UP Board Class 12 Samanya & Sahityik Hindi कथा भारती Chapter 4 बहादुर सारांश चरित्र चित्रण
कथा भारती Chapter 4 बहादुर सारांश चरित्र चित्रण -UP Board Class 12 Samanya & Sahityik Hindi | Bahadur kahani Saransh Charitra Chitran- इसमें यूपी बोर्ड हिंदी साहित्यिक /सामान्य हिंदी 12 हेतु पाठ UP Board Chapter कथा भारती Chapter 4 बहादुर सारांश चरित्र चित्रण | Bahadur kahani Saransh Charitra Chitran दिया जा रहा है, बोर्ड परीक्षा की दृष्टि को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
In this post, UP Board Hindi Literary & General Hindi lesson for class 12 UP Board कथा भारती Chapter 4 बहादुर सारांश चरित्र चित्रण | Bahadur kahani Saransh Charitra Chitran is being solved, which has been prepared keeping in mind the point of view of the board examination.
Subject / विषय | General & Sahityik Hindi / सामान्य & साहित्यिक हिंदी |
Class / कक्षा | 12th |
Chapter( Lesson) / पाठ | Chpter -10 Hindi Katha Bharati (हिंदी कथा भारती) |
Topic / टॉपिक | बहादुर / Bahadur |
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All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रम | सामान्य हिंदी || साहित्यिक हिंदी |
अमरकान्त द्वारा रचित ‘ बहादुर ‘ कहानी का सारांश लिखिए ।
अथवा ‘ बहादुर ‘ कहानी की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए |
अथवा ‘ बहादुर ‘ कहानी का संक्षिप्त कथानक अपने शब्दों में लिखिए ।
‘बहादुर’ कहानी की कथावस्तु
‘ बहादुर ‘ प्रसिद्ध कहानीकार श्री अमरकान्त द्वारा रचित एक मनोवैज्ञानिक विधान कहानी है । इसकी कथावस्तु आधुनिक मध्यवर्गीय समाजदिखावटी मानसिकता से ग्रहण की गई है । कहानी में यह बताया गया है कि आज का मध्यमवर्गीय परिवार स्वयं को समाज में उच्चवर्गीय और प्रतिष्ठित व्यक्ति दिखाने के लिए नौकर रखते हैं , जबकि उनकी आर्थिक स्थिति इसकी इजाजत नहीं देती । परिवार में नौकर के आ जाने पर नौकरों के प्रति उनका व्यवहार कितना असभ्य और क्रूर हो जाता है कि वह मानवता की सारी हदें पार कर जाता है । आलोच्य कहानी की कथावस्तु के केन्द्र में एक ऐसे ही पहाड़ी नौकर बहादुर की कहानी है । कथावस्तु में इस बात को भी मुख्य विषय के रूप में उठाया गया है कि नौकर की भी अपनी मान प्रतिष्ठा और भावना होती है , भले ही वह बालक क्यों न हो ।
बहादुर- कहानी का सारांश ( कथानक )
दिलबहादुर एक पहाड़ी नेपाली लड़का है , जो इस कहानी का नायक है । वह एक असहाय बालक है । उसके पिता की युद्ध में मृत्यु हो चुकी थी । उसकी माँ उसे बहुत पीटती थी । इसलिए वह घर से भाग आया और उसने एक मध्यमवर्गीय परिवार में नौकरी कर ली । बहादुर बड़े परिश्रम से घर में काम करने लगा । गृहस्वामिनी निर्मला उसके काम से बहुत खुश थी । निर्मला ने उसका नाम ‘ बहादुर ‘ रखा । बहादुर की मेहनत के कारण मकान साफ – सुथरा रहने लगा और घर में सभी सदस्यों के कपड़े साफ रहने लगे । बहादुर देर रात तक काम करता और सुबह जल्दी उठकर काम में जुट जाता । वह इसी में खुश था और हर समय हँसता रहता था । वह रात को सोते समय पहाड़ी भाषा में कोई गीत गुनगुनाता रहता था । हँसना और हँसाना मानो उसकी आदत बन गई थी ।
