UP Board Solution of Class 10th Social Science Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना – Bhumandalikrit vishv ka banna

UP Board Solution of Class 10th Social Science Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना – Bhumandalikrit vishv ka banna Question Answer

पाठ 4 – भूमंडलीकृत विश्व का बनना इतिहास के नोट्स| Class 10th – PDF नोट्स (Notes)| पाठ 3- भूमंडलीकृत विश्व का बनना (Bhumandalikrit vishv ka banana) Laghu Utariya Prashn And Deergh/Vistrit Uttariya Prashn. लघु उत्तरीय प्रश्न और दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर. कक्षा १० सामाजिक विज्ञान पाठ 3  भूम्नाद्लिकृत विश्व का बनना. 

Bhumandalikrit vishv ka banna

भूमंडलीकृत विश्व का बनना- लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को किस प्रकार से उत्प्रेरित किया है ? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर.प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को निम्नलिखित प्रकार से उत्प्रेरित किया है

  • विगत 50 वर्षों में परिवहन प्रौद्योगिकी में अत्यधिक उन्नति हुई है। इसने लम्बी दूरियों तक वस्तुओं तथा वस्तुओं की तीव्र आपूर्ति को कम लागत पर सम्भव किया है, जिसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को उत्प्रेरित किया है। gyansindhuclasses.com

.सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग विश्व में एक-दूसरे से सम्पर्क ‘स्थापित करने, सूचनाओं को तत्काल प्राप्त करने और दूरवर्ती क्षेत्रों से संवाद करने में किया जाता है। इसने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को सबसे तीव्र उत्प्रेरित किया है।

 

प्रश्न 2. 17वीं शताब्दी से पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए। एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिका महाद्वीपों के बारे में चुनें।

उत्तर.17वीं शताब्दी से पूर्व एशिया तथा अमेरिका के दो प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं

(i) आहार या भोज्य पदार्थों का आदान-प्रदान खाद्य पदार्थों का आदान-प्रदान सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी उदाहरण हैं, जो एक देश के यात्रियों द्वारा दूसरे देशों या महाद्वीपों में जाने-अनजाने में पहुँचा दिया गया। इसी तरह चीनी रेशम का व्यापार में कितना महत्त्वपूर्ण स्थान था, इसका पता बहुत सारे सिल्क मार्गों से चलता है, जो 15वीं सदी में अस्तित्व में आ चुके थे। इन रास्तों से ही चीनी पॉटरी एवं अन्य सामग्री महाद्वीपों में पहुँचाई जाती थी। gyansindhuclasses.com

(ii) बीमारी या कीटाणुओं का आदान-प्रदान 16वीं शताब्दी के मध्य तक पुर्तगाली एवं स्पेनिश सेनाओं ने अमेरिका को उपनिवेश करना शुरू किया। इस दौरान ही व्यापार के साथ बीमारी एवं कीटाणुओं का भी प्रसार हुआ । चेचक जैसी बीमारी अमेरिका के लिए घातक साबित हुई, जो एशियाई देशों से यहाँ तक पहुँची थी।

प्रश्न 3. बताइए कि पूर्व आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में किस प्रकार मदद की?

उत्तर.पूर्व आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में निम्न प्रकार मदद की

.यूरोपियनों के सबसे शक्तिशाली हथियारों में से परम्परागत प्रकार का सैनिक हथियार नहीं था। ये हथियार चेचक जैसे कीटाणु थे, जो स्पेनिश सैनिकों और अफसरों के साथ वहाँ पहुँचे।

.अधिक समय से दुनिया से अलग रहने के कारण अमेरिका के लोगों के शरीर में यूरोप से आने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग प्रतिरोधी क्षमता नहीं थी, जिसके परिणामस्वरूप इस स्थान पर चेचक प्राणघातक सिद्ध हुई ।

  • एक बार संक्रमण के पश्चात् यह पूरे महाद्वीप में फैल गई।

.जिन स्थानों पर यूरोपीय लोग नहीं पहुँच पाए वहाँ के लोग भी चेचक के संक्रमण से संक्रमित हो गए और धीरे-धीरे इन समुदायों को ही समाप्त कर डाला। इस प्रकार घुसपैठियों का रास्ता साफ हो गया ।

