Up Board Sanksirt Digdarshika Chapter संस्कृत भाषायाः महत्तम्

Chapter 2 संस्कृत भाषायाः महत्तम् | Sanskrit Bhahsaya Mahatvam Hindi Anuvad

Up Board Sanksirt Digdarshika Chapter संस्कृत भाषायाः महत्तम् | Sanskrit Bhahsaya Mahatvam Hindi Anuvad- इसमें यूपी बोर्ड हिंदी साहित्यिक /सामान्य हिंदी 12 हेतु पाठ Up Board Sanksirt Digdarshika Chapter 2  संस्कृत भाषायाः महत्तम् | Sanskrit Bhahsaya Mahatvam Hindi Anuvad का हल दिया जा रहा है, बोर्ड परीक्षा की दृष्टि को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।

In this post, UP Board Hindi Literary & General Hindi lesson for class 12 Up Board Sanksirt Digdarshika Chapter 2  संस्कृत भाषायाः महत्तम् | Sanskrit Bhahsaya Mahatvam  is being solved, which has been prepared keeping in mind the point of view of the board examination.

Subject / विषयGeneral & Sahityik Hindi / सामान्य & साहित्यिक हिंदी
Class / कक्षा12th
Chapter( Lesson) / पाठChpter -2  {Sanksirt Digdarshika}
Topic / टॉपिक    संस्कृत भाषायाः महत्तम् | Sanskrit Bhahsaya Mahatvam
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राजा ने अत्यधिक सन्तुष्ट होकर उसे भी प्रत्येक अक्षर के एक लाख दिए ।

द्वितीय : पाठ: –  संस्कृतभाषायां महत्वम्  {संस्कृतभाषा का  महत्त्व}

सन्दर्भ- प्रस्तुत अवतरण ‘ संस्कृत दिग्दर्शिका ‘ के ‘ संस्कृतभाषायाः महत्त्वम् ‘ शीर्षक पाठ से अवतरित है ।

    • धन्योऽयम् भारतदेश : यत्र समुल्लसति जनमानसपावनी ,

धन्य है यह भारत देश , जहां जनमानस को पवित्र करने वाली ,

    • भव्यभावोद्भाविनी , शब्द – सन्दोह – प्रसविनी सुरभारती ।

भव्य भावों को उत्पन्न करने वाली , शब्द समूह को जन्म देने वाली देववाणी ,सुशोभित हो रही है ,