निर्मला का बड़ा लड़का किशोर एक बिगड़ा हुआ लड़का था । वह शान – शौकत और रोब – दाब से रहने का समर्थक था । उसने अपने सारे काम बहादुर को सौंप दिए थे । यदि बहादुर उसके काम में तनिक – सी भी असावधानी बरतता तो उसे गालियाँ मिलतीं । इतना ही नहीं , वह छोटी – छोटी सी बात पर बहादुर को पीटता भी था । पिटकर बहादुर एक कोने में चुपचाप खड़ा हो जाता और कुछ देर बाद घर के कार्यों में पूर्ववत् जुट जाता । एक दिन किशोर ने बहादुर को ‘ सूअर का बच्चा ‘ कह दिया । बहादुर इस गाली को सहन न कर सका , उसका स्वाभिमान जाग गया और उसने उसका काम करने से इनकार कर दिया । जब निर्मला के पति ने भी उसे डाँटा तो उसने कहा –
” बाबूजी , भैया ने मेरे मरे बाप को क्यों लाकर खड़ा किया ? “
इतना कहकर वह रो पड़ा ।
प्रारम्भ में निर्मला बहादुर को बहुत प्यार से रखती थी तथा उसके खाने – पीने बहुत ध्यान रखती थी , लेकिन कुछ दिनों के बाद उसका व्यवहार भी बदल गया । उसने बहादुर की रोटी सेंकना बन्द कर दिया ।अब घर की स्थिति यह हो गई थी कि जरा – सी गलती होने पर भी किशोर और निर्मला उसे पीटते । मारपीट और गालियों के कारण बहादुर से गलतियाँ और भूलें अधिक होने लगीं । एक रविवार को निर्मला के रिश्तेदार अपनी पत्नी और बच्चों के साथ निर्मला के घर आए । नाश्ता करने के बाद बातों की जलेबी छनने लगी ।
अचानक उस रिश्तेदार की पत्नी नीचे फर्श पर झुककर देखने लगी और चारपाई पर कमरे के अन्दर भी छानबीन करने लगी । पूछने पर उसने बताया कि उसके ग्यारह रुपये खो गए हैं , जो उन्होंने चारपाई पर ही निकालकर रखे थे । . इसके बाद सबने बहादुर पर सन्देह किया।
बहादुर से पूछा गया । उसने रुपये उठा लेने से इनकार कर दिया । उसे खूब पीटा भी गया और पुलिस के सुपुर्द करने की धमकी भी दी गई । निर्मला ने भी बहादुर को डराया , धमकाया और पीटा । सब सोच रहे थे कि पिटाई के डर से वह अपना अपराध स्वीकार कर लेगा , लेकिन जब उसने रुपये लिए ही नहीं तो वह कैसे कहता कि रुपये उसने उठाए थे । इस घटना के बाद से घर के सभी सदस्य बहादुर को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे और उसे कुत्ते की तरह दुत्कारने लगे ।
उस दिन के बाद से बहादुर बहुत ही खिन्न रहने लगा और एक दिन दोपहर को अपना बिस्तर , पहनने के कपड़े , जूते आदि सभी सामान छोड़कर घर से चला गया । निर्मला के पति शाम को जब दफ्तर से लौटे तो उन्होंने निर्मला को सिर पर हाथ रखे परेशान देखा । आँगन गन्दा पड़ा था , बर्तन बिना मँजे पड़े थे और घर का सामानं अस्त – व्यस्त था । कारण पूछने पर पता चला कि बहादुर अपना सामान छोड़कर घर से चला गया । निर्मला , उसके पति और किशोर को उसकी ईमानदारी पर विश्वास हो गया था । उन्होंने कहा कि रिश्तेदारों के रुपये भी उसने नहीं चुराए थे । निर्मला , उसका पति और किशोर सभी बहादुर पर किए गए अत्याचारों के लिए पश्चात्ताप करने लगे ।
‘ बहादुर ‘ कहानी का उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए |
अथवा ‘ बहादुर ‘ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए ।
‘ बहादुर ‘ कहानी का उद्देश्य / सन्देश
यह कहानी निम्न एवं मध्यमवर्गीय समाज के मनोविज्ञान का वास्तविक चित्र प्रदर्शित करती है । आधुनिक समाज झूठे प्रदर्शन और शान शौकत में विश्वास करता है । वह बनावटी जिन्दगी जीना पसन्द करता है । कहानीकार ने निम्न वर्ग के प्रति सहानुभूति रखते हुए मध्यम वर्ग के लोगों की स्थिति की वास्तविकता को समझा है । उसने वर्ग – भेद मिटाने को प्रोत्साहन दिया है । कहानीकार का सन्देश है कि मानवीय सहानुभूति के आधार पर ही वर्ग – भेद की खाई को पाटा जा सकता है ।
बहादुर का चरित्र चित्रण
