Bhojasyoudaryam | भोजस्यौदार्यम हिंदी अनुवाद प्रश्नोत्तर- Up Board Sanskrit Digadarshika Chapter 1

UP Board Sanskrit Digadarshika (Chapter 1 Bhojasyoudaryam) Hindi Translation

Bhojasyoudaryam | भोजस्यौदार्यम हिंदी अनुवाद प्रश्नोत्तर- Up Board Sanskrit Digadarshika Chapter 1 – Bhojasyoudaryam | भोजस्यौदार्यम हिंदी अनुवाद प्रश्नोत्तर- Up Board Sanskrit Digadarshika Chapter 1 – यहाँ पर हम संस्कृत संस्कृत दिग्दर्शिका पाठ -1 भोजस्यौदार्यम का हिंदी अनुवाद एवं पाठ पर आधारित संस्कृत प्रश्न उत्तर दे रहे हैं| ये अनुवाद यूपी बोर्ड  सामान्य हिंदी एवं साहित्यिक हिंदी दोनों विद्यार्थी पढेंगे तथा इसके प्रश्न उत्तर मात्र साहित्यिक हिंदी वाले विद्यार्थी पढेंगे| यहाँ पर प्रत्येक लाइन का अलग से हिंदी अनुवाद प्रदान किया गया है|

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Bhojasyoudaryam | भोजस्यौदार्यम हिंदी अनुवाद प्रश्नोत्तर- Up Board Sanskrit Digadarshika Chapter 1

प्रथम: पाठ: –  भोजस्यौदार्यम्

 सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यावतरण पाठ्य – पुस्तक संस्कृत दिग्दर्शिका ‘ के ‘ भोजस्यौदार्यम् ‘ नामक पाठ से उद्धृत है|

    • तत : कदाचिद् द्वारपाल आगत्य महाराज भोजं प्राह –

इसके बाद  कभी द्वारपाल ने आकर महाराज भोज से कहा –

    • ‘ देव , कौपीनावशेषो विद्वान् द्वारि वर्तते ‘ इति ।

राजा- ‘ प्रवेश कराओ ‘ ऐसा बोले ।

    • राजा. ‘ प्रवेशय ‘ इति प्राह ।

राजा, ने प्रवेश कराओ ऐसा कहा |

    • ततः प्रविष्टः सः कविः भोजमालोक्य –

तब प्रवेश करके उस कवि ने भोज को देखकर

    • अद्य मे दारिद्र्यनाशो भविष्यतीति

‘ आज मेरी दरिद्रता का नाश हो जाएगा ऐसा ‘,

    • मत्वा तुष्टो हर्षाश्रूणि मुमोच ।

मानकर प्रसन्न होकर हर्ष के आंसू गिराए ।

    • राजा तमालोक्य प्राह –

राजा ने उसको देखकर कहा –

    • ‘ कवे , किं रोदिषि ‘ इति ।

हे कवि ! क्यों रोते हो ।

    • ततः कविराह- राजन् ! आकर्णय मद्गृहस्थितिम्

तब कवि वोला — राजन् मेरे की दशा सुनिए :

    • अये लाजानुच्चैः पथि वचनमाकर्ण्य गृहिणी

अरे ‘ खीलें लो‘– ऐसा ऊंचे स्वर से ( रास्ते में वेचने वाले की आवाज ) सुनकर मेरी पत्नी

    • शिशौः कर्णौ यत्नात् सुपिहितवती दीनवदना ।।

बच्चे के कानों को यत्नपूर्वक बन्द कर दिया दीनमुख वाली ने

    • मयि क्षीणोपाये यदकृतं दृशावश्रुबहुले

और मुझ उपायहीन पर जो आंसुओं से भरी दृष्टि डाली

    • तदन्तःशल्यं मे त्वमसि पुनरुद्धर्तुमुचितः ।।

वह मेरे हृदय में बाण के समान चुभी है, जिसे आप ही निकालने में समर्थ हैं ।

    • राजा शिव , शिव इति उदीरयन्

राजा ने शिव , शिव कहते हुए

    • प्रत्यक्षरं लक्षं दत्त्वा प्राह

प्रत्येक अक्षर पर एक लाख देकर कहा —

    • ‘ त्वरितं गच्छ गेहम् , त्वद्गृहिणी खिन्ना वर्तते ‘ ।

शीघ्र ही घर जाओ तुम्हारी पत्नी दुःखी है ।

    • अन्यदा भोज : श्रीमहेश्वरं नमितुं शिवालयमभ्यगच्छत् ।

दूसरे दिन भोज भगवान शिव को नमस्कार करने के लिए शिव मन्दिर गए

    • तदा कोपि ब्राह्मण : राजानं शिवसन्निधौ प्राह – देव !

