Up Board Sanskrit Digdarshika chapter 5 जातक कथा || Jatak Katha Hindi Anuvad With Meaning

जातक कथा {Jatak Katha Hindi Anuvad With Meaning}

इसमें यूपी बोर्ड हिंदी साहित्यिक /सामान्य हिंदी 12 हेतु पाठ Up Board Sanskrit Digdarshika chapter 5 जातक कथा || Jatak Katha Hindi Anuvad With Meaning Hindi Anuvad का  Hindi संस्कृत Chapter 5 जातक-कथा  part of UP Boardअनुवाद  हल दिया जा रहा है, बोर्ड परीक्षा की दृष्टि को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।

In this post, UP Board Hindi Literary & General Hindi lesson for class 12 Up Board Sanskrit Digdarshika chapter 5 जातक कथा || Jatak Katha Hindi Anuvad With Meaning   is being solved, which has been prepared keeping in mind the point of view of the board examination.

Subject / विषयGeneral & Sahityik Hindi / सामान्य & साहित्यिक हिंदी
Class / कक्षा12th
Chapter( Lesson) / पाठChpter -5   {Sanksirt Digdarshika}
Topic / टॉपिक  जातक कथा | Jatak Katha Hindi Anuvad With Meaning
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All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रम सामान्य हिंदी 

जातक कथा प्रत्येक पंक्ति का अलग हिंदी अनुवाद 

( १ ) उलूकजातकम्

सन्दर्भ  प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य – पुस्तक ‘ संस्कृत दिग्दर्शिका ‘ के ‘ जातक कथा ‘ नामक पाठ के ‘उलूकजातकम्’ शीर्षक से अवतरित है ।

    • अतीते प्रथमकल्पे जनाः एकमभिरूपं सौभाग्यप्राप्तं

प्राचीन काल के प्रथम कल्प में लोगों ने एक सुन्दर सौभाग्यशाली

    • सर्वाकारपरिपूर्णं पुरुषं राजानमकुर्वन् ।

और समग्र आकृति से परिपूर्ण पुरुष को राजा बनाया ।

    • चतुष्पदा अपि सन्निपत्य एकं सिंह राजानमकुर्वन् ।

 जानवरों ने भी एकत्रित होकर एक शेर को राजा बनाया ।

    • तत : शकुनिगणा : हिमवत् – प्रदेशे एकस्मिन् पाषाणे सन्निपत्य

उसके बाद पक्षीगण हिमालय प्रदेश में एक शिला पर एकत्रित होकर ‘

    • ‘ मनुष्येषु राजा प्रज्ञायते तथा चतुष्पदेषु च ।

 मनुष्यों में राजा सुना जाता है और जानवरों में भी

    • अस्माकं पुनरन्तरे राजा नास्ति ।

लेकिन हमारे बीच में राजा नहीं है ।

    • अराजको वासो नाम न वर्तते ।

बिना राजा के रहना उचित नहीं है ।

    • एको राजस्थाने स्थापयितव्यः ‘ इति उक्तवन्तः ।

 किसी एक को राजा के पद पर स्थापित करना चाहिए ‘ — ऐसा कहा ।

    • अथ ते परस्परमवलोकयन्तः एकमुलूकं दृष्ट्वा ‘ अयं नो रोचते ‘ इत्यवोचन ।

तब उन्होंने एक दूसरे पर दृष्टि डालते हुए एक उल्लू को देखकर कहा — ‘ यह हमको अच्छा लगता है ।

    • अथैकः शकुनिः सर्वेषां मध्यादाशयग्रहणार्थं त्रिकृत्व : अश्रावयत् ।

इसके बाद एक पक्षी ने सभी के बीच में राय जानने के लिए तीन बार घोषणा की ।

    • ततः एकः काकः उत्थाय ‘ तिष्ठ तावत् ‘

 तब एक कौआ उठकर बोला — जरा ठहरो

    • अस्य एतस्मिन् राज्याभिषेककाले एवंरूपं मुखं ,

इसका इस राज्याभिषेक के समय ऐसा मुख है

    • क्रुद्धस्य च कीदृशं भविष्यति !

तो क्रुद्ध होने पर कैसा होगा ?

    • अनेन हि क्रुद्धेन अवलोकिता : वयं तप्तकटाहे

इसके क्रुद्ध होकर देखने पर तो हम लोग गर्म कड़ाही में

    • प्रक्षिप्तास्तिला इव तत्र तत्रैव धडक्ष्यामः ।

डाले तिलों की भांति वहीं – वहीं पर भुन जायेंगे

    • ईदृशो राजा मह्यं न रोचते इत्याह

ऐसा राजा मुझे अच्छा नहीं लगता । ऐसा बोला ।

    • न मे रोचते भद्रं वः उलूकस्याभिषेचनम् ।

 मुझे आपका उल्लू को राज्याभिषेक करना अच्छा नहीं लगता

    • अक्रुद्धस्य मुखं पश्य कथं क्रुद्धो भविष्यति ।।

इसके अक्रुद्ध मुख को देखो , क्रुद्ध होने पर यह कैसा लगेगा ?