प्रश्न 4. अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।

अथवा 19वीं शताब्दी के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों द्वारा बताए गए तीन प्रकार के प्रवाहों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर अर्थशास्त्रियों ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में तीन तरह के प्रवाह या गतियों का उल्लेख किया है, जो निम्नलिखित हैं

(i) व्यापार का प्रवाह भारत का अपने पड़ोसी राज्यों के साथ हमेशा ही व्यापारिक सम्बन्ध रहा है यहाँ से गेहूं सूती, ऊनी तथा रेशमी वस्त्र इंग्लैण्ड में भेजे जाते थे। 1812 से 1871 ई. के बीच कच्चे कपास का निर्यात 5% से बढ़कर 35% तक हो गया था। कपड़ों की रंगाई के लिए नील का व्यापार भी बड़े पैमाने पर था, जिसका निर्यात होता था। अफीम की कृषि भी अधिक होने से इसका निर्यात किया जाता था। ब्रिटेन द्वारा भारतीय अफीम को चीन में निर्यात किया जाता था। इस तरह भारतीय व्यापारियों द्वारा गेहूँ, कपास, पटसन, ऊन, रेशम, चाय तथा अन्य पदार्थों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए विदेशी व्यापार पर बल दिया गया। gyansindhuclasses.com

(ii) श्रम का प्रवाह 19वीं शताब्दी में विश्व के कई देशों में भारत के मजदूरों को बागानों, खाद्यान्नों, सड़कों तथा रेलवे परियोजनाओं में काम के लिए ले जाया गया।

(iii) पूँजी का प्रवाह शिकारीपूरी श्रॉफ और नाटुकोट्टई चेट्टियार उन बहुत सभी बैंकरों और व्यापारियों में से एक थे, जो मध्य एवं दक्षिण पूर्व एशिया में निर्यातोन्मुखी खेती के लिए कर्ज देते थे।

प्रश्न 5. खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास के दो उदाहरण दें।

अथवा आधुनिक तकनीक ने खाद्य उपलब्धता को कैसे पूरे विश्व में पहुँचाया? स्पष्ट करें।

उत्तर.खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव की प्रगति के परिणामस्वरूप सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन प्रभावित हुआ। खाद्य उपलब्धता पर तकनीक के दो प्रभावों का विवरण निम्नलिखित हैं। gyansindhuclasses.com

(i) रेलवे नेटवर्क का प्रसार रेलवे के प्रसार ने भोजन को दूर-दूर तक पहुँचाने में सहायता की। अब भोजन आस-पास के गाँवों या कस्बों की बजाय दूर दराज के शहरों से मंगाए जाने लगे पानी के बड़े जहाजों के माध्यम से भोज्य सामग्री दूसरे देशों तक भी पहुँचाई जाने लगी थी।

(ii) रेफ्रिजरेशन तकनीक का विकास 1870 के दशक तक यूरोप में कच्चे मांस के स्थान पर जीवित जानवर भेजे जाते थे, जिन्हें बाद में यूरोप के देशों में ही काटा जाता था, किन्तु यह व्यापार काफी महँगा साबित हो रहा था। जल्द ही पानी के जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीक स्थापित कर दी गई, जिससे जल्दी खराब होने वाली खाद्य सामग्री को भी लम्बी यात्राओं पर ले जाया जाने लगा। इससे अब जानवरों की बजाय उनका मांस आयात किया जाने लगा।

प्रश्न 6. भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामन्दी के किन्हीं तीन प्रभावों का उल्लेख कीजिए ।

अथवा भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक महामन्दी के किन्हीं तीन परिणामों का उल्लेख कीजिए |

उत्तर.भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामन्दी के प्रभाव / परिणाम निम्न प्रकार है

(i) महामन्दी के कारण भारत के निर्यात के आयात का अर्द्धपतन हो गया और प्राथमिक उत्पादों (जैसे गेहूं व जूट) का मूल्य वर्ष 1928 से 1934 के बीच तेजी से गिर गया, लेकिन औपनिवेशिक सरकार ने राजस्व की माँग को कम करने से मना कर दिया, इसलिए किसान बुरी तरह से संकट में आ गए।

