Essay On Swadesh Prem in Hindi || हिंदी निबन्ध- स्वदेश प्रेम

स्वदेश प्रेम || Essay On Swadesh Prem in Hindi 

Essay On Swadesh Prem in Hindi || हिंदी निबन्ध- स्वदेश प्रेम – यहां पर हमने स्वदेश प्रेमपर आधारित निबंध की चर्चा की है इससे संबंधित अन्य टॉपिक पर भी यही निबंध लिख सकते हैं –अन्य Essay On Swadesh Prem in Hindi || हिंदी निबन्ध- स्वदेश प्रेम – सम्बन्धित शीर्षक – देश प्रेम की भावना , स्वदेश प्रेम एवं राष्ट्रीयता ,करो देश पर प्राण निछावर , जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी स्वदेशानुराग. Watch Video Lecture Click Now

रूपरेखा –

  1. प्रस्तावना ,
  2. स्वदेश प्रेम का अभिप्राय
  3. देश – प्रेम का क्षेत्र ,
  4. देश के प्रति कर्तव्य ,
  5. देश – प्रेम का आदर्श ,
  6. देशभक्तों की कामना ,
  7. देश – प्रेम की स्वाभाविक भावना
  8. . उपसंहार

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प्रस्तावना – जो भरा नहीं है भावों से , बहती जिसमें रसधार नहीं । वह हृदय नहीं है पत्थर है , जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ||”  उक्त पंक्तियां यह स्पष्ट करती हैं कि प्रत्येक सहृदय व्यक्ति में स्वदेश प्रेम की भावना होती है । जिस हृदय में अपने देश के प्रति अनुराग नहीं हैं , वह भावना शून्य , संवेदनाविहीन अर्थात् पत्थर के समान है । जननी और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर माना गया है –

“ जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।

स्वदेश प्रेम का अभिप्राय- देश – प्रेम का तात्पर्य यह है कि जिस देश में हमने जन्म लिया है , उसके प्रति अपने कर्तव्य का पालन करें | हमारे हृदय में देश के लिए त्याग एवं बलिदान की भावना होनी चाहिए । सच्चा देश प्रेमी , इन्हीं भावनाओं से भरा होता है । देश से वह कोई अपेक्षा नहीं रखता , किन्तु आवश्यकता पड़ने पर देश के लिए अपना तन – मन – धन सब कुछ समर्पित करने के लिए तत्पर रहता है । कविवर रामनरेश त्रिपाठी  के शब्दों में –

“सच्चा प्रेम वही है जिसकी तृप्ति आत्मबल पर हो निर्भर | त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है करो प्रेम पर प्राण न्योछावर |”

देश – प्रेम का क्षेत्र – देश – प्रेम का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है । डॉ . वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार राष्ट्र के तीन तत्व हैं – भूमि , जन और संस्कृति हमें इन तीनों से प्रेम होना चाहिए , तभी हम सच्चे देश प्रेमी हैं । जिसे अपने देश का भौगोलिक ज्ञान नहीं , जो यहां की भूमि , पर्वत , नदियों से परिचित नहीं , वह देश प्रेमी नहीं हो सकता । प्रेम के लिए परिचय आवश्यक है । जब तक हम अपने देश से परिचित नहीं , तब तक देश के प्रति प्रेम कोरा ढोंग है । इसी प्रकार अपने देश की जनता से जब तक आत्मीय सम्बन्ध हम नहीं बनाते , उनके प्रति सद्भाव विकसित नहीं करते , उन्हें अपना बांधव नहीं मानते तब तक हमारा देश – प्रेम कोरा दिखावा है । गांधीजी सच्चे देश प्रेमी थे । वे भारत के जननायक थे । जनता उन्हें अपना नेता मानती थी और वे जनता को अपना आत्मीय समझते थे । इसी प्रकार हमें अपने देश की संस्कृति , अपनी भाषा , अपनी बोली पर गर्व होना चाहिए । अंग्रेजी मानसिकता वाले वे लोग जो भारत , भारतीय एवं हिन्दी को घृणा की दृष्टि से देखते हैं , वे देश – प्रेम से अछूते हैं । इसीलिए कवि ने कहा है-

“जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है ।

वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है ।”

