Upma rupak utpreksha alankar- उपमा रूपक उत्प्रेक्षा अलंकार

Upma rupak utpreksha alankar- उपमा रूपक उत्प्रेक्षा अलंकार

Upma rupak utpreksha alankar- उपमा रूपक उत्प्रेक्षा अलंकार- उपमा अलंकार – Upma Alankar परिभाषा उदाहरण – रूपक अलंकार उप्रेक्षा अलंकार परिभाषा उदाहरण .

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• अर्थ एवं परिभाषा: –

अलंकर  अलंकार

अलंकार ‘ दो शब्दों ‘ अलम् ‘ तथा ‘ कार ‘ से मिलकर बना है । अलम् का अर्थ ‘ भूषण या सजावट ‘ तथा कार का अर्थ करने वाला ‘ होता है अर्थात् जो अलंकृत या भूषित करे वह अलंकार है ।
अलंकार का शाब्दिक अर्थ है – आभूषण । जिस प्रकार आभूषण शरीर की शोभा बढ़ाते हैं , वैसे ही अलंकार के प्रयोग से काव्य में चमत्कार , सौन्दर्य और आकर्षण उत्पन्न हो जाता है ।

वस्तुतः भाषा को शब्द एवं शब्द के अर्थ से सुसज्जित एवं सुन्दर बनाने और आनन्द प्रदान करने वाली प्रक्रिया को ‘ अलंकार ‘ कहा जाता है । ‘
अलंकार ‘ काव्य भाषा के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं । यह भाव की अभिव्यक्ति को अधिक प्रभावी बनाते हैं ।

अलंकार के प्रकार / भेद

अलंकार मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं
1. शब्दालंकार:- काव्य में शब्दों के प्रयोग द्वारा जो चमत्कार या सौन्दर्य उत्पन्न होता है , शब्दालंकार होता है । अनुप्रास , यमक और श्लेष प्रमुख शब्दालंकार हैं ।

2. अर्थालंकार:- ऐसे शब्द , जो वाक्य में प्रयुक्त होकर उसके अर्थ को चमत्कृत या अलंकृत करने वाला स्वरूप प्रदान करते हैं , ‘ अर्थालंकार ‘ कहलाते हैं । ‘ अर्थालंकार ‘ की निर्भरता शब्द पर न होकर शब्द के अर्थ पर होती है । उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा , अतिशयोक्ति , दृष्टान्त , मानवीकरण इत्यादि प्रमुख अर्थालंकार हैं ।

3. उभयालंकार:- शब्द तथा अर्थ दोनों पर समान रूप से आश्रित रहने वाले अलंकार को ‘ उभयालंकार ‘ कहा जाता है ।

उपमा अलंकार :-

परिभाषा :- जब किसी वस्तु का वर्णन करने के लिए उससे अधिक प्रसिद्ध वस्तु से गुण , धर्म आदि के आधार पर उसकी समानता की जाती है , तब ‘ उपमा अलंकार ‘ होता है ।

अन्य शब्दों में – जहाँ पर उपमेय की उपमान से किसी समान धर्म के आधार पर तुलना की जाए , वहाँ उपमा अलंकार होता है ।

उदाहरण
( i ) मुख मयंक सम मंजु मनोहर ।
• इस काव्य – पंक्ति में ‘ मुख ‘ उपमेय है , ‘ चन्द्रमा ‘ उपमान है , ‘ मनोहर ‘ समान धर्म है तथा ‘ सम ‘ वाचक शब्द होने से उपमा अलंकार परिपुष्ट हो रहा है ।

( ii ) प्रातः नभ था , बहुत नीला शंख जैसे ।

• इस काव्य – पंक्ति में ‘ नभ ‘ की उपमा ‘ शंख ‘ से दी जा रही है । यहाँ ‘ शंख ‘ ‘ उपमान ‘ है , ‘ नभ ‘ उपमेय है तथा ‘ नीला ‘ समान धर्म है । यहाँ ‘ जैसे ‘ समता वाचक शब्द का प्रयोग हुआ है ।

रूपक अलंकार:-
परिभाषा :- जब उपमेय और उपमान में भेद होते हुए भी दोनों में अभिन्नता प्रकट की जाए और उपमेय को उपमान के रूप में दिखाया जाए , तो रूपक अलंकार होता है ।

उदाहरण

( i ) चरण कमल बन्दौ हरिराई ।

• इस काव्य – पंक्ति में उपमेय ‘ चरण ‘ पर उपमान ‘ कमल ‘ का आरोप कर दिया गया है । दोनों में अभिन्नता है , दोनों एक हैं । इस अभेदता के कारण यहाँ रूपक अलंकार है ।

( ii ) उदित उदयगिरि मंच पर , रघुवरं बाल पतंग ।

        बिकसे सन्त – सरोज सब , हरषे लोचन भृंग ।।
• इस काव्य – पंक्ति में उपमेय ‘ राम ‘ है तथा उपमान ‘ सूर्य ‘ है ।

उत्प्रेक्षा अलंकार – 

परिभाषा:- जब उपमान से भिन्नता जानते हुए भी उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है , तब ‘ उत्प्रेक्षा अलंकार ‘ होता है । इसमें प्रायः मनु , मानो , मनौ , मनहुँ , जनु , जानो , निश्चय जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है ।

उदाहरण
( i ) सोहत ओढ़े पीत – पट स्याम सलोने गात ।
  मनहुँ नीलमणि सैल पर आतपु पर्यो प्रभात ।।

• इस में श्रीकृष्ण के श्यामल शरीर पर नीलमणि पर्वत की तथा पीत – पट पर प्रातःकालीन धूप की सम्भावना व्यक्त की गई है । अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है ।

उपमा एवं उत्प्रेक्षा अलंकार में अन्तर – 
उपमा अलंकार में ‘ उपमेय ‘ और ‘ उपमान ‘ में समानता निश्चयपूर्वक प्रकट की जाती है । उदाहरण मुख चन्द्रमा के समान है । चरण कमल के समान है । इन वाक्यों में ‘ मुख ‘ तथा ‘ चन्द्रमा ‘ की और ‘ चरण ‘ तथा ‘ कमल ‘ के बीच समानता निश्चयपूर्वक प्रकट की गई है ।

इस प्रकार उपमा अलंकार में समानता समान गुण ( धर्म ) के आधार पर सामने आती है । उत्प्रेक्षा अलंकार में ‘ उपमेय ‘ और ‘ उपमान में समानता की सम्भावना मात्र प्रकट की जाती है । उदाहरण मुख मानो चन्द्रमा है । चरण मानो कमल है । इन वाक्यों में ‘ मुख ‘ तथा ‘ चरण ‘ के क्रमशः ‘ चन्द्रमा ‘ और ‘ कमल ‘ होने की सम्भावना प्रकट की गई है । अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है ।

उपमा एवं रूपक अलंकार में अन्तर – 
उपमा में ‘ उपमेय ‘ और ‘ उपमान ‘ में समानता स्थापित की जाती है , किन्तु रूपक अलंकार में ‘ उपमेय ‘ तथा ‘ उपमान ‘ में अभेद स्थापित किया जाता है ।
ऊपर दिए गए उदाहरण के अनुसार , उपमा अलंकार में ‘ मुख ‘ को ‘ चन्द्रमा के समान ‘ माना जाता है , जबकि रूपक अलंकार में ‘ मुख ‘ को ‘ चन्द्रमा ‘ ही कहा जाता है ।
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