UP Board Sanskrit Digdarshika Chpter आत्मज्ञः एव सर्वज्ञ:|| Atmagya Ev Sarvagya Hindi Anuvad

आत्मज्ञः एव सर्वज्ञ: ( Atmagya Ev Sarvagya Hindi Anuvad)

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Subject / विषयGeneral & Sahityik Hindi / सामान्य & साहित्यिक हिंदी
Class / कक्षा12th
Chapter( Lesson) / पाठChpter -3 || Sanskrit Digdarshika
Topic / टॉपिक  आत्मज्ञः एव सर्वज्ञ:|| Atmagya Ev Sarvagya Hindi Anuvad
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All Chapters/ सम्पूर्ण पाठ्यक्रम सामान्य हिंदी 

सन्दर्भ –बृहदारण्यकोपनिषद् से उद्धृत यह गद्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘ संस्कृत दिग्दर्शिका ‘ के ‘ आत्मज्ञ एव सर्वज्ञः ‘ शीर्षक से लिया गया है ।

प्रत्येक पंक्ति का अलग हिंदी अनुवाद- UP Board Sanskrit Digdarshika Chpter आत्मज्ञः एव सर्वज्ञ:|| Atmagya Ev Sarvagya Hindi Anuvad

 

  • याज्ञवल्क्यो मैत्रेयीमुवाच-

याज्ञवल्क्य मैत्रेयी से बोले —

    • मैत्रेयि ! उद्यास्यन् अहम् अस्मात् स्थानादस्मि ।

मैत्रेयि ! मैं इस स्थान ( गृहस्थाश्रम ) से ऊपर जा रहा हूं ।

    • ततस्तेऽनया कात्यायन्या विच्छेदं करवाणि इति ।

अतः तुम्हारा इस कात्यायनी से बटवारा कर दूं ।

    • मैत्रेयी उवाच – यदीयं सर्वा पृथिवी वित्तेन पूर्णा स्यात्

मैत्रेयी बोली — यदि यह सम्पूर्ण पृथ्वी धन से पूर्ण हो जावे

    • तत् किं तेनाहममृता स्यामिति ।

तो क्या मैं उससे अमर हो जाऊंगी ।

    • याज्ञवल्क्य उवाच – नेति ।

याज्ञवल्क्य बोले – ‘ नहीं ‘ । ।

    • यथैवोपकरणवतां जीवनं तथैव ते जीवनं स्यात् ।

 जैसा साधन – सम्पन्न धनिकों का जीवन होता है , वैसा ही तुम्हारा भी जीवन होगा

    • अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन इति ।

धन से अमरता की तो आशा नहीं है ।

    • सा मैत्रेयी उवाच- येनाहं नामृता स्याम्

उस मैत्रेयी ने कहा — जिस धन से मैं अमर नहीं हो सकती

    • किमहं तेन कुर्याम् ।

उससे मैं क्या करूं ?

    • यदेव भगवान् केवलममृतत्त्वसाधनं जानाति ,

अतः आप जो अमरता का केवल साधन जानते हैं

    • तदेव मे ब्रूहि ।

उसी को मुझसे कहिए ।

    • याज्ञवल्क्य उवाच – प्रिया नः सती त्वं प्रियं भाषसे ।

याज्ञवल्क्य बोले — तुम हमारी प्रिय हो , तुम प्रिय बात कह रही हो ।

    • एहि , उपविश , व्याख्यास्यामि ते अमृतत्त्वसाधनम् ।

आओ , बैठो , तुम्हारे लिए अमृत के साधन की व्याख्या करूंगा ।

    • याज्ञवल्क्य उवाच- न वा अरे मैत्रेयि !

याज्ञवल्क्य बोले — अरी मैत्रेयि !

    • पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवति ।

पति की इच्छा पूर्ति के लिए पति प्रिय नहीं होता ,

    • आत्मनस्तु वै कामाय पति : प्रियो भवति ।

अपनी इच्छा पूर्ति के लिए पति प्रिय होता है ।

    • न वा अरे , जायायाः कामाय जाया प्रिया भवति ,

इसी प्रकार पत्नी की कामना पूर्ति के लिए पत्नी प्रिय नहीं होती

    • आत्मनस्तु वै कामाय जाया प्रिया भवति ।

अपनी ही इच्छा पूर्ति के लिए पत्नी प्रिय होती है ।

    • न वा अरे पुत्रस्य वित्तस्य च कामाय

अरे पुत्र अथवा धन की कामना से

    • पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति

पुत्र या धन प्रिय नहीं होता है ,,

    • आत्मनस्तु वै कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति ।

अपनी ही कामना पूर्ति के लिए पुत्र अथवा धन प्रिय होता है ।

    • न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवति ,

अरे ! नहीं सभी की कामना से सभी प्रिय होते हैं ,

    • आत्मनस्तु वै कामाय सर्वं प्रियं भवति ।

अपनी ही कामना पूर्ति के लिए सब प्रिय होते हैं ।

    • तस्माद् आत्मा वा अरे मैत्रेयि !

इसलिए हे मैत्रेयि ! आत्मा ही

    • दृष्टव्य : दर्शनार्थं श्रोतव्यः , मन्तव्यः

देखने योग्य , दर्शन हेतु , सुनने योग्य , मनन हेतु

    • निदिध्यासितव्यश्च ।

और ध्यान करने हेतु है ।

    • आत्मनः खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति ।

निश्चय ही आत्म दर्शन से यह सब ज्ञान होता है ।

सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण पाठ:-

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