    • विद्यमानेषु निखिलेष्वपि वाङ्ममयेषु

सभी वर्तमान साहित्यों में

    • अस्या : वाङ्मयम् सर्वश्रेष्ठं सुसम्पन्नं च वर्तते ।

इसका साहित्य सर्वश्रेष्ठ और सुसम्पन्न है ।

    • इयमेव भाषा संस्कृतनाम्नापि लोके प्रथिता अस्ति ।

यही आज संस्कृत नाम से भी संसार में प्रसिद्ध है ।

    • अस्माकं रामायण महाभारताद्यैतिहासिकग्रन्थाः ,

हमारे रामायण , महाभारत आदि ऐतिहासिक ग्रन्थ ,

    • चत्वारोवेदाः , सर्वा उपनिषदः , अष्टादशपुराणानि ,

चारों वेद , सभी उपनिषद् अठारह पुराण

    • अन्यानि च महाकाव्य – नाट्यादीनि अस्यामेव भाषायां लिखितानि सन्ति ।

 और अन्य महाकाव्य ,नाटक आदि इसी भाषा में लिखे गए हैं ।

    • इयमेव भाषा सर्वासामार्यभाषाणां जननीति मन्यते भाषातत्त्वविद्भिः ।

यही भाषा सभी आर्यभाषाओं की जननी भाषा – वैज्ञानिकों द्वारा मानी जाती है ।

    • संस्कृतस्य गौरवं बहुविधज्ञानाश्रयत्वं

संस्कृत का गौरव , अनेक प्रकार के ज्ञान का आश्रय होना

    • व्यापकत्वं च न कस्यापि दृष्टेरविषयः ।

और व्यापकता किसी भी दृष्टि का विषय नहीं है ।

    • संस्कृतस्य गौरवमेव दृष्टिपथमानीय सम्यगुक्तमाचार्यप्रवरेण दण्डिना-

संस्कृत के गौरव को दृष्टि में रखकर आचार्य प्रवर दण्डी ने कहा है —

    • “संस्कृतं नाम दैवी वागन्वाख्याता महर्षिभिः ।“

 संस्कृत को महर्षियों ने देववाणी कहा है ।

    • संस्कृतस्य साहित्यं सरसं , व्याकरणञ्च सुनिश्चितम् ।

संस्कृत का साहित्य सरस और व्याकरण सुनिश्चित है ।

    • तस्य गद्ये पद्ये च लालित्यं , भावबोधसामर्थ्यम् ,

उसके गद्य और पद्य में लालित्य ( सौन्दर्य ) भावों का बोध कराने की क्षमता

    • अद्वितीयं श्रुतिमाधुर्यञ्च वर्तते ।

और अद्वितीय श्रुति मधुरता विद्यमान है ।

    • किं बहुना चरित्रनिर्माणार्थं यादृशीं सत्प्रेरणा संस्कृतवाङ्मयं ददाति

अधिक क्या चरित्र निर्माण के लिए जैसी उत्तम प्रेरणा संस्कृत वाङ्मय देता है ,

    • न तादृशीम् किञ्चिदन्यत् ।

वैसी अन्य कोई नहीं ।

    • मूलभूतानां मानवीयगुणानां यादृशी विवेचना

मूलभूत मानवीय गुणों की जैसी विवेचना

    • संस्कृतसाहित्ये वर्तते नान्यत्र तादृशी ।

संस्कृत साहित्य में मिलती है , वैसी अन्यत्र नहीं ।

    • दया , दानं , शौचम् , औदार्यम् , अनसूया , क्षमा ,

 दया , दान , पवित्रता , उदारता , किसी से ईर्ष्या न करना , क्षमा

    • अन्ये चानेके गुणाः अस्य साहित्यस्य अनुशीलनेन सञ्जायन्ते ।

और अन्य अनेक गुण इस साहित्य के अध्ययन से उत्पन्न होते हैं ।

    • संस्कृतसाहित्यस्य आदिकवि : वाल्मीकिः , महर्षिव्यासः ,

संस्कृत साहित्य के आदि कवि वाल्मीकि , महर्षि वेदव्यास ,

    • कविकुलगुरुः कालिदासः अन्ये च भास – भारवि भवभूत्यादयो

कविकुल गुरु कालिदास और अन्य भास , भारवि , भवभूति आदि

    • महाकवयः स्वकीयैः ग्रन्थरत्नैः अद्यापि पाठकानां हृदि विराजन्ते ।

महाकवि अपने रचित ग्रन्थ रनों के द्वारा आज भी पाठकों के हृदय में विराजमान हैं ।

    • इयं भाषा अस्माभिः मातृसमं सम्माननीया वन्दनीया च ,

यह भाषा हमारी माता के समान सम्माननीया और पूजनीया है ,

    • यतो भारतमातुः स्वातन्त्र्यं , गौरवम् ,

क्योंकि भारत माता की स्वतन्त्रता , गौरव ,

    • अखण्डत्वं सांस्कृतिकमेकत्वञ्च संस्कृतेनैव सुरक्षितुं शक्यन्ते ।

अखण्डता एवं सांस्कृतिक एकता को संस्कृत के द्वारा ही सुरक्षित किया जा सकता है ।

    • इयं संस्कृतभाषा सर्वासु भाषासु प्राचीनतमा श्रेष्ठा चास्ति ।

यह संस्कृत भाषा सभी भाषाओं में प्राचीनतम और श्रेष्ठ है ।

    • तत : सुष्ठूक्तम्

इसलिए ठीक ही कहा गया है

    • ‘ भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाणभारती ‘ इति ।

भाषाओं में देववाणी संस्कृत मुख्य , मधुर और अलौकिक है ।

सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण पाठ:-

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