    • स एवमुक्त्वा ‘ मह्यं न रोचते ‘ ‘ मह्यं न रोचते ‘

वह ऐसा कहकर ‘ मुझे अच्छा नहीं लगता , मुझे अच्छा नहीं लगता ‘ ,

    • इति विरुवन् आकाशे उदपतत् ।

ऐसा चिल्लाता हुआ आकाश में उड़ गया ।

    • उलूकोऽपि उत्थाय एनमन्वधावत् ।

उल्लू भी उठकर उसके पीछे दौड़ा ।

    • तत आरभ्य तौ अन्योन्यवैरिणौ जातौ ।

तभी से लेकर वे एक दूसरे के बैरी हो गए ।

    • शकुनयः अपि सुवर्णहंसं राजानं कृत्वा अगमन्

पक्षीगण भी सुवर्णहंस को राजा बनाकर चले गए ।

( २ ) नृत्यजातकम्

सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य – पुस्तक ‘ संस्कृत दिग्दर्शिका ‘ के जातक कथा पाठ के ‘ नृत्यजातकम् ‘ नामक पाठ से संगृहीत है ।

    • अतीते प्रथमकल्पे चतुष्पदा : सिंह राजानमकुर्वन् ।

विगत  प्रथम कल्प में चौपायों ने सिंह को राजा बनाया ।

    • मत्स्या आनन्दमत्स्यं , शकुनयः सुवर्णहंसम् ।

मछलियों ने आनन्द मछली को एवं पक्षियों ने सुवर्ण हंस को राजा बनाया ।

    • तस्य पुन : सुवर्णराजहंसस्य दुहिता हंसपोतिका अतीव रूपवती आसीत् ।

उस सुवर्ण राजहंस की पुत्री हंसपोतिका अत्यन्त सुन्दरी थी ।

    • स तस्यै वरमदात् यत्

उसने उस हंसकुमारी को वर दिया

    • सा आत्मनश्चित्तरुचितं स्वामिनं वृणुयात् इति ।

कि वह अपने मनोनुकूल पति को चुन ले ।

    • हंसराज : तस्यै वरं दत्त्वा हिमवति शकुनिसचे संन्यपतत् ।

हंसराज ने उसे वर देकर हिमालय पर पक्षियों की सभा बुलायी ।

    • नानाप्रकारा : हंसमयूरादयः शकुनिगणा : समागत्य

नाना प्रकार के हंस मयूर आदि पक्षीगण आकर

    • एकस्मिन् महति पाषाणतले संन्यपतन् ।

एक विशाल शिला पर एकत्रित हुए ।

    • हंसराज : आत्मनः चित्तरुचितं स्वामिकम् आगत्य वृणुयात्

हंसराज ने ‘ अपने चित्त को रुंचने वाला पति आकर चुनलो

    • इति दुहितरमादिदेश

‘ ऐसा पुत्री को आदेश दिया ।

    • सा शकुनसङ्के अवलोकयन्ती

उसने पक्षी समूह को देखते हुए

    • मणिवर्णग्रीवं चित्रप्रेक्षणं मयूरं दृष्ट्वा

नीलमणि के रंग की गर्दन और रंग – बिरंगे पंखों वाले मयूर को देखकर

    • ‘ अयं मे स्वामिको भवतु ‘ इत्यभाषत ।

यह मेरा स्वामी हो , ऐसा  कहा |

    • मयूर : ‘ अद्यापि तावन्मे बलं न पश्यसि

मोर ने अभी ‘ मेरे बल को नहीं देखा है ‘

    • ‘ इति अतिगर्वेण लज्जाञ्च त्यक्त्वा

ऐसा कह अति गर्व से और लज्जा त्यागकर

    • तावन्महत : शकुनिसङ्घस्य मध्ये पक्षौ प्रसार्य नर्तितुमारब्धवान्

उस विशाल पक्षियों की सभा के बीच पंख फैलाकर नाचना आरम्भ कर दिया

    • नृत्यन् चाप्रतिच्छन्नोऽभूत् ।

और नाचते हुए नग्न हो गया ।

    • सुवर्णराजहंस : लज्जित : ‘ अस्य नैव ह्रीः अस्ति

स्वर्ण वर्ण राजहंस ने लज्जित होकर , ‘ इसे न लज्जा है

    • न बर्हाणां समुत्थाने लज्जा ।

न पंखों को उठाने में संकोच ,

    • नास्मै गतत्रपाय स्वदुहितरं दास्यामि ‘ इत्यकथयत् ।

इस लज्जा – हीन को अपनी पुत्री नहीं दूंगा ऐसा कहा ।

    • हंसराजः तदैव परिषन्मध्ये आत्मनः भागिनेयाय ‘

हंसराज ने उसी परिषद् के बीच अपने भांजे

    • हंसपोतकाय दुहितरमदात् ।

 हंसकुमार को पुत्री दे दी ।

    • मयूरो हंसपोतिकामप्राप्य लज्जित :

मोर हंस – पुत्री को न पाकर लज्जित होकर

    • तस्मात् स्थानात् पलायितः ।

उस स्थान से भाग गया ।

    • हंसराजोऽपि हृष्टमानस : स्वगृहम् अगच्छत् ।

हंसराज भी प्रसन्न मन से अपने घर को चला गया ।

सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण पाठ:-

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