Up Board Class 9th Hindi Solutions of Chapter -1 Baat – बात (गद्य खण्ड) – कक्षा 9 हिंदी पाठ १ बात के गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर

Up Board Class 9th Hindi Solutions of Chapter -1 Baat – बात (गद्य खण्ड) – कक्षा 9 हिंदी पाठ १ बात के गद्यांश आधारित प्रश्नोत्तर

Solutions of UP Board Class 9 Hindi. UP Board Solutions of  Class 9th Hindi Chapter 1 – Baat (gadya khand) Gadyansh adharit Prashn Uttar बात (गद्य खंड). Question and answer of up chapter 1 Bat Written By Pandit Pratapnatrayan Mishra. 

Chapter -1 Baat – बात-यूपी बोर्ड कक्षा 9 हिंदी के समाधान। यूपी बोर्ड समाधान कक्षा 9वीं हिंदी अध्याय 1 – बात (गद्य खंड) गद्यांश आधारित प्रश्न उत्तर बात (गद्य खंड)। प्रश्न और उत्तर ऊपर अध्याय 1 बात पंडित प्रतापनारायन मिश्र द्वारा लिखित।

बात – प्रतापनारायण मिश्र – गद्यांश आधारित प्रश्न उत्तर 

प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांशों के नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(1) यदि हम वैद्य होते तो कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्याख्या करते तथा भूगोलवेत्ता होते तो किसी देश के जल बात का वर्णन करते, किन्तु दोनों विषयों में से हमें एक बात कहने का भी प्रयोजन नहीं है। हम तो केवल उसी बात के ऊपर दो-चार बातें लिखते हैं, जो हमारे-तुम्हारे सम्भाषण के समय मुख से निकल-निकल के परस्पर हृदयस्थ भाव को प्रकाशित करती रहती हैं।

प्रश्न 1. उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – उपर्युक्त प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक इस तथ्य से अवगत कराते हुए कहता है यदि हम वैद्यराज को लें तो अपने स्वभावानुसार एवं कार्य के अनुरूप किसी रोग जैसे पित्त और उससे सम्बन्धित विषयों पर बात करेगा। यदि कोई भूगोल का ज्ञाता होगा तो वह अप स्वभावानुसार किसी देश की जलवायु अथवा प्राकृतिक विषयों पर बात करेगा। परन्तु लेखक कहता है कि दोनों विषयों में बात कहने का हमारा कोई प्रयोजन नहीं है। हम लोग उसी विषय पर बात लिखते अथवा करते हैं जो हृदय की भावनाओं को वाणी के माध्यम से प्रकाशित करती है।

प्र.(iii) हम अपने हृदयस्थ भावों की अभिव्यक्ति किसके माध्यम से करते हैं ?

उ. हम अपने हृदयस्थ भावों की अभिव्यक्ति बात के माध्यम से करते हैं।

प्र.(iv) भूगोलवेत्ता किसका अध्ययन करता है?

उ. भूगोलवेत्ता किसी देश के जल-बात का वर्णन करते हैं।

प्र.(v) वैद्य किस बात का वर्णन करते हैं?

उ. वैद्य कफ और पित्त के सहवर्ती बात की व्याख्या करते हैं।

गद्यांश – 2  Chapter -1 Baat – बात

(2) जब परमेश्वर तक बात का प्रभाव पहुँचा हुआ है तो हमारी कौन बात रही? हम लोगों के तो ‘गात माँहि बात करामात है । ‘नाना शास्त्र, पुराण, इतिहास, काव्य, कोश इत्यादि सब बात ही के फैलाव हैं जिनके मध्य एक-एक बात ऐसी पायी जाती है जो मन, बुद्धि, चित्त को अपूर्व दशा में ले जानेवाली अथच लोक-परलोक में सब बात बनानेवाली है। यद्यपि बात का कोई रूप नहीं बतला सकता कि कैसी है पर बुद्धि दौड़ाइये तो ईश्वर की भाँति इसके भी अगणित ही रूप पाइयेगा। बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, खोटी बात, टेढी बात, मीठी बात, कड़वी बात, भली बात, बुरी बात, सुहाती बात, लगती बात इत्यादि सब बात ही तो हैं।