(ii) इस अवधि (वर्ष 1928 से 1934) के दौरान भारत कीमती धातुओं विशेष रूप से सोने का निर्यातक बन गया।

(iii) वैश्विक आर्थिक उगाही अर्थात् आर्थिक व्यवस्था को वैश्विक रूप से बढ़ावा मिला, लेकिन इससे भारतीय किसानों को बहुत कम लाभ मिला। पूरे भारत में किसानों की दशा चित्ताजनक हो गई। नियमित आय वाले लोगों को मूल्य के गिरने के कारण कम समस्या का सामना करना पड़ा। वर्ष 1931 में महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को शुरू कर दिया। gyansindhuclasses.com

प्रश्न 7. ब्रेटनवुड्स समझौते का क्या अर्थ है? इसका क्या उद्देश्य था?

अथवा विश्व अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करने में ब्रेटनवुड्स ने क्या भूमिका निभाई ?

उत्तर.दो विश्व युद्धों के पश्चात् वैश्विक स्तर पर आर्थिक अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, जिसके द्वारा औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार को बनाए रखने की बात की गई। इस फ्रेमवर्क पर जुलाई, 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटनवुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और पाटे से निपटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गई।

प्रश्न 8. जी-27 देशों से आप क्या समझते हैं? जी-27 को किस आधार पर ब्रेटनवुड्स की जुड़वाँ सन्तानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है? व्याख्या कीजिए।

अथवा जी- 77 संगठन विकासशील देशों ने क्यों बनाया?

उत्तर.विकासशील देशों को 1950-60 के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं से कोई उचित लाभ नहीं मिल सका। इस समस्या को देखते हुए एक नई आर्थिक प्रणाली जी – 77 का गठन हुआ। जी- 77 विकासशील देशों का एक समूह था, जिन्हें 1944 में ब्रेटनवुड्स के सम्मेलन में होने वाले नियमों से कोई लाभ नहीं हुआ था। ब्रेटनवुड्स के सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक का जन्म हुआ था, जिन्हें ब्रेटनवुड्स की जुड़वाँ सन्तान भी कहा जाता है। gyansindhuclasses.com

भूमंडलीकृत विश्व का बनना- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कॉर्न लॉ से क्या आशय है? कॉर्न लॉ के उन्मूलन से क्या प्रभाव पड़ा? व्याख्या करें।

उत्तर.जमींदारों के दबाव के कारण सरकार ने कॉर्न (मक्का) के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस कानून को सामान्यतः कॉर्न लॉ के नाम से जाना जाता था। कॉर्न लॉ के मत्रपात के बाद भोज्य पदार्थों का मूल्य अत्यधिक हो गया।, नगरों में रहने वाले उद्योगपति और लोग उच्च मूल्यों के कारण अप्रसन्न थे। उन्होंने कॉर्न लॉ का उन्मूलन करने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डाला। कॉर्न लॉके उन्मूलन के बाद ब्रिटेन में भोजन पहले की अपेक्षा अत्यधिक सस्ती दरों पर आयातित होने लगा। ब्रिटिश सरकार कृषि आयात से प्रतिस्पर्द्धा करने में अयोग्य थी। भूमि का विशाल क्षेत्र खेती के योग्य नहीं था और हजारों लोगों ने अपनी आजीविका खो दी थी। वे कार्यों की खोज में शहर आ गए अथवा विदेशों की ओर पलायन कर गए।

कॉर्न लॉ के उन्मूलन के प्रभाव

  • .भोजन के मूल्य में गिरावट आने से ब्रिटेन में खपत में वृद्धि हो गई। 19वीं शताब्दी के मध्य से ब्रिटेन में तेजी से औद्योगिक वृद्धि हुई और आय भी बढ़ गई तथा भोजन के लिए अधिक माँग में भी बढ़ोतरी हुई।
  • कृषि सम्बन्धी उत्पादों का निर्यात करने के लिए नए रेलवे स्टेशनों व बन्दरगाहों की आवश्यकता पड़ी। कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि होने से अत्यधिक आवासों व प्रबन्धनों की आवश्यकता हुई। इन सभी गतिविधियों के लिए पूँजी और श्रम की आवश्यकता थी
  • लन्दन जैसे वित्तीय केन्द्रों से पूँजी का प्रवाह होने लगा। श्रम की माँग के कारण 19वीं शताब्दी में लाखों लोग बेहतर जीवन की तलाश में यूरोप से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की ओर प्रवास करने लगे।
  • 1890 ई. से वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था का विकास हुआ। gyansindhuclasses.com
  • कभी-कभी रेलों या जहाजों द्वारा हजारों मील दूर से भोजन आता था।
  • यह नाटकीय परिवर्तन यद्यपि छोटे पैमाने पर पश्चिमी पंजाब में भी हुआ। भारत में ब्रिटिश शासकों ने निर्यात हेतु गेहूँ और कपास में बढ़ोतरी करने के लिए उपजा कृषि भूमि में सिंचाई का विकास कर पंजाब को रूपान्तरित कर दिया।
  • क्षेत्रीय वस्तुओं का विकास इतनी तेजी से हुआ कि 1820 ई. से वर्ष 1914 के बीच विश्व व्यापार 25 से 40 गुना बढ़ गया।

प्रश्न 2. “अनुबन्धित श्रमिकों ने अपने जीवन की अभिव्यक्ति के अपने ढंग खोज लिए थे।” कथन की समीक्षा कीजिए।

अथवा 19वीं शताब्दी में भारत से विदेश में श्रमिकों को क्यों ले जाया गया? ये श्रमिक अधिकतर किस देश के थे? उन्हें किन शर्तों पर स्वदेश लौटने की छूट दी जाती थी?

अथवा गिरमिटिया मजदूरों ने शेष विश्व में अपनी सांस्कृतिक पहचान किस प्रकार बनाए रखी थी ? अथवा अनुबन्धित मजदूर कौन थे? उन्होंने किस प्रकार से अपनी पहचान बनाई ?

उत्तर.अनुबन्धित मजदूर से तात्पर्य किसी नियोक्ता के लिए एक निश्चित समय के लिए विशिष्ट राशि पर अनुबन्ध के अन्तर्गत कार्य करने वाले बँधुआ मजदूर से है, जिन्हें घर या नए देशों में ही भुगतान किया जाता था। 19वीं शताब्दी में लाखों भारतीय व चीनी मजदूर बागानों, खदानों और विश्व की विभिन्न निर्माणकारी परियोजनाओं में कार्य करने के लिए गए। अधिकांश भारतीय अनुबन्धित कर्मचारी पूर्वी प्रदेश के वर्तमान राज्यों से, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु से आए। gyansindhuclasses.com 19वीं शताब्दी के मध्य में भारत के इन राज्यों में कई सामाजिक परिवर्तन हुए; जैसे- कुटीर उद्योगों का पतन हो गया, जमीन का किराया बढ़ गया और खदानों तथा बागानों के लिए जमीन को साफ कर दिया गया। इन सब कारणों ने गरीबों को कार्य की खोज में प्रवास करने के लिए बाध्य कर दिया।

भारतीय अनुबन्धित प्रवासियों का गन्तव्य अर्थात् स्थान भारतीय अनुवन्धित प्रवासियों के मुख्य गन्तव्य कैरीबियाई द्वीप मुख्यतः त्रिनिदाद, गुयाना तथा सूरीनाम, मॉरिशस और फिजी थे। gyansindhuclasses.com इसके अतिरिक्त उनके स्थानीय आवास के आस-पास के अन्य स्थान थे। तमिल प्रवासी सीलोन और मलाया गए । कुछ अनुबन्धित कर्मचारी असम के चाय बागानों में नियुक्त किए गए थे।

अनुबन्धित मजदूरों की स्थिति इन मजदूरों की नियुक्ति नियोक्ता से जुड़े और छोटे-छोटे कमीशन पाने वाले एजेण्टों के द्वारा की गई थी। एजेण्ट अनुबन्धित मजदूरों से उनकी बेहतर आजीविका दशाओं का, अत्यधिक धन और अन्य सुविधाओं का वादा करके उनकी नियुक्ति करते थे, तथापि जब वे बागानों में पहुँचते थे, तो वहाँ वे विभिन्न परिस्थितियाँ पाते थे, जिनकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

