sahityik hindi के पाठ Chapter 5th Tulasidas Ka Sahityika Parichay तुलसीदास का जीवन परिचय के Chapter 5 के आधार पर पाठ 5 के गद्यांशो पर आधारित प्रश्नों का हल सरल भाषा में दिया जा रहा है , यूपी बोर्ड की कक्षा 11 के पाठयक्रम के आधार पर सम्पूर्ण पाठ गद्यांश सोल्यूशन दिया जा रहा है , सभी विद्यार्थी Hindi Chapter Tulasidas Ka Sahityika Parichay तुलसीदास का जीवन परिचय का लाभ उठायें|
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Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Scert |
Class / कक्षा | Class 11 th / कक्षा -11 |
Subject / विषय | Hindi /हिंदी |
Chapter Number / पाठ संख्या | Chapter 4 पाठ -4 |
Name of Chapter / पाठ का नाम | Tulasidas Ka Sahityika Parichay तुलसीदास का जीवन परिचय |
Board Name / बोर्ड का नाम | यूपी बोर्ड 11th हिंदी/up board 11th Hindi |
Book Name / पाठ्य पुस्तक का नाम | Non NCERT / एन सी आर टी |
Class / कक्षा Vedio के माध्यम से समझें ⇒ | Class 11th / कक्षा -11 |
Up board non NCERT textbook for Class 11 Hindi
तुलसीदास
कवि – परिचय
रामभक्ति शाखा के कवियों में गोस्वामी तुलसीदास सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं । इनका प्रमुख ग्रन्थ ‘ श्रीरामचरितमानस ‘ भारत में ही नहीं , वरन् सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है । यह भारतीय धर्म और संस्कृति को प्रतिबिम्बित करनेवाला एक ऐसा निर्मल दर्पण है , जो सम्पूर्ण विश्व में एक अनुपम एवं अतुलनीय ग्रन्थ के रूप में स्वीकार किया जाता है । इसलिए तुलसीदासजी न केवल भारत के , वरन् सारी मानवता के , सारे संसार के कवि माने जाते हैं । जीवन – परिचय – लोकनायक.गोस्वामी तुलसीदासजी के जीवन से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री अभी तक नहीं प्राप्त हो सकी है ।
जन्म
डॉ ० नगेन्द्र द्वारा लिखित ‘ हिन्दी साहित्य का इतिहास ‘ में उनके सन्दर्भ में जो प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं , वे इस प्रकार हैं – बेनीमाधव प्रणीत ‘ मूल गोसाईंचरित ‘ तथा महात्मा रघुवरदास रचित ‘ तुलसीचरित ‘ में तुलसीदासजी का जन्म संवत् १५५४ वि ० ( सन् १४ ९ ७ ई ० ) दिया गया है । वेनीमाधवदास की रचना में गोस्वामीजी की जन्म – तिथि श्रावण शुक्ला सप्तमी का भी उल्लेख है ।
इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है-
पंद्रह सौ चौवन विस , कालिंदी के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी , तुलसी धर्या सरीर ।। ‘
शिवसिंह सरोज ‘ में इनका जन्म संवत् १५८३ वि ० ( सन् १५२६ ई ० ) बताया गया है । पं ० रामगुलाम द्विवेदी ने इनका जन्म संवत् १५८ ९ वि ० ( सन् १५३२ ई ० ) स्वीकार किया है । सर जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा भी इसी जन्म • सम्वत् को मान्यता दी गई है । निष्कर्ष रूप में जनश्रुतियों एवं सर्वमान्य तथ्यों के अनुसार इनका जन्म सम्वत् १५८ ९ वि ० ( सन् १५३२ ई ० ) माना जाता है ।
जन्म स्थान
इनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में भी पर्याप्त मतभेद हैं । तुलसी – चरित ‘ में इनका जन्मस्थान राजापुर बताया गया है , जो उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले का एक गाँव है । कुछ विद्वान् तुलसीदास द्वारा रचित पंक्ति ” मैं पुनि निज गुरु सन सुनि , कथा सो सूकरखेत ” के आधार पर इनका जन्मस्थल एटा जिले के ‘ सोरो ‘ नामक स्थान को मानते हैं , जबकि कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि ‘ सूकरखेत ‘ को भ्रमवश ‘ सोरो ‘ मान लिया गया है । वस्तुत : यह स्थान आजमगढ़ में स्थित है । इन तीनों मतों में इनके जन्मस्थान को राजापुर माननेवाला मत ही सर्वाधिक उपयुक्त समझा जाता है ।
जनश्रुतियों के आधार पर यह माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दूबे एवं माता का नाम हुलसी था । कहा जाता है कि इनके माता – पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था । इनका पालन – पोषण प्रसिद्ध सन्त बाबा नरहरिदास ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की । इनका विवाह एक ब्राह्मण – कन्या रत्नावली से हुआ था । कहा जाता है कि ये अपनी रूपवती पत्नी के प्रति अत्यधिक आसक्त थे । इस पर इनकी पत्नी ने एक बार इनकी भर्त्सना की , जिससे ये प्रभु – भक्ति की ओर उन्मुख हो गए । संवत् १६८० ( सन् १६२३ ई ० ) में , काशी में इनका निधन हो गया ।
साहित्यिक व्यक्तित्व –
महाकवि तुलसीदास एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं , महान् लोकनायक और तत्कालीन समाज के दिशा – निर्देशक भी थे । इनके द्वारा रचित महाकाव्य ‘ श्रीरामचरितमानस ‘ ; भाषा , भाव , उद्देश्य , कथावस्तु , चरित्र – चित्रण तथा संवाद की दृष्टि से हिन्दी – साहित्य का एक अद्भुत ग्रन्थ है । इसमें तुलसी के कवि , भक्त एवं लोकनायक रूप का चरम उत्कर्ष दृष्टिगोचर होता है । ‘ श्रीरामचरितमानस ‘ में तुलसी ने व्यक्ति , परिवार , समाज , राज्य , राजा , प्रशासन , मित्रता , दाम्पत्य एवं भ्रातृत्व आदि का जो आदर्श प्रस्तुत किया है , वह सम्पूर्ण विश्व के मानव समाज का पथ – प्रदर्शन करता रहा है । ‘ विनयपत्रिका ‘ ग्रन्थ में ईश्वर के प्रति इनके भक्त – हृदय का समर्पण दृष्टिगोचर होता है । इसमें एक भक्त के रूप में तुलसी ईश्वर के प्रति दैन्यभाव से अपनी व्यथा – कथा कहते हैं ।
गोस्वामी तुलसीदास की काव्य – प्रतिभा का सबसे विशिष्ट पक्ष यह है कि ये समन्वयवादी थे । इन्होंने ‘ श्रीरामचरितमानस ‘ में राम को शिव का और शिव को राम का भक्त प्रदर्शित कर वैष्णव एवं शैव सम्प्रदायों में समन्वय के भाव को अभिव्यक्त किया । निषाद एवं शबरी के प्रति राम के व्यवहार का चित्रण कर समाज की जातिवाद पर आधारित भावना की निस्सारता ( महत्त्वहीनता ) को प्रकट किया और ज्ञान एवं भक्ति में समन्वय स्थापित किया । संक्षेप में तुलसीदास एक विलक्षण प्रतिभा से सम्पन्न तथा लोकहित एवं समन्वय भाव से युक्त महाकवि थे । भाव – चित्रण , चरित्र – चित्रण एवं लोकहितकारी आदर्श के चित्रण की दृष्टि से इनकी काव्यात्मक प्रतिभा का उदाहरण सम्पूर्ण विश्व – साहित्य में भी मिलना दुर्लभ है ।
कृतियाँ –
‘ श्रीरामचरितमानस ‘ , “ विनयपत्रिका ‘ , ‘ कवितावली ‘ , ‘ गीतावली ‘ , ‘ श्रीकृष्णगीतावली ‘ , ‘ दोहावली ‘ , ‘ जानकी – मंगल ‘ , ‘ पार्वती – मंगल ‘ , ‘ वैराग्य – सन्दीपनी ‘ तथा ‘ बरवै – रामायण ‘ आदि ।