प्रश्न (i) गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- उपर्युक्त प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है।

प्र.(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।

उ. रेखांकित अंशों की व्याख्या- इन पंक्तियों में लेखक बात की महत्ता दिखाते हुए कहता है कि यदि बुद्धि से विचार कर देखा जाय तो हम पायेंगे कि जैसे भगवान् के अनेक रूप होते हैं, उसी प्रकार बात के भी अनेक रूप होते हैं, जैसे बड़ी बात, छोटी बात, सीधी बात, टेढ़ी बात, मीठी, कड़वी, भली, बुरी, सुहाती और लगती बात आदि कैसी भी हों ये सब बात के ही रूप हैं।

प्र.(iii) “गात माँहि बात करामात है।” का क्या तात्पर्य है?

उ. ”गात माँहि बात करामात है।” का तात्पर्य है कि हमारे शरीर में तो बात का ही चमत्कार है।

प्र.(iv) कौन-सी बात चित्त, मन और बुद्धि को अपूर्व दिशा की ओर अग्रसर करती है ?

उ. नानाशास्त्र, पुराण, इतिहास काल आदि की बातें चित्त, मन और बुद्धि को अपूर्व दिशा की ओर अग्रसर करती है।

प्र.(v) ‘बड़ी बात’, ‘छोटी बात’ एवं ‘सीधी बात’ मुहावरे का क्या अभिप्राय है?

उ. ‘बड़ी बात’, ‘छोटी बात’ एवं ‘सीधी बात’ मुहावरे का अभिप्राय बात का स्वरूपगत वैभिन्नता को दर्शाना है।

गद्यांश – 3  Chapter -1 Baat – बात

(3) सच पूछिये तो इस बात की भी क्या ही बात है जिसके प्रभाव से मानव जाति समस्त जीवधारियों की शिरोमणि (अशरफ-उल मखलूकात) कहलाती है। शुकसारिकादि पक्षी केवल थोड़ी-सी समझने योग्य बातें उच्चरित कर सकते हैं, इसी से अन्य नभचारियों की अपेक्षा आदृत समझे जाते हैं। फिर कौन न मानेगा कि बात की बड़ी बात है। हाँ, बात की बात इतनी बड़ी है कि परमात्मा को लोग निराकार कहते हैं, तो भी इसका सम्बन्ध उसके साथ लगाये रहते हैं। वेद ईश्वर का वचन है, कुरआनशरीफ कलामुल्लाह है, होली बाइबिल वर्ड ऑफ गाड है। यह वचन, कलाम और वर्ड बात ही के पर्याय हैं जो प्रत्यक्ष मुख के बिना स्थिति नहीं कर सकती। पर बात की महिमा के अनुरोध से सभी धर्मावलम्बियों ने ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ वाली बात मान रखी है।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर—उपर्युक्त  प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ नामक हास्य-व्यंग्य प्रधान निबन्ध से उद्धृत किया गया है।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – वस्तुतः बात का महत्त्व इतना अधिक है कि उसका वर्णन करना कठिन हो जाता है। यदि बात के महत्त्व को लेखनीबद्ध किया जाय तो एक ग्रन्थ बन सकता है। संसार में मानव को समस्त प्राणियों से श्रेष्ठ माना जाता है। उसका मुख्य कारण भी यह बात ही है। मानव ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो बात करने में चतुर है। इसी कारण वह सभी प्राणियों का सिरमौर बना है!

प्र.(iii) निराकार परमात्मा का सम्बन्ध बात से कैसे है?

उ. हिन्दू समाज में वेदों को ईश्वर का वचन कहा जाता है साथ ही ईश्वर को निराकार कहा जाता है।

प्र.(iv) मानव जाति समस्त जीवधारियों में क्यों शिरोमणि है?

उ. बात का प्रभाव के कारण मानव जाति जीवधारियों में शिरोमणि है।

प्र.(v) ‘बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ का क्या अभिप्राय है?