प्रश्न 3. 19वीं शताब्दी की विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देने में प्रौद्योगिकी की भूमिका स्पष्ट कीजिए।

अथवा 19वीं शताब्दी के आविष्कारों को प्रौद्योगिकी ने द्रुतगति से बढ़ाया, समीक्षा करें।

अथवा विश्व अर्थव्यवस्था ने कैसे स्थान ग्रहण किया इसमें तकनीकी का क्या योगदान है?

उत्तर.19वीं शताब्दी की विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देने में तकनीकी की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है, जिसे निम्नलिखित कारणों द्वारा समझा जा सकता है–

  1. विश्व अर्थव्यवस्था में तकनीकी आविष्कार रेलवे, भाप के जहाज, टेलीग्राफ आदि महत्त्वपूर्ण आविष्कार थे, जिनके बिना 19वीं शताब्दी की विश्व अर्थव्यवस्था को आकार नहीं दिया जा सकता था ! gyansindhuclasses.com
  2. बाजारों की परस्पर सम्बद्धता इस समय के परिवहन में नए निवेश व सुधारों से तीव्रगामी रेलगाड़ियाँ, हल्की बोगियाँ और विशालकाय जलपोतों को कम खर्च में कृषि उत्पाद एवं अन्य उत्पादों को खेतों से दूर-दूर के बाजारों में सुगमता से पहुँचाने में सहायता की।
  3. मांस के व्यापार पर प्रभाव 1870 के दशक तक अमेरिका से यूरोप को मांस का निर्यात नहीं किया जाता था, अपितु जीवित जानवर भेजे जाते, जिन्हें यूरोप ले जाकर काटा जाता था । gyansindhuclasses.com
  4. जीवित जानवर जलपोतों में अधिक जगह घेरते थे। समुद्री यात्रा में कई पशु मर जाते, बीमार हो जाते, भार कम हो जाता या फिर अखाद्य बन जाते। अतः मांस के दाम बहुत ऊँचे और निर्धन यूरोपियों की पहुँच से परे थे। उच्च कीमतों के कारण माँग तथा उत्पादन बहुत कम था, परन्तु रेफ्रिजरेशन युक्त जलपोतों ने मांस को एक क्षेत्र से दूसरे तक परिवहन करना सुगम बना दिया।
  5. सामाजिक शान्ति और साम्राज्यवाद उपनिवेशवाद रेफ्रिजरेशन की तकनीक के कारण न केवल समुद्री यात्रा में आने वाला खर्च कम हो गया, बल्कि यूरोप में मांस के दाम भी गिर गए।
  6. विश्व बाजारों को आपस में जोड़ने में तकनीक ने बहुत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका gyansindhuclasses.com निभाई, जिसके फलस्वरूप उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला।

प्रश्न 4. प्रथम विश्वयुद्ध ने ब्रिटेन में लोगों के आर्थिक जीवन में किस प्रकार परिवर्तन किया?

अथवा प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान विश्व के आर्थिक हालातों के विषय में संक्षेप में लिखिए।

उत्तर.इस महायुद्ध से पूर्व ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी, किन्तु युद्ध के पश्चात् सबसे लम्बा संकट भी इसे ही झेलना पड़ा। जिसका वर्णन निम्नलिखित है

भारत और जापान से प्रतिस्पर्द्धा (विदेशी कर्ज) इस युद्ध के समय भारत और जापान में उद्योग विकसित हो रहे थे। ऐसे में ब्रिटेन को भारतीय बाजार में पहले वाली स्थिति को पाना मुश्किल हो गया था। इसके अतिरिक्त जापान से भी मुकाबला करना था। युद्ध में हुए खर्चों को पूरा करने के लिए ब्रिटेन ने अमेरिका से जो कर्ज लिया था, उसकी भरपाई भी करना आवश्यक था। ऐसे में प्रथम महायुद्ध के पश्चात् ब्रिटेन पर भारी कर्जों का दबाव था।