देश के प्रति कर्तव्य — जिस देश में हम उत्पन्न हुए , पले – बढ़े और जीवनयापन किया उसके प्रति हमारा कर्तव्य बनता है । देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले सैनिक जो सीमा की सुरक्षा करते हैं , केवल वे ही देशभक्त नहीं हैं अपितु कक्षा में मनोयोग से पढ़ाने वाला वह अध्यापक भी उतना ही देशभक्त है जो भावी पीढ़ी को सद्विचार एवं सद्गुण प्रदान कर रहा है । व्यापारी मुनाफाखोरी न करके , कालाबाजारी न करके , ‘ आयकर एवं विक्रीकर का सही भुगतान करके देश – प्रेम का परिचय दे सकते हैं । हममें से कितने व्यक्ति ‘ टैक्स ‘ का सही भुगतान करते हैं ? सरकार से तो हम अनेक अपेक्षाएँ रखते हैं किन्तु स्वयं देश के लिए क्या करते हैं ? वकील , डॉक्टर , व्यापारी , अध्यापक , इंजीनियर , उद्योगपति यदि सब सही ढंग से अपने ‘ करों ‘ का भुगतान करें तो देश की गरीबी दूर हो जाएगी । राजनेता अपना घर भरने में लगे हुए हैं , वोट की खातिर धार्मिक एवं साम्प्रदायिक उन्माद फैलाते हैं , जातिवाद की राजनीति कर रहे हैं और देश के कर्णधार बने हुए हैं- ऐसे लोगों से देश हित की अपेक्षा नहीं की जा सकती । ये सत्ता लोलुप राजनीतिज्ञ देश को जोंक की तरह चूस रहे हैं , . अतः इनसे ‘ स्वदेश प्रेम की अपेक्षा नहीं की जा सकती ।

देश – प्रेम का आदर्श — भारतवर्ष में अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने हमारे समक्ष देश – प्रेम का आदर्श उपस्थित किया और देश की पताका का सम्मान सुरक्षित रखा । वीर शिवाजी महाराणा प्रताप , छत्रसाल बुंदेला , रानी लक्ष्मीबाई , भगत सिंह , चन्द्रशेखर , सुखदेव , रामप्रसाद बिस्मिल , नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जैसे देशभक्त हमारे आदर्श हैं । महात्मा गांधी , जवाहरलाल नेहरू , तिलक , गोखले , लाला लाजपत राय , सरदार पटेल , इन्दिरा गांधी ने जो रास्ता दिखाया उस पर चलकर ही हम सच्चे देशभक्त बन सकते हैं । लोकमान्य तिलक ने नारा दिया— ‘ स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ‘ तो सुभाष ने कहा –  ‘ तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा । ‘

देशभक्तों की कामना-  देशभक्तों की कामना होती है अपने देश पर प्राण न्योछावर करने की । वे देश के लिए जीते हैं और देश के लिए मर मिटते हैं । स्वतन्त्रता आन्दोलन में देश प्रेम की प्रेरणा देने वाले कविवर माखन लाल चतुर्वेदी की निम्न पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं , जिनमें एक पुष्प यह अभिलाषा करता है—

“मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक |

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाते वीर अनेक ॥”

देश – प्रेम की  स्वाभाविक भावना – देश प्रेम की भावना व्यक्ति में स्वाभाविक रूप से निहित रहती है किन्तु कभी – कभी स्वार्थ , लोभ , लालच आदि के कारण व्यक्ति अपने देश से गद्दारी भी कर जाता है । यह प्रवृत्ति घृणित एवं त्याज्य है । प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के प्रति अनुराग रखता है , भले ही वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियाँ प्रतिकूल ही क्यों न हों । कहा गया है – विषुवत रेखा का वासी जो जीता है नित हाँफ- हाँफ कर । रखता है अनुराग अलौकिक वह भी अपनी मातृभूमि पर || सच्चे देशभक्त का वलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता । देश पर मर मिटने वाले उनकी अमर चिताओं पर प्रतिवर्ष मेले लगते हैं जाते हैं ,

“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले । वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा ।”

उपसंहार – हमें इन देशभक्तों से प्रेरणा लेकर देश के प्रति त्याग एवं वलिदान की भावना का पाठ पढ़ाना है , तभी हम देश के प्रति अपने कर्तव्य का पालन कर सकेंगे । देश प्रेम में दिखावे की जरूरत नहीं है , अपितु इस भाव को हृदय में धारण करने की आवश्यकता है । सच्चा देश – प्रेमी अपने सुख – समृद्धि की नहीं अपितु देश की सुख – समृद्धि की कामना करता है ।

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