उ.’बिन बानी वक्ता बड़ जोगी’ का अभिप्राय प्रत्यक्ष मुख के बिना बात से स्थित स्पष्ट हो जाना है।

गद्यांश – 4 

(4) बात के काम भी इसी भाँति अनेक देखने में आते हैं। प्रीति-वैर, सुख-दुःख, श्रद्धा-घृणा, उत्साह-अनुत्साह आदि जितनी उत्तमता और सहजता बात के द्वारा विदित हो सकते हैं, दूसरी रीति से वैसी सुविधा ही नहीं। घर बैठे लाखों को का समाचार मुख और लेखनी से निर्गत बात ही बतला सकती है। डाकखाने अथवा तारघर के सहारे से बात की बात में चाहे जहाँ की जो बात हो, जान सकते हैं। इसके अतिरिक्त बात बनती है, बात बिगड़ती है, बात आ पड़ती है, बात जाती रहती है, बात उखड़ती है। हमारे तुम्हारे भी सभी काम बात पर ही निर्भर करते हैं। ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ बात ही से पराये अपने और अपने पराये हो जाते हैं । मक्खीचूस उदार तथा उदार स्वल्पव्ययी, कापुरुष युद्धोत्साही एवं युद्धप्रिय शान्तिशील, कुमार्गी, सुपथगामी अथच सुपन्थी, कुराही इत्यादि बन जाते हैं।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- (i) सन्दर्भ – उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ के पाठ ‘बात’ से उद्धृत है। इसके लेखक पं० प्रतापनारायण मिश्र हैं।

प्र.(ii) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।

उ. रेखांकित अंशों की व्याख्या – निश्चय ही हमारे बात करने के ढंग से हमारा प्रत्येक कार्य प्रभावित होता है। बात के प्रभावशाली होने पर कवि अथवा चारण, राजाओं से पुरस्कार में हाथी तक प्राप्त कर लेते थे किन्तु कटु बात कहने से राजाओं द्वारा लोग हाथी के पाँव के नीचे कुचल भी दिये जाते थे। तात्पर्य यह है कि बात कहने का ढंग और शब्दों का प्रयोग मनुष्य पर आश्चर्यजनक प्रभाव डालता है।

प्र.(iii) लाखों कोस का समाचार कौन बतला सकता है?

उ. लाखों कोस का समाचार बात बतला सकता है।

प्र.(iv) पाँच वाक्यों में बात का महत्त्व लिखिए।

उ. बात का महत्त्व – (1) बात के अनेक काम देखने में मिलते हैं? (2) बात के द्वारा कोई भी भाव सहजता एवं सरलता से विदित हो सकता है। (3) लाखों कोस का समाचार मुख या लेखनी से निर्गत बात बतला सकती है। (4) हम डाकघर अथवा तारघर के सहारे दूर की बात जान सकते हैं। (5) सभी काम बात पर ही निर्भर करते हैं।

प्र.(v) ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ का आशय स्पष्ट कीजिए

उ. ‘बातहि हाथी पाइये बातहि हाथी पाँव’ का आशय है अच्छी बात से पुरस्कार स्वरूप हाथी की प्राप्ति होती है और बुरी बात पर हाथी के पाँव के नीचे कुचला जा सकता है।

 

गद्यांश – 5 

(5) बात का तत्त्व समझना हर एक का काम नहीं है और दूसरों की समझ पर आधिपत्य जमाने योग्य बात गढ़ सकना भी ऐसों वैसों का साध्य नहीं है। बड़े-बड़े विज्ञवरों तथा महा-महा कवीश्वरों के जीवन बात ही के समझने-समझाने में व्यतीत हो जाते हैं। सहृदयगण की बात के आनन्द के आगे सारा संसार तुच्छ जँचता है। बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की मीठी मीठी प्यारी-प्यारी बातें, सत्कवियों की रसीली बातें, सुवक्ताओं की प्रभावशालिनी बातें जिनके जी को और का और न कर दें, उसे पशु नहीं पाषाणखण्ड कहना चाहिए; क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि को विशेष समझ नहीं होती तो भी पुचकार के ‘तू ‘तू’, ‘पूसी-पूसी’ इत्यादि बातें कह दो तो भावार्थ समझ के यथासामर्थ्य स्नेह प्रदर्शन करने लगते हैं। फिर वह मनुष्य कैसा जिसके चित्त पर दूसरे हृदयवान् की बात का असर न हो।