आर्थिक उछाल का अन्त इस महायुद्ध के कारण विश्व में आर्थिक उछाल का माहौल उत्पन्न हो गया था, क्योंकि माँग और उत्पादन तथा रोजगार में बढ़ोतरी हुई, किन्तु युद्ध के पश्चात् जब यह उछाल शान्त हुआ gyansindhuclasses.com तो उत्पादन गिरने लगा तथा बेरोजगारी बढ़ने लगी। वर्ष 1921 में ब्रिटेन में प्रत्येक पाँच में से एक ब्रिटिश मजदूर बेरोजगार था ।

व्यय में कटौती ब्रिटिश सरकार ने अब भारी भरकम युद्ध सम्बन्धी व्यय में भी कटौती शुरू कर दी, जिससे शान्तिकालीन करों के सहारे ही उनकी भरपाई की जा सके।

ब्रिटिश अर्थव्यवस्था का कमजोर होना युद्ध के समय तक पूर्वी यूरोप गेहूं की आपूर्ति का एक बड़ा केन्द्र था, किन्तु युद्ध के दौरान तो सारी कृषि आधारित अर्थव्यवस्थाएँ भी संकट में रहीं। केवल कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में गेहूँ की पैदावार अचानक बढ़ने लगी। युद्ध की समाप्ति के पश्चात् पूर्वी यूरोप में गेहूँ की पैदावार सुधरने लगी और बाजारों में इसकी अधिकता हो गई। अनाज की कीमतें गिरने लगी, जिससे किसान कर्ज में डूबने लगे।

प्रश्न 5. महामन्दी के कारणों की व्याख्या कीजिए और बताइए भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?

अथवा महामन्दी का क्या आशय है? इसके दो प्रमुख कारण बताइए। इसके दो प्रभाव भी लिखिए।

अथवा वैश्विक आर्थिक महामन्दी के किन्हीं तीन कारणों का उल्लेख कीजिए।

अथवा महामन्दी के कारणों की व्याख्या करें।

उत्तर.वर्ष 1929 के आस-पास महामन्दी (Great Depression) शुरू हो गई और 1930 के दशक के मध्य तक बनी रही। इस अवधि के दौरान संसार के अधिकांश देशों ने उत्पादन, रोजगार, आय और व्यापार gyansindhuclasses.com में अत्यधिक गिरावट को महसूस किया।

महामन्दी के लिए उत्तरदायी कारक

महामन्दी के लिए निम्न कारक उत्तरदायी थे

पहला कारक कृषि उत्पादन की अधिकता की समस्या का बने रहना था इससे कृषि उत्पादों का मूल्य घट गया। किसान ने अपनी सम्पूर्ण आय को बनाए रखने के लिए उत्पादन का विकास करने का प्रयास किया। इससे स्थिति खराब हो गई तथा कृषि उत्पादों का मूल्य और भी गिर गया।

दूसरा कारक 1920 के दशक के मध्य में बहुत से देशों ने अमेरिका से कर्ज लेकर अपनी निवेश सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा किया था। अमेरिकी पूँजीवादियों ने यूरोपीय देशों को ऋण देना बन्द कर दिया। इससे यूरोप में कुछ प्रमुख बैंक धराशायी हो गए और मुद्रा का पतन हो गया; जैसे— स्टर्लिंग।

तीसरा कारक अमेरिका इस मन्दी से गम्भीर रूप से प्रभावित हुआ, क्योंकि बैंकों ने घरेलू ऋण वापिस लेना शुरू कर दिया। इसे ऋण वापसी (Back Loans) के नाम से जाना गया। किसान उपज नहीं बेच सके, परिवार तबाह हो गए और व्यवसाय ठप हो गए।

अन्ततः अमेरिका की बैंकिंग प्रणाली धराशायी हो गई, क्योंकि बैंक निवेशों, एकत्रित ऋणों तथा जमाकर्ताओं के धन को लौटा पाने में असमर्थ थे। अमेरिका ने आयात करों को दोगुना करके मन्दी में अपनी अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने का प्रयास किया, जिससे विश्व व्यापार बुरी तरह से नष्ट हो गया।