1 . परिचय – बहादुर जिसका रंग गोरा है और मुंह चपटा है नेपाल के एक गांव का रहने वाला पहाड़ी बालक है जिसका पिता युद्ध में मारा गया । मां ही सारे परिवार का भरण – पोषण करती है । वह दस – बारह वर्ष की उम्र का ठिगना सा बालक है । सफेद नेकर , आधी बांह की सफेद कमीज और भूरे रंग का जूता पहने था तथा गले में स्काउटों जैसा रुमाल बांधे हुए था । बहादुर
२. मां से प्रताड़ित — बहादुर की मां क्रोधी स्वभाव की महिला थी । वह जब तब किसी – न – किसी बात पर की पिटाई लगा देती थी । एक दिन बहादुर ने उसकी मां की प्रिय भैंस को डण्डे से मारा और मां ने उसी डण्डे से बहादुर की इतनी पिटाई की कि उसका दिल मां की ओर से फट गया । वह मां के रुपए चुराकर बस में बैठकर गोरखपुर भाग आया ।
३ . मेहनती बालक – लेखक के साले साहब उसे लेकर आए थे और उन्होंने नौकर के रूप में उसे रख लेने का आग्रह किया । बहादुर बहुत परिश्रमी बालक था । हर काम बड़ी सफाई , होशियारी एवं मेहनत से करता था । घर के सारे काम दौड़ – दौड़कर करता और सुबह से लेकर रात तक काम में लगा रहता फिर भी कभी आलस नहीं करता । अपने परिश्रम के बल पर ही वह घर के सारे सदस्यों को प्रभावित कर लेता है ।
४. प्रसन्नचित्त एवं मृदुभाषी – हर समय मुस्कराना उसका स्वभाव है ।बहादुर प्रसन्नचित्त एवं मृदुभाषी स्वभाव का बालक है । छल – कपट से वह कोसों दूर है । उसकी बोली में मधुरता एवं मिठास है तथा हँसी में कोमलता है । उसके साथ चाहे कोई कितना ही कठोर व्यवहार क्यों न करे किन्तु वह सदैव मुस्कराता ही रहता है ।
५. सहनशील एवं स्वाभिमानी – बहादुर सहनशील किन्तु स्वाभिमानी नौकर है । किशोर जब उसे बात बेबात गालियां देता है एवं मारपीट करता है , तो वह चुपचाप सह लेता है किन्तु जब एक दिन वह उसे ‘ सुअर का बच्चा ‘ कहता है तो उसके स्वाभिमान को ठेस लगती है । मेरे बाप को क्यों गाली दी — इस बात से चिढ़कर वह किशोर की साइकिल साफ नहीं करता और पीटा जाता है । अपनी बेबसी पर रोता हुआ वह लेखक से शिकायत करता है— “ बाबूजी भैया ने मेरे मरे बाप को क्यों लाकर खड़ा किया ? “ इससे उसके अहं को ठेस लगी और वह विद्रोह पर उतारू हो गया ।
६. ईमानदार और निष्कपट – बहादुर ईमानदार एवं निष्कपट बालक है । उसने कभी कोई सामान नहीं चुराया , किन्तु जब निर्मला के रिश्तेदारों ने उस पर ग्यारह रुपये चुराने का इल्जाम लगाया तो उसने साफ इनकार कर दिया कि उसने रुपये नहीं चुराये हैं । भले ही वह गरीब है , किन्तु ईमानदार है । वह जानता ही नहीं कि बेईमानी क्या होती है । काम करते समय यदि उसे कहीं पैसे पड़े हुए मिल जायें तो तुरन्त उठाकर निर्मला को दे देता था । चोरी का झूठा आरोप उस पर लगाया गया जिससे उसके मन को बहुत ठेस लगी । वह नौकरी छोड़कर चला गया और अपना सामान तथा वेतन भी छोड़ गया । में
७. स्नेह पाने को लालायित — बहादुर अपनी मां से उसे जो स्नेह न मिल सका वह उसे अन्यत्र खोज रहा है । निर्मला ने प्रारम्भ में उसे मातृ स्नेह दिया किन्तु बाद में जब उसने भी बहादुर को नौकर समझते हुए उसका ध्यान रखना बन्द कर दिया और उसे अपने लिए रोटियां स्वयं सेंकने का आदेश दिया तो बहादुर का मोह भंग हो गया । जिस स्नेह को वह खोज रहा था वह उसे न मिल सका , यद्यपि उसने अपनी ओर से पूरी तरह निर्मला को मां समझते हुए उसका ध्यान रखा । वह उसे कोई काम न करने देता , बीमार होने पर दवाई खिलाता तथा उसकी सुख – सुविधा का पूरा ध्यान रखता । समग्रतः यह कहा जा सकता है कि बहादुर एक जीवन्त चरित्र है । इस प्रकार के नौकर सामान्यतः घरों में देखने को मिल जाते हैं । भले ही वह एक काल्पनिक पात्र हो किन्तु उसका चरित्रांकन लेखक ने इतनी कुशलता से किया है कि पाठक उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता ।