up board solution of class 9 Hindi chapter -1 jeevan parichay -Pratapnarayan Mishra class 9th hindi | प्रतापनारायण मिश्र जीवन-परिचय एवं कृतियाँ Class 9 Hindi Jivan Parichay 

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 jeevan parichay -Pratapnarayan Mishra

Up Board Class 9th Hindi Pratapnarayan Mishra ka jivan Parichay (Biography of Pratap Narayan Mishr) कक्षा 9 हिंदी चैप्टर प्रतापनारायण मिश्र का जीवन परिचय एवं कृतियाँ|

 

पं० प्रतापनारायण मिश्र जीवन-परिचय एवं कृतियाँ

               Chapter -1,  Jivan parichay, Pratap Narayan Mishra

जीवन-परिचय — पं० प्रतापनारायण मिश्र का जन्म उन्नाव जिला के बैजेगाँव में सन् 1856 ई० में हुआ था। इनके पिता पं० संकटाप्रसाद मिश्र एक ज्योतिषी थे वे पिता के साथ बचपन से ही कानपुर आ गये थे अंग्रेजी स्कूलों की अनुशासनपूर्ण पढ़ाई इन्हें रुचिकर नहीं लगी। फलतः घर पर ही आपने बंगला, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, फारसी का अध्ययन किया। लावनीबाजों के सम्पर्क में आकर मिश्र जी ने लावनियाँ लिखनी शुरू कीं और यहीं से इनकी कविता का श्रीगणेश हुआ। बाद में आजीवन इन्होंने हिन्दी की सेवा की।

कानपुर के सामाजिक-राजनीतिक जीवन से भी इनका गहरा सम्बन्ध था। वे यहाँ की अनेक सामाजिक संस्थाओं से सम्बद्ध थे। इन्होंने कानपुर में एक नाटक – सभा की भी स्थापना की थी। ये भारतेन्दु के व्यक्तित्व से अत्यन्त प्रभावित थे तथा इन्हें अपना गुरु और आदर्श मानते थे। अपनी हाजिरजवाबी और हास्यप्रियता के कारण वे कानपुर में काफी लोकप्रिय थे। इनकी मृत्यु कानपुर में ही सन् 1894 ई० में हुई

कृतियाँ – मिश्र जी द्वारा लिखित पुस्तकों की संख्या 50 हैं, जिनमें-

  • प्रेम-पुष्पावली,
  • मन की लहर,
  • मानस विनोद आदि काव्य-संग्रह;
  • कलि कौतुक, हठी हम्मीर, गो-संकट, भारत दुर्दशा (नाटक), जुआरी – खुआरी (प्रहसन) आदि प्रमुख हैं।
  • नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा ‘प्रतापनारायण मिश्र ग्रन्थावली’ नाम से इनकी समस्त रचनाओं का संकलन प्रकाशित हुआ है।

jeevan parichay -Pratapnarayan Mishra

साहित्यिक परिचय – प्रतिभा एवं परिश्रम के बल पर अपने 38 वर्ष के अल्प जीवन-काल में ही पं० प्रतापनारायण मिश्र ने हिन्दी-निर्माताओं की वृहद्यी ( भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट और प्रतापनारायण मिश्र ) में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। कविता के क्षेत्र में ये पुरानी धारा के अनुयायी थे ब्रजभाषा की समस्या की पूर्तियाँ ये खूब किया करते थे! हिन्दी – हिन्दुस्तान का नारा भी इन्होंने ही दिया था।

मिश्र जी का उग्र और प्रखर स्वभाव उनकी कविताओं की अपेक्षा उनके निबन्धों में विशेष मुखर हुआ। मिश्र जी के निबन्धों में आत्मीयता और फक्कड़पन की सरसता है। इन्होंने कुछ गम्भीर विषयों पर कलम चलायी है जिसकी भाषा अत्यन्त ही सधी और परिमार्जित है । हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में आज भी उनके जैसे लालित्यपूर्ण निबन्धकार की अभी बहुत कुछ कमी है। इनके निबन्धों में पर्याप्त विविधता है।

भाषा-शैली – मिश्र जी की भाषा मुहावरों और कहावतों से सजी हुई अत्यन्त ही लच्छेदार है जिसमें उर्दू, फारसी, संस्कृत शब्दों के साथ-साथ वैसवाड़ी के देशज शब्दों के भी प्रयोग हुए हैं। इनके निबन्धों की शैली में एक अद्भुत प्रवाह एवं आकर्षण है। इनकी शैली मुख्यतः दो प्रकार की हैं – (1) विनोदपूर्ण तथा (2) गम्भीर शैली। विनोदपूर्ण शैली को उत्कृष्ट कहना ‘समझदार ‘की मौत’ है। गम्भीर शैली में इन्होंने बहुत ही कम लिखा है। यह उनके स्वभाव के बिल्कुल ही विरुद्ध था ‘मनोयोग’ नामक निबन्ध इनकी गम्भीर शैली का उत्कृष्ट नमूना है

jeevan parichay -Pratapnarayan Mishra

  1. विनोदपूर्ण शैली — (i) ” इसके अतिरिक्त बात बनती है, बात बिगड़ती है, बात जाती है, बात खुलती है, बात छिपती है, – बात अड़ती है, बात जमती है, बात उखड़ती है, हमारे- तुम्हारे भी सभी काम बात पर ही निर्भर हैं । ” – बात
  2. गम्भीर शैली – संसार में संसारी जीव निस्संदेह एक-दूसरे की परीक्षा न करें तो काम न चले पर उनके काम चलने में कठिनाई यह है कि मनुष्य की बुद्धि अल्प है । अत: प्रत्येक विषय पर पूर्ण निश्चय सम्भव नहीं है ।

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