up board solution of class 9 Hindi chapter -6  jeevan parichay -Kaka kalelkar class 9th hindi | काका कालेलकर – जीवन-परिचय एवं कृतियाँ Class 9 Hindi Jivan Parichay 

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Up Board Class 9th Hindi Kaka kalelkar ka jivan Parichay (Biography of Kaka kalelkar) कक्षा 9 हिंदी चैप्टर काका कालेलकर  का जीवन परिचय एवं कृतियाँ|  Chapter -6 , Jivan parichay  Kaka kalelkar. Chapter – 4 Jivan parichay  Kaka kalelkar

काका कालेलकर  का जीवन परिचय एवं कृतियाँ

जीवन-परिचय — काका कालेलकर का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में 1 दिसम्बर, सन् 1885 ई० को हुआ था। कालेलकर हिन्दी के उन उन्नायक साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने अहिन्दी भाषा क्षेत्र का होकर भी हिन्दी सीखकर उसमें लिखना प्रारम्भ किया। उन्होंने राष्ट्रभाषा के प्रचार कार्य को राष्ट्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत माना है।

       काका कालेलकर ने सबसे पहले हिन्दी लिखी और फिर दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार का कार्य प्रारम्भ किया। अपनी सूझबूझ, विलक्षणता और व्यापक अध्ययन के कारण उनकी गणना देश के प्रमुख अध्यापकों एवं व्यवस्थापकों में होती है। काका साहब उच्चकोटि के विचारक एवं विद्वान् थे । भाषा प्रचार के साथ-साथ इन्होंने हिन्दी और गुजराती में मौलिक रचनाएँ भी की हैं। सन् 1981 ई० में आपकी मृत्यु हो गयी

कृतियाँ – काका साहब की कृतियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. निबन्ध संग्रह – जीवन – साहित्य, जीवन का काव्य – इन विचारात्मक निबन्धों में इनके संत व्यक्तित्व और प्राचीन भारतीय संस्कृति की सुन्दर झलक मिलती है।
  2. आत्म-चरित्र —— धर्मोदय’ तथा ‘जीवन लीला’ – इनमें काका साहब के यथार्थ व्यक्तित्व की सजीव झाँकी है।
  3. यात्रा-वृत्त—‘हिमालय-प्रवास’, ‘लोकमाता’, ‘यात्रा’, ‘उस पार के पड़ोसी’ आदि प्रसिद्ध यात्रावृत्त हैं।
  4. संस्मरण –‘संस्मरण’ तथा ‘बापू की झाँकी’ – इन रचनाओं में महात्मा गाँधी के जीवन का चित्रण है।
  5. सर्वोदय – साहित्य – आपकी ‘सर्वोदय’ रचना में सर्वोदय से सम्बन्धित विचार हैं।

साहित्यिक परिचय  किसी भी सुन्दर दृश्य का वर्णन अथवा पेचीदी समस्या का सुगम विश्लेषण उनके लिए आनन्द का विषय है। उनके यात्रा – वर्णन में पाठकों को देश-विदेश के भौगोलिक विवरणों के साथ-साथ वहाँ की विभिन्न समस्याओं तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं की जानकारी भी हो जाती है । काका साहब देश की विभिन्न भाषाओं के अच्छे जानकार हैं।

उन्होंने प्राय: अपने ग्रन्थों का अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं में स्वयं प्रस्तुत किया है। इनके विचारों में संस्कृति और परम्पराओं में एक नवीन क्रान्तिकारी दृष्टिकोणों का समावेश रहता है ।

भाषा-शैली— उसमें एक आकर्षक धारा है जिसमें सूक्ष्म दृष्टि एवं विवेचनात्मक तर्कपूर्ण विचार की अभिव्यक्ति होती है। उनकी भाषा में एक नयी चित्रमयता के साथ-साथ विचारों की मौलिकता के स्पष्ट दर्शन होते हैं।

भाषा के साथ-साथ उनकी शैली अत्यन्त ही ओजस्वी है। इन्होंने अपने निबन्धों में प्रायः व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। कुछ रचनाओं में प्रबुद्ध विचारक के उपदेशात्मक शैली के दर्शन होते हैं!

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