भारत और महामन्दी

  1. महामन्दी के कारण भारत के निर्यात व आयात का अर्द्धपतन हो गया और प्राथमिक उत्पादों (जैसे-गेहूं व जूट) का मूल्य वर्ष 1928 से 1934 के बीच तेजी से गिर गया, लेकिन औपनिवेशिक सरकार ने राजस्व की माँग को कम करने से मना कर दिया, इसलिए किसान बुरी तरह से संकट में आ गए।
  2. इस अवधि के दौरान भारत कीमती धातुओं विशेष रूप से सोने का निर्यातक बन गया। इससे वैश्विक आर्थिक उगाही अर्थात् आर्थिक व्यवस्था को वैश्विक रूप से बढ़ावा मिला, लेकिन इससे भारतीय किसानों को बहुत कम लाभ मिला। पूरे भारत में किसानों की दशा चिंताजनक हो गई।
  3. नियमित आय वाले लोगों को मूल्य के गिरने के कारण gyansindhuclasses.com कम समस्या का सामना करना पड़ा। वर्ष 1931 में महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को शुरू कर दिया।

प्रश्न 6. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के समक्ष क्या समस्याएँ थीं? इन्हें ब्रेटनवुड्स सम्मेलन द्वारा किस प्रकार सुलझाया गया?

उत्तर.द्वितीय विश्व युद्ध का परिणाम मानव के लिए और आर्थिक रूप से काफी भयावह रहा । यह प्रथम विश्वयुद्ध (1939-45) के दो दशकों के बाद प्रारम्भ हो गया। यह युद्ध धुरी शक्तियों (Axis Powers) (नाजी जर्मनी, जापान और इटली) और मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका) के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में कम से कम 6 करोड़ लोग (1939 में विश्व की जनसंख्या का लगभग 3% ) मारे गए और लाखों लोग घायल हो गए।

युद्ध के बाद का बन्दोबस्त और ब्रेटनवुड्स संस्थान युद्ध के आर्थिक अनुभवों से अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने दो मुख्य सबक तैयार किए

(i) पहला सबक वृहत उत्पादन पर आधारित किसी औद्योगिक समाज को व्यापक उपभोग की आवश्यकता थी । वृहत उपभोग के लिए उच्च और स्थायी आय की आवश्यकता थी तथा स्थायी आय के लिए पूर्ण और स्थिर रोजगार की आवश्यकता थी । इसके लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने चाहिए थे।

(ii) दूसरा सबक एक देश दूसरे देश से आर्थिक सम्पर्कों से सम्बन्धित था। पूर्ण रोजगार का लक्ष्य पाया जा सकता था, यदि वस्तुओं, पूँजी और श्रम के प्रवाहों को नियन्त्रण करने की शक्ति केवल सरकार के पास होती ।

इस फ्रेमवर्क पर जुलाई 1944 में अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी।

आई. एम. एफ. और विश्व बैंक की स्थापना

  • सदस्य राष्ट्रों के बाहरी अधिशेष और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटनवुड्स सम्मेलन ने अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष (International Monetary Fund, IMF) की स्थापना की।
  • युद्धोत्तर पुनर्निर्माण को वित्त पोषित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय gyansindhuclasses.com पुनर्निर्माण और विकास बैंक (विश्व बैंक के नाम से जाना जाने वाला) की स्थापना की गई।
  • IMF तथा विश्व बैंक ब्रेटन वुड्स संस्थान या ब्रेटनवुड्स ट्विन (ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ सन्तानें) भी कहा जाता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था, राष्ट्रीय मुद्रा और मौद्रिक व्यवस्था से जोड़ने वाली व्यवस्था है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत, राष्ट्रीय मुद्रा ने स्थिर विनिमय दर का पालन किया और अमेरिकी डॉलर स्थिर रहता था।
  • ब्रेटनवुड्स व्यवस्था ने पश्चिमी औद्योगिक राष्ट्रों और जापान के gyansindhuclasses.com लिए व्यापार और आय में स्थायी वृद्धि के युग का उद्घाटन किया। gyansindhuclasses.com

बहुविकल्पीय प्रश्न | भूमंडलीकृत विश्व का बनना

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