Hindi पद्य Chapter 10 मैंने आहुति बनकर देखा ,हिरोशिमा पद्यांश प्रश्नोत्तर- UP Board Hindi Class 12

मैंने आहुति बनकर देखा , हिरोशिमा के पद्यांशो पर आधारित प्रश्नोत्तर

Hindi पद्य Chapter 10 मैंने आहुति बनकर देखा ,हिरोशिमा पद्यांश प्रश्नोत्तर- UP Board Hindi Class 12- UPMSP Uttar Pradesh Madhyamik Shiksha Parishad Intermediate Hindi UP Board Hindi  for Class 12 General Hindi Kayanjali & Class 12 Sahityik Hindi Also सामान्य हिंदी काव्यांजलि Chapter मैंने आहुति बनकर देखा , हिरोशिमा  are part of UP Board Hindi  maine ahuti bankar dekha padyansh solution for Class -12 Samanya Hindi साहित्यिक हिंदी . यहाँ पर हम दे रहे हैं –  UP Board साहित्यिक हिंदी Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter  मैंने आहुति बनकर देखा , हिरोशिमा के पद्यांशो पर आधारित प्रश्नोत्तर |

Hindi पद्य Chapter 10 मैंने आहुति बनकर देखा ,हिरोशिमा पद्यांश  प्रश्नोत्तर- UP Board Hindi Class 12

प्रिय! छात्र- छात्राओं, Hindi पद्य Chapter 10 मैंने आहुति बनकर देखा ,हिरोशिमा पद्यांश प्रश्नोत्तर- UP Board Hindi Class 12 हम यहां पर मैंने आहुति बनकर देखा , हिरोशिमा के पद्यांशो पर आधारित प्रश्नोत्तरकाव्यांजलि में संकलित चैप्टर मैंने आहुति बनकर देखा , हिरोशिमा के पद्यांशो पर आधारित प्रश्नोत्तर/ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर प्रस्तुत कर रहे हैं यूपी बोर्ड परीक्षा की दृष्टि से कक्षा 12 साहित्यिक एवं सामान्य हिंदी वाले विद्यार्थियों के लिए अति महत्वपूर्ण हैं।

Class 12th (class 12) Intermediate कक्षा -12
SubjectGeneral & Sahityik Hindi (सामान्य साहित्यिक  हिंदी )
Chapterमैंने आहुति बनकर देखा , हिरोशिमा |/Maine Ahuti Bankar Dekha, Hiroshima
Topic मैंने आहुति बनकर देखा , हिरोशिमा के पद्यांशो पर आधारित प्रश्नोत्तर
Board UP BOARD (upmsp)
ByArunesh Sir
Other वीडियो  लेचर के माध्यम से देखें       

पद्यांश -1  मैंने आहुति बनकर देखा

मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने ,

मैं कब कहता हूँ जीवन – मरु नन्दन कानन का फूल बने ?

काँटा कठोर है , तीखा है , उसमें उसकी मर्यादा है ,

मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ?

( i ) ‘ काँटा कठोर है , तीखा है , उसमें उसकी मर्यादा है ‘ का आशय स्पष्ट कीजिए ।

  • प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि जिस प्रकार काँटे की श्रेष्ठता उपवन के तुच्छ फल में परिवर्तित हो जाने में नहीं , वरन् अपने कठोरपन एवं नुकीलेपन में निहित है , उसी प्रकार जीवन की सार्थकता संघर्ष एवं दुःखों से लड़ने में है ।

( ii ) ‘ जीवन – मरु ‘ में कौन – सा अलंकार है ?

  • जीवन ‘ मरु में उपमा अलंकार है ।

( iii ) मैं किसकी कामना नहीं करता ?

  • कवि अपने जीवन में किसी भी प्रकार के कष्टों से छुटकारा पाने की कामना नहीं करता । वह अपने प्यार का प्रतिफल भी नहीं चाहता और न ही वह विश्व विजेयता बनना चाहता है ।

( iv ) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए ।

  • प्रस्तुत पद्यांश में मनुष्य जीवन की सार्थकता बताते हुए कवि स्पष्ट करता है कि दुःख के बीच पीड़ा सहकर अपना मार्ग प्रशस्त करने वाला तथा दूसरों की पीड़ा हरकर उसमें प्रेम का बीच बोने वाला व्यक्ति ही वास्तविक जीवन जीता है ।

( v ) दिए गए पद्यांश का शीर्षक और कवि का नाम लिखिए ।

  • शीर्षक- मैंने आहुति बनकर देखा । कवि – सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘ अज्ञेय ‘

पद्यांश -2

वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव रस का कटु प्याला है

वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहनकारी हाला है

मैंने विदग्ध हो जान लिया ,अंतिम रहस्य पहचान लिया

मैंने आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है ।

मैं कहता हूँ मैं बढ़ता हूँ , मैं नभ की चोटी चढ़ता हूँ

कुचला जाकर भी धूली सा आँधी – सा और उमड़ता हूँ

मेरा जीवन ललकार बने , असफलता ही असि धार बने

इस निर्मम रण में पग – पग का रुकना ही मेरा वार बने ।

 ( i ) कवि किसे रोगी मानता है ।

उत्तर- प्रेम के जीवन के अनुभव का कड़वा प्याला मानने वाले रोग सकारात्मक दृष्टिकोण न रखने के कारण रोगी होते हैं ।