तब कोई ब्राह्मण राजा से शिव के सामने बोला, हे देव !

    • अर्द्ध दानववैरिणा गिरिजयाप्यर्द्ध शिवस्याहृतम्

शिवजी का आधा अंग विष्णु ने और आधा पार्वती ने ले लिया है ।

    • देवेत्थं जगतीतले पुरहराभावे समुन्मीलति ।।

इस पृथ्वी तल पर भगवान् शिव के देह रहित हो जाने पर ।

    • गङ्गा सागरमम्बरं शशिकला

गंगा समुद्र में मिल गई, चन्द्रकला आकाश को

    • नागाधिपः क्ष्मातलम्

शेषनाग पृथ्वीतल से नीचे पाताल में ,  

    • सर्वज्ञत्वमधीश्वरत्वमगमत् त्वां

सर्वज्ञता और ईश्वरता आपको प्राप्त हुई

    • मां तु भिक्षाटनम् ।।

और भिक्षाटन ( भीख मांगना ) मुझमें आ गया है ।

    • राजा तुष्ट : तस्मै प्रत्यक्षरं लक्षं ददौ ।

राजा ने सन्तुष्ट होकर उसके लिए प्रत्येक अक्षर पर एक लाख दिया ।

    • अन्यदा राजा समुपस्थितां सीतां प्राह-

दूसरे दिन राजा ने उपस्थित हुई सीता ( नामक कवयित्री ) से कहा —

    • देवि ! प्रभातं वर्णय ‘ इति । सीता प्राह –

देवी ! प्रभात काल का वर्णन करो । सीता ने कहा :

    • विरलविरलाः स्थूलास्तारा : कलाविव सज्जनाः

कलियुग में सज्जनों के समान ही कोई – कोई वड़े तारे दिखाई दे रहे हैं ।

    • मन इव मुनेः सर्वत्रैव प्रसन्नमभून्नभः ।।

 मुनि के मन के समान आकाश सर्वत्र स्वच्छ हो गया है

    • अपसरति ध्वान्तं चित्तात्सतामिव दुर्जनः

और सज्जनों के चित्त से दुष्ट के समान अन्धकार दूर हो रहा है

    • व्रजति च निशा क्षिप्रं लक्ष्मीरनुद्यमिनामिव ।।

और प्रयत्नहीन व्यक्तियों की लक्ष्मी के समान रात्रि भी शीघ्रता से भागी जा रही है

    • राजा तस्य लक्षं दत्त्वा कालिदासं प्राह—

अनुवाद – राजा ने उसे एक लाख देकर कालिदास से कहा —

    • ‘ सखे , त्वमपि प्रभातं वर्णय ‘ इति ।

मित्र ! तुम भी प्रभात का वर्णन करो ।

    • ततः कालिदासः प्राह –

तव कालिदास ने कहा

    • अभूत् प्राची पिङ्गा रसपतिरिव प्राप्य कनकं

पूर्व दिशा सोने से मिलने पर पारे के समान पीली हो गई है ।

    • गतच्छायश्चन्द्रो बुधजन इव ग्राम्य सदसि ।

चन्द्रमा ग्रामीणों की सभा में विद्वान् के समान छविहीन हो गया है ,

    • क्षणं क्षीणास्तारा नृपतय इवानुद्यमपराः

उद्यमहीन राजाओं के समान तारे क्षण भर में क्षीण हो गए हैं

    • न दीपा राजन्ते द्रविणरहितानामिव गुणाः ।।

और धनहीनों के गुणों के समान दीपक शोभित नहीं हो रहे हैं ।

    • राजातितुष्टः तस्मै प्रत्यक्षरं लक्षं ददौ ।

राजा ने अत्यधिक सन्तुष्ट होकर उसे भी प्रत्येक अक्षर के एक लाख दिए ।

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