प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर- (i) सन्दर्भ – उपर्युक्त गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं पं० प्रतापनारायण मिश्र द्वारा लिखित ‘बात’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है|

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – विद्वानों की बात का तात्पर्य समझ पाना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सरल काम नहीं है। साथ ही साथ दूसरों को प्रभावित कर सकनेवाली बात भी गढ़कर कह देना साधारण मनुष्यों का काम नहीं है। संसार में बड़े-बड़े ज्ञानियों एवं कवियों का जीवन बात के तात्पर्य को समझने और समझाने में ही बीत जाता है

प्र.(iii) बालकों की बातें कैसी होती हैं?

उ. बालकों की बातें सुन्दर रमणियों की मीठी, प्यारी-प्यारी होती हैं।

प्र.(iv) इस अवतरण में पाषाण खण्ड से क्या आशय है?

उ. बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की प्यारी मीठी बातें, कवियों की रसीली बातें जिनके हृदय को प्रभावित न करे उन्हें पाषाण खण्ड कहते हैं।

प्र.(v) विद्वानों एवं कवियों का जीवन कैसे बीतता है?

उ. विद्वानों एवं कवियों का जीवन बात ही को समझने-समझाने में व्यतीत हो जाते हैं।

गद्यांश – 6 

(6) ‘मर्द की जबान ‘ ( बात का उदय स्थान) और गाड़ी का पहिया चलता-फिरता ही रहता है। आज जो बात है कल हो स्वार्थान्धता के वश हुजूरों की मरजी के मुवाफिक दूसरी बातें हो जाने में तनिक भी विलम्ब की सम्भावना नहीं है। यद्यपि कभी-कभी अवसर पड़ने पर बात के अंश का कुछ रंग-ढंग परिवर्तित कर लेना नीति विरुद्ध नहीं है। पर कब ? जात्युपकार, देशोद्वार, प्रेम-प्रचार आदि के समय न कि पापी पेट के लिए।

प्रश्न (1) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।

उत्तर – (1) सन्दर्भ – उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘ हिन्दी गद्य के ‘बात’ पाठ से उद्धृत है। इसके लेखक पं० प्रतापनारायण मिश्र हैं।

प्र.(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

उ. रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक का कथन है कि, यह कथन उन्हीं स्वार्थी लोगों का है जिनके लिए जाति, देश और सम्बन्धों का कोई महत्त्व नहीं होता। ऐसे लोगों की आज की जो बात है कल ही वह स्वार्थवश मालिक के मन के अनुसार बदलने में थोड़ी भी देर नहीं लगाते हैं। लेखक आगे कहता है कि किसी महान् उद्देश्य की साधना या समय आने पर बात के रंग-ढंग या कहने का तरीका बदल लेने में किसी नियम का उल्लंघन नहीं है।

प्र.(iii) लेखक ने किसे नियमों का उल्लंघन नहीं माना है?

उ.यदि बात बदलने से मानव जाति की भलाई होती है, देश का कल्याण होता है या प्रेम-प्रसंग में प्रेमी-प्रेमिका का हित छिपा है तो कोई नियम विरुद्ध कार्य नहीं है।

प्र.(iv) ‘मर्द की जबान के चलते-फिरते रहने से क्या तात्पर्य है ?

उ. ‘मर्द की जबान’ के चलते-फिरते रहना का तात्पर्य है स्वार्थवश बात बदलने में विलम्ब न लगना है।

प्र.(v) बात के ढंग का कुछ रंग-ढंग परिवर्तित कर लेना किस प्रकार नीति विरुद्ध नहीं है?

उ. जाति उपकार और देशोद्धार के लिए अवसर पड़ने पर बात के कुछ रंग-ढंग को परिवर्तित कर लेना नीति विरुद्ध नहीं है।

 

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