( iii ) प्रेम जिनके लिए ‘ सम्मोहनकारी हाला ‘ है , कवि उन्हें क्या मानता है ? ।

उत्तर- वे लोग चेतना विहीन निर्जीव की भाँति हैं जिनके लिए प्रेम चेतना लुप्त करने वाली मदिरा है । क्योंकि ऐसे लोग प्रेम की वास्तविक अनुभूति से अनभिज्ञ रह जाते हैं ।

( iii ) हाला ‘ तथा ‘ असि – धार ‘ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- हाला- मदिरा , शराब । असि धार – तलवार ।

( iv ) रेखांकित अंश का भावार्थ लिखिए ।

उत्तर- कवि कहता है कि उसने अनेक बाधाओं एवं कठिनाइयों की आग में जलकर जीवन के अन्तिम रहस्य को समझ लिया है । जब वह स्वयं आहुति बना , तब उसे प्रेमरूपी यज्ञ की ज्वाला का पवित्र कल्याणकारी रूप दिखाई दिया ।

( v ) कविता का शीर्षक तथा कवि का नाम लिखिए ।

उत्तर –शीर्षक – मैंने आहुति बनकर देखा ।  कवि – सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘ अज्ञेय ‘ ।

पद्यांश -3

मैं कहता हूँ मैं बढ़ता हूँ , मैं नभ की चोटी चढ़ता हूँ ,

कुचला जाकर भी धूली सा आँधी – सा और उमड़ता हूँ ,

मेरा जीवन ललकार बने , असफलता ही असिधार बने ।

इस निर्मम रण में पग – पग का रुकना ही मेरा वार बने !

भव सारा तुझको है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने ।

तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने !

( i ) कवि ने जीवन को क्या बताया है ?

उत्तर – कवि ने जीवन को एक संघर्षमयी यात्रा बताया है कवि कह रहा है कि मैं इस यात्रा में आगे बढ़ रहा हूँ ।

( ii ) काव्यांश का शीर्षक व कवि का नाम लिखिए । 

उत्तर – शीर्षक- मैंने आहुति बनकर देखा कवि – सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘ अज्ञेय ‘ 

( iii ) कवि किस पर सर्वस्व अर्पण करता है ?

उत्तर –कवि संसार पर सर्वस्व अर्पण करते हुए कहता है कि हे संसार ! ये सर्वस्व तुझ पर अर्पण करता हूँ ।

 ( iv ) कवि का क्या सन्देश है ?

उत्तर –कवि का सन्देश है कि चाहे मार्ग में कितनी बाधायें आयें , मनुष्य को विचलित नहीं होना चाहिए |

( v ) काव्यांश का काव्य सौन्दर्य लिखिए ।  

उत्तर – भाषा – शुद्ध शब्द शक्ति – लक्षणा , साहित्यिक खड़ी बोली , गुण— ओज , अलंकार – अनुप्रास है ।

हिरोशिमा कविता पद्यांश सोल्यूशन प्रश्न उत्तर||Hiroshima Kavita Padyansh Solution

छायाएँ मानव – जन की ,

नहीं मिटी लम्बी हो – हो कर ,

मानव ही सब भाप हो गये ।

छायाएँ तो अभी लिखी हैं

झुलसे हुय पत्थरों पर

उजड़ी सड़कों की गच पर ।

( i ) प्रस्तुत काव्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – काव्यांश के माध्यम से कवि ने मानव द्वारा विज्ञान के दुरुपयोग किए जाने पर दुःख जताया है , ताकि परमाणु बम गिराने जैसी मानव विनाशी गलती की पुनरावृत्ति न हो पाए ।

( ii ) प्रस्तुत पद्यांश में कौन सा रस है ?

उत्तर-  मानव जाति के विध्वंस के कारण शोक की स्थिति उत्पन्न हुई है । अतः प्रस्तुत पद्यांश में करुण रस है ।

( iii ) रेखांकित पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर-  परमाणु विस्फोट के दुष्परिणाम स्वरूप उत्सर्जित विकिरणों ने मानव को जलाकर वाष्प में बदल दिया , किन्तु उसकी छायाऐं लम्बी होकर समाप्त नहीं हुई हैं । विकिरणों से झुलसे पत्थरों पर आज भी उस त्रासदी की कहानी कह रही है ।

( iv ) कवि ने आकाशीय सूर्य की तुलना मानव निर्मित सूर्य से किस प्रकार की है ?

उत्तर-  आकाश का सूर्य हमारे लिए वरदान स्वरूप है , उससे हमें जीवन मिलता है , किन्तु मानव निर्मित सूर्य परमाणु बम अति विध्वंसक है ।

( v ) काव्यांश में कवि अत्यन्त मर्माहित क्यों हुआ है ?

उत्तर-  काव्यांश में मानव जीवन की त्रासदी का वर्णन किया गया है । यहाँ मानव ही मानव के विध्वंस का कारण है । मानव के इसी दानव रूप को देखकर कवि अत्यन्त मर्माहित हो उठता है ।

error: